बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

सरुप राज का देखिये

नख सिख लों बरनन करूं, याद कर अपना तन ।
खोल नैना खिलवत में, बैठ तले चरन ।। ११४/२१ सिनगार 

सिनगार  ग्रंथ के २१ वें प्रकरण में श्री महामति जी पारब्रह्म श्री राज जी के अति सुन्दर और अमरद सूरत का मनोहारी वर्णन किया हैं।श्री महामति जी अपनी आत्मा को आह्वान कर रहे हैं कि  हे मेरी आत्मा ,तू पर आत्म का श्रृंगार सज कर श्री धाम धनि के चरणों में बैठ और उन्हें अपनी आत्मिक दृष्टि से निहार।प्रियतम श्री राज जी की नूरी और अलौकिक शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा  ।

सबसे पहले रूह की नज़र जाती हैं नूरी नखो पर ,……..नख की तेज इतना कि अर्शे अजीम उनके तेज से रोशन हो गया |नखो की सुकोमलता को रूह महसूस कर रही हैं | कितने नरम और सलूकी लिए इन नखो के तेज आसमान जिमी रोशन कर रहा हैं —नखो की सलूकी, उनकी जोत , अंगूठे और अंगूरिओं का बेमिसाल सोंद्रय , उज्ज्वल और लालिमा से गहराई हुई चरण तली की लिंके और दोनों चरणों के अंगूठे और अँगुलियुं की सलूकी-अहो कितनी नाज़ुक हैं –सलूकी से युक्त पतली पतली अँगुलियां और पतले अंगूठे लाल रंग मे सोभित हैं | श्री राज जी का स्वरूप अमरद हैं उनके कदम भी उन्ही माफिक हैं | कदम तली की शोभा और पंजे की शोभा उनकी सलूकी उनकी जोत को निहारती हूँ ,अंगूठे की लालिमा कोमलता ,सलूकी के दर्श करती हूँ |चरणों की तली ,उनकी लिंको, टख़नो ,घूंटी और कड़ा अंग की अलौकिक सौन्दर्य को रूह दर्श कर रही हैं|
अब नज़र कडा़ अंग पर जाती हैं | श्री राज जी ने कडा़ अंग मे झांझरी ,घुघरी ,काम्बी ओर कड़ा धारण किए हैं | इन आभूषण मे हीरा माणिक ,पुखराज ,पाच और निलवी के नंग शोभा बड़ा रहें हैं |इतने कोमल कि पहने तो दिख रहैं हैं पर छूने से आभास ही नही होता कि आभूषण पहने हैं |



इजार --धाम धनी श्री राज जी की इजार केसरी रंग की आईं हैं ।मोहरी पर मोतियों की बेल आईं हैं ।नीचे-ऊपर माणिक ,पुखराज ,नीलवी नंगों की कांगरी आईं हैं  ।नेफे पर उज्जवल मोतियों की बेलें  आई हैं ।और नाड़ा तो कई नूरी रंगों की नक्काशी से झिलमिला रहा हैं और उनमें लटकते फुंदन की झलकार तो बहुत सोहनी हैं ।

जामा -श्री राज जी का जामा उज्जवल श्वेत रंग में सुखदायी झलकार कर रहा हैं -जामा लंबा पांव के कड़े अंग तक आया हैं ।श्री राज जी के गौर गौर अंग पर कसी हुई चोली और चोली के बंध अति सोहने हैं जिसमें नंगों  का अदभुत जड़ाव आया हैं ।बांहों की मोहरी पर नंगों के फूल आएं हैं और बांहों की सलवटें चूड़ियां के माफिक प्रतीत होती हैं ।जामा का घेर अत्यन्त सुन्दर नक्काशी से युक्त हैं ।जामे पर आईं लता ,फूलों ,बलों की नक्काशी ..ऐसी जुगत  की स्पर्श  करो तो अहसास ही नहीं होता कि नंगों का जड़ाव हैं ।उज्जवल श्वेत जामा और काडा अंग तक आया  जामे का घेरा  और घेर में झलकती केसरियां जड़ाव की इजार
बेल बूटिओं और बार्डर की शोभा रूह बार बार निहार रही हैं| कमर मे निलो ना पीलो रंग का पटुका श्री राज जी ने पहना हैं--


पटुका -कमर पर नीले न पीले रंग का पटुका शोभित हैं ।जिसके दोनों किनारों पर पांच ,पाना ,हीरा ,पुखराज नंगों की बेल ,कटाव शोभा ले रहे हैं दोनों छेड़ो पर मणि माणिक ,लसनियां नीलवी के नंगों की नकशकारी और फूल कटाव बने हुए हैं ।

अब नज़र जा रही हैं श्री राज जी की हस्तकमलो पर — कितने कोमल —सलूकी लिए –पतली पतली नाज़ुक अँगुलियां ओर अंगूठे —
पिऊ ने हीरा ,माणिक ,पुखराज पाच ,मोती ,लहुस्निया ,नीलवी की अंगूठियाँ धारण की हैं | अंगूठियो की सुंदरता ,उनकी जोत ओर उनकी कोमलता को रूह महसूस कर रही हैं | कलाई अंग में सुभान ने कड़ा और पहुँची पहनी हैं उनका नूर में रूहैं खो सी जाती हैं

कलाई मे जामे की महीन महीन चुनंटे उनमे आए नकाशी से ऐसा प्रतीत हो रहा मानो श्री राज जी ने भूखन धारण किए हैं |






