गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

नख सिख लों बरनन करूं

नख सिख लों बरनन करूं, याद कर अपना तन ।
खोल नैना खिलवत में, बैठ तले चरन ।। ११४/२१ सिनगार 

सिनगार  ग्रंथ के २१ वें प्रकरण में श्री महामति जी पारब्रह्म श्री राज जी के अति सुन्दर और अमरद सूरत का मनोहारी वर्णन किया हैं।श्री महामति जी अपनी आत्मा को आह्वान कर रहे हैं कि  हे मेरी आत्मा ,तू पर आत्म का श्रृंगार सज कर श्री धाम धनि के चरणों में बैठ और उन्हें अपनी आत्मिक दृष्टि से निहार।प्रियतम श्री राज जी की नूरी और अलौकिक शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा  ।

केस तिलक निलाट पर, दोऊ रेखा चली लग कान ।
केस न कोई घट बढ, सोभा चाहिए जैसी सुभान ।। ११८ /२१ सिनगार

एक स्याम नूर केसन की, चली रोसन बांध किनार ।
दूजी गौर निलाट संग, करें जंग जोर अपार ।। ११९ /२१ सिनगार

सोभा चलि आई लवने लग, पीछे आई कान पर होए ।
आए मिली दोऊ तरफ की, सोभा केहेवे न समरथ कोए ।। १२० /२१ सिनगार

हे मेरी आत्मा ,तू माशूक श्री राज जी के उज्जवल ,नूरानी मस्तक पर सुशोभित केशों कि शोभा को निरख । माथे पर आईं तिलक कि दो रेखाएं कितनी प्यारी लग रही हैं और  प्रियतम के सुगन्धित केश तो श्रवण अंग तक लहरा रहे हैं ।केशों की सलूकी ,नाजुकी रूह की आँखों से ही महसूस कर सकते हैं ।केश वैसे ही सुशोभित हो रहे हैं जैसे की शोभा धाम धनि की होनी चहिए ,कोई घट बढ़ नही हैं ।अक्षरातीत श्री राज जी के नूरी श्याम केशों की श्याम जोत मस्तक से होती हुई श्रवण अंग तक गयी हैं और उज्जवल ललाट की श्वेत लालिमा युक्त जोत केशों की जोत से जंग करती प्रतीत हो रही हैं ।श्री  राज जी के उज्जवल मस्तक पर दोनों और आयें केश अनोखी छब -फब से कनपटी और श्रवणों के ऊपर से होते हुए पीछे की और गए हैं ।


याही भांत भौंह नेत्र संग, करत जंग दोऊ जोर ।
स्याह उजल सरभर दोऊ, चली चढ टेढी अनी मरोर ।। १२१ /२१ सिनगार

मेरी आत्मा निज नयनों से देख ,श्री राज जी की श्याम भौंहें और उनकी श्यामल नूरी ज्योति तथा पिऊ जी के नेत्र कमलों की नूरी श्वेत  ज्योति जब आपस में जंग करती हैं तो भौंहों और नयन कमलों की शोभा कोट गुनी शोभित हो रही हैं ।प्रियतम श्री राज जी के भौंहों के केश बहुत ही प्यारी जुगति और सलूकी से नयनों पर आयें हैं ।नयनों की बरौनियों पर आयें केश और भौंहों पर आयें केश एक रेखा के सामान लग रहे है ।पिया श्री राज जी के उज्जवल गुलाबी मुखारबिंद पर श्याम भौंहें और नयनों की लालिमा युक्त श्वेत आभा आपस में जंग करती हुई  अत्यधिक् सोहनी लग रही हैं ।

दोऊ नेत्र टेढे कमल ज्यों, अनी सोभा दोऊ अतंत ।
जब पापन दोऊ खोलत, जानों के कमल दोऊ बिकसत ।। १५१ /२१ सिनगार


धामदुल्हा श्री राज जी के तिरछे नेत्र कमल की भांति सुशोभित हो रहे है ।प्रियतम श्री राज जी अदा से पलकें खोलते हैं तो प्रतीत होता हैं मानो दो कमल खिल उठे हो ।श्री राज जी के नयन नासिक के मूल से प्रगट हुए कमल के सामान शोभित हो रहे हैं जिनमें श्याम ,श्वेत और लाल रंग की नूरी जोत ,उनकी तरंगें वतन को रोशन कर रही हैं। श्री राज जी के मेहर भरे यह नैन सदा ही रूहों पर संकुल रहते हैं ,उनकी मेहर दृष्टि सदैव रूहों पर रहती हैं ।

दोऊ छेद्र तलें अधुर ऊपर, तिन बीच लांक खूंने तीन ।
सोई सोभा जाने इन अधुर की, जो होए हुकम आधीन ।। १३२/२१ सिनगार

मेरी रूह ,अब आत्मदृष्टि से देख ,श्री राज जी के नासिका की अलौकिक शोभा ,श्री राज जी के गौर वर्ण की नासिक के दोनों छिद्रों और ऊपर वाले होठों के मध्य जो गहराई हैं ,उसमें तीन कोने हैं । नीचे वाला अधुर जब ऊपर वाले अधुर से मिलता हैं तो बहुत ही प्यारी छबि की झलक रुहें देखती हैं   ।दोनों होंठ पाँखुडी के सामान प्रतीत होते हैं ,होंठों के नीचे और हरवती के ऊपर बेन्दे की शोभा आईं हैं  । अर्श के गौर वर्ण की हरवती इस तरह से सलूकी लिए हैं कि श्री राज जी का मुख्य सदैव हँसता हुआ प्रतीत होता हैं  ।प्रियतम की यह अलौकिक शोभा वहीं आत्माएं देख सकती हैं जो उनके चरणों तले मूल मिलावे में बैठी हैं ।

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