रविवार, 11 सितंबर 2016

kunj-nikunj

प्रेम प्रणाम साथ जी ,

आज श्री राज जी प्रदत्त बेशक इलम श्री कुलजम स्वरूप के प्रकाश में हद बेहद से परे अखंड ,दिव्य भूमि ,परमधाम के पच्चीस पक्षों में से एक पक्ष कुञ्ज-निकुंज की शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसाने का प्रयास करेंगे -

जमुना धाम तलाब के, बीच में कै विवेक ।
कुंजवन मंदिर कै रंगों, कहा कहूं रसना एक ।। 8 /7 परिक्रमा ।।

श्री जमुना जी ,श्री रंगमहल और हौजकौसर तालाब के बीच के कुञ्ज -निकुंज वन के कई रंगों में झिलमिलाते ,अपार ज्योति से जगमगाते नूरी फूलों के मंदिर आएं हैं --इन मंदिरों की शोभा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता फिर भी श्री राज जी अपने हुकम से श्री महामति जी से वर्णन करवा रहे हैं ताकि ब्रह्म सृष्टियों को अखंड सुख मिले ,वह संसार में मोह ,ममता के रिश्तों से निकल अपनी आत्मा के कल्याण का विचार करें और तारतम वाणी के प्रकाश में अखंड ,दिव्य भूमि का चितवन कर सकें

उज्जल रेती मोती निरमल, जोत को नाहीं पार ।
आकास न मावे रोसनी, झलकारों झलकार ।। ९।।


कुञ्ज निकुंज वन की रेती कैसी हैं ? साथ जी ,आप इसे साधारण रेती न समझे ..यह तो तो दिव्य परमधाम की रेती हैं ,नूरमयी रेती --जिसका कण कण अक्षरातीत श्री राज जी के धाम ह्रदय का व्यक्त स्वरूप हैं । तो उस भाव से शोभा को दिल में ले --कुञ्ज निकुंज वन के रेती अति उज्जवल हैं ,मोती के माफक निर्मल रेती हैं --इनकी अपार जोत हैं ,इसकी ज्योति की किरणे आसमान तक झलकती हैं ,हर और निर्मल  सुगन्धित रेती की सुखदायी झलकार ,अखंड सुखदायी जगमगाहट 
और रेती की कोमलता को महसूस करे ,रेती अत्यंत नरम हैं ,कोमलता को लिये हैं ,चेतन हैं --रूहें जब इन नूरमयी रेती पर पाँव मुबारक धरति हैं तो घुटनो तक पाँव धंसते हैं 

कै पुरे इन बन में, तिनके बडे द्वार ।
तिन द्वार द्वार कै गलियां, तिन गली गली मंदिर अपार ।। १०।।


इन कुञ्ज निकुंज वन जहाँ फूलों के नूरमयी मंदिरों की अपार शोभा हैं ,वहां इन परमधाम के चेतन वनों में कई मोहल्ले हैं जिनके बड़े बड़े दरवाजे सुशोभित हैं ,फूलों के द्वार --अब इन फूलों के दरवाजों से निकल नूरी गलियों में जाएँ --कुञ्ज निकुंज की नूरमयी गलियां --जिनमें गलियों के दोनों और निर्मल  ,उज्जवल ,सुगन्धित ,प्रकाशमान जल की नेहेरें प्रवाहित हो रही हैं और नहरों के दोनों और नूरमयी फूलों के रंगबिरंगी शोभा को धारण किये फूलों के अति सुन्दर मंदिरों की हारें हैं

कै मंदिर इत फिरते, कै चारों तरफों मंदर ।
तिनमें कै विध गलियां, निकुंज बन यों कर ।। ११।।


कुञ्ज निकुंज वनों में फूलों की मोहोलाते कई प्रकार से शोभायमान हैं ,दिव्य परमधाम में कुंज निकुंज मे सब जोगबाई फूल पत्तियो की आई है ! नूरी लताओ ने फूल से फूल ,पत्तियों से पत्तियों ने मिलकर नूरी मोहोलो मंदिरो की शोभा दी है-- कुंज मोहोल चौरस और निकुंज गोलाई मे शोभा को धारण किए अद्भुत छ्टा बिखेर रहे है --कुञ्ज और निकुंज मोहोलातों से कई गालियां निकली हैं ,इन नूरी गलियों की शोभा अपार हैं --

मंदिर दिवालें गलियां, नकस फल फूल पात ।
मंदिर द्वार देख देख के, पलक न मारी जात ।। १२।।


इन दिव्य भूमि के नूरी कुञ्ज निकुंज वन में आएं गोल और चौरस मोहोलातें ,नूरी दीवालें और गलियों की अपार शोभा हैं --हर शह नूरमयी अति कोमल फूलों ,फलों और नाजुक नाजुक पत्तियों से जड़ित हैं ,मंदिरों की ,दीवारों की ,दरवाजों की इतनी प्यारी अलौकिक मनोहारी शोभा हैं कि एक बार यह शोभा नज़रों में आ जाएँ तो पालक भी नहीं झपकेगी 

कै पूरे कै छूटक, कै गलियों बने हुनर ।
या गलियों या मंदिरों, सब छाया बराबर ।। १३।।


कुञ्ज निकुंज वनों में रमन करती हैं सखियाँ ..यहाँ कई प्रकार के छोटे छोटे नगर हैं जिनमें बहुत ही हुनर के साथ  नूरी गालियां आयीं हैं ,बेहद ही प्यारी ,सुखद शोभा को लिये कुञ्ज वन की गालियां हो या मंदिर ,मोहोलाते सभी पर  नूरी वृक्षों ने डालियाँ बढ़ा कर फूलों ,पत्तियों से एक सामान शीतल छाया प्रदान की हैं --इन शीतल सुंगंधित शीतल चंदवा के तले  फूलों के मंदिरो गलियों की शोभा खुशहाल करने वाली हैं 

इन बन बोहोतक बेलियां, सोभा अति सुंदर ।
फल फूल पात कै रंगों, या बाहेर या अंदर ।। १४।।


कुंज-निकुंज वन में बहुत तरह की मनोहारी बेलें हैं जिनकी शोभा अति सुन्‍दर है --अनेक रंग के फल ,फूल और पत्ते भी हैं जो अंदर बाहर समान रूप से सुन्‍दर हैं --बेलियों की अति मनोहारी शोभा --बेलियाँ कुछ इस तरह से फैली है की अति सुन्दर दीवालें और मन्दिरों के कुञ्ज बन गए हैं

कै छलकत जल चेहेबच्चों, करत झीलना जाए ।
अतंत खूबी इन बन की, क्यों कहूं इन जुबांए ।। १५।।


कुञ्ज निकुंज वन में कई जल के बड़े बड़े कुण्ड हैं ,चहबच्चे हैं --इनके अति उज्जवल ,सुगन्धित जल आप श्री राज जी श्यामा जी और सखियाँ झीलना करती हैं ,यह अत्यंत ही सुखदायी मनोहारी स्थल हैं ,इन वन की खूबी अपार हैं इन जुबान से कैसे वर्णन हो ?

फूल पात जो कोमल, रगा तिनमें कोई नाहिं ।
तिनके सेज चबूतरे, कई बने जो मोहोलों माहिं ।। १६।।


फेर फेर वर्णन कर रहे हैं ताकि आप नूरी कुञ्ज वन की शोभा को कुछ दिल में ले सके -कुञ्ज वन में फूल ,पत्तियों का जो वर्णन हो रहा हैं वह अर्श अज़ीम के नूरी फूल ,पत्तियां हैं जो अत्यंत कोमल हैं ,जिनमें कोई नसे नहीं हैं । अत्यंत ही कोमल नूरी फूल और  पत्ते हैं जिनके सेज्या और चबूतरे हैं --बेहद ही सुखदायी कोमल सेज्या और कोमलता लिये चबूतरे --और इनसे बने अति कोमल ,नरम बैठके मंदिरो और मोहोलातों में आयीं हैं --

कुञ्ज निकुंज में सम्पूर्ण शोभा नूरमयी फूलों की हैं ..वहां के मंदिर ,मोहोलाते ,नूरी सेज्या सब नूरी फूलों के हैं ..फूलों की कोमलता देखे उनमें कोई नसे नहीं हैं --अति कोमल हैं नूरी फूल और फूलों की सेज्या ,बैठक के सुख तो अपार सुखदायी हैं 

इत कै रंग जवेरन के, तिन कै रंगों कै नूर ।
ए मिसाल इनकी, आकास न माए जहूर ।। १૭/7।।परिक्रमा 


फूलों की सम्पूर्ण शोभा कहीं हैं --पर रूह के नयनों से ,तारतम वाणी के उजाले में देखे तो शोभा कई कोट गुनी बढ़कर हैं --कई रंगों के जवेराहत हैं --इनसे अनेक प्रकार की निकलने वाली नूरी रंगो की अनन्त नूरी किरणें आकाश तक झलकार करती हैं --इन अनुपम शोभा का वास्तविक वर्णन तो हो ही नही सकता --अर्शे सहर ,चितवन से ही उन शोभा को महसूस कर सकते हैं--

कै बन स्याह सुपेत हैं, कै बन हैं नीले ।
कै बन लाल गुलाल हैं, कै बन हैं पीले ।। १८

कुञ्ज निकुंज वनों में वनों की शोभा बेशुमार हैं --वनों की मनोरम शोभा देखे तो कई नूरी वन काले रंग में झलक रहे हैं तो कई वन उज्ज्वलता लिये ,उज्ज्वलता में भी नरमाई लिये श्वेत रंग में जगमगा रहे हैं --तो वन वन नीले रंग में हैं बेहद ही सुखदायी रूहों के वास्ते उनकी शोभा हैं --कई वन गहरी लालिमा लिये हैं तो कई वन गुलाबी महक से सम्पूर्ण परमधाम को महक रहे हैं तो कुछ वन पीले हैं --

