शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

kadam mumilaave ki aur

*पाँचवा चौक मूल मिलावे का हैं*

ब्रह्म मुनि श्री लालदास जी महाराज जी वर्णन कर रहे हैं कि पांचवां चौक मूल मिलावे का हैं  --

अब सखियाँ अपनी सूरत मूल मिलावे में एकाग्र करना चाहती हैं तो कैसे पहुंचे अपनी आत्मा के असल घर में ?

जहाँ प्रियतम अक्षरातीत  श्री राजजी श्री श्यामा जी विराजमान है और उनके चरणों में अंग से अंग लगा रूहे बैठी हैं |

*सुरत एकै राखियो, मूल मिलावे मांहिं ।*
*स्याम स्यामाजी साथजी, तले भोम बैठे हैं जांहिं* ।। ३ ।।/7 सागर 

हे मेरी सखी ,उस घडी ,उस पल को याद कर ,जब अपने धाम धनि श्री राज जी से हांसी का खेल माँगा था तो अब चल और याद कर खेल की खुशहालियों को --खेल के आनंद को ले --धाम धनी तेरे ही कारण सब विध वतन सहित आएं हैं ,आठों सागरों के सभी सुख तू यहाँ ले सकती हैं --जागृत हो मेरी सखी ..

और जागृत होने का मार्ग भी धाम धनी स्वयं प्रशस्त कर रहे हैं --

*हमें अपनी सुरता श्री रंगमहल की प्रथम भूमिका के पांचवे चौक -मूल मिलावा में रखनी हैं जहाँ युगल स्वरूप श्रीराजश्यामा जी और सुन्दरसाथ जी बैठे हुए हैं *

*ए मूल मिलावा अपना, नजर दीजे इत ।*
*पलक न पीछे फेरिए, ज्यों इसक अंग उपजत* ।। ४० ।।

यह मूल मिलावा अपना हैं जहाँ धाम धनी श्री राज जी के चरणों तले हमारे मूल तन बैठे हैं ।आत्मिक दृष्टि से धाम धनी श्री राज जी की शोभा को निरखिये।एक क्षण के लिये भी पलके बंद नहीं करे अर्थात कभी भी अपने और धामधनी के बीच किसी भी ऐसे मोह ममता को ना आने दे जो हमें धनी के चरणों से दूर करें ,यह अगर कर लें तो  निश्चित जानिए कि हमारे धाम ह्रदय में प्रेम अंकुरित होगा । 

मुलमिलावे में हमारी आत्मा के मूल तन विराजे हैं जिन्हें परआतम कहते हैं --हमें करना क्या हैं ?


फेर फेर सुरता साधनी हैं ,माया के नासूती ,मिट जाने वाले इस स्वरूप को भुलाकर ध्यान ,चितवनी में परआत्म के स्वरूप का भाव लेना हैं ,वहीं निज स्वरूप हैं   ।उसी भाव से श्री युगल स्वरूप के शोभा सिनगार को धाम ह्रदय में दृढ करना हैं --ऐसा उपाए करने  से ही हम धाम धनी श्री राज जी के संग अखंड सुख अनुभव कर सकेंगे ।
                         मुलमिलावा की शोभा धाम ह्रदय में बसानी हैं तो कदम आगे बढ़ाते हैं --तारतम का मौन जप करते हुए अपनी चित्त वृतियों को श्री राज जी की और उन्मुख कर सुरता से गुम्मद जी पहुंचे --धाम धनी को नमन कर उनकी ही मेहर ,जोश के बल से परमधाम पहुँचते हैं --

मध्य भाग में भोम भर ऊंचा चबूतरा हैं जिस पर नव भोम  दसवीं आकाशी का श्री रंगमहल सुशोभित हैं --श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में दो भोंम ऊँचे धाम द्वार की मनोहारी शोभा हैं --अति मनोहारी  नूरमयी दर्पण रंग का झलकार करता हुआ , धाम का मुख्य द्वार ,हरित रंग की बेनी और लाल रंग की चौखट –अत्यन्त शोभा को धारण किए ---आप आएं सखी जु ,तो  धाम द्वार स्वतः ही खुल गया —दुल्हन की मानिंद रूह ने एक सीढ़ी ऊँची चौखट पार की और आगे 28 थम्भ के चौक को पर कर चार चौरस हवेली भी पार की | रूह जैसे ही चौथी हवेली के पश्चिम द्वार से बाहिर निकली तो देखती हैं थम्भो की एक हार चौरस घूमी हैं और दूसरी गोलाई में शोभित हैं |और
सामने मूल मिलावा जहाँ रूह के प्राण वल्लभ श्रीराज-श्यामा जी धाम की सखियों को संग ले कर विराजमान हैं |


1 टिप्पणी: