सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

shobha dekhe rasoi ki haveli ki

प्रणाम जी 

रसोई की हवेली में चले 

रूह की नजरो से धाम की शोभा देखे --अपणा निजघर और उनमें भी शोभा देखनी हैं रसोई की हवेली की --

हवेली में खुद को महसूस करे --रसोई की हवेली के मध्य में एक कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं --

चबूतरा के किनार पर थम्भ आएं हैं --चारों दिशा के मध्य भाग से सीढियां उतरी हैं और घेर कर नूरी कठेड़ा आया हैं 

चबूतरा पर पशमी गिलम और थंभों को भराए के नूरी चंदवा शोभित हैं --चबूतरा पर अति सुन्दर बैठके --जिन पर विराजमान होकर आप श्री राज जी श्यामा जी सखियों के संग आरोगते हैं ..हान्स विलास करते हैं --तो चले इन चबूतरे पर --और देखे रसोई की हवेली की सम्पूर्ण शोभा एक नए अंदाज में --

 चबूतरा पर सुन्दर आसन हाजिर हैं --बैठे और निरखे शोभा --

चबूतरा की घेर कर एक नूरमयी गली फिरी हैं --गली के आगे एक थम्भ की हार घेर कर आयीं हैं और फिर एक गली की शोभा --

इन  गली के आगे चारों दिशा में हवेली की दीवार --जो मंदिरों की आयीं हैं --                         

सबसे पहले अपना मुख करे धाम दरवाजे की और --देखे हवेली की पूर्व दीवार की अलौकिक शोभा --
चारों दिशा में 21 -21  मंदिर आने चाहिए --पूर्व की और देखेंगे तो मध्य के ग्यारह मंदिर नहीं आयें हैं वहां थंभों की दो हारे आयी हैं --एक मंदिर की चौड़ी और ग्यारह मंदिर की लंबी मनोहारी दहलान की शोभा आयीं हैं --देहेलान के दोनों और नूरमयी मंदिरों की शोभा आयीं हैं --



 थंभों की दो हारों के दरम्यान कुछ इस तरह से दहलान की शोभा 🙏🏾👆                         
 पूर्व की और आयीं ग्यारह मंदिर की देहेलान ..और देहेलान के दोनों और आयें पांच पांच मंदिर --इन शोभा को दिल में धारण कर अब देखे शोभा उत्तर दिशा की --
                         

 चबूतरे की उतरी किनार पर आयें --एक थम्भ की हार और दो गली की शोभा --सुखदायी झलकार करती हुई --आगे देखा की --कोने का मंदिर छोड़कर दूसरा मंदिर श्याम मंदिर हैं ..रसोई का मंदिर --जहाँ लाड बाई का जुत्थ बड़े ही लाड से भोजन ,शाक ,पकवान रुच रुच कर तैयार करता हैं -

रसोई के मंदिर के साथ लगता सीढ़ी का मंदिर --जिनसे सखियाँ चढ़ -उतर करती हैं और उन समय उनके आभूषणों की झलकार --महसूस करे --

सीढ़ी के मंदिर के आगे श्वेत मंदिर --                         
 और उत्तर दिशा के ठीक मध्य भाग में बड़ा दरवाजा --बेहद ही मनमोहक शोभा लिये --

बड़े दरवाजे से पहले मंदिर आयें हैं और दरवाजा के आगे देहेलान आयीं हैं


                         

 और मुख्यद्वार के पश्चिम दिशा मे दहलान आईं है | इन मंदिरों की पिछली दीवाल तो आई हैं पर आगे थम्ब आने से दहलान की शोभा हैं | ठीक इसी तरह हवेली के दक्षिण तरफ भी मुख्यद्वार के पश्चिम मे दहलान आईं है |                         
अब देखते पश्चिम दिशा में --यहाँ 21  मंदिरों की सोहनी झलकार हैं --मध्य में मुख्य दरवाजा सुशोभित हैं                         
 तो इस तरह से 

चौरस हवेलियों की संपूर्ण शोभा एक ही हीरे में आई है जिनकी प्रत्येक दिशा में 21 -21   मंदिरों की नूरी दीवार आई है |इन मंदिरों के बाहिरी और भीतरी तरफ थम्भो के ऊपर एक ही जवाहरात से सुसज्जित मेहेराबे दिखाई दे रही हैं |हवेली की उत्तर ,दक्षिन और पश्चिम दिशा में मध्य में हवेली के बड़े द्वार शोभित हैं पूर्व की और बड़ा दरवाजा नहीं आया हैं क्योंकि यहाँ देहेलान आयीं हैं --रसोई की हवेली पचास मंदिर और तीस मंदिर की देहेलान आने से अस्सी मंदिर का चौक कहलाता है | इसके थम्भ और दीवाल नूरमयी जवाहरातों में शोभा ले रहें हैं | आमने सामने नूरी किरणे जंग करती हुई प्रतीत होती हैं | यहाँ की नूरमयी अलौकिक शोभा का कहाँ तक वर्णन करें ?

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