सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

प्रीत रीत इसक की

*प्रीत रीत इसक की, इसकै सेहेज सनेह* ।
*निस दिन बरसत इसक, नख सिख भीजे सब देह* ।। २१ ।।प्रकरण 12सिनगार

अक्षरातीत श्रीराज जी के हुकम से श्री महामति जी परमधाम की रूहों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि हे मेरे प्यारे साथ जी ,अर्शे-अज़ीम परमधाम की रीति ,वहाँ का व्यवहार सदैव प्रीति और इश्क का हैं |इश्क के सहज स्नेह से संपूर्ण परमधाम रोशन हैं | धाम दूल्हा श्री राज जी दिन-रात अपनी ब्रह्म -प्रियाओं पर इश्क की बारिश करते हैं |धाम धनी के अनन्य प्रेम का रसास्वादन परआतम तो करती ही हैं और जागृत होने पर आत्मा भी प्रियतम श्रीराज जी के प्रेम के अखंड सुख महसूस करती हैं |

अक्षरातीत श्री राज जी के सभी अंगों में सौंदर्य हैं ,प्रेम ,प्रीति हैं |श्रीराज जी के अंग-अंग में प्रेम ही प्रेम हैं |अखंड परमधाम में विराजमान इन अंगो की अलौकिक  ,अद्भुत शोभा को यदि सहूर करें तो पल भर में आत्मा जागृत होकर धाम धनी श्रीराज जी के साथ अखंड सुख प्राप्त करेगी | तो साथ जी ,आइए और अपने प्रियतम श्रीराज जी की अति सुंदर ,सोहनी छबि के दीदार आत्मिक दृष्टि से करें |

*भौं भृकुटी पल पापन, मुसकत लवने निलवट* ।
*इन विध जब मुख निरखिए, तब खुलें हिरदे के पट* ।। २२ ।। प्रकरण 12सिनगार

अक्षरातीत श्रीराज जी की शोभा नूरमयी हैं | उनका स्वरूप अमरद ,कोमल ,नूरी तेज और ज्योति से भरपूर हैं |उनकी मोहक वाणी अत्यंत ही मनमोहक हैं |पूर्ण ब्रह्म श्रीराज जी का स्वरूप सुगंधी और पूर्ण प्रेम और इश्क से लबरेज हैं |इस प्रकार से श्रीराज जी के दिल का नूर अर्थात प्रेम ,प्रीति ,सौंदर्य ,कांति ,तेज ही नख से शिख तक सुशोभित हो रहा हैं |

हे मेरे प्राणों से भी प्रिय साथ जी ,श्री राज जी की तिरछी भौहों और भृकुटी की अपार शोभा को निज नयनों से निहारिए | घनी बरौनियों वाली उनकी अति सुंदर दोनों पलकें ,साथ जी इन शोभा का वर्णन मुख से कैसे हो ? और देखिए ,नूरानी मस्तक पर अनोखी अदा से लहराते प्राणवल्लभ श्रीराज जी  के नरम नरम ,बाल  कितने मनमोहक प्रतीत हो रहें हैं |इस तरह से श्रीराज जी के मुस्कराते हुए मुख की शोभा को बार बार निरखिए तो हृदय के ऊपर छाया हुआ माया का आवरण पल भर में हट जाएगा |

*जो गुन हक के दिल में, सो मुख में देखाई देत* ।
*सो देखें अरवाहें अरस की, जो इत हुई होए सावचेत* ।। ३४ ।।प्रकरण 20 सिनगार

श्री महामति जी कह रहें हैं कि मेरे साथ जी ,परआतम का सिनगार सज कर धाम धनी श्रीराज जी के चरणों में बैठिए और प्राण वल्लभ की नख से शिख तक की अलौकिक ,अनुपम शोभा को धाम हृदय में दृढ़ कीजिए |धाम धनी श्री राज जी के हृदय में गुण विद्द्यमान हैं | वे गुण ही उनके मुख पर दिखाई देते हैं |उनके दिल के राज वे ही रूहें जान पाती हैं जो श्रीराज जी के मेहेर ,हुकम से जागृत हो चुकी हैं |

प्रेम प्रणाम सुंदर साथ जी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें