*||अब रसोई के चौक पर नज़र कीजिए ||*
*पूर्व दीवार में दस मंदिर हैं |पाँच मंदिर दाहिनी तरफ ,तथा पाँच मंदिर बाईं तरफ हैं |और बीच में दस मंदिर की दहेलान हैं |उस दहेलान में दस दस थम्भो की दो हारें सुशोभित हैं |* *दक्षिण की तरफ दस मंदिर हैं और दस मंदिर की दहेलान हैं |उस दहेलान में बाहिर की तरफ* +*दीवार हैं |और भीतरी तरफ दस थम्भ प्रकाशमान हैं तथा पश्चिम की तरफ बीस मंदिर हैं एवम् उत्तर की तरफ दस मंदिर की दहेलान हैं |उस दहेलान में बाहिर की तरफ दीवार हैं और भीतर की तरफ दस मणिमय थम्भ हैं |* *(बाहिर की तरफ इस दीवार में दस दरवाजे हैं |इसी प्रकार उत्तर की दीवार में भी दस दरवाजे हैं |)*
*ईशान कोण से लेकर पश्चिम की तरफ जो मंदिर हैं तिनमें से कोने का मंदिर छोड़कर कर दूसरा श्याम मंदिर हैं ,तीसरे में सीढ़ियाँ और चौथा श्वेत मंदिर हैं |इस चौक में पचास मंदिर हैं और तीस मंदिर की तीन जगह पर दहेलान हैं | प्रत्येक मंदिर में देखने के चार चार और गिनती में तीन तीन महेराबें हैं |और एक एक मंदिर के लंबे चौड़े चार दिशा में चार दरवाजे हैं तथा चोर कोनों में चार मंदिर हैं ,ये आठ मंदिर पूर्व कथित अस्सी मंदिर से अधिक हैं | इस चौक के बाहिरी तरफ गली में चारों तरफ पचीस पचीस अथवा कुल एक सौ थम्भ घेर के विध्यमान हैं | भीतरी तरफ प्रत्येक दिशा में उन्नीस उन्नीस थम्भ हैं |चारों तरफ के मिल कर छहत्तर थम्भ हैं और बीच में सत्रह मंदिर का लंबा चौड़ा कमर भर ऊँचा चबूतरा हैं |उस चबूतरे की किनार पर एक तरफ सत्रह थम्भ हैं चारों तरफ के मिलकर अड़सठ थम्भ चबूतरे के ऊपर जाज्वलयमान हैं |
इस चबूतरे की चारों दिशाओं में तीन तीन सीढ़ियाँ हैं एवम् फिरता कठेड़ा हैं | चबूतरे के ऊपर चंद्रवा और नीचे गिलम (गलीचा )सुशोभित हैं |चबूतरा के बीच में रत्न जडित सिंहासन हैं |*
अपनी सुरता को ले चले धाम की और --धाम दरवाजा पार करे ..आगे एक गली पार की तो आ पहुंचे
28 थम्भ के सुखदायी चौक में ..चारों और नूरी थम्भ और चौक में आयी खुशहाल करने वाली बैठके --
चौक को पार किया तो एक नूरमयी गली और आगे पहली चौरस हवेली जो रसोई की हवेली हैं
रसोई की हवेली की पूर्व की अलौकिक शोभा को निरखे --मध्य में जगमग करती ग्यारह मंदिर की दहलान जिनमें थंभों की दो हारे आयीं हैं ,थंभों की अद्भुत नक्काशी ,चेतन चित्रामन और थंभों में अति सुन्दर मेहराबें देखे --दहलान के दोनों और 5 -5 मंदिरों की शोभा आयीं हैं ..रंगों -नंगों से झलकार करते धाम के मंदिर --
पूर्व की शोभा देखते हुए दहलान से (एक मंदिर की चौड़ी और ग्यारह मंदिर की लंबी )होते हुए हवेली के भीतर चले --चारों तरफ नजर घुमाई तो देखा की हवेली की चारों दिशा में मंदिर आएं हैं --21 -21 मंदिर जिनके ठीक मध्य का मंदिर मुख्य दरवाजा की शोभा लिये हैं --
मंदिरों के भीतरी तरफ एक नूरमयी गली फिरी हैं ,फिर एक नूरमयी थंभों की हार ,पुनः एक गली --दूसरे शब्दों में कहे तो मंदिरों के भीतरी तरफ एक थम्भ की हार दो गालियां शोभा ले रहीं हैं --
इनके भीतर की और एक कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिसकी किनार पर थम्भ आयें हैं --चारों दिशा में दरवाजे आएं हैं जिनसे तीन तीन सीढियां उतरी हैं औए शेष जगह घेर कर कठेड़ा आया हैं --चबूतरा पर अति सुन्दर पशमी गिलम बिछी है और ऊपर नूरी चंदवा झलकार कर रहा हैं --
अब देखते हैं --हवेली की उत्तर दिशा की शोभा --उत्तर की और मध्य के मुख्य द्वार से पहले वाले मंदिर आयें हैं --जिनमें कोने वाला मंदिर छोड़कर दूसरा मंदिर श्याम मंदिर हैं जहाँ लाड बाई का जूथ बड़े ही प्रेम से रसोई तैयार करता हैं --इन मंदिर के आगे सीढ़ी वाला मंदिर हैं --और फिर श्वेत मंदिर जिनमें सामग्री रखी जाती हैं --
इसी प्रकार से दक्षिन की दीवार की शोभा हैं --मध्य के मुख्य दरवाजा से पहले नूरमयी मंदिरों की अपार शोभा हैं और दरवाजे से आगे दहलान आयीं हैं --
पश्चिम में मंदिरों की शोभा हैं और मध्य में मुख्यदरवाजा --
इन दरवाजा से बाहर निकले तो देखा हवेली को घेर कर एक थम्भ की हार आयी हैं और मुख्य दरवाजा के दोनों और चबूतरा की शोभा हैं मानिंद धाम दरवाजा के --
हवेली के चारों दिशा में मुख्यद्वार की शोभा होनी चाहिये पर यहाँ पूर्व की और मुख्य दरवाजा नहीं आया हैं क्योंकि दहलान आयीं हैं --
यह रसोई की हवेली नवों भोम में हैं --इसी प्रकार से सब चौरस हवेली आयीं हैं बस उनमें दहलान की शोभा ना होकर वहां मंदिर आयें हैं --रसोई का मंदिर ,सीढ़ी का ,श्वेत मंदिर भी रसोई की हवेली में ही हैं अन्य में नहीं
प्रणाम जी
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