बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

गौर निरमल नासिका

गौर निरमल नासिका, सोभा न आवे माहें सुमार ।
आसिक जाने मासूक की, जो खुले होए पट द्वार ।। 1/ प्रकरण 15 सिनगार

श्री महामति जी , हक श्री राज जी की नासिका का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि प्रियतम श्री राज जी की नासिका गौर वर्ण की हैं | साथ जी ,श्री राज जी की नासिका अर्श के गौर वर्ण में लालिमा लिए अपार शोभा ले रही हैं |  अति निर्मल नासिका का वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता हैं |प्रियतम धामधनी के इस दिव्य अंग की शोभा तो वही ब्रह्मप्रियाएं जान सकती हैं जिनके अंतः करण के द्वार खुल गये हो |

नासिका की अदभुत ,अति मनोहारी शोभा के ऊपर तिलक की शोभा के लिए तो कोई शब्द ही नहीं हैं |श्री राज जी के तिरछे ,चंचल ,गहराई लिए हुए मान से भरे नयनों के मध्य नासिका के ऊपर सुशोभित तिलक की अद्वितीय शोभा को अनुरागिनी रूहें बारम्बार निहारती हैं |

कै खुसबोए अरस की, लेवत है नासिका ।
दोऊ नेत्रों के बीच में, सोभा क्यों कहूं सुंदरता ।। 3/ प्रकरण 15 सिनगार

परमधाम के नूरमयी बगीचों में अनेकानेक फूल खिले हैं जिनकी सुगंधी का कोई पारावार नहीं हैं |परमधाम के बगीचे ,मोहोलाते हो ,कोई भी चीज़ सुगंध रहित नहीं हैं |नैत्र कमलों के मध्य सुशोभित प्रियतम श्रीराज जी की नासिका अर्शे अज़ीम की सुगंधी का पान करती हैं और लाड़ली रूहों को भी  रस पान कराती हैं | 

हक श्री राज जी की नासिका के गौर वर्ण में गहराई लालिमा को ,सलूकी ,चकलाई और निर्मलता को रूहें फेर फेर निरखती हैं | नासिका के गुण अथाह हैं |वो चित्त चाही खुशबू लेती हैं ,चित्त चाही शोभा को धारण करती हैं ,चित्त चाहे भूखण धारण करती हैं जिससे उनकी ब्रह्म प्रियाओं को आनंद मिले |हक श्री राज जी ने नासिका में माणिक के जड़ाव की नूरी बेसर धारण की हैं |बेसर की लालिमा से परमधाम का जर्रा जर्रा महक उठता हैं |

महामत कहे हक नासिका, याकी सोभा न

आवे सुमार ।
कछू बडी रूह मोमिन जानहीं, जाको निस दिन एही विचार ।।  15/ प्रकरण 15 सिनगार

श्री महामति जी कहते हैं कि इस प्रकार श्री राज जी की नासिका की शोभा अपार हैं |धाम धनी श्री राज जी की नासिका का गौर वर्ण ,उनमें से झलकती लालिमा ,निर्मलता और नासिका में धारण की हुई नूरमयी बेसर की शोभा को श्री श्यामा जी और ब्रह्म आत्माएँ ही जान सकती हैं जो अहर्निश श्रीराज जी की शोभा ,स्वरूप का चिंतन ,सहूर करती हैं |

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