शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

🌟🌟भूल भुलवनी🌟🌟

🌹✨✨प्रणाम जी ✨✨🌹

🌹चित में भाव लेकर मेरी रूह भूल भुलवनी के मध्य चौक में आन खड़ी हुई --बड़ी ही अदा से एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा पर आयीं -अति सोहन चबूतरा --सुखदायी झलकार करता हुआ --नीचे नूरमयी रंगों से झिलमिलाती नूरी ,अति कोमल गिलम और चबूतरा की किनार पर आयें नूरी दर्पण के थम्भ --मनोहारी नक्काशी से जड़ित --🌹

💘और नूरी थम्भो को भराए कर नूरी चंदवा --रूह मेरी एकटक शोभा देख रही हैं --चबूतरा को घेर कर आयी गली /परिक्रमा और परिक्रमा से लगते चारों दिशा में नूरी दर्पण के मंदिर --आपस में जुड़े हुए मंदिर --यूँ शोभा की एक प्रतिबिम्ब के हजारों हजार प्रतिबिम्ब उठे और कोई भी नक़ल नहीं महसूस होता --यह अखंड परमधाम की बात हैं --💘


💐आप श्री राज श्यामा जी आते हैं संग सखियों को ले --चबूतरा पर आयीं नूरी सिंहासन पर विराजमान  हुए और सखियाँ उन्हें घेर कर बैठती हैं --इन समय की शोभा बेहद ही सुख देती हैं रूह को --श्री राज श्यामा जी सखियों का सिंगार उनके प्रतिबिम्ब नूरी दर्पण के मंदिरों की दीवारों पर कुछ यूँ झलकते हैं कि प्रत्येक बैठक असल प्रतीत होती हैं --जहाँ जहाँ नजर जाए पिया जी कि बैठक नजर आयीं --पिया ही पिया --तू ही तू --💐🤗🙏🏾

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

अजब रंग आसमानी का, जुडी जामें मीहीं चादर ।

🙏🏾
अक्षरातीत श्री राज जी ने श्वेत ,उज्जवल जाम के ऊपर आसमानी रंग में सोहनी झलकार करती सुन्दर चादर धारण की हैं --प्रियतम श्री राज जी बड़ी ही मनमोहल अदा से श्री राज जी चादर धारण करते हैं -चादर और पिछोरी के किनारों पर लाल ,नीले ,पीले आदि अनेक रंगों की किरणे सुखदायी झलकार कर रही हैं --

प्रियतम श्री राज जी के अंग का ही नूर पिछोरी इतनी महीन हैं कि इनमें से जामा के कटाव ,जडाव सब नज़रों में आता हैं --रूहों के सुभान जब पिछोरी धारण करते हैं तो उनके कन्धों से ऊपर से होती हुई यह पिछोरी हारों पर आती हैं तब पिछोरी से प्रतिबिंबित होते हुए हार अद्भुत ज्योति बिखेरते हैं 

अजब रंग आसमानी का, जुडी जामें मीहीं चादर ।
ए भूषन बेल कटाव जामें, सब आवत माहें नजर ।। ૭१/5सागर

लाल नीले पीले रंग कै, सोभें छेडों बीच किनार ।
जामें चादर मिल रही, लेहेरी आवत किरनें अपार ।। ૭२ /5सागर💐💐👃🏾

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

भूलवनी

चालीस मंदिर ताड़ वन के लाल चबूतरा की तरफ के हैं |तीस मंदिर खड़ोकली के हैं और चालीस मंदिर ताड़ वन के जो खड़ोकली की उस तरफ हैं |
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चबूतरे चहेबच्चे लग | बीच चालीस मंदिर || 
चालीस चहेबच्चे परे | अस्सी बीच तीस अंदर ||     श्री लाल दास महाराज कृत छोटी वृत्त 

प्रेम प्रणाम जी --श्री रंगमहल की उत्तर दिशा में चले --रंगमहल के ईशान कोण ( पूर्वी उत्तरी कोण  )और वायव्व कोण (पश्चमी उत्तरी कोण) के मध्य पचास हान्स आएं हैं --अर्थात 1500  मंदिर उत्तर दिशा में शोभित हैं |वायव्व कोण पर खुद को खड़ा करे और मुख पूर्व की और रखे तो दायीं  हाथ को रंगमहल के मंदिर लगे हैं और बायीं और लाल चबूतरा --यहाँ से 1200  मंदिर तक लाल चबूतरा की शोभा आयीं हैं --पूर्व की और चलते हुए लाल चबूतरा की हद पार की --

शेष रहे उत्तर दिशा के 300  मंदिर

 --लाल चबूतरा के आगे 40  मंदिर 
+ 30  मंदिर जो खड़ोकली के कहलाते हैं क्योंकि इन मंदिरों की उत्तर दिशा में खड़ोकली आयीं हैं 
+40  मंदिर --तह ताड़वन की तरफ हुए -=इन 110  मंदिरों की गिनती विशेष महत्व रखती हैं

इन एक सौ दस मंदिरों के सामने एक सौ दस मंदिरों की एक सौ दस हारें हैं |तिन के मंदिर बारह हज़ार और एक सौ हुए |


चालीस लाल चबूतरा के तरफ के मंदिर +तीस मंदिर खड़ोकली के +चालीस मंदिर ताड़वन की तरफ के =कुल 110  मंदिर हुए ।इन 110  मंदिरों के भीतरी तरफ चार चौरस हवेली की चार हारों के स्थान पर 110  मंदिरों की 110  हारें आयीं हैं  ।नूरमयी दर्पण के कुल 12100  मंदिर हुए ।(110 *110 =12100 )

मध्य में एक सौ मंदिर का चौक हैं ,जिनमें छत्तीस मंदिर की परिक्रमा हैं और चौसठ मंदिर का चबूतरा हैं ,जिस पर बत्तीस थम्भ और बत्तीस महेराबे हैं |


इन 12100  मंदिरों  के मध्य में 100  मंदिर का नूर से झलकार करता हुआ चौक आया हैं ।100  मंदिर के चौक में आठ मंदिर का लंबा चौड़ा अर्थात चौसठ मंदिर का एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा आया हैं ।चबूतरा की किनार पर नूरी थम्भ आएं हैं ।चबूतरा की चारों दिशा में किनार पर आठ-आठ थम्भ आएं हैं --कुल बत्तीस थम्भ सुशोभित हैं ।बत्तीस थंभों के दरम्यान बत्तीस   नूरी ,अति सुन्दर नक्काशी से जड़ित मेहराबें आयीं हैं ।

*इस चौक में परिक्रमा के लगते चालीस दरवाजे हैं |एक एक मंदिर में चार चार दरवाजे दिखाई देते हैं ,परन्तु गिनती में दो दो ही हैं |बारह हज़ार मंदिरों की चौबीस हज़ार अर्थात चौबीस हज़ार दो सौ चालीस + महेराबे हैं | भूलवनी सोलह हवेलियों की जगह में हैं |श्रीराज जी श्री ठकुरानी जी समस्त सुन्दर साथ सहित झीलना ,सिनगार करके खेलते हैं और कभी खेलकर झीलना ,सिनगार करते हैं *


एक सीढ़ी ऊंचा को घेर एक मंदिर की परिक्रमा आयीं हैं जिसे छत्तीस मंदिर की परिक्रमा भी कहते हैं ।एक मंदिर की चौड़ी और लंबाई में घेर कर इस परिक्रमा ने छत्तीस मंदिर की जगह घेरी हैं ।

परिक्रमा के भीतरी तरफ चबूतरा की अपार शोभा हैं --चौसठ मंदिर का चबूतरे जिसकी किनार पर नूरमयी थम्भ आएं हैं और थम्भो को भराए के चंद्रवा की शोभा हैं --परिक्रमा के बाहर की और लगते मंदिर हैं --प्रत्येक दिशा में दस-दस तो कुल चालीस मंदिर परिक्रमा से लगते आएं हैं जिनके चालीस द्वारों की सुखदायी झलकार हो रही हैं ।

