शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

मूल मिलावा की अलौकिक शोभा

मूल मिलावा की अलौकिक शोभा 

*पाँचवा चौक मूल मिलावे का हैं ,जिसमें साठ मंदिर हैं और चार दरवाजे चारों दिशाओं में हैं |*

रूह को हक श्रीराज जी अपनी अपार मेहर से दिखा रहें हैं कि रंगमहल का पाँचवा चौक मूल मिलावे का हैं |जिसमें साठ मंदिर हैं और चार दरवाजे चारों दिशाओं में हैं |रंगों नंगों से झिलमिलाते जवेरातों के मंदिर एक रस हैं ,चेतन हैं ,उनकी दीवारों पर आया चित्रामन अद्भुत हैं |घेर कर आएँ इन साठो मंदिरों के दरवाजे सुशोभित हो रहें हैं |

इस नक़्शे चौथी हवेली की पश्चिमी दीवार के मंदिर ..एक हार मंदिरों की सीधी 

आगे मूल मिलावा की गोल हवेली को घेर कर गोलाई में थंभों की हार --थम्भ मेहराबों सहित 

आगे हलके पीले रंग में घेर कर आएं मंदिर दर्शाये हैं 👆👆👆👆👆

गोलाई में आएँ इन मंदिरों के द्वार एक से बढ़कर एक सुन्दर लग रहें हैं | द्वारों के पल्ले ,चौखट की शोभा वर्णन से परे हैं | पिऊ जी के आशिक अति सुन्दर यह द्वार चेतन हैं जो रूह के आगमन पर स्वतः ही खुल जाते हैं |मंदिरों के दरवाज़ों और किनार पर नूरमयी रत्नों जडित लाल रंग की दोरी सुशोभित हैं | यह दोरी सभी मंदिरों की किनारों पर शोभा ले रही हैं | रूह की नज़र से देख तो सही ,इनकी शोभा अत्यधिक हैं | इन दोरी के साथ साथ सब स्थानों पर कांगरी की शोभा हैं जिनके बीच में चित्रामन सजे हैं |साठो मंदिरों नई नई जुगति से शोभा ले रहें हैं | कहीं फूलों से महकते मंदिर आएँ हैं तो कई जवेरातों से जड़े मंदिर हैं ,कोई कोई मंदिर एक ही रंग में झलकार कर रहा हैं तो दूसरे मंदिर में अनेक रंग रोशन हैं |

*बाहेर और चौसठ थम्भ अंदर एवम् चौसठ थम्भ चबूतरे की किनार पर हैं |चबूतरा कमर भर ऊँचा हैं |तीन तीन सीढ़ियाँ चारों तरफ हैं |किनार पर कठेड़ा प्रकाशमान हैं |*

मंदिरों की शोभा को धाम हृदय में बसा कर अब रूह आगे बढ़ती हैं और देखती हैं कि चौसठ थम्भ मंदिरों के बाहिरी और हैं और चौसठ थम्भ अंदर एवं चौसठ थम्भ चबूतरे की किनार पर हैं |रूह एक एक थम्भ को देख रही हैं , मानो सूर्य के सामने सूर्य हो | एक एक थम्भ की नक्काशी ,उनका चित्रामन का नूर ,उनका जोत ,रूहों के लिए पल-पल बढ़ रहा हैं | नूर के नूर का क्या वर्णन हो ? थम्भो के मध्य का नूर उल्लासित कर रहा हैं | यह नूर धाम धनी श्री राज जी का लाड़ हैं जो उनकी प्यारी रूह को इश्क ,प्रेम की अनुभूति करा रहा हैं |
मूल मिलावे के मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा सुशोभित हैं |चबूतरे की चारों दिशा में द्वार आएँ हैं |जिनसे तीन तीन सीढ़ियाँ उतरी हैं | चारों द्वारों के मध्य में सोलह-सोलह थम्भ शोभा ले रहे हैं |सोलह थम्भो के मध्य कठेडा आया हैं | इस प्रकार से चबूतरे की किनार पर थम्भो और उनके मध्य कठेड़े की अति मनोहारी शोभा आईं हैं | हे रूह ,इन अलौकिक शोभा को निज नयनों से देख |एक एक थम्भ की शोभा को निहार | उनके मध्य आएँ फूलों से महकते कठेड़े की अनुपम शोभा को धाम हृदय में बसा | फेर फेर शोभा को निरख प्यारी रूह |



