बुधवार, 7 सितंबर 2016

मेरी रूह तू चल अपने निजघर

मेरी रूह तू  चल अपने निजघर

श्रीराज श्यामा जी चरणों में नमन करती मेरी रूह तारतम का मौन जप कर रही हैं | श्री राज जी की मेहर इलम  से मेरी रूह पहुँची --
चाँदनी चौक -रंगमहल के सामने 

मेरी रूह देखती हैं चाँदनी चौक की शोभा 

अमृत वन के तीसरे हिस्से में आया विशाल चाँदनी चौक 

जिसकी पूर्व दिशा में नौ भोंम दसवी आकाशी का रंगमहल सुशोभित हैं 

और तीन दिशा में अमृत वन के वृक्षों की महेराबे  --
और उनमें से झलकते अमृत वन की मनोहारी शोभा दिख रही हैं 

नीचे हीरे ,मोती ,माणिक की तरह बिखरी रेती --अत्यंत ही कोमल --और तेज तो इतना की आसमान तक झलकार कर रहा हैं 
अहो ! नीचे रेती का नूर ,सामने से आता रंगमहल की नूरी जोत और वनो की जोत आपस में टकरा कर सुखदायी प्रतीत हो रही हैं 

चाँदनी चौक के मध्य में नूरी नंगों की रोंस जो पाट घाट से सीधा अमृत वन से होती हुई चाँदनी चौक में होती हुई  रंगमहल की सीढ़ियों तक ले जा रही हैं 

दाईं और देखती हूँ तो कमर भर ऊँचे चबूतरे पर नूरी वृक्ष --दो भोंम की शोभा लिए 
बाईं और ऐसे ही शोभित हरा वृक्ष 

मैं बाईं और जा  रही हूँ --नूर रेती ,कोमल इतनी की मेरे पाँव घुटनों तक धँस रहे हैं ..वो भी पिऊ की आशिक चेतन हैं जो मेरी रूह से बाते करती हैं --रेती का एक एक कण में पिया का अक्श नज़र आया 

मेरी रूह चबूतरे की किनार पर पहुँची 
सुंदर सीढ़ियाँ 
मैं तीन सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ ..
चबूतरे पर पहुँची --नीचे अत्यंत ही कोमल पशमी गिलम

फूल ही फूल बिछे हुए --ठीक मध्य में एक मंदिर का तना
जिसने कुछ इस तरह से अपनी डालियां बढ़ाई कि  उनकी छाया चबूतरे तक ही रहती हैं शीतल छाया --मेरे लिए सुंदर कुर्सियाँ हाजिर --मैं बड़ी ही अदा से विराजमान हुई --अरे साथ मैं आप सब प्यारी सखियाँ भी तो हैं कितने नूरी स्वरूप हैं मेरी सखियों के --
तने में सामने सीढ़ियाँ ..हम ऊपर जा रहे हैं 

वृक्ष की दूजी भोंम--नीचे भी फूलों का फर्श और ऊपर भी फूलों का छतरिमंडल--
फूलों के ही सिंहासन ,सेज्या ,
वृक्ष की तीसरी चाँदनी पर अति सुंदर फूलों का गुमत ,कलश और ध्वजा 
दाई और भी ऐसे ही अत्यंत की मनमोहक शोभा 

अब मेरे श्री राज जी हमे सीढ़ियों की और बुला रहे हैं 
हम वहाँ पहुँचे ..सामने सीढ़ियाँ ,,,हम पहली सीढ़ी चढ़ रहे हैं ,दूसरी --तीसरी --चौथी --और जैसे पाँचवीं सीढ़ी पर आए तो देखी एक प्यारी सी शोभा 
पाँचवीं सीढ़ी के साथ ही पाँच हाथ के चान्दा की शोभा --
दसवी ,पंद्रहवी सीढ़ी पर भी ऐसे ही शोभा --इस तरह से सौ सीढ़ियाँ बीस चाँदों सहित पार कर रही हूँ ...दाएँ बाएँ स्वर्णिम कठेड़े --उनमें आएँ चित्रामन के सजीव पशु पक्षी मानो मेरे साथ साथ  चढ़ रहे हैं ..पिऊ पिऊ ,तूही तूही की गूंजार 

मैं धाम द्वार के सम्मुख पहुँची ---सामने मेरे धाम का द्वार --बादशाही शोभा लिए🙏🏾🙏🏾

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