गुरुवार, 4 मई 2017

rangparvali mandir ki shobha

प्रणाम जी 

निरत की लीला के अलोकिक आनद का रस पान करने के बाद रूह श्री राज जी ,श्री श्यामा जी के संग अब चलती हैं पांचवीं  भोम की और --

चौथी भोम की चौथी निरत की हवेली से प्रथम हवेली में आती हैं।प्रथम हवेली में उत्तर दिशा में कोने का मंदिर छोड़कर ,आगे एक मंदिर और पार करके सीढ़ियों का मंदिर आया हैं ।इन मंदिर से भोम भर की सीढ़ियां चढ़कर अर्शे मिलावा पांचवीं भोम पहुँचता हैं ।अब यहाँ सीधी वाले मंदिर से उत्तर दिशा के दरवाजे बाहर निकलते हैं तो यह त्रिपोलियाँ हैं ,नूरी त्रिपोलिया ,अति सुन्दर --मध्य गली से पश्चिम मुख करके आप श्री राज जी ,श्री श्यामा जी को संग लेकर आगे बढ़ते हैं ।


विशाल त्रिपोलियाँ नूरमयी अति सुन्दर शोभा लिए हैं ,मध्य गली से आगे बढ़ते हैं तो दोनों और अति सुन्दर थंभों की शोभा हैं ।दोनों और हवेलियों के चौरस -गोल फिरावों की अद्भुत शोभा हैं ।बेशुमार रंगों से सजी हवेलियों में जवेराहातों की जगमगाहट खुशहाल कर रही हैं ।हवेलियों के मुख्यद्वारों की सुन्दर शोभा हैं और उनके दोनों और आये चबूतरों पर सुन्दर बैठके सजी हैं ।जहाँ आमने सामने दो हवेलियों के दरवाजे आएं हैं वहां आयीं चौबीस मेहराबें सुन्दर लग रही हैं ।चौबीस नूर से झलकार करती मेहराबों के नीचे चबूतरों पर ख़ास बैठके निरखते हुए आगे बढ़ रहे हैं ।चार हवेलियों के कोण जहाँ मिल रहे हैं वहां भी चौबीस मेहराब की प्यारी शोभा आयीं हैं ।चौरस-गोल ,गोल -चौरस इस क्रम से हवेलियों के आठ फिरावे पार किए ।आगे नवां फिरावा पंच मोहोल का हैं ।उल्लास में ,मस्ती में डूबे इन फिरावे को भी पार किया तो सामने 28  मंदिर की फुलवाड़ी घेर कर आयीं हैं ।



घेर कर आयीं सुन्दर फुलवाड़ी में बेशुमार फल -फूल खिले हैं ।सभी प्रकार ,रस के फल ,मेवें रूहों के वास्ते हैं और फूलों की अपार शोभा हैं ।एक ही रंग के फूल तो कहीं एक ही फूल में सभी रंग शोभित हैं ।नेहेरें चेहेबच्चों की अनुपम शोभा हैं ।                        

फुलवाड़ी के भीतर तीन चौकों की तीन हारें आपस में जुडी हुई आयीं हैं ।सामने नूरी मंदिरों की दीवार दिखाई दे रही हैं और उनमें आये बड़े द्वार इतने सुन्दर जगमगाहट से रोशन हैं मानों पुकार रहे हो आइये ।

आप हक़ श्री राज जी ,श्री श्यामा जी और रूहों को संग लेकर बड़े दरवाजे की और बढ़ते हैं ।दरवाजा खुल जाता हैं और अर्शे मिलावा दवाजा पार कर रहा हैं ।फूलों की बरखा से अभिनंदन रोमांचित कर रहा हैं ।पश्मी गिलम और भी कोमल हो स्वागत कर रही हैं ।समां में संगीत की मधुर स्वर लहरी गूंज रही हैं ।दरवाजा पार करके पहले चौक के भीतर आ गए ।एक गली और पार की दूसरी गली आधी ही पार कर दाएँ और मुड़ गए
दायीं और मुड़ कर दस मंदिर चलते हैं तब दोनों हाथ की और नूरी मंदिरों की शोभा हैं ।दस मंदिर चलकर अब पहुँच गए त्रिपुड़ा के चौक में --


त्रिपुड़ा के चौक की अलौकिक शोभा प्रियतम श्री राज जी रूहों को दिखा रहें हैं --नूरी आभा से रोशन चौक को घेर कर चारों और थम्भ आयें हैं ।नीचे पश्मी गिलम ऊपर थंभों को भराए कर नूरी चन्द्रवा की झलकार हैं ।चौक की एक किनार पर मंदिरों की अपार झलकार हैं ।तीन और की शोभा तो न्यारी हैं --तीन दिशा में रास्ते आयें हैं --तीनों दिशा में ठीक मध्य में जड़ाफ़े के मंदिरों की शोभा हैं और जुड़ाफ़ों के मंदिरों के दोनों और त्रिपोलियाँ आयें हैं ।

अब यहाँ से पश्चिम दिशा की और मुड़ कर मध्य गली से अर्शे मिलावा बढ़ता हैं ।

 पश्चिम दिशा की और मुड़ कर सबसे पहले त्रिपुड़ा का चौक पार किया फिर चौक के पश्चिम दिशा में जुड़ाफे के मंदिर के बायीं और आये त्रिपोलिया के मध्य  गली से आगे बढे ।त्रिपोलिया की जगमगाती शोभा ,दोनों और आएं मंदिरों की दीवार की शोभा देखते हुए सत्रह मदिर पार किए तो दूसरे चौक चौपड़े के चौक में आ गए ।

चौपड़े के चौक की चारों दिशा में आयीं थम्भ की हार उनकी मेहराबे शोभित हैं और चारों दिशा में आये रास्ते देखते हैं और चौक के चारों कोनों में लगता हवेली का कोना तो प्यारी सी शोभा के साथ महक रहा हैं                        आठ मंदिर के लम्बे चौड़े चौपड़े के चौक को पार किया फिर मध्य गली से आगे बढे  इस तरह से सात चौक चौपड़े के कुल पार किए  और पुनः त्रिपुड़ा के चौक में आ गए अब यहाँ से दक्षिण की और मुड़ कर दस मंदिर चलते हैं और फिर मिलावा मुड़ता हैं पश्चिम दिशा की और                        
आधी गली और फिर एक गली पार की तो खुद को बड़े दरवाजे के सामने पाया --सखियाँ इन दरवाजे में प्रवेश करती हैं तो देखती हैं कि यहाँ दो दरवाजे एक साथ आये हैं क्योंकि दूसरा चौक एक रूप साथ में जुड़ा हुआ हैं तो दो मंदिर चलकर दोनों दरवाजे पार किए --

दोनों दरवाजो कि तीनों कमानों को देखते हुए दूसरे चौक में अब प्रवेश किया --देख मंदिर चलकर उत्तर दिशा कि और मुड़ गए .आगे दस मंदिर चलकर त्रिपुड़ा के चौक में आये  
           अब यहाँ से प्रियतम श्री राज जी श्री श्यामा जी मध्य गली से पश्चिम दिशा की और बढ़ते हैं --त्रिपुड़ा के चौक के बाद तीन चौक हवेलियों मंदिरों की शोभा देखते पार किए पांचवे चौक में जैसे ही प्रवेश किया सामने हमारा रंगपरवाली मंदिर
नव चौक के मध्य चौक के ठीक मध्य में आएं चौपड़े के चौक में हैं हम सखियाँ --नज़रों के ठीक सामने चौपड़े के चौक में रंगपरवाली मंदिर हैं ।

श्री राज जी अपार मेहर करके रूहों को दिखा रहे हैं इन ख़ास चौपड़े के चौक की शोभा 
आठ मंदिर की लम्बाई चौड़ाई लिए चौक की अद्भुत शोभा हैं ।चौक को घेर कर चारों दिशा में अति सुन्दर नूरी थम्भ आएं हैं ।थंभों में आयीं नूरी मेहराबें नक्काशी से जड़ी अति सुन्दर लग रही हैं ।ठीक मध्य भाग में दो मंदिर का लम्बा चौड़ा प्रवाल रंग में महकता हुआ रंगपरवाली मंदिर हैं ।मंदिर की चारों दिशा में चार दरवाजे आएं हैं ।अति सुन्दर विशाल दरवाजे मानिंद धाम दरवाजे की तरह सुशोभित हैं ।एक मंदिर का अति विशाल नूरी दरवाजा शोभित हैं और दरवाजा के ऊपर छोटी मेहराब आयीं हैं ।दो मंदिर की बड़ी मेहराब में एक मंदिर का दरवाजा हैं और दरवाजा के दोनों और रत्नो जड़ित दीवार शोभित हैं ।

रंगपरवाली मंदिर की चारों दिशा में जुड़ाफे के मंदिर शोभित हैं ।एक बड़ी मेहराब में दो मंदिरों की अपार शोभा हैं ।आमने सामने आएं इन मेहराबों की झलकार खुशहाल कर रही हैं ।

     आठ मंदिर के चौपड़े के चौक में दो मंदिर का रंगपरवाली की शोभा श्री राज जी मेहर कर रूहों को दिखा रहे हैं ।मंदिर को घेर कर चारों दिशा में तीन मंदिर की परिक्रमा आयीं हैं ।
    
श्री राज जी श्री श्यामा जी आगे बढ़कर रंगपरवाली मंदिर में प्रवेश करते हैं ।अति सुन्दर मंदिर सभी साजो सामान और ठीक सामने सुख सेज्या हैं ,श्री राज जी श्री श्यामा जी सुख सेज्या पर विराजमान होते हैं ।सखियाँ उनके अलौकिक रूप सिनगार तो देख देख हर्षित हो रही हैं ।श्री राज जी और श्री श्यामा जी के श्री चरणों में जैसे ही हम रहे सजदा कर अपना मुख ऊपर करती हैं तो खुद अपने मंदिर में सेज्या पर श्री राज जी के सम्मुख पाती हैं ।                        

अति सुखकारी सेज है ,आगे चौकी झल्कत नूर !
पाँव मुबारक तापर धरे ,सो क्यूँ कर कहूँ ज़हूर !!102 /17बड़ी विर्त लाल दास जी महाराज

श्री ठकुरानी जी संग राज के ,जोड़े सेज पर बैठे जब !
रूहें कदमो लागत ,सिर उठावत तब ! 103 /17

जाने अपनी सेज पर ,बैठे संग श्री राज !
कै सुख इन सेज के ,हक पूरे मनोरथ काज !!104 /17

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