शुक्रवार, 19 मई 2017

shri rangmahal ki nouvi bhom ke akhand sukh

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आप श्री युगल स्वरूप सब सुंदर साथ जी को लेकर सीढ़ी वाले मंदिर से नवमीं भोम में आते हैं |सीढ़ी वाले मंदिर के उत्तर दिशा में आएं दरवाजे से निकल कर अपने दाएँ हाथ की ओर मुड़कर पूर्व दिशा की और बढ़ते हैं |चार-पाँच मंदिर चलकर फिर दाईं और चल कर 28 थम्भ के चौक में पहुँचते हैं |28 थम्भ के चौक बाईं हाथ पूर्व दिशा की और बढ़े और धामधनी ने दिखाया कि बाहिरी हार मंदिर यहाँ तीन सीढ़ी ऊँचे आएँ हैं |इन मंदिरों की भीतरी दीवार में आएँ द्वारों से भीतरी गली में चाँदों से तीन तीन सीढ़ियाँ उतरी हैं |मुख्यद्वार के सामने दो मंदिर की जगह लेकर तीन सीढ़ियाँ 28 थम्भ के चौक और मुख्यद्वार के मध्य गली में उतरी हैं |घेर कर आईं यह सीढ़ियाँ ज़ुदी ज़ुदी जिनस से सुसज्जित हैं | फूलों से महकते इनके कठेडे उनके चित्रामन रूह को मुग्ध कर रहे हैं |
श्रीराज श्यामा जी और सखियों ने तीन सीढ़ियों से चढ़कर मुख्यद्वार को पार किया और देखी नवमी भूमिका की अदभुत मनोहारी शोभा -
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बाहिरी हार मंदिरों की भीतरी दीवार की शोभा तो आईं हैं लेकिन इन मंदिरों की पाखे की दीवार और बाहिरी दीवार ना आकर थम्भ आएँ हैं |आगे एक मंदिर का नूरी छज्जा आया हैं जिसकी किनार पर मनमोहक थम्बो की हार आईं हैं | इनके मध्य रत्नो नंगो और फुलो से सज्जित कठेड़ा की शोभा आई हैं |
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छज्जे बडे नौमी भोम के, बोहोत बडो विस्तार ।
बैठक धनी साथ की, बाहेर की किनार ।।
201 हाँसो मे गुर्ज आने से झरोखो की शोभा आईं हैं |इस भूमिका को दूरदर्शिका भी कहते हैं | यहां बैठकर धामधनी श्रीराज जी हमे परमधाम के दर्शन कराते है |
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जब बैठें तरफ नूरकी, तब तितहीं का विस्तार ।
जित सिफत जिन चीज की, तिन सुख नाहीं सुमार ।|

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युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी जब पूर्व दिशा के नूरमयी छज्जों में विराजमान होते हैं तो चाँदनी चौक के नज़ारे दिखाते हैं |सात बनो की अलौकिक शोभा रूहों को दिखाते हैं |जमुना जी के दर्शन रूहें करती हैं |
जब अग्नि कोण में अर्शे मिलावा आता हैं तो नूर सागर के मनोहारी दर्शन होते हैं | हर ओर श्वेत जोत से जगमगाता वतन |
या हौज या जोए के, कै विध देवें सुख ।
जब हक आराम देवहीं, तब सोई करें रूहें रुख ।।

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दक्षिण दिशा में जब कभी श्री राज़ जी श्री श्यामा जी नूरी छज्जों में विराजते हैं तो बटपीपल की चौकी की चांदनी रूहें देखती हैं | बनो की मखमली चांदनी पर चलती नहरे -चहेबच्चों से उठते फव्वारे और इनके मध्य फूलों से सजी नूरी बैठके -कुंजनिकुंज बन की शोभा-हौजकौसर तालाब की संक्रमणिक सीढ़ियां-चारों घाट -कमल के फूल से खिले टापू मोहोल की शोभा दिखा कर धामधनी माणिक पहाड़ के दर्शन रूहों को कराते हैं |
नैरित्य कोण में खीर सागर की पीली आभा से खिली आकाश छूती महाबिलंद हवेलियों के दर्शन रूहें करती हैं |
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रंगमहल की पश्चिम दिशा में जब कभी श्रीराज-श्यामा जी और सखियां आते हैं तो फूलों के सिंहासन कुर्सियों पर विराजमान होते हैं |फूलों के दर्शन रूहें करती हैं और फूल बाग के आगे अन्नवन ,दूबदुलीचा और पश्चिम की चौगान के दर्शन रूहें करती हैं |और आगे नज़र ले जाती हैं तो दधि सागर की हरित जोत ,उनकी तरंगों ,उनसे उठती किरणों को देख देख कर रूहें उल्लासित होती हैं |
वाय्यव कोण में रूहें घृत सागर की अनुपम शोभा को धाम हृदय में बसाती हैं |
और पहाड जोए जित के, कै विध की मोहोलात ।
ताल कुंड कै चादरें, इन जुबां कही न जात ।।
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उत्तर दिशा मे जब कभी श्रीराज-श्यामा जी और सखियां आते नूरी छज्जो मे विराजते है तो बड़ोबन ,मधुबन और महाबन की बनती तीन सीढ़ियों की अदभुत शोभा को रूहें देखती हैं |स्वर्णिम आभा से झिलमिलाते पुखराज पहाड़ के दर्शन श्रीराज जी प्यारी रूह को कराते हैं |
और जब ईशान कोण की ओर आईं बैठकों में विराजमान होते हैं तो रससागर के दस रंग में सजे मनोहारी नज़ारें रूहें देखती हैं |
नजरों सब आवत हैं, इन ऊपर की बैठक ।
देख दूर की बातें करेंं, रंग रस उपजावें हक ।।134

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