परिक्रमा के लगते यह मंदिर अति सुन्दर हैं ।नूरमयी दर्पण के मंदिर --मंदिर के भीतर गए तो देखा की प्रत्येक मंदिर में चार चार दरवाजे दिखाई दे रहे हैं --लेकिन गहराई से देखे तो दो ही दरवाजे हैं क्योंकि प्रत्येक दरवाजा दूसरे मंदिर में काम दे रहा हैं ।वजह ? मंदिर आपस में सटे हुए हैं ।

तो इस प्रकार से देखे तो कुल द्वार 24000  होने थे पर कुछ संख्या बढ़ गयी हैं ।मध्य चौक से लगते चालीस दरवाजे एक ही मंदिर के हैं --इसी तरह 110  मंदिरों की 110  हारों की बाहिरी किनार पर खुलते दरवाजे भी एक ही मंदिर में काम आएं हैं --40 +440 =480  दरवाजे 

480  दरवाजों में से 240  पहले 24000  हजार की गिनती में शुमार किया जा चुके हैं शेष रहे 240  तो कुल 24240  दरवाजे भुलवनी के हुए 


भुलवनी के यह अति सोहने मंदिर  यह मंदिर आपस मे सटे हैं | हर मंदिर का द्वार दूसरे मे भी काम  करता है | यहां इन मंदिरों में श्रीराज जी श्री श्यामा जी के संग रूहें भुलवनी की रामतें करतें हैं | भुलवनी के नूरी दर्पण के मंदिरों के द्वार ,किवाड़ और सब जोगबाई नूरी दर्पण की ही आईं है | रूहे एक द्वार से दोड़ती हैं और दूसरे से निकलती हैं |दर्पण ऐसा कि एक -एक प्रतिबिंब के हज़ारो प्रतिबिंब नज़र आते हैं |असल नकल की पहचान नही हो पाती हैं |दूसरी रूह जब पहली रूह को पकड़ना चाहती है तो प्रतिबिंब से टकरा जाती है और बेशुमार हांसी होती हैं |
एक भूलवनी यह भी है कि प्रत्येक मंदिर के दिखने के चार द्वार हैं तो गिनती की जाती हैं कि 48000 द्वार हुए जबकि हर द्वार दूसरे द्वार में काम में आता हैं तो गिनती होनी चहिए 24000 द्वारों की |

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

नख सिख लों बरनन करूं

नख सिख लों बरनन करूं, याद कर अपना तन ।
खोल नैना खिलवत में, बैठ तले चरन ।। ११४/२१ सिनगार 

सिनगार  ग्रंथ के २१ वें प्रकरण में श्री महामति जी पारब्रह्म श्री राज जी के अति सुन्दर और अमरद सूरत का मनोहारी वर्णन किया हैं।श्री महामति जी अपनी आत्मा को आह्वान कर रहे हैं कि  हे मेरी आत्मा ,तू पर आत्म का श्रृंगार सज कर श्री धाम धनि के चरणों में बैठ और उन्हें अपनी आत्मिक दृष्टि से निहार।प्रियतम श्री राज जी की नूरी और अलौकिक शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा  ।

केस तिलक निलाट पर, दोऊ रेखा चली लग कान ।
केस न कोई घट बढ, सोभा चाहिए जैसी सुभान ।। ११८ /२१ सिनगार

एक स्याम नूर केसन की, चली रोसन बांध किनार ।
दूजी गौर निलाट संग, करें जंग जोर अपार ।। ११९ /२१ सिनगार

सोभा चलि आई लवने लग, पीछे आई कान पर होए ।
आए मिली दोऊ तरफ की, सोभा केहेवे न समरथ कोए ।। १२० /२१ सिनगार

हे मेरी आत्मा ,तू माशूक श्री राज जी के उज्जवल ,नूरानी मस्तक पर सुशोभित केशों कि शोभा को निरख । माथे पर आईं तिलक कि दो रेखाएं कितनी प्यारी लग रही हैं और  प्रियतम के सुगन्धित केश तो श्रवण अंग तक लहरा रहे हैं ।केशों की सलूकी ,नाजुकी रूह की आँखों से ही महसूस कर सकते हैं ।केश वैसे ही सुशोभित हो रहे हैं जैसे की शोभा धाम धनि की होनी चहिए ,कोई घट बढ़ नही हैं ।अक्षरातीत श्री राज जी के नूरी श्याम केशों की श्याम जोत मस्तक से होती हुई श्रवण अंग तक गयी हैं और उज्जवल ललाट की श्वेत लालिमा युक्त जोत केशों की जोत से जंग करती प्रतीत हो रही हैं ।श्री  राज जी के उज्जवल मस्तक पर दोनों और आयें केश अनोखी छब -फब से कनपटी और श्रवणों के ऊपर से होते हुए पीछे की और गए हैं ।


याही भांत भौंह नेत्र संग, करत जंग दोऊ जोर ।
स्याह उजल सरभर दोऊ, चली चढ टेढी अनी मरोर ।। १२१ /२१ सिनगार

मेरी आत्मा निज नयनों से देख ,श्री राज जी की श्याम भौंहें और उनकी श्यामल नूरी ज्योति तथा पिऊ जी के नेत्र कमलों की नूरी श्वेत  ज्योति जब आपस में जंग करती हैं तो भौंहों और नयन कमलों की शोभा कोट गुनी शोभित हो रही हैं ।प्रियतम श्री राज जी के भौंहों के केश बहुत ही प्यारी जुगति और सलूकी से नयनों पर आयें हैं ।नयनों की बरौनियों पर आयें केश और भौंहों पर आयें केश एक रेखा के सामान लग रहे है ।पिया श्री राज जी के उज्जवल गुलाबी मुखारबिंद पर श्याम भौंहें और नयनों की लालिमा युक्त श्वेत आभा आपस में जंग करती हुई  अत्यधिक् सोहनी लग रही हैं ।

दोऊ नेत्र टेढे कमल ज्यों, अनी सोभा दोऊ अतंत ।
जब पापन दोऊ खोलत, जानों के कमल दोऊ बिकसत ।। १५१ /२१ सिनगार


धामदुल्हा श्री राज जी के तिरछे नेत्र कमल की भांति सुशोभित हो रहे है ।प्रियतम श्री राज जी अदा से पलकें खोलते हैं तो प्रतीत होता हैं मानो दो कमल खिल उठे हो ।श्री राज जी के नयन नासिक के मूल से प्रगट हुए कमल के सामान शोभित हो रहे हैं जिनमें श्याम ,श्वेत और लाल रंग की नूरी जोत ,उनकी तरंगें वतन को रोशन कर रही हैं। श्री राज जी के मेहर भरे यह नैन सदा ही रूहों पर संकुल रहते हैं ,उनकी मेहर दृष्टि सदैव रूहों पर रहती हैं ।

दोऊ छेद्र तलें अधुर ऊपर, तिन बीच लांक खूंने तीन ।
सोई सोभा जाने इन अधुर की, जो होए हुकम आधीन ।। १३२/२१ सिनगार

मेरी रूह ,अब आत्मदृष्टि से देख ,श्री राज जी के नासिका की अलौकिक शोभा ,श्री राज जी के गौर वर्ण की नासिक के दोनों छिद्रों और ऊपर वाले होठों के मध्य जो गहराई हैं ,उसमें तीन कोने हैं । नीचे वाला अधुर जब ऊपर वाले अधुर से मिलता हैं तो बहुत ही प्यारी छबि की झलक रुहें देखती हैं   ।दोनों होंठ पाँखुडी के सामान प्रतीत होते हैं ,होंठों के नीचे और हरवती के ऊपर बेन्दे की शोभा आईं हैं  । अर्श के गौर वर्ण की हरवती इस तरह से सलूकी लिए हैं कि श्री राज जी का मुख्य सदैव हँसता हुआ प्रतीत होता हैं  ।प्रियतम की यह अलौकिक शोभा वहीं आत्माएं देख सकती हैं जो उनके चरणों तले मूल मिलावे में बैठी हैं ।

अनेक गुन गालनमें

*गौर गाल सुंदर हरवटी, फेर फेर देखों मुख लाल* ।
*अरस कर दिल मोमिन, माहें बैठे नूरजमाल* ।।74/20सिनगार

