श्री राज जी की अपार मेहर ,उनके जोश के बल पर रूह रंगपरवाली मंदिर की अनुपम ,अलौकिक ,नूरी शोभा के सुख लेती हैं ।रंगमहल की पांचवीं भोम में रूह रंगों -नंगों से सजे अति सुंदर मंदिरों की दो हार पार करके नूरी हवेलियों के फिरावे पार कर 28 मंदिर की फुलवाड़ी में पहुंचती हैं
अति सुन्दर शोभा से सज्जित 28 मंदिर की फुलवाड़ी रूह देखती हैं ।ऐसा प्रतीत हो रहा हैं कि रंगमहल के भीतर फूलबाग प्रगट हो गया हैं ।नहरों चेहेबच्चों की अत्यंत लुभावनी शोभा के बीच सुगन्धि की लहरें रूह को प्रिय लग रही हैं ।
ठीक मध्य में रूह को नजर आते हैं तीन चौको की तीन हारें ,नव चौकों की अपार शोभा दिखती हैं ।रूह आगे बढ़ती हैं ।सामने तीन चौकों की तीन हारें आपस में सटी हुई होने से 630 मंदिर की दीवार दिखाई दे रही हैं ।(तीन चौक =210 +210 +210 =630 )
रूह आज बादशाही अंदाज में इन बड़े दरवाजों से होते हुए रंगपरवाली मंदिर पहुंचना चाहती हैं तो वह ठीक सामने आये बड़े दरवाजे से भीतर जाती हैं ।दरवाजे से