बाजू मे बाज़ुबंध की शोभा —हीरा ,मोती ,माणिक ,पुखराज और नीलवी से जड़ा हैं —लटकते फुंदन की शोभा —

कमर पर कसा जामा, उन पर लटकते हार –श्री राज जी ने हीरा ,माणिक ,मोती, नीलवी और लहुसनिया नंग से सजे अनुपम शोभा से युक्त हार पहने हैं |





चादर --जामा पर आसमानी रंग की अति  सुन्दर पतली चादर (पिछोड़ी )सुशोभित हैं ।आभूषण और वस्त्रों पर अंकित चित्रकारी चादर में से झलकती हुई सुन्दर प्रतीत होती हैं ।चादर के किनारे पर लाल ,नीले ,पीले रंग की आभा हैं ।श्वेत परिधान पर धारण यह चादर अत्यन्त ही सुन्दर झलकार कर रही हैं ।--


पिऊ ने धारण की -- आसमानी रंग जडाव की महीन पिछोड़ी —रूह निहार रही हैं पिऊ की अद्भुत छबि —आसमानी रंग की महीन चादर से झलकते हार ओर जामे के बँध —

रूह अपने पिया के मुखारबिंद की अनुपम छबि को निहारती हें |वो अपने महबूब के उज्जवल रंग और उज्जवल रंग मे झलकती लालिमा को एकटक देख रही हैं |उनकी अमरद सूरत हैं | रूह उनके मस्तक की सलूकी, नाज़ुकी निहार रही हैं | सुंदर अर्श के गौर रंग मे लालिमा लिए मस्तक पर तिलक सुहाना लग रहा हैं | उनकी भौंहैं ,भ्रकूटी के रूह दर्श करती हैं उज्जवल गौर रंग के मुख पर श्याम रंग की भौंहैं ,भ्रकूटी छब प्यारी लगती हैं | पिया जी तिरछे , चंचल ,चपल गंभीर , नेत्रो में रूह डूब रही हैं |


श्रीराज जी महाराज के गुलाबी गालों की कोमलता और सलूकी ,नासिका की सलूकी ओर उनमे आई लाल रंग की बेसर घूंटी रूह को प्यारी लगती हैं |


पिया जी श्रवण अंग उनमे आई बाला —कमल की पंखुड़ी की तरह शोभित उनके होंठ और जब पिया जी रूह से बात करते हैं तो रसना और दतावाली के दर्श मेरी रूह करती हैं|


धामधनी श्री राज जी के शीशकमल पर सेंदुरियां रंग की अति सुन्दर नूरमयी पाग सुशोभित हैं |-- प्रियतम श्री राज जी बड़ी प्यारी अदा से पेच हाथ में लेकर पाग बांध रहें हैं | पाग बांधते वक्त एक तो पाग की जोत और उनमें आएं नूरमयी नंगों की उज्ज्वल ,शीतल  और सुखदायी जोत रूहों को अखंड सुख प्रदान करती हैं |श्री राज जी जब अपनी नाज़ुक -नाज़ुक पतली गौर लालिमा लिए अंगूरियों से पाग बांधते हैं तो उस समय की शोभा वर्णन से परे हैं |पाग  बांधते समय उनके नखों का तेज ,उनकी नाज़ुक अंगूरियों का तेज और सेंदुरियां रंग की पाग का तेज आपस में जंग करता प्रतीत हो रहा हैं |

प्रियतम श्री राज जी अपनी रूहों को रिझावन की खातिर पाग इतनी सलूकी से बांधते हैं कि रूहें  अपलक इस अलौकिक लीला को देखती हैं |

श्री राज जी के पाग पर कलंगी की अदभुत शोभा आईं हैं और सामने देखिए तुरा और दुगदुगी की मनोहारी शोभा आईं हैं |नूरी पाग  पर माणिक की दुगदुगी , पाग पर आई कलंगी की जोत और उनके परों की झलकार आसमान तक जाती हैं |  उनके मुख पर निर्मल मोतियों की लरियां चंद्रिका की तरह लटकती है | आधे नासिका से ललाट तक तिलक की रेखा एवं कानो में कुण्डल की अपरंपार शोभा हो रही है|





आइए ! अपने महबूब श्री राज जी के श्रवण अंग  तक आएं उनके  घुंघरालें नूरी केशों को देखें | उनके नूरी केशों पर सुगंधित इत्र की महक को महसूस करें |  सेंदुरियां रंग जड़ाव की लटकती पाग की अत्यंत मनोहारी शोभा को निज नयनों से देखें  | पाग पर आई  दुगदुगी और कलंगी  की अलौकिक शोभा को निहारें -- यह नूरमयी शोभा अर्शे-अज़ीम   की है और अरशे सहूर और चितवन से धाम हृदय मे अंकित होती है  |आइए ! अपने महबूब श्री राज जी के श्रवण अंग  तक आएं उनके  घुंघरालें नूरी केशों को देखें | उनके नूरी केशों पर सुगंधित इत्र की महक को महसूस करें |  सेंदुरियां रंग जड़ाव की लटकती पाग की अत्यंत मनोहारी शोभा को निज नयनों से देखें  | पाग पर आई  दुगदुगी और कलंगी  की अलौकिक शोभा को निहारें | यह नूरमयी शोभा अर्शे-अज़ीम   की है और अरशे सहूर और चितवन से धाम हृदय मे अंकित होती है  |उनका नूरमयी स्वरूप --हँसता हुआ मुखारबिंद --रूहों पर सदैव सनकूल🙏🏾🙏🏾

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