सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

केस तिलक निलाट पर


नख सिख लों बरनन करूं, याद कर अपना तन ।|
खोल नैना खिलवत में, बैठ तले चरन ।।114/21 सिनगार

श्री महामति जी अक्षरातीत श्रीराज जी के हुकम से  पूर्ण ब्रह्म परमात्मा श्रीराज जी की अति सुन्‍दर और अमरद सुरत का मनोहारी वर्णन कर रहें हैं |श्री महामति जी अपनी आत्म को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मेरी आत्मा ,तू परआतम का सिनगार सज कर धाम धनी श्रीराज जी के चरणों तले बैठ और आत्मिक दृष्टि से प्रियतम की नख से शिख तक की शोभा अपने धाम हृदय में बसा ले |

केस तिलक निलाट पर, दोऊ रेखा चली लग कान ।
केस न कोई घट बढ, सोभा चाहिए जैसी सुभान ।। 119/21 सिनगार

धाम दूल्हा श्रीराज जी के उज्ज्वल नूरानी मस्तक पर उनके नूरमयी केशों की शोभा को निरख और तिलक की शोभा को देख | तिलक में अति सुन्दर दो रेखा शोभा ले रही हैं और केश तो श्रवण अंगों तक चले गये हैं | केशों की सलूकी देखते ही बनती हैं | उनमें कोई घट-बढ़ नहीं हैं | जहां जैसी शोभा आनी चहिए वहां वैसी शोभा आईं हैं | श्रीराज जी के केश नूरमयी ,अत्यंत ही कोमल और घुंघरालें आएं हैं |

मेयराज अर्थात  दर्शन की दिव्य  रात्रि में मुहम्मद साहब की सुरता ,उनकी निज नज़र श्रीराज जी के जोश ,उनकी मेहर से हद ,बेहद के ब्रह्मांड को पार करके परमधाम में जमुना जी के पुल के समीप पहुँचती हैं  |वहां  पर अक्षरातीत श्री राज जी ने नूरमयी ,इश्क रस में परिपूर्ण ,दिव्य ,अलौकिक सुखपाल भेजा जिस पर बैठ वे मुलमिलावे में श्रीराज जी के सन्मुख पहुंचे और उन्होने श्री राज जी का दीदार किया |मुहम्मद साहब ने श्रीराज जी के अमरद सुरत और हिना  की सुगंधी से महकते घुंघराले केशों के  भी दर्शन किए |

हे मेरी रूह ,तू भी चितवन से अनुभव कर | पूर्ण ब्रह्म श्रीराज जी के नूरी श्याम केशों की श्याम जोत मस्तक से होती हुई श्रवण अंग तक गयी हैं |उज्ज्वल ललाट की लालिमा लिए श्वेत ज्योति और केशो की श्याम ज्योति आपस में टकरा कर जंग करती हुई मनोहारी प्रतीत हो रही हैं |

कांध पीछे केस नूर झलके, लिए पागमें पेच बनाए ।
गौर पीठ सुध सलूकी, जुबां सके ना सिफत पोहोंचाए ।। ६० ।।/8 सागर

हे मेरी आत्मा ,मेरे प्रियतम के केशों की अनुपम ,मनोहारी शोभा कनपटी और कानों के कुछ ऊपर से होते हुए पीछे तक आईं हैं | श्रीराज जी के मस्तक के दोनों ओर आईं केशों की अति सुन्दर शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से नहीं हो सकता हैं |
धाम धनी श्रीराज जी के कंधो तक उनके घुघराले बाल झूल रहें हैं |अति मनोहारी इन केशों का नूर उनके कंधों के पीछे झलकार कर रहा हैं |उनके नूरी केशों की सुंदरता और उनकी अर्शे अज़ीम की सुगंधी की महक में रूहें उलझ जाती हैं |

केस चुए में भिगोए, लिए जुगतें पेच फिराए ।
पेच दिए ता पर बहुबिध, बांधी सारंगी बनाए ।। २८ ।।/5सागर 

श्रीराज जी कोमल ,रेशम से नरम घुंघरालें केशों में सुगंधित इत्र में भीगे हुए हैं जिनकी महक से रूहें इश्क रस में डूबती हैं |घुंघराले नूरमयी ,सुगंधी से महकते  केश और उन पर आईं लटकती पाग ,मेरी आत्मा इस अलौकिक शोभा को बार बार निरख और अपने धाम हृदय में अंकित कर |

सबद न लगे सोभा असलें, पर रूह मेरी सेवा चाहे ।
तो बरनन करूं इनका, जानों रूहों भी दिल समाए ।। २१ ।।5 सागर 

श्री महामति जी कह रहें हैं कि इस स्वप्न ज़मीन के शब्दों से श्रीराज जी की वास्तविक शोभा का वर्णन नहीं  हो सकता हैं |किंतु मेरी आत्मा प्रियतम श्रीराज जी की शोभा सिनगार का वर्णन करके सेवा करना चाहती हैं | इसीलिए मैं धाम धनी श्रीराज जी के हुकम से श्रीराज जी की शोभा का वर्णन कर रही हूँ जिससे श्रीराज जी की लाड़ली रूहों के धाम हृदय में प्रियतम श्रीराज जी की अलौकिक छबि बस जाए ||

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