रविवार, 11 सितंबर 2016

shri jamuna ji

गुम्मद जी में सिजदा करें ..उनकी मेहर से अपनी निज नजर परमधाम की और ले चले --धाम ह्रदय में बसाएं यमुना जी की अलौकिक शोभा

रंगमहल के पूर्व मे साढ़े चार लाख कोस की दूरी पर जमुना जी अपार शोभा लिये हैं --उत्तर दिशा में स्वर्णिम आभा से झिलमिलाते पुखराज पहाड़ से जमुना जी प्रगट होती हैं और पूर्व की और चलती हैं --चार धाराओं में प्रगट होकर पूर्व की चली जमुना जी की शोभा अपार हैं --

जब जमुना जी चार धाराओं के रूप में प्रगट होती हैं ..उन समय की शोभा बेहद ही मनोहारी हैं ..नूरी जमुना जी का जल वेग से प्रवाहित होकर रूहों के दिलों में बस जाता हैं ..उज्जवल ,निर्मल चेतन जल हमारी जमुना जी का --मिश्री से भी कोट गुना मिठास लिये --जमुना जी की दोनों किनारों पर आयीं जल रोंस --जमुना जल से मिलान करती और तीन सीढ़ी ऊंची पाल

पाल पर आएं नूरी दो थंभों की हारें --दोनों किनारों पर आएं नूरी थम्भ और उनमें आयीं मेहराबें --आपस में एक रूप मिलान कर जमुना जी ,जल रोंस और पाल पर एक नूरी छत की शोभा देते हैं
इन छत पर   देहुरियों की शोभा --देहरियों पर कलश ध्वज पताका की अपार शोभा आयीं हैं -
आधी दुरी चलने के बाद जमुना जी खुले रूप में प्रगट  होती हैं  --जमुना जी के मनोरम दर्शन --जमुना जल का तेज आसमान तक झलक उठता हैं ..जमुना जी के नूरी जल की झलकार आसमान तक यूँ पड़ती हैं कि आसमान जमीन के बीच बस जमुना जल ही नजर आता हैं 
साढ़े चार लाख कोस जमुना जी पूर्व दिशा में बढ़ती हैं ..आधी दुरी तक ढपी आगे खुले रूप से ..जहाँ जमुना जी खुले रूप से दर्शन देती हैं वहां दोनों किनारों  पर आयीं पाल ढंपी हुई हैं ..थंभों  की मेहराबों पर नूरी छत और छत पर देहुरियों की अपार शोभा हैं
यहाँ से जमुना जी दक्षिन दिशा की और मुड़ती हैं --यहाँ की अद्भुत शोभा देखे -मरोड़ पर चार नूरमयी मोहोलात आयें हैं -पाल पर आयें इन मोहोलों की मेहराबों में हिंडोले आयें हैं --दो हिंडोले जल पर दो पाल आए हैं ! चार हिंडोलो की ताली जल पर पड़ती है--जमुना जल के नूरी जल पर लंबे नूरमयी हिंडोलों पर सखियों संग बैठ झूलने के आनंद --ठंडी ठंडी स्नेहिल स्पर्श के अहसास से भिगोती मंद मंद बहती नूरी हवा के झोंके --अर्श की सुगंधि से सराबोर हो अखंड सुखों में धाम धनि श्रीराज-श्याम जी और सखियों संग हिंडोलों के सुख वर्णन से परे हैं
यहाँ मरोड़ से केल पुल तक की शोभा को देखे तो पाल पर पांच मोहोलों और चार चबूतरों की शोभा आयीं हैं --एक विशेष बात --पाल के बाहिरी तरफ पुखराजी रोंस आयीं हैं जिनके वृक्षों नें डालियाँ बढ़ कर जल चबूतरे तक  छाया दी हैं --मोहोलों पर आयीं देहुरियों के   कलश से छूते हुए जमुना जी के जल चबूतरे पर एक नूरी छत्रीमंडल --मोहोलातों और चबूतरों की शोभा इन नूरी चंदवा की छाया के नीचे आयीं हैं -- 

इससे पहले जमुना जी जब प्रगट होकर पूर्व की और चलती हैं वहां भी वृक्षों नें चंदवा डाला हैं
आगे केलपुल --केलपुल ईशान कोने मे उत्तर पूर्व मे आया है ! ……….और बट का पुल अगिन कोने मे दक्षिण-पूर्व मे शोभा ले रहा है

सर्वप्रथम जमुना जी की जमीन से ग्यारह थंभों की ग्यारहें हारें उठी जिनकी छत जमुना जल के बराबर आयीं हैं --५०० मंदिर की लंबी चौड़ी इन नूरी छत पर पुनः थम्भ उठे जिनकी मेहराबों में हिंडोले आयें हैं --पल की पांच भोम छठी चांदनी आयीं हैं

केल पुल की शोभा ..जल पर मानो विशाल मोहोल खड़ा हो  --जवेराहतों से जगमगाता हुआ --पांच भोम की शोभा लिए -भोम भोम दर भोम मेहराबी द्वार ..छज्जों की शोभा --और ठीक सामने अगिन कोने मे (दक्षिण-पूर्व) बट पुल की मनोहारी शोभा --आमने सामने झलकार करते दोनों पुल और दोनों पुलों के बीच सात घाट की शोभा  

सातों घाट बीच में, पुल मोहोल तरफ दोए ।
दोऊ पांच भोम छठी चांदनी, क्यों कहूं सोभा सोए ।। १ ।।७ परिक्रमा 

जल की तरफ नजर की तो एक दिल को छू लेने वाला अद्भुत दृश्य --जमुना जी का जल जब केलपुल के तले (नीचे ) ग्यारह थंभों के दरम्यान बने दस घडनालों से होकर आगे बढ़ता हैं तो जमुना जी दस नहरों के रूप में प्रवाहित होती प्रतीत होती हैं ..हर धारा अपने नए रंग ,नए अंदाज में --


तलें दस घडनाले पोरियां, बीच नेहेरें ज्यों चलत ।
स्याम स्यामाजी सखियां, इन मोहोलों आए खेलत ।। ३ ।।७ परिक्रमा

केल पुल और बट पुल की आमने सामने बराबर झलकार करती शोभा ---और दोनों पुलों के मध्य आएं सात घाट --

केल पुल से आगे बट के पुल तक पाल पर बड़ो वन के वृक्षों की पांच हारें आयीं हैं जिनकी पांच भोम छठी चांदनी सुशोभित हैं --यह वन जिस घाट के सामने आते हैं उन्हीं का रूप ले लेते हैं --केल वन के सामने केल का रूप तो लिबोई वन के आगे लिबोई रूप में शोभित हैं --जमुना जल की तरफ आएं वृक्ष ने अपनी डालियाँ बढाकर जल चबूतरा तक शीतल छाया दी हैं ..जमुना जी के दोनों किनारों पर पाल पर यही शोभा हैं
सामी अरस द्वार के, बीच अमृत बन पाट ।
तीन बाएं तीन दाहिने, ए बेवरा सातों घाट ।। ૭ ।।प्रकरण १६ परिक्रमा 

श्री रंगमहल के मुख्यद्वार के ठीक सामने जमुना जी पर पाट घाट की शोभा आयीं हैं  --अमृत बन की मध्य से जो  दो मंदिर की रोंस जो चाँदनी चौक से आ रही हैं | पुखराजी रोंस से होते हुए वन रोंस से मिल गयी हैं | वन रोंस से तीन सीढी चढ पाल पर आइए और 250 मंदिर की पाल को पार कर तीन सीढी नीचे उतर जल रोंस पर आइए | 250 मंदिर जलरोंस पार करे तो जल मे 150 मंदिर का लंबा चौड़ा पाट घाट सुशोभित हैं।
अमृत बन की मध्य दो मंदिर की रोंस के सामने जमुना जी में जल के भीतर सोलह थम्ब नीलवी के आएँ हैं | यह थम्भ एक भोम के ऊँचे उठे और इन पर एक पाट पढ़ गया |चारों तरफ तीन तीन मेहराबे आईं हैं | रंगमहल की तरफ वाली अकशी मेहराबे हैं | तीन दिशा में- दोनों पुलों की तरफ और अक्षर धाम की तरफ की खुली मेहराबे हैं | हर मेहराब 50-50 मंदिर की होने से 150 मंदिर का लंबा चौड़ा पाट घाट हुआ | जल की तीन धारा पाट घाट के नीचे से होकर जाती हैं और तीन अक्षर धाम की तरफ वाले पाटघाट के नीचे और चार धारा मध्य से बहती है |घाट पर बारह थम्ब आए हैं | चारो कोनो में नीलवी के थम्ब आएँ हैं | दक्षीण दिशा में मध्य हीरा के थम्ब हैं | अक्षर धाम की और माणिक के दो थम्ब मध्य मे आए हैं |


रंगमहल की और पाट घाट में पाच के थम्ब निलवी के थम्बो के मध्य शोभा ले रहे हैं

उत्तर दिशा में पुखराज पहाड़ की और पाट घाट मे पुखराज के थम्ब नीलवी के थम्बो के मध्य शोभा ले रहे हैं --थम्बो के मध्य कठेड़ा शोभा ले रहा है

पात घाट के दोनों और तीन तीन घाट आएं हैं -- इन घाटो की संधि मे जल चबूतरे पर 250 मंदिर का लंबा चौड़ा चबूतरा पाल से मिलान करता हुआ उठा ! जिसके दाएँ बाएँ जल रोंस पर 3-3 सीढी उतरी है ! जल तरफ जल चबूतरे पर छे सीढीयाँ उतरी हैं ! मध्य चबूतरे पर 100 मंदिर का लंबा चौड़ा मोहोल आया है ! हर दिशा मे 50-50 मंदिर और मध्य बड़े द्वार की शोभा है ! भीतर एक हार थम्बो की है मध्य कमर भर उँचा चबूतरा आया है जिस पर थम्ब आए है ! थम्बो के मध्य क़ठेड़ा आया है ! गीलम सिंघासन कुर्सियों की शोभा अद्भुत है ! 100 मंदिर की चाँदनी की छत पर मध्य चबूतरे के ठीक उप्पर देहुरई कलश ध्वजा की शोभा है ! पाल पर बड़ोबन के पाँच भोंम छठी चाँदनी के जो बड़ोबन के पैड आए है उनमे जमुना जी तरफ वाली पेडो की हार ने देहुरी   की नोक पर से झलूब कर जमुना जी जलचबूतरे तक छतरिमंडल दिया है

साथ जी ,जमुना जी के दोनों नूरी पुलों की शोभा परमधाम की हैं ..इनकी नूरी जगमगाहट आसमान  तक झलकती हैं --दोनों पुलों के आमने सामने आएं झरोखे ...और इनमें आएं हिंडोलों में जब रूह धाम धनि के संग झूला झूलती हैं उन सुखों की क्या कहूँ ?पांच भोम छठी चांदनी के यह पुल अत्यन्त ही मनोहारी हैं ,सुन्दर क्रीड़ा स्थली हैं --


जमुना जी के दोनों किनारों पूर्व और पश्चिम में पाल पर वन मोहोल आयें हैं तो उत्तर दक्षिन जवेरों के मोहोल यह पुल  शोभयमान हैं --इन दोनों पुलों के तले से होकर जमुना जी दस नहरों के रूप में हो जाती हैं तो वह द्र्श्य अत्यधिक मनोहारी हैं 

महामत कहे ऐ मोमिनो, ए सुख अपने अरस के ।
एक पलक छोडे नहीं, भला चाहे आपको जे ।। १८ ।।१६प्रिक्र्म 

यह सुख ,पुलों के सुख हो या घाटों के सुख हो ,पात घात के सुख हो या जमुना जल में झीलन के सुख हो --यह सुख हमारे हैं --अगर मेरी रूह अपना भला चाहती हैं तो एक पल के लिये भी इन सुखों से दूर नहीं होना --चितवन के माध्यम से ही यह सुख प्राप्त होते हैं

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