चालीस मंदिर ताड़ वन के लाल चबूतरा की तरफ के हैं |तीस मंदिर खड़ोकली के हैं और चालीस मंदिर ताड़ वन के जो खड़ोकली की उस तरफ हैं |
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चबूतरे चहेबच्चे लग | बीच चालीस मंदिर ||
चालीस चहेबच्चे परे | अस्सी बीच तीस अंदर || श्री लाल दास महाराज कृत छोटी वृत्त
प्रेम प्रणाम जी --श्री रंगमहल की उत्तर दिशा में चले --रंगमहल के ईशान कोण ( पूर्वी उत्तरी कोण )और वायव्व कोण (पश्चमी उत्तरी कोण) के मध्य पचास हान्स आएं हैं --अर्थात 1500 मंदिर उत्तर दिशा में शोभित हैं |वायव्व कोण पर खुद को खड़ा करे और मुख पूर्व की और रखे तो दायीं हाथ को रंगमहल के मंदिर लगे हैं और बायीं और लाल चबूतरा --यहाँ से 1200 मंदिर तक लाल चबूतरा की शोभा आयीं हैं --पूर्व की और चलते हुए लाल चबूतरा की हद पार की --
शेष रहे उत्तर दिशा के 300 मंदिर
--लाल चबूतरा के आगे 40 मंदिर
+ 30 मंदिर जो खड़ोकली के कहलाते हैं क्योंकि इन मंदिरों की उत्तर दिशा में खड़ोकली आयीं हैं
+40 मंदिर --तह ताड़वन की तरफ हुए -=इन 110 मंदिरों की गिनती विशेष महत्व रखती हैं
इन एक सौ दस मंदिरों के सामने एक सौ दस मंदिरों की एक सौ दस हारें हैं |तिन के मंदिर बारह हज़ार और एक सौ हुए |
चालीस लाल चबूतरा के तरफ के मंदिर +तीस मंदिर खड़ोकली के +चालीस मंदिर ताड़वन की तरफ के =कुल 110 मंदिर हुए ।इन 110 मंदिरों के भीतरी तरफ चार चौरस हवेली की चार हारों के स्थान पर 110 मंदिरों की 110 हारें आयीं हैं ।नूरमयी दर्पण के कुल 12100 मंदिर हुए ।(110 *110 =12100 )
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चबूतरे चहेबच्चे लग | बीच चालीस मंदिर ||
चालीस चहेबच्चे परे | अस्सी बीच तीस अंदर || श्री लाल दास महाराज कृत छोटी वृत्त
प्रेम प्रणाम जी --श्री रंगमहल की उत्तर दिशा में चले --रंगमहल के ईशान कोण ( पूर्वी उत्तरी कोण )और वायव्व कोण (पश्चमी उत्तरी कोण) के मध्य पचास हान्स आएं हैं --अर्थात 1500 मंदिर उत्तर दिशा में शोभित हैं |वायव्व कोण पर खुद को खड़ा करे और मुख पूर्व की और रखे तो दायीं हाथ को रंगमहल के मंदिर लगे हैं और बायीं और लाल चबूतरा --यहाँ से 1200 मंदिर तक लाल चबूतरा की शोभा आयीं हैं --पूर्व की और चलते हुए लाल चबूतरा की हद पार की --
शेष रहे उत्तर दिशा के 300 मंदिर
--लाल चबूतरा के आगे 40 मंदिर
+ 30 मंदिर जो खड़ोकली के कहलाते हैं क्योंकि इन मंदिरों की उत्तर दिशा में खड़ोकली आयीं हैं
+40 मंदिर --तह ताड़वन की तरफ हुए -=इन 110 मंदिरों की गिनती विशेष महत्व रखती हैं
चालीस लाल चबूतरा के तरफ के मंदिर +तीस मंदिर खड़ोकली के +चालीस मंदिर ताड़वन की तरफ के =कुल 110 मंदिर हुए ।इन 110 मंदिरों के भीतरी तरफ चार चौरस हवेली की चार हारों के स्थान पर 110 मंदिरों की 110 हारें आयीं हैं ।नूरमयी दर्पण के कुल 12100 मंदिर हुए ।(110 *110 =12100 )
मध्य में एक सौ मंदिर का चौक हैं ,जिनमें छत्तीस मंदिर की परिक्रमा हैं और चौसठ मंदिर का चबूतरा हैं ,जिस पर बत्तीस थम्भ और बत्तीस महेराबे हैं |
इन 12100 मंदिरों के मध्य में 100 मंदिर का नूर से झलकार करता हुआ चौक आया हैं ।100 मंदिर के चौक में आठ मंदिर का लंबा चौड़ा अर्थात चौसठ मंदिर का एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा आया हैं ।चबूतरा की किनार पर नूरी थम्भ आएं हैं ।चबूतरा की चारों दिशा में किनार पर आठ-आठ थम्भ आएं हैं --कुल बत्तीस थम्भ सुशोभित हैं ।बत्तीस थंभों के दरम्यान बत्तीस नूरी ,अति सुन्दर नक्काशी से जड़ित मेहराबें आयीं हैं ।
*इस चौक में परिक्रमा के लगते चालीस दरवाजे हैं |एक एक मंदिर में चार चार दरवाजे दिखाई देते हैं ,परन्तु गिनती में दो दो ही हैं |बारह हज़ार मंदिरों की चौबीस हज़ार अर्थात चौबीस हज़ार दो सौ चालीस + महेराबे हैं | भूलवनी सोलह हवेलियों की जगह में हैं |श्रीराज जी श्री ठकुरानी जी समस्त सुन्दर साथ सहित झीलना ,सिनगार करके खेलते हैं और कभी खेलकर झीलना ,सिनगार करते हैं *
एक सीढ़ी ऊंचा को घेर एक मंदिर की परिक्रमा आयीं हैं जिसे छत्तीस मंदिर की परिक्रमा भी कहते हैं ।एक मंदिर की चौड़ी और लंबाई में घेर कर इस परिक्रमा ने छत्तीस मंदिर की जगह घेरी हैं ।
परिक्रमा के भीतरी तरफ चबूतरा की अपार शोभा हैं --चौसठ मंदिर का चबूतरे जिसकी किनार पर नूरमयी थम्भ आएं हैं और थम्भो को भराए के चंद्रवा की शोभा हैं --परिक्रमा के बाहर की और लगते मंदिर हैं --प्रत्येक दिशा में दस-दस तो कुल चालीस मंदिर परिक्रमा से लगते आएं हैं जिनके चालीस द्वारों की सुखदायी झलकार हो रही हैं ।
परिक्रमा के लगते यह मंदिर अति सुन्दर हैं ।नूरमयी दर्पण के मंदिर --मंदिर के भीतर गए तो देखा की प्रत्येक मंदिर में चार चार दरवाजे दिखाई दे रहे हैं --लेकिन गहराई से देखे तो दो ही दरवाजे हैं क्योंकि प्रत्येक दरवाजा दूसरे मंदिर में काम दे रहा हैं ।वजह ? मंदिर आपस में सटे हुए हैं ।
तो इस प्रकार से देखे तो कुल द्वार 24000 होने थे पर कुछ संख्या बढ़ गयी हैं ।मध्य चौक से लगते चालीस दरवाजे एक ही मंदिर के हैं --इसी तरह 110 मंदिरों की 110 हारों की बाहिरी किनार पर खुलते दरवाजे भी एक ही मंदिर में काम आएं हैं --40 +440 =480 दरवाजे
480 दरवाजों में से 240 पहले 24000 हजार की गिनती में शुमार किया जा चुके हैं शेष रहे 240 तो कुल 24240 दरवाजे भुलवनी के हुए
भुलवनी के यह अति सोहने मंदिर यह मंदिर आपस मे सटे हैं | हर मंदिर का द्वार दूसरे मे भी काम करता है | यहां इन मंदिरों में श्रीराज जी श्री श्यामा जी के संग रूहें भुलवनी की रामतें करतें हैं | भुलवनी के नूरी दर्पण के मंदिरों के द्वार ,किवाड़ और सब जोगबाई नूरी दर्पण की ही आईं है | रूहे एक द्वार से दोड़ती हैं और दूसरे से निकलती हैं |दर्पण ऐसा कि एक -एक प्रतिबिंब के हज़ारो प्रतिबिंब नज़र आते हैं |असल नकल की पहचान नही हो पाती हैं |दूसरी रूह जब पहली रूह को पकड़ना चाहती है तो प्रतिबिंब से टकरा जाती है और बेशुमार हांसी होती हैं |
एक भूलवनी यह भी है कि प्रत्येक मंदिर के दिखने के चार द्वार हैं तो गिनती की जाती हैं कि 48000 द्वार हुए जबकि हर द्वार दूसरे द्वार में काम में आता हैं तो गिनती होनी चहिए 24000 द्वारों की |
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