मेरी रूह अपने सुभान श्री राज जी के गौर गालों ,सुंदर हरवटी को फेर फेर निहारती हैं |श्री राज जी का मुख गौर वर्ण में लालिमा लिए हैं |प्रियतम श्री राज जी की मुखारबिंद की सलूकी ,नाज़ुकी ,चकलाई रूह के नयनों से ही महसूस कर सकते  हैं |ऐसे मेरे अलौकिक सोन्दर्य के धनी मेरे श्री राज जी मोमिन के दिल को अर्श कर विराजमान हैं |

*क्यों कहूं गौर गालन की, सोभित अति सुंदर* ।
*जो देखूं नैना भरके, तो सुख उपजे रूह अंदर* ।। ६०/12सिनगार

*गाल रंग अति उजल, गेहेरा अति कसूंबाए* ।
*मेहेबूब मुख देखे पीछे, रूह छिन न सहे अंतराए* ।। ६५ /12सिनगार

मेरे धनी श्री राज जी के गौरे गौरे गाल और लाल लाल होंठों की सुंदरता ,निज नयनों से निरख मेरी रूह  | श्री राज जी के मुख कमल का सोन्दर्य अनुपम हैं |उनके अंग-अंग में प्रेम ,आनंद ,इश्क ,प्रीति समाई हैं |श्री राज जी के गौरे गौरे गालों को निहारने वाली सखी के आनंद का क्या वर्णन हो ? सखी कभी गौरे गौरे गुलाबी गालों की सलूकी को अपलक निहारती हैं तो कभी उनके रंगों को |

महबूब श्री राज जी अर्श के गौर वर्ण के नूरी गाल ,उनमें गहराई लालिमा --रूह इन गालों में ही खो सी जाती हैं |

*क्यों कहूं गालोंकी सलूकी, क्यों कहूं गालोंका रंग* ।
*अनेक गुन गालनमें, ज्यों जोत किरन रंग तरंग* ।। ६१/12सिनगार

गालों की सलूकी ,चकलाई उनका अद्भुत सोन्दर्य वर्णन से परे हैं |  गालों में झिलमिलाते अर्शे अज़ीम के रंगों का वर्णन हो ? हे मेरी सखी ,श्री राज जी के गौरे गौरे गालों को निरख जिनमें  अनेक गुण हैं |  गालों की अलौकिक ज्योति ,इन ज्योति से उठती किरणें ,किरणों से उठती तरंगों के छिपे सुखों को महसूस कर |

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

गौर निरमल नासिका

गौर निरमल नासिका, सोभा न आवे माहें सुमार ।
आसिक जाने मासूक की, जो खुले होए पट द्वार ।। 1/ प्रकरण 15 सिनगार

श्री महामति जी , हक श्री राज जी की नासिका का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि प्रियतम श्री राज जी की नासिका गौर वर्ण की हैं | साथ जी ,श्री राज जी की नासिका अर्श के गौर वर्ण में लालिमा लिए अपार शोभा ले रही हैं |  अति निर्मल नासिका का वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता हैं |प्रियतम धामधनी के इस दिव्य अंग की शोभा तो वही ब्रह्मप्रियाएं जान सकती हैं जिनके अंतः करण के द्वार खुल गये हो |

नासिका की अदभुत ,अति मनोहारी शोभा के ऊपर तिलक की शोभा के लिए तो कोई शब्द ही नहीं हैं |श्री राज जी के तिरछे ,चंचल ,गहराई लिए हुए मान से भरे नयनों के मध्य नासिका के ऊपर सुशोभित तिलक की अद्वितीय शोभा को अनुरागिनी रूहें बारम्बार निहारती हैं |

कै खुसबोए अरस की, लेवत है नासिका ।
दोऊ नेत्रों के बीच में, सोभा क्यों कहूं सुंदरता ।। 3/ प्रकरण 15 सिनगार

परमधाम के नूरमयी बगीचों में अनेकानेक फूल खिले हैं जिनकी सुगंधी का कोई पारावार नहीं हैं |परमधाम के बगीचे ,मोहोलाते हो ,कोई भी चीज़ सुगंध रहित नहीं हैं |नैत्र कमलों के मध्य सुशोभित प्रियतम श्रीराज जी की नासिका अर्शे अज़ीम की सुगंधी का पान करती हैं और लाड़ली रूहों को भी  रस पान कराती हैं | 

हक श्री राज जी की नासिका के गौर वर्ण में गहराई लालिमा को ,सलूकी ,चकलाई और निर्मलता को रूहें फेर फेर निरखती हैं | नासिका के गुण अथाह हैं |वो चित्त चाही खुशबू लेती हैं ,चित्त चाही शोभा को धारण करती हैं ,चित्त चाहे भूखण धारण करती हैं जिससे उनकी ब्रह्म प्रियाओं को आनंद मिले |हक श्री राज जी ने नासिका में माणिक के जड़ाव की नूरी बेसर धारण की हैं |बेसर की लालिमा से परमधाम का जर्रा जर्रा महक उठता हैं |

महामत कहे हक नासिका, याकी सोभा न

आवे सुमार ।
कछू बडी रूह मोमिन जानहीं, जाको निस दिन एही विचार ।।  15/ प्रकरण 15 सिनगार

श्री महामति जी कहते हैं कि इस प्रकार श्री राज जी की नासिका की शोभा अपार हैं |धाम धनी श्री राज जी की नासिका का गौर वर्ण ,उनमें से झलकती लालिमा ,निर्मलता और नासिका में धारण की हुई नूरमयी बेसर की शोभा को श्री श्यामा जी और ब्रह्म आत्माएँ ही जान सकती हैं जो अहर्निश श्रीराज जी की शोभा ,स्वरूप का चिंतन ,सहूर करती हैं |

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

*देखो नैना नूरजमाल, जो रूहों पर सनकूल *

   



देखो नैना नूरजमाल, जो रूहों पर सनकूल ।
अरवाहें जो अरस की, सो जिन जाओ छिन भूल ।। 1||/14 सिनगार 

श्री महामति जी सुंदर साथ जी को आह्वान कर रहे हैं कि मेरे प्यारे साथ जी ,अपनी आत्मिक दृष्टि से अक्षरातीत श्रीराज जी नयनों अद्वितीय शोभा को देखिए | श्री राज जी के नयन ब्रह्म सृष्टियों पर सदैव ही प्रेम ,इश्क ,प्रीति की वर्षा करते हैं |प्रेम रस में भीगे यह नयन अति सुखदायी हैं | तो मेरे साथ जी ,परमधाम की जो भी कोई ब्रह्म सृष्टि हैं उन्हें एक पल के लिए इन नयनों को नहीं भूलना चहिए |

गुन नैनों के क्यों कहूं, रस भरे रंगीले ।
मीठे लगें मरोरते, अति सुन्दर अलबेले ।। 5 /14 सिनगार 

श्री महामति जी आगे कह रहें हैं कि मैने हक श्रीराज जी के नयनों की बेशुमार महिमा को देखा हैं |उनके नयन कैसे हैं ? प्रियतम श्री राज जी के नयनों में अपार गुण हैं और यह गुण अखंड अर्श के हैं जिनसे ब्रह्मप्रियाएं अखंड सुखों का निरंतर पान  करती हैं |प्रेम ,प्रीति और इश्क रस से भरे यह नैन सुखदायी हैं | जब श्री राज जी अपने नयनों को रूह की और करते हैं तो मस्ती में डूबे यह नयन बहुत ही सुंदर प्रतीत होते हैं |तिरछी छबि वाले श्री राज जी के बड़े -बड़े  नयनों में नूर के काले काले तारें हैं और नयनों की  लालिमा लिए श्वेत जोत में रूहों के लिए इश्क ,शीतलता ,करुणा ,प्रेम और प्रीति  हैं |पलके गौर वर्ण में सुशोभित हैं |प्रियतम श्री राज जी के नैनन के तारों ,पुतलियों और बरौनियों में तेज हैं और इन  तेज में सुख ही सुख हैं | उल्लास से परिपूर्ण इन नयनों में मान हैं और पलकों की बरौनियों में प्रेम से भरी लज्जा समाई हैं |