                         *अब चौसठ थंभों का  पृथक पृथक वर्णन करते हैं |पूर्व दरवाजे पर दो थम्भ पाच के हैं |आस पास थम्भ नीलवी के हैं |पश्चिम दरवाजे पर दो थम्भ नीलवी के हैं|आस पास दो थम्भ पाच के शोभित हैं |दक्षिण के दरवाजे पर दो थम्भ माणिक के हैं आस पास के दो थम्भ पुखराज के शोभित हैं | उत्तर के दरवाजे पर दो थम्भ पुखराज के हैं ,जिनके आस पास दो थम्भ माणिक के हैं |


चारों खाँचों में बारह बारह थम्भ हैं -

-हीरा लसनियां गोमादिक ,मोती पाना  प्रवाल |
हेम चांदी थम्भ नूर के ,थम्भ कंचन अति लाल ||

पिरोजा और कपूरिए ,याके आठ थम्भ रंग दोय |
गिन छोड़े दोऊ द्वार से ,बने हर रंग चार चार सोय ||
                                                                                                                                                                            ये अड़तालीस थम्भ चारों खाँचों के हुए और सोलह चारों दरवाज़ों के हुए |*


पूर्व दिशा में पाच के दो थम्भों के दरम्यान आया महेराबी द्वार हरित आभा बिखेर रहा हैं जिनके दोनों और नीलवी के थम्भ शोभित हैं | पश्चिम दिशा में नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिनसे नीली महक से जगमगाते द्वार की शोभा बन गयीं हैं | इनके दाएँ बाएँ पाच के नूरी थम्भ शोभा ले रहें हैं |
ऊतर दिशा में पुखराज के दवार के दोनों और माणिक के थम्भ है| दक्षिण मे माणिक के द्वार के दोनों और पुखराज के थम्भ आये है |
और  चारों द्वारों के मध्य में आएँ चारों खाँचों में हीरा, लसनिया, गोमादिक, मोती, पन्ना, परवाल, हेम, नूर, चाँदी, कँचन, पिरोजा और कपूरिया के थम्भ आये है ।रूह थम्भो की शोभा को देख रही हैं | थम्भ के निचली तरफ चार हांस आएँ हैं ,उसके ऊपर आठ और मध्य में थम्भ सोलह हांस का शोभित हैं फिर पुनः आठ और चार हांस क्रमशः आएँ हैं | इस प्रकार से  बहुत ही प्यारी जुगति से थम्भो की शोभा आईं हैं |जिनमें कई कटाव हैं कई प्रकार के अनुपम नक्काशी हैं | अलग अलग प्रकार के चित्रामन है और हर चित्र के जुदे ही भाव हैं | देख तो सखी , एक एक रंग का अद्भुत जवेर और उसी में आईं चेतन नक्काशी ,उनके अलग अलग कटाव एक से बढ़कर एक सुंदर हैं |
इस प्रकार से रूह ने चारों खाँचों में आएं अड़तालीस थम्भ और उनकी शोभा को फेर फेर निरखा | सोलह थम्भ चारों द्वारों के हैं -यह चौसठ थम्भ चबूतरे पर सुशोभित हैं |
                         *ये चौसठ थम्भ चबूतरा पर सुशोभित हैं |पशमी गिलम बिछी हैं |बैठने से पसम हाथ भर दब जाती हैं और उठने से उठ जाती हैं |गिलम में चार दोरी सुशोभित हैं |श्याम ,श्वेत ,हरित जरद |लाल पसम भरे तकिए सोलह सोलह थम्भो से लगे हुए एक दोर बने हैं |ऊपर मोतियों की झालर से युक्त अति मनोरम नूर का चन्द्रवा सुशोभित हैं |चन्द्रवा के मध्य में भाँति भाँति की चित्र कला चित्रित हैं | थम्भ ,चन्द्रवा ,गिलम और कठेड़ा झलक रहें हैं |जिनकी किरणें परस्पर जंग करती हुई प्रतीत होती हैं |*

अत्यंत ही सुंदर ,नरम ,चेतन पशमी गिलम (बिछौना)चबूतरे पर बिछी हैं | यह गिलम चबूतरे की किनार पर आएं कठेड़े से जाकर लगी हैं जिसकी शोभा सुखदायी है |प्रियतम श्री राज जी को रिझावन खातिर गिलम एक पल में ही कई रंग रूप धारण करती हैं तो इनके रंग का ,शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से कैसे हो ?मेरे साथ जी ,एक बड़ी ही खुशहाल करने वाली शोभा देखिए ,दुलीचे को घेर कर श्याम ,श्वेत ,हरित और जर्द (पीला) रंग की अत्यंत ही मनोरम ,तेजोमयी दोरी आईं हैं |नूरी दोरी में कई तरह के कटाव हैं ,कई प्रकार के नूरी चेतन वृक्षों और बेलियों का चित्रामन हैं | जिनमें कई प्रकार के पत्तियाँ और फूलों का जड़ाव हैं |

अब श्रीराज जी की मेहर से रूह की नज़र जाती हैं ऊपर की और – एक अति मनोरम शोभा -थम्भों को भराए कर के नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,महीन -महीन नक्काशी से सज्जित और मोतियों की लड़ो से शोभित चंद्रवा आया हैं |चन्द्रवा के मध्य में भाँति भाँति की चित्र कला चित्रित हैं |चबूतरे की किनार पर आएं थम्भ ,उनकी महेराबे ,थम्भों पर शोभित चंद्रवा ,नीचे नूरी ,नरम दुलीचे की जोत ,उनकी तरंगे आपस में युद्ध करती हुई मनोरम प्रतीत हो रहीं हैं |
*सामने कंचन रंग का सिंहासन झलकता हैं |जिसमें छः पाये छः डांड़े विध्यमान हैं |एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) दो छत्री दोऊ स्वरूपों के ऊपर,दो फूल लाल माणिक के कमल की सी नीलवी की पांखड़ी |छत्री के चारों तरफ जवेरों की झालर ,छः कलश छः डांड़ो पर और दो कलश दो छत्रियों पर हेम के झलकते हैं | पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |उतरती कांगरी ,पशमी बिछौना ,एक गादी दो चाकले ,पाँच तकिए हैं |श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |*
चबूतरे के मध्य में सहस्त्र पाँखुड़ी के कमल के फूल पर कंचन रंग के सिंहासन की शोभा हैं ।जिसमें छः पाये छः डांड़े आएँ हैं | जिन पर अद्भुत चित्रामन जगमगा रहा हैं और उन पर नूरी ,चेतन फूल खिले है | एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) |
दोनों स्वरूपों के ऊपर दो नूरी फूलों की शोभा लिए छत्र सुशोभित हैं | दो कलश तो इन छत्रियों पर हैं और छः कलश घेर कर आए हैं | यह आठ कलश हेम ,स्वर्ण के हैं जो आत्मा को अति प्यारे लगते हैं |छत्री की अद्भुत ,झलकार करती हुई शोभा – जिनमें कई रंग नंग हैं और किनारे भी नंगों की जोत से जगमगा रहे हैं | छत्री में कई प्रकार की सोहनी दोरी ,बेलियाँ और चारों और फिरती नूरी कांगरी अति खुशहाल करती हैं |
पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |जिन पर भी अनेक प्रकार की कई सूक्ष्म अत्यंत ही मनोहारी चित्रण हैं |चारों थम्भो पर चारों ओर से चढ़ती कांगरी सुशोभित हैं | कांगरी में कई प्रकार के नूर से भरे फूल ,पत्ते ,बेलें और महीन कटाव आएँ हैं |
सिंहासन पर एक गादी दो पशमी चाकले और दो तकिये पीछे दो दाएँ -बाएँ और मध्य मे एक तकिया रोशन है |श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख अद्भुत छब से विराजमान हैं |सखी मेरी ,युगल स्वरूप श्री राज श्याम जी के चरणों की शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा --एक पल के लिये भी पलक न बंद कर - श्री राज श्याम जी के नूरी चरण कमलों की शोभा ,स्वरूप को निरख   


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