कै बन हैं एक रंग के, कै एक एक में रंग दस ।
इन विध कै अनेक हैं, कै जुदे जुदे रंगों कै रस ।। १९


यहां कुंज वन में कई वन एक ही रंग के हैं और कई वनों में एक एक में दस रंग हैं --ऐसे कई तरह के रंगों के अनेक वन हैं जिनसे अनेक तरह की आनंद की रस धाराएँ प्रवाहित होती हैं --इश्क ,प्रेम ,प्रीति ,आनंद के रास में डूबी रूहें इन वनों में श्री राज श्याम जी के संग हान्स विलास करती हुई अखंड सुख लेती हैं -

फल फूल छाया पात की, खुसबोए जिमी और बन ।
आकास भर्यो नूरसों, किया रेत बन रोसन ।। २०


स्याह ,सफ़ेद ,लाल  कई रंगों की शोभा में खिले खिले वनों की मनोहारी शोभा --और इन वनों में नूरी फूलों ,फलों और  पत्तियों की एकल शीतल छाया बेहद ही खुशहाल करने वाली हैं --यहाँ की नूरमयी जमीन और वन नूरी सुगंधी से सराबोर हैं -- इनकी जोत से आकाश मे भी नूर ही नूर पसर रहा है जिससे निर्मल रेती और वन जगमगा रहें हैं --

अनेक मेवे कै भांतके, सोए कहूं क्यों कर ।
नाम भी अनेक मेवनके, और स्वाद भी अनेक पर ।। २१

कुञ्ज निकुंज वन में अनेक प्रकार के नूरी मेवें हैं कहाँ तक उन मेवों की खूबी का वर्णन करूँ ?मेवों के नाम भी अनेक हैं और स्वाद भी अनेक --

कै मीठे मीठे मीठरडे, कै फरसे फरसे मुख पर ।
कै तीखे तीखे तीखरडे, कै खटे खटे खटुबर ।। २२


कई मेवें मीठे हैं अत्यंत ही मीठा स्वाद लिये तो कुछ मेवे कसैलेपन के साथ मिठास का अहसास देते है--वहीं  तो कुछ तीखे हैं !कुछ मेवे खट्टे हैं --एक एक मेवें में कई प्रकार के रस हैं -उन रसों में भी कई प्रकार के स्वाद हैं जो आत्मा को अखंड सुख देते हैं ,अद्वैत भूमि के इन वनों में कई मेवे ज़मीन के अंदर पैदा होते हैं तो कई लताओं पर फलते हैं तो कुछ वृक्षों पर--कई मेवे फलों के गूदे से तैयार होते है तो कई उनके बीजो से तैयार होते हैं--मेवें वो भी अर्शे अजीम के मेवें उनके गुणों को ,रस का कैसे वर्णन हो ?

बोहोत रेती इन ठौर है, निपट सेत उजल ।
खेल खुसाली होत है, सखियां पांऊं चंचल ।। २५

इन नूरी वनों में बहुत रेती हैं --नूरमयी रेती ,उज्ज्वलता लिये श्वेत रेती --एक एक कण मानों हीरे जगमगा रहे हो ---नूरी वनों की रेती अत्यंत कोमल हैं ,इन रेती में बहुत खेल खुशहाली होती हैं ।ब्रह्म अँगनाएँ जब अपने चंचल कदमों से यहां प्रियतम के साथ विध विध के खेल खेलती हैं तो वह समय  अत्यधिक आनंदकारी होता है।

इत कै चौक छाया मिने, कहूं चांदनी चौक ।
स्याम स्यामाजी सखियन सों, खेल करें कै जौक ।। २६


इन वनों में कई चौक ,बैठन के सुखदायी स्थल वनों की शीतल छाया में  हैं तो कहीं खुली चांदनी में  बैठन के ,रमन के चौक हैं जिन्हें चांदनी चौक कहा जाता हैं --यहाँ आप श्री राज श्यामा जी और सखियों के साथ अनेक प्रकार के प्रेममयी क्रीड़ाएं करते हैं ,हान्स विलास करते हैं 

क्यों कहूं बनकी रोसनी, सीतल वाए खुसबोए ।
ए जुबां ना केहे सके, जो सुख आतम होए ।। २૭-


परमधाम के नूरी वन ,कुञ्ज निकुंज वन की नूरी रौशनी का क्या वर्णन हो ? जहाँ शीतल मंद सुगंधित हवा के झोंके चलते हैं--इन वन के सुख जुबान से नहीं कह सकते ।यह दिव्य भूमि परमधाम के ,अक्षरातीत श्री राज जी के अखंड सुख हैं  जो आत्मा से ही अनुभव हो सकते हैं ।

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