मेहेर भरे मासूक के, सोहें नैन सुन्दर ।
भृकुटी स्याम सोभा लिए, चूभ रेहेत रूह अंदर 7/14 सिनगार 

माशूक श्री राज जी के मेहर से भरे यह नयन रूह को बहुत सुंदर लगते हैं | बड़े बड़े तिरछे नयन कमलों का नूरमयी और उन पर श्याम रंग में शोभित सलूकी लिए भृकुटी की जोत ,यह अद्भुत शोभा ब्रह्मप्रियाओं के धाम हृदय में चुभ जाती हैं | 

जब खैंचत भर कसीस, तब मुतलक डारत मार ।
इन विध भेदत सब अंगों, मूल तन मिटत विकार ।। 11/14सिनगार 

धामदूल्हा श्री राज जी जब अपने नयनों से प्रेम की मस्ती में तिरछे नयनों से इशारें कर रूहों को बुलाते हैं तो उनके नयनों में समाए असीम लाड़-प्यार को रूहें महसूस करती हैं |उनके प्रेम के बाणों में झलकती चंचलता ,चपलता रूहें एकटक देखती हैं | प्रियतम श्री राज जी के नयनों के गुण अपार हैं |प्रियतम श्री राज जी के सुंदर अति सुंदर ,छैल छबीले इन नयनों की शोभा रूहें चितवन से प्राप्त करती हैं |

कहे गुन महामत मोमिनो, नैना रस भरे मासूक के ।
अपार गुन गिनती मिने, क्योंकर आवें ए ।। 47/14सिनगार 

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

प्रीत रीत इसक की

*प्रीत रीत इसक की, इसकै सेहेज सनेह* ।
*निस दिन बरसत इसक, नख सिख भीजे सब देह* ।। २१ ।।प्रकरण 12सिनगार

अक्षरातीत श्रीराज जी के हुकम से श्री महामति जी परमधाम की रूहों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि हे मेरे प्यारे साथ जी ,अर्शे-अज़ीम परमधाम की रीति ,वहाँ का व्यवहार सदैव प्रीति और इश्क का हैं |इश्क के सहज स्नेह से संपूर्ण परमधाम रोशन हैं | धाम दूल्हा श्री राज जी दिन-रात अपनी ब्रह्म -प्रियाओं पर इश्क की बारिश करते हैं |धाम धनी के अनन्य प्रेम का रसास्वादन परआतम तो करती ही हैं और जागृत होने पर आत्मा भी प्रियतम श्रीराज जी के प्रेम के अखंड सुख महसूस करती हैं |

अक्षरातीत श्री राज जी के सभी अंगों में सौंदर्य हैं ,प्रेम ,प्रीति हैं |श्रीराज जी के अंग-अंग में प्रेम ही प्रेम हैं |अखंड परमधाम में विराजमान इन अंगो की अलौकिक  ,अद्भुत शोभा को यदि सहूर करें तो पल भर में आत्मा जागृत होकर धाम धनी श्रीराज जी के साथ अखंड सुख प्राप्त करेगी | तो साथ जी ,आइए और अपने प्रियतम श्रीराज जी की अति सुंदर ,सोहनी छबि के दीदार आत्मिक दृष्टि से करें |

*भौं भृकुटी पल पापन, मुसकत लवने निलवट* ।
*इन विध जब मुख निरखिए, तब खुलें हिरदे के पट* ।। २२ ।। प्रकरण 12सिनगार

अक्षरातीत श्रीराज जी की शोभा नूरमयी हैं | उनका स्वरूप अमरद ,कोमल ,नूरी तेज और ज्योति से भरपूर हैं |उनकी मोहक वाणी अत्यंत ही मनमोहक हैं |पूर्ण ब्रह्म श्रीराज जी का स्वरूप सुगंधी और पूर्ण प्रेम और इश्क से लबरेज हैं |इस प्रकार से श्रीराज जी के दिल का नूर अर्थात प्रेम ,प्रीति ,सौंदर्य ,कांति ,तेज ही नख से शिख तक सुशोभित हो रहा हैं |

हे मेरे प्राणों से भी प्रिय साथ जी ,श्री राज जी की तिरछी भौहों और भृकुटी की अपार शोभा को निज नयनों से निहारिए | घनी बरौनियों वाली उनकी अति सुंदर दोनों पलकें ,साथ जी इन शोभा का वर्णन मुख से कैसे हो ? और देखिए ,नूरानी मस्तक पर अनोखी अदा से लहराते प्राणवल्लभ श्रीराज जी  के नरम नरम ,बाल  कितने मनमोहक प्रतीत हो रहें हैं |इस तरह से श्रीराज जी के मुस्कराते हुए मुख की शोभा को बार बार निरखिए तो हृदय के ऊपर छाया हुआ माया का आवरण पल भर में हट जाएगा |

*जो गुन हक के दिल में, सो मुख में देखाई देत* ।
*सो देखें अरवाहें अरस की, जो इत हुई होए सावचेत* ।। ३४ ।।प्रकरण 20 सिनगार

श्री महामति जी कह रहें हैं कि मेरे साथ जी ,परआतम का सिनगार सज कर धाम धनी श्रीराज जी के चरणों में बैठिए और प्राण वल्लभ की नख से शिख तक की अलौकिक ,अनुपम शोभा को धाम हृदय में दृढ़ कीजिए |धाम धनी श्री राज जी के हृदय में गुण विद्द्यमान हैं | वे गुण ही उनके मुख पर दिखाई देते हैं |उनके दिल के राज वे ही रूहें जान पाती हैं जो श्रीराज जी के मेहेर ,हुकम से जागृत हो चुकी हैं |

प्रेम प्रणाम सुंदर साथ जी 

केस तिलक निलाट पर


नख सिख लों बरनन करूं, याद कर अपना तन ।|
खोल नैना खिलवत में, बैठ तले चरन ।।114/21 सिनगार

श्री महामति जी अक्षरातीत श्रीराज जी के हुकम से  पूर्ण ब्रह्म परमात्मा श्रीराज जी की अति सुन्‍दर और अमरद सुरत का मनोहारी वर्णन कर रहें हैं |श्री महामति जी अपनी आत्म को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मेरी आत्मा ,तू परआतम का सिनगार सज कर धाम धनी श्रीराज जी के चरणों तले बैठ और आत्मिक दृष्टि से प्रियतम की नख से शिख तक की शोभा अपने धाम हृदय में बसा ले |

केस तिलक निलाट पर, दोऊ रेखा चली लग कान ।
केस न कोई घट बढ, सोभा चाहिए जैसी सुभान ।। 119/21 सिनगार

धाम दूल्हा श्रीराज जी के उज्ज्वल नूरानी मस्तक पर उनके नूरमयी केशों की शोभा को निरख और तिलक की शोभा को देख | तिलक में अति सुन्दर दो रेखा शोभा ले रही हैं और केश तो श्रवण अंगों तक चले गये हैं | केशों की सलूकी देखते ही बनती हैं | उनमें कोई घट-बढ़ नहीं हैं | जहां जैसी शोभा आनी चहिए वहां वैसी शोभा आईं हैं | श्रीराज जी के केश नूरमयी ,अत्यंत ही कोमल और घुंघरालें आएं हैं |

मेयराज अर्थात  दर्शन की दिव्य  रात्रि में मुहम्मद साहब की सुरता ,उनकी निज नज़र श्रीराज जी के जोश ,उनकी मेहर से हद ,बेहद के ब्रह्मांड को पार करके परमधाम में जमुना जी के पुल के समीप पहुँचती हैं  |वहां  पर अक्षरातीत श्री राज जी ने नूरमयी ,इश्क रस में परिपूर्ण ,दिव्य ,अलौकिक सुखपाल भेजा जिस पर बैठ वे मुलमिलावे में श्रीराज जी के सन्मुख पहुंचे और उन्होने श्री राज जी का दीदार किया |मुहम्मद साहब ने श्रीराज जी के अमरद सुरत और हिना  की सुगंधी से महकते घुंघराले केशों के  भी दर्शन किए |

हे मेरी रूह ,तू भी चितवन से अनुभव कर | पूर्ण ब्रह्म श्रीराज जी के नूरी श्याम केशों की श्याम जोत मस्तक से होती हुई श्रवण अंग तक गयी हैं |उज्ज्वल ललाट की लालिमा लिए श्वेत ज्योति और केशो की श्याम ज्योति आपस में टकरा कर जंग करती हुई मनोहारी प्रतीत हो रही हैं |

कांध पीछे केस नूर झलके, लिए पागमें पेच बनाए ।
गौर पीठ सुध सलूकी, जुबां सके ना सिफत पोहोंचाए ।। ६० ।।/8 सागर

हे मेरी आत्मा ,मेरे प्रियतम के केशों की अनुपम ,मनोहारी शोभा कनपटी और कानों के कुछ ऊपर से होते हुए पीछे तक आईं हैं | श्रीराज जी के मस्तक के दोनों ओर आईं केशों की अति सुन्दर शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से नहीं हो सकता हैं |
धाम धनी श्रीराज जी के कंधो तक उनके घुघराले बाल झूल रहें हैं |अति मनोहारी इन केशों का नूर उनके कंधों के पीछे झलकार कर रहा हैं |उनके नूरी केशों की सुंदरता और उनकी अर्शे अज़ीम की सुगंधी की महक में रूहें उलझ जाती हैं |

केस चुए में भिगोए, लिए जुगतें पेच फिराए ।
पेच दिए ता पर बहुबिध, बांधी सारंगी बनाए ।। २८ ।।/5सागर 

श्रीराज जी कोमल ,रेशम से नरम घुंघरालें केशों में सुगंधित इत्र में भीगे हुए हैं जिनकी महक से रूहें इश्क रस में डूबती हैं |घुंघराले नूरमयी ,सुगंधी से महकते  केश और उन पर आईं लटकती पाग ,मेरी आत्मा इस अलौकिक शोभा को बार बार निरख और अपने धाम हृदय में अंकित कर |

सबद न लगे सोभा असलें, पर रूह मेरी सेवा चाहे ।
तो बरनन करूं इनका, जानों रूहों भी दिल समाए ।। २१ ।।5 सागर 

श्री महामति जी कह रहें हैं कि इस स्वप्न ज़मीन के शब्दों से श्रीराज जी की वास्तविक शोभा का वर्णन नहीं  हो सकता हैं |किंतु मेरी आत्मा प्रियतम श्रीराज जी की शोभा सिनगार का वर्णन करके सेवा करना चाहती हैं | इसीलिए मैं धाम धनी श्रीराज जी के हुकम से श्रीराज जी की शोभा का वर्णन कर रही हूँ जिससे श्रीराज जी की लाड़ली रूहों के धाम हृदय में प्रियतम श्रीराज जी की अलौकिक छबि बस जाए ||

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

सिर पाग बांधी चतुराईसों


सृष्टि के सभी मनुष्य एक पूर्ण ब्रह्म परमात्मा (SUPREME TRUTH GOD) का साक्षात्कार कराने वाली महान रात्रि का इंतज़ार कर रहे हैं | जिसके बारे में क़ुरान और हदीसों में वर्णित हैं कि इसी महिमावान रात्रि में ही पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की पहचान कराने वाला दिव्य ज्ञान प्रगट होगा |अब  स्वयं पारब्रह्म श्री प्राणनाथ जी ने दिव्य दर्शन की रात्रि को तारतम ज्ञान द्वारा प्रगट कर दिया हैं | 

श्री महामति जी के धाम हृदय में विराजमान पारब्रह्म श्री राज जी स्वयं तारतम वाणी के द्वारा अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के धाम ,अलौकिक लीला  के साथ -साथ युगल स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी के स्वरूप सिनगार के दर्शन करवा रहें हैं |
सरुप राज का देखिये ,वय किशोर मुख सुन्दर ।
अति गौर गेहरी लालक ,उठत तीसरी भोम मँदिर ।।5।।प्रकरण 126 परमधाम बड़ी वृत

श्री महामति जी रूहों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि श्री राज जी के स्वरूप को अपनी आत्मिक दृष्टि से देखिए | उनका स्वरूप किशोर हैं | उनका मुखारबिंद अर्श के गौर वर्ण में गेहरी लालिमा लिए हैं |ऐसे हमारे धाम दूल्हा  तीसरी भोम के नीले न पीलो रंग के मंदिरो से उठते है| परमधाम के वनों ,मोहोलातों में रमण करने के लिए सिनगार सजते हैं |

सिर पाग बांधी चतुराईसों, हकें पेच हाथ में ले ।
भाव दिल में लेयके, सुख क्यों कहूं बिध ए ।। २૭ /5सागर

धामधनी श्री राज जी के शीशकमल पर सेंदुरियां रंग की अति सुन्दर नूरमयी पाग सुशोभित हैं |श्री महामति जी रूहों को ब्रह्म वाणी के माध्यम से दर्शन करा रहें हैं कि प्रियतम श्री राज जी बड़ी प्यारी अदा से पेच हाथ में लेकर पाग बांध रहें हैं | पाग बांधते वक्त एक तो पाग की जोत और उनमें आएं नूरमयी नंगों की उज्ज्वल ,शीतल  और सुखदायी जोत रूहों को अखंड सुख प्रदान करती हैं |श्री राज जी जब अपनी नाज़ुक नाज़ुक पतली गौर लालिमा लिए अंगूरियों से पाग बांधते हैं तो उस समय की शोभा वर्णन से परे हैं |पाग  बांधते समय उनके नखों का तेज,उनकी नाज़ुक अंगूरियों का तेज और सेंदुरियां रंग की पाग का तेज आपस में जंग करता प्रतीत हो रहा हैं |
प्रियतम श्री राज जी अपनी रूहों को रिझावन की खातिर पाग इतनी सलूकी से बांधते हैं कि रूहें  अपलक इस अलौकिक लीला को देखती हैं |

रंग लाल जरी माहें बेल कै, कै फूल पात नकस कटाव ।
कै रंग नंग जबेर झलकें, बलि जाऊं बांधी जिन भाव ।। ३० /5सागर

धाम के दूल्हा श्री राज जी की पाग अर्श के नूरी सेंदुरियां रंग में शोभा ले रही हैं | पाग में जवेरातों की कई बेलें ,फूल और विध-विध के कटाव आएं हैं |पाग में कई तरह से रंगों और नंगों की तरंगे झलकार कर रही हैं | श्री राज जी के पाग बांधने की अदा से और उनके भावों पर रूहें बलिहारी जाती हैं |उनकी सेंदुरियां रंग की पाग में जरी के बेलों और फूलों की अजब नक्काशी आई हैं |धाम धनी श्री राज जी की पाग में यदि किसी एक पेच  में आधा फूल नज़र आता हैं तो वह दूसरे पेच में संपूर्ण रूप से सुशोभित होता हैं |






कलंगी तुरा दुगदुगी ,लटकत मोती मुख पर ।
तिलक सुन्दर अति शोमित ,कानों कुण्डल नाहीं पटन्तर ।।7।।प्रकरण  126 परमधाम बड़ी वृत

श्री राज जी के पाग के दाएं -बाएं कलंगी की अदभुत शोभा आईं हैं और सामने देखिए तुरा और दुगदुगी की मनोहारी शोभा आईं हैं |नूरी पाग पर पर माणिक की दुगदुगी , पाग पर आई कलंगी की जोत और उनके परों की झलकार आसमान तक जाती हैं |  उनके मुख पर निर्मल मोतियों की लरियां चंद्रिका की तरह लटकती है | आधे नासिका से ललाट तक तिलक की रेखा एवं कानो में कुण्डल की अपरंपार शोभा हो रही है|







श्री महामति जी रूहों को आह्वान कर रहें हैं कि आइए ! अपने महबूब श्री राज जी के श्रवण अंग  तक आएं उनके  घुंघरालें नूरी केशों को देखें | उनके नूरी केशों पर सुगंधित इत्र की महक को महसूस करें |  सेंदुरियां रंग जड़ाव की लटकती पाग की अत्यंत मनोहारी शोभा को निज नयनों से देखें  | पाग पर आई  दुगदुगी और कलंगी  की अलौकिक शोभा को निहारें | यह नूरमयी शोभा अर्शे-अज़ीम   की है और अरशे सहूर और चितवन से धाम हृदय मे अंकित होती है  |


एही अपनी जागनी

                         इन विध साथजी जागिए, बताए देऊं रे जीवन ।
स्याम स्यामाजी साथजी, जित बैठे चौक वतन ।। १ ।।७ सागर 

सागर ग्रन्थ के सातवें प्रकरण में श्री राज जी श्री महामति जी के धाम ह्रदय से ब्रह्म सृष्टियों को जागृत होने की कला समझा रहे हैं --

हे मेरे प्यारे साथ जी ,मैं अब आपको किस प्रकार जागृत होना हैं ,उसकी विधि दिखाता हूँ --श्री रंगमहल की प्रथम भूमिका के पांचवें चौक मूल मिलावा में चौसठ थम्भ चबूतरा पर नूरमयी कंचन रंग के सिंहासन पर युगल स्वरूप ,अक्षरातीत श्री राज-श्याम जी विराजमान हैं ,उनके चरणों तले दाड़िम की कलियों के सामान एक रूप ,एक तन होकर आपके मूल स्वरूप ,आपकी परआत्म बैठी हैं --इन शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा कर अपनी आत्मा को जागृत कीजिए

याद करो सोई साइत, जो हंसने मांग्या खेल
सो खेल खुसाली लेय के, उठो कीजिए केल ।। २ ।।

हे मेरे साथ जी ,याद कीजिए वह  पल ,वह घडी ,जब आपने अक्षरातीत श्री राज जी से हांसी का खेल माँगा था ,धनी ने फेर फेर मना किया पर हमने खेल को अति सरस मान फेर फेर खेल माँगा।हमारे दिल में यह उमंग थी कि यह खेल भी वैसे ही अच्छा होगा ,मनभावन होगा जैसे कि परमधाम के खेल ,क्रीड़ाएं होती हैं तब धाम धनी ने हमें पहले से ही सावधान किया कि  माया के खेल में जाकर आप खुद को ,अपने खसम अर्थात मुझ को भूल जाओगी ,तुम्हें घर की जरा भी सुध नहीं रहेगी ,-

तब रूहों ने जवाब दिया कि हम अपने वतन अखंड परमधाम को क्यों कर भूलेंगे और खुद को भी कैसे भूलेंगे ? क्या यह खेल इतना सरस है?
 हे मेरे धनी ! हम तो हमेशा आपके चरनो को पकड़ के बैठेंगे -आपसे तो हमारा अटूट प्रेम का पवित्र अखंड नाता है तो आपको तो भूलने का प्रश्‍न ही नही उठता ।

तो साथ जी ,आपने दिल में उमंग लेकर खेल माँगा था ,तो आपका यह कर्तव्य हैं कि खेल के आनंद को लीजिए ,धाम धनी आपके वास्ते सब विध वतन सहित आएं हैं ,आठों सागरों के सुख यहां मिलते हैं ,परमधाम के द्वार खुल गएँ हैं उनके बेशक वाणी से ...जागृत होकर धाम धनी श्री राज जी के संग परमधाम में हान्स विलास कीजिए

सुरत एकै राखियो, मूल मिलावे मांहिं ।
स्याम स्यामाजी साथजी, तले भोम बैठे हैं जांहिं।। ३ ।।

जागृत होने का मार्ग क्या हैं ?

बस हमें एहि करना हैं कि अपनी निजनजर ,अपनी सूरत को मूल मिलावे में धाम धनी के चरणों से जोड़े जहाँ प्रथम भूमिका की पांचवीं गोल हवेली (मूल  मिलावा ) में चबूतरे के ऊपर श्रीराज-श्यामा जी सिंघासन पर विराजमान है और सभी सखियाँ चबूतरे पर भरकर बैठी हैं 

साथ जी ,इन स्वप्न की जिमी पर आ कर आप धाम धनी श्री राज जी के सुख भूल गए हैं  ।अब श्री राज जी बेशक इल्म के माध्यम से फेर फेर धाम के अखंड सुख याद दिल रहे हैं ।मुलमिलावे की अखंड बैठक याद करा रहे हैं  ।

सागर पहला नूर का

 श्री महामति सागर ग्रन्थ के पहले ही प्रकरण में मुलमिलावे का वर्णन कर रहे हैं ।सर्वप्रथम वर्णन हुआ हैं -मुलमिलावे के मध्य में आयें चौसठ थम्भ चबूतरा का 

साथ जी ,याद करें ,यह वहीं चबूतरा हैं जिस पर कंचन रंग के नूरी सिंहासन पर श्री राज-श्यामाजी विराजमान हैं और हम सब सखियाँ उनसे अंग से अंग लगा कर बैठी हैं ।अपनी बैठक को दिल में ले --फेर फेर युगल स्वरूप के सिंगार को दिल में ले --चितवन से उनका दीदार करे --

एही अपनी जागनी , जो याद आवे निज सुख ।
इसक याहीसों आवहीं, याहीसों होइए सनमुख ।।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

सरुप राज का देखिये

नख सिख लों बरनन करूं, याद कर अपना तन ।
खोल नैना खिलवत में, बैठ तले चरन ।। ११४/२१ सिनगार 

सिनगार  ग्रंथ के २१ वें प्रकरण में श्री महामति जी पारब्रह्म श्री राज जी के अति सुन्दर और अमरद सूरत का मनोहारी वर्णन किया हैं।श्री महामति जी अपनी आत्मा को आह्वान कर रहे हैं कि  हे मेरी आत्मा ,तू पर आत्म का श्रृंगार सज कर श्री धाम धनि के चरणों में बैठ और उन्हें अपनी आत्मिक दृष्टि से निहार।प्रियतम श्री राज जी की नूरी और अलौकिक शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा  ।

सबसे पहले रूह की नज़र जाती हैं नूरी नखो पर ,……..नख की तेज इतना कि अर्शे अजीम उनके तेज से रोशन हो गया |नखो की सुकोमलता को रूह महसूस कर रही हैं | कितने नरम और सलूकी लिए इन नखो के तेज आसमान जिमी रोशन कर रहा हैं —नखो की सलूकी, उनकी जोत , अंगूठे और अंगूरिओं का बेमिसाल सोंद्रय , उज्ज्वल और लालिमा से गहराई हुई चरण तली की लिंके और दोनों चरणों के अंगूठे और अँगुलियुं की सलूकी-अहो कितनी नाज़ुक हैं –सलूकी से युक्त पतली पतली अँगुलियां और पतले अंगूठे लाल रंग मे सोभित हैं | श्री राज जी का स्वरूप अमरद हैं उनके कदम भी उन्ही माफिक हैं | कदम तली की शोभा और पंजे की शोभा उनकी सलूकी उनकी जोत को निहारती हूँ ,अंगूठे की लालिमा कोमलता ,सलूकी के दर्श करती हूँ |चरणों की तली ,उनकी लिंको, टख़नो ,घूंटी और कड़ा अंग की अलौकिक सौन्दर्य को रूह दर्श कर रही हैं|
अब नज़र कडा़ अंग पर जाती हैं | श्री राज जी ने कडा़ अंग मे झांझरी ,घुघरी ,काम्बी ओर कड़ा धारण किए हैं | इन आभूषण मे हीरा माणिक ,पुखराज ,पाच और निलवी के नंग शोभा बड़ा रहें हैं |इतने कोमल कि पहने तो दिख रहैं हैं पर छूने से आभास ही नही होता कि आभूषण पहने हैं |



इजार --धाम धनी श्री राज जी की इजार केसरी रंग की आईं हैं ।मोहरी पर मोतियों की बेल आईं हैं ।नीचे-ऊपर माणिक ,पुखराज ,नीलवी नंगों की कांगरी आईं हैं  ।नेफे पर उज्जवल मोतियों की बेलें  आई हैं ।और नाड़ा तो कई नूरी रंगों की नक्काशी से झिलमिला रहा हैं और उनमें लटकते फुंदन की झलकार तो बहुत सोहनी हैं ।

जामा -श्री राज जी का जामा उज्जवल श्वेत रंग में सुखदायी झलकार कर रहा हैं -जामा लंबा पांव के कड़े अंग तक आया हैं ।श्री राज जी के गौर गौर अंग पर कसी हुई चोली और चोली के बंध अति सोहने हैं जिसमें नंगों  का अदभुत जड़ाव आया हैं ।बांहों की मोहरी पर नंगों के फूल आएं हैं और बांहों की सलवटें चूड़ियां के माफिक प्रतीत होती हैं ।जामा का घेर अत्यन्त सुन्दर नक्काशी से युक्त हैं ।जामे पर आईं लता ,फूलों ,बलों की नक्काशी ..ऐसी जुगत  की स्पर्श  करो तो अहसास ही नहीं होता कि नंगों का जड़ाव हैं ।उज्जवल श्वेत जामा और काडा अंग तक आया  जामे का घेरा  और घेर में झलकती केसरियां जड़ाव की इजार
बेल बूटिओं और बार्डर की शोभा रूह बार बार निहार रही हैं| कमर मे निलो ना पीलो रंग का पटुका श्री राज जी ने पहना हैं--


पटुका -कमर पर नीले न पीले रंग का पटुका शोभित हैं ।जिसके दोनों किनारों पर पांच ,पाना ,हीरा ,पुखराज नंगों की बेल ,कटाव शोभा ले रहे हैं दोनों छेड़ो पर मणि माणिक ,लसनियां नीलवी के नंगों की नकशकारी और फूल कटाव बने हुए हैं ।

अब नज़र जा रही हैं श्री राज जी की हस्तकमलो पर — कितने कोमल —सलूकी लिए –पतली पतली नाज़ुक अँगुलियां ओर अंगूठे —
पिऊ ने हीरा ,माणिक ,पुखराज पाच ,मोती ,लहुस्निया ,नीलवी की अंगूठियाँ धारण की हैं | अंगूठियो की सुंदरता ,उनकी जोत ओर उनकी कोमलता को रूह महसूस कर रही हैं | कलाई अंग में सुभान ने कड़ा और पहुँची पहनी हैं उनका नूर में रूहैं खो सी जाती हैं

कलाई मे जामे की महीन महीन चुनंटे उनमे आए नकाशी से ऐसा प्रतीत हो रहा मानो श्री राज जी ने भूखन धारण किए हैं |






बाजू मे बाज़ुबंध की शोभा —हीरा ,मोती ,माणिक ,पुखराज और नीलवी से जड़ा हैं —लटकते फुंदन की शोभा —

कमर पर कसा जामा, उन पर लटकते हार –श्री राज जी ने हीरा ,माणिक ,मोती, नीलवी और लहुसनिया नंग से सजे अनुपम शोभा से युक्त हार पहने हैं |





चादर --जामा पर आसमानी रंग की अति  सुन्दर पतली चादर (पिछोड़ी )सुशोभित हैं ।आभूषण और वस्त्रों पर अंकित चित्रकारी चादर में से झलकती हुई सुन्दर प्रतीत होती हैं ।चादर के किनारे पर लाल ,नीले ,पीले रंग की आभा हैं ।श्वेत परिधान पर धारण यह चादर अत्यन्त ही सुन्दर झलकार कर रही हैं ।--


पिऊ ने धारण की -- आसमानी रंग जडाव की महीन पिछोड़ी —रूह निहार रही हैं पिऊ की अद्भुत छबि —आसमानी रंग की महीन चादर से झलकते हार ओर जामे के बँध —

रूह अपने पिया के मुखारबिंद की अनुपम छबि को निहारती हें |वो अपने महबूब के उज्जवल रंग और उज्जवल रंग मे झलकती लालिमा को एकटक देख रही हैं |उनकी अमरद सूरत हैं | रूह उनके मस्तक की सलूकी, नाज़ुकी निहार रही हैं | सुंदर अर्श के गौर रंग मे लालिमा लिए मस्तक पर तिलक सुहाना लग रहा हैं | उनकी भौंहैं ,भ्रकूटी के रूह दर्श करती हैं उज्जवल गौर रंग के मुख पर श्याम रंग की भौंहैं ,भ्रकूटी छब प्यारी लगती हैं | पिया जी तिरछे , चंचल ,चपल गंभीर , नेत्रो में रूह डूब रही हैं |


श्रीराज जी महाराज के गुलाबी गालों की कोमलता और सलूकी ,नासिका की सलूकी ओर उनमे आई लाल रंग की बेसर घूंटी रूह को प्यारी लगती हैं |


पिया जी श्रवण अंग उनमे आई बाला —कमल की पंखुड़ी की तरह शोभित उनके होंठ और जब पिया जी रूह से बात करते हैं तो रसना और दतावाली के दर्श मेरी रूह करती हैं|


धामधनी श्री राज जी के शीशकमल पर सेंदुरियां रंग की अति सुन्दर नूरमयी पाग सुशोभित हैं |-- प्रियतम श्री राज जी बड़ी प्यारी अदा से पेच हाथ में लेकर पाग बांध रहें हैं | पाग बांधते वक्त एक तो पाग की जोत और उनमें आएं नूरमयी नंगों की उज्ज्वल ,शीतल  और सुखदायी जोत रूहों को अखंड सुख प्रदान करती हैं |श्री राज जी जब अपनी नाज़ुक -नाज़ुक पतली गौर लालिमा लिए अंगूरियों से पाग बांधते हैं तो उस समय की शोभा वर्णन से परे हैं |पाग  बांधते समय उनके नखों का तेज ,उनकी नाज़ुक अंगूरियों का तेज और सेंदुरियां रंग की पाग का तेज आपस में जंग करता प्रतीत हो रहा हैं |

प्रियतम श्री राज जी अपनी रूहों को रिझावन की खातिर पाग इतनी सलूकी से बांधते हैं कि रूहें  अपलक इस अलौकिक लीला को देखती हैं |

श्री राज जी के पाग पर कलंगी की अदभुत शोभा आईं हैं और सामने देखिए तुरा और दुगदुगी की मनोहारी शोभा आईं हैं |नूरी पाग  पर माणिक की दुगदुगी , पाग पर आई कलंगी की जोत और उनके परों की झलकार आसमान तक जाती हैं |  उनके मुख पर निर्मल मोतियों की लरियां चंद्रिका की तरह लटकती है | आधे नासिका से ललाट तक तिलक की रेखा एवं कानो में कुण्डल की अपरंपार शोभा हो रही है|





आइए ! अपने महबूब श्री राज जी के श्रवण अंग  तक आएं उनके  घुंघरालें नूरी केशों को देखें | उनके नूरी केशों पर सुगंधित इत्र की महक को महसूस करें |  सेंदुरियां रंग जड़ाव की लटकती पाग की अत्यंत मनोहारी शोभा को निज नयनों से देखें  | पाग पर आई  दुगदुगी और कलंगी  की अलौकिक शोभा को निहारें -- यह नूरमयी शोभा अर्शे-अज़ीम   की है और अरशे सहूर और चितवन से धाम हृदय मे अंकित होती है  |आइए ! अपने महबूब श्री राज जी के श्रवण अंग  तक आएं उनके  घुंघरालें नूरी केशों को देखें | उनके नूरी केशों पर सुगंधित इत्र की महक को महसूस करें |  सेंदुरियां रंग जड़ाव की लटकती पाग की अत्यंत मनोहारी शोभा को निज नयनों से देखें  | पाग पर आई  दुगदुगी और कलंगी  की अलौकिक शोभा को निहारें | यह नूरमयी शोभा अर्शे-अज़ीम   की है और अरशे सहूर और चितवन से धाम हृदय मे अंकित होती है  |उनका नूरमयी स्वरूप --हँसता हुआ मुखारबिंद --रूहों पर सदैव सनकूल🙏🏾🙏🏾

