रविवार, 14 मई 2017

ab kahun bhom aathmi

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अब कहूं भोम आठवीं ,गिरद मंदिर बारह हज़ार |
जित हादी रूहें ,हिंडोले करत बिहार ||46/26 प्र विरति बड़ी लाल दास जी महाराज
गिर्द दोय हार मन्दिरन की ,जाके साम सामी है द्वार |
ता बीच दो हार थम्भन की ,तीनो गली हिंडोलो हार ||47/26
इन थम्भ दरम्यान हिंडोले ,गिनती छः छः हज़ार !
ए मंदिरो आगे थम्भन के ,दरम्यान छः हज़ार हार ||48 /26
जमा कहूं सबन की ,गिनती अठारे हज़ार |
हक हादी रूहें हिन्चत ,याकि लहरा अति सुखकार ||49/26
अक्षरातीत श्री राज़ जी महाराज अपनी रूहों को संबोधित कर रहे हैं कि मेरी प्यारी रूहों आइए , अपने निज घर परमधाम | हमारा मूलवतन जहां नूर ही नूर हैं , जहां आनंद ही आनंद हैं , जहां का जर्रा जर्रा आपकी राह देख रहा हैं |
देख मेरी रूह तू , आठवीं भोंम में घेर कर आएं 6000-6000 मंदिरों की दो हारें शोभा ले रही हैं |वतन के अपने इन मंदिरों का नूर देखिए |
जवेरातों के नूरमयी मंदिरों में सुख सुविधा के सभी साजो -समान उपलब्ध हैं |मंदिरों की दोनों द्वारों के द्वार आमने सामने शोभित हैं |मंदिरों की हारों के मध्य थम्भो की दो हारे आईं हैं | जिन पर अदभुत चेतन चित्रामन मेरी रूह निरखती हैं | चित्रामन में आएँ पशु-पक्षी अपनी रूह को आया देख कर झूम उठे |चित्रामन में आएं वृक्ष फूलों की बरखा कर रूह का अभिनंदन कर रहे हैं |
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थम्भो की मनोहारी हारों में आईं महेराबों में 6000-6000 हिंडोलें आएँ हैं और थम्भो की मध्य गली में आईं महेराबों में भी 6000 हिंडोलें आने से रूह देख तो ,आठवीं भोम में 18000 हिंडोलें हाजिर हैं |
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जडित कड़े कंचन के ,लाल माणिक ड़ान्डे जड़ाव |
कहूँ रंग पाँच कहूँ हीरा ,सो कह्यू ना जावे ए भाव ||50/26
साज़ इन हिंडोलन के ,बिछोने तकिये नूर नरम |
साम सामे सब बैठत ,ए सुख कह्यू ना जाए मरम ||51/26
अर्श के यह नूरी हिंडोलें कैसे हैं ? निज घर के हिंडोलें कंचन जडित हैं और उनके डांडों में लाल माणिक का जड़ाव आया हैं और कहीं कहीं हरित रंग में झलकार करते डांड़े आएं हैं तो कुछ हिंडोलों में हीरे से जडित डांड़े शोभा ले रहे हैं |सिंहासन के मानिंद सुशोभित इन हिंडोलों में अति नरम बिछौने शोभित हैं |और उन पर तकियों की अपार शोभा आईं हैं |
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हार तीन हिंडोलन के ,एह बैठत युगल किशोर |
रूहें दोय दोय एक मे ,सुख पावे नज़रो और ||52/26
हिंडोले हिन्चत अंग में ,होत सुख अपार |
आवत जात लेहरा उठे ,ए सुख मोमिन जाननहार ||53/26
कहूं बैठ हिंडोले हिन्चत ,छूट जात फेर दूर |
साम सामी ताली देत है ,क्यूँ कहूं विलास ज़हूर ||54/26
ए सुख सन्मुख हक के ,लेवे रूहे बारह हज़ार |
ए अंग इश्क अरस के ,सुख जानत परवरदिगार ||55/26
वय किशोर अति सुन्‍दर ,मुख लालक लिए गौर |
गहरी छबि अति नूर को ,रहे मोमिन दिल सहूर ||56 /26
श्रीराज की अपार मेहरों की छाँव तले रूहें आठवीं भोम के अखंड सुखों का रसपान करती हैं |हिंडोलों की तीनों हारों में साम-सामी चार हिंडोलों की ताली पड़ती हैं |अति सुखदायी एक हिंडोले में युगल स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी विराजते हैं और एक-एक हिंडोलों में दो-दो सखियाँ विराजमान होती हैं |
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इन सुखदायी हिंडोलों में रूहें जब श्रीराज-श्यामा जी के साथ हींचती हैं तो अपार सुखों की अनुभूति करती हैं |युगल पिया जी के संग हिंडोलों के सुख और उन पर उनकी अमृत दृष्टि से रूहों पर प्रेम प्रीति की बरखा -यह सुख तो अरवाह अर्श की महसूस कर सकती हैं |