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

singar shri shyama maharani ju

श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |श्री ठकुरानी जी सेंदुरियाँ रंग की साड़ी ,श्याम रंग जड़ाव की कंचुकी और नीली लाहिको चरनियां |श्रीराज जी को सेंदुरियाँ रंग को चीरा ,आसमानी रंग जड़ाव की पिछौड़ी ,नीला ना पीला बीच के रंग का पटुका ,केशरियां रंग जड़ाव की इजार ,श्वेत रंग जड़ाव का जामा |ये श्री युगल स्वरूप जी का मूल बागा |अद्वैत की लाठी हाथ में लेकर सर्व सुन्दर साथ जी को प्रणाम |ये अद्वैत भूमिका शब्दातीत हैं जिसके एक जर्रे का वर्णन नहीं हो सकता तो सर्वका वर्णन करना तो असंभव ही हैं | |

श्री राज जी श्री ठकुरानी जी श्री रंगमहल की प्रथम भूमिका की पांचवीं गोल हवेली मूल मिलावा में कंचन रंग के जगमगाते सिंहासन  पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख  विराजमान हैं |

परमधाम की लाडली रूह श्री श्यामा जी के नूरी नूरी चरण कमलों को अपने हाथों में लेती हैं --मेरी श्यामा महारानी जी के चरण कमल अत्यंत ही कोमल हैं --नाजुक -नाजुक चरण कमल सलूकी ,शोभा से युक्त हैं -नखों का तेज तो आसमान तक झलक रहा हैं --अत्यंत ही सुन्दर नख ,उनकी जोत और श्री श्यामा जी के गौर वर्ण में लालिमा लिये पतले पतले नूरी अंगूठे और लगती अति सुन्दर शोभा लिये अंगुरियां सखी मेरी रूह के नयनों से निरख --

एक नूरी अंगूठे में आरसी की अद्भुत शोभा आयीं हैं --कंचन में जड़ी माणिक रंग की आरसी जिसमें श्री श्यामा महारानी अपना सम्पूर्ण सिंगार निरख उल्लसित होती हैं और दूसरे चरण कमल के अंगूठे में कंचन का चला शोभा ले रहा हैं 

चरणों की अंगुरियों में श्री श्यामा जी ने अति सुन्दर ,मनोहारी बिछिए धारण किया हैं --जवेरातो से जड़ित अति कोमल ,महीन नक्काशी से सजे रंगों नंगों से झिलमिलाते एक एक बिछिया की शोभा मनमोहक हैं





श्री श्यामा जी के चरणारविन्द की शोभा रूहें बार बार निरखती हैं --उनकी नाजुक  ,नरम एड़ी--लालिमा से गहराई हुई गौर वर्ण में शोभित हैं --पंजे ,टखने की सलूकी नाजुकी की शोभा बेहद ही प्यारी हैं --

और उनका कड़ा अंग कितना सुन्दर हैं और श्री श्यामा महारानी जी के काड़े अंग में धारण किया आभूषण तो देखे --झाझरी ,घुघरी ,काम्बी और कड़ला की शोभा कितनी अद्भुत हैं --श्री शयामा जी के भूखन इतने चेतन कि रूह का अभिनंदन मीठी मीठी झंकार से कर रहैं हैं |

और इतने कोमल हैं कि छूने से आभास ही नही होता कि भूखन पहने भी हैं या नहीं|




चरण की शोभा ,चरण तली की लाल लाल लिंके ,सलूकी लिये चरणों की शोभा ,भूखनो की शोभा निहारते निहारते नजर ऊपर हुई तो देखी -नीली लॅहिको चरनियाँ--चरनियां नीले रंग की आईं हैं ।किनारों पर सात नंगों का अदभुत जड़ाव हैं ।श्यामा जी की चरनियां (लहंगा )अति कोमल रेशम के माफक हैं ।उसकी चुन्नटों पर अनेक प्रकार की बलों ,फूलों की प्यारी नक्काशी हैं ।--


कई रंगो से सजी किनार और बेल बूटिओं से सजी चरनियाँ सेंदुरियाँ रंग जडाव की साडी मे झलकती अद्भुत प्रतीत हो रही हैं | महीन जड़ी हुई साडी जिसके किनार पर आई कांगरी मे हीरे ,मोती ,माणिक ,पुखराज ,कंचन आदि कई नंगो का जडाव आया हैं | कमर मे नाज़ुक सी कई रत्नो से सजी कमर बँध और —
श्यामा जी के नाज़ुक नाज़ुक गौर हस्त कमल को रूह अपने हाथो में लेकर महसूस करती हैं – हस्त कमल की नाज़ुकी , ,सलूकी -तली की लालिमा ,महीन लिंके —पतली पतली नाज़ुक अँगुलियां --उनका लालिमा लिए गौर रंग नखों का तेज आसमान छू रहा हैं —अँगुलियों मे पहनी अंगूठियां —अंगूठे मे धारण की हीरे की आरसी ओर छल्ला-







श्री श्यामा महारानी जु के गौर गौर हस्त कमल --सलूकी लिये --नाजुकी से लबरेज और उनमें आएं नूरी आभूषण जो उनके ही नूरी अंग हैं --पोहोंची ,नवघड़ी ,नवचूड़ ओर कन्कनी की शोभा कथनी से पर हैं




और उनकी कोमल बाजु में बाजुबंध की अपार शोभा और लटकते फुंदन --


बाजुबंध ----कुछ इस तरह --यह भुखन यहाँ के हैं --एक उदहारण के रूप में यहाँ प्रस्तुत हैं की कुछ छबि बैठे

श्याम रंग जडाव की कंचुकी--श्री महारानी जी की  चोली श्याम रंग की हैं ।बाजू ,मोहरी ,खम्भे ,पेट ,खडपे ,ओर ,कंठ आदि सब जगह बेल फूल बूटों की नक्काशी जैसे शोभे वैसी ही शोभित हैं ।चार तनी ,तनी पर कांगरी ,दो बंध पीठ पर और सुन्दर फुमक  की शोभा अदभुत हैं ।

उनके नूरी कंठ में कंठसरी की शोभा --कंठ से लगा नूरी की शोभा अपार हैं

माणिक नंग के हार से पूरा वतन गुलाबी आभा से जगमगा उठा | हीरे की जोत आसमान जिमी को उज्ज्वल कर रही हैं | मोती ,नीलवी और लहुस्निया के हार की महक ,उनकी खुश्बू से वतन महक रहा हैं



हरवती की नाज़ुकी लिए अदभुत शोभा ——गौरे- गौरे गाल उनमे आई लालिमा —श्रवण अंग मे आए कर्णफूल– रूह अपलक देख रही हैं |






नासिका की सलूकी–गौर रंग मे गुलाबी आभा लिए माणिक रंग मे आई नासिका मे बेसर —कमल की पंखुड़ी की तरह खिले होठ



नूरी मस्तक पर बेन्दा ,उनमे आए माणिक ,मोती का जडाव—तिरछे नेत्र कमल, उनकी चंचलता ,गंभीरता –और शीश कमल पर राखड़ी जिसमे माणिक के फूल को घेर कर पुखराज ,नीलवी का जडाव हैं | शीश कमल पर तीन फूल --माँग पर पानडी की शोभा ,माँग मे भरा सिंदूर की जोत — रूह फेर फेर निरखती हैं


बेन्दा 
राखड़ी

श्री श्यामा महारानी ने साडी का पल्लू इस अदा से लिया कि राखड़ी ,बालो पर आई स्वर्ण पटिका—श्रवण अंग मे धारण किए कर्नफुल—नूरी कंठ मे धारण किए सात हार —इन सब की शोभा साडी मे झलकती प्यारी दिख रही हैं |ओर पीठ पर लहराती चौटी —कंचुकी के बँध के फुंदन……इन सबसे अधिक गौर कमर इन सबका दर्शन भी साडी मे से झलक रहा हैं रूह इस प्यारी सी छब फब पर निसार जाती हैं |




आत्म श्यामाजी की अनुपम छब का एकटक दीदार कर रही हैं||उनके चरणो मैं बस जाना चाहती हैं |