रूहें एकटक निरखती हैं -श्रीराज-श्यामा जी की किशोर सुरत -अहो !कितनी सुंदर हैं युगल पिया की नूरानी छब |उनका मुखारबिंद अर्श के गौर वर्ण में गहरी लालिमा से युक्त हैं |लालिमा लिए उनका नूरी मुखड़ा उनकी तिरछी चितवन -इनका अनुभव रूहें ही कर सकती हैं |
उतर हिंडोले जब चले ,पाँव भूषण करत ठमकार |
अंग उमंग बिहार रस ,कह्यो ना जाए एह बिहार ||57/ /26 प्र विरति बड़ी लाल दास जी महाराज
कहूँ साडी अति सुन्दर ,अंग गौर पर भुखन |
सब ठौरो किरना उठे ,क्यूँ कहूं नूर रोशन ||58/26
जब आवत चौक मंदिर में ,नूर थम्भ दीवालो ज़ोर |
साम सामी किरना लरे , करे बिहार युगल किशोर ||59/26
कहूं सेज पर बैठत ,तहाँ बाते करे सन्मुख |
क्यूँ कहूं इन ज़ुबान सो ,इन सेज्या पर जो सुख ||60/26
प्रियतम श्रीराज जी के संग हिंडोलों के बेशुमार सुख ले जब ब्रह्मप्रियाएँ और युगल स्वरूप हिंडोलों से उतर कर चलते हैं तो उनके पांव में आएं भूखनों की मीठी झंकार से वतन गूंज उठता हैं |अर्शे-मिलावे के अंग-प्रत्यंग में उमंग कथनी से परे हैं |अर्श के गौरे गौरे रंगों पर नूरी साड़ी और आभूषणों की सुंदर जोत की किरणें झलकार करती हैं |जब युगल स्वरूप और सखियाँ मंदिरों में आते हैं तो थम्भो और दीवारों का नूर बढ़ जाता हैं |तो कहीं कहीं सेज्या पर बैठ कर युगल पिया से मीठी मीठी बाते करते हैं यह सुख कैसे वर्णन हो ?
जब उठे इन ठौर से ,निकसत पोरी द्वार |
फिरती गलिया देखिए ,संग रूहे बारह हज़ार ||63 /26
कोई हाथ थम्भन को ,लगाए के फेरे जब |
फेर चढ़त सुख पावहीं ,एक गिरती पकड़े तब ||64/26
कोई दीवालो चित्रामन ,चाल निरखत दोनो नैन |
कोई हक सो हँसत है ,कोई बाते करे मुख बेन ||65//26
कोई चले लटकनी ,चलत देखावत जब |
हक हादी रूहें तिन पर ,रीझ बतावत तब ||66//26
कोई मंदिरो मंदिर मे ,पैठ निकसत और द्वार |
केतिक तिन पीछे चले ,कई ठौर करत बिहार ||67 /26
कोई बाँहे कंठ लगाए के ,एक दूजी संग चलत |
कोई दोय सामी मिले ,मिल बाते चारो करत ||68 /26
कोई दोड़त गलियन में ,आगे सो चली जाए |
कोई तिनके पिछल ,उतावली चली जाए ||69 /26
कोई आगे पीछे हक के ,चली जात कतार |
इनो के अंग का उमंग ,सो जानत परवरदीगार ||70 /26
हिंडोलों में झूल ,मंदिरों में बिहार करके रूहें अब मिलावे के संग थम्भो की हार के मध्य आईं गलियों में बिहार कर सुख लेती हैं |कोई सखी थम्भ को हाथ लगाए के फेरे लगाती हैं तो कोई उन पर चढ़ने का प्रयास करती हैं |तो कोई कोई सखी तिरछे नयनो से थम्भो के चित्रामन को निहारती चल रही हैं और कोई प्यारी सखी हक महबूब से बाते कर हंस रही हैं | कोई लटकनी मटकनी चाल से चल दिखाती हैं तो हक हादी और रूहें उनकी इस अदा पर रीझ उठती हैं |अरे कोई सखी तो एक मंदिर में जाकर अगले से निकल श्री राज जी को अनोखी अदाओ से रिझाती हैं | बाहों मे बाहे डाल चलना और आपस मे हसी मज़ाक करना तो कभी गलियो में दोड़ लगाना , कभी हक श्रीराज जी के आगे चलना तो कभी उनके पीछे , इनके अंगो के उमंग को तो श्री राज जी ही जान सकते हैं |
कई बिलास इन ठौर है ,लेत हक हादी संग |
झलकत वस्त्र भूखन ,कई लेहरा उठत तरंग ||71/26
जब उतरत इन दादरे ,नौ भोंम करत रनकार |
पड़छंदे पुतलिया बोलत ,ए क्यूँ कहूं नित बिहार ||72 /26
और जब सीढ़िया उतर तले की भोंम जाते है तो वस्त्रो का नूर , उनकी किरणें आपस में जंग करती हैं | भूषणो की झंकार से नवो भोंम गूंज उठती है | श्री राज कहते है मेरी रूह यह तुमारे घर के सुख हैं | तुम अर्श में मेरे चरनो तले बैठे हो , तुम ही इन अखन्ड सुखों के असल अधिकारी हो !
महामत कहे ए मोमिनो ,कहया घर तुमारा सुख |
तुम बैठे बीच अर्श के ,अब क्यूँ ना हो सनमुख ||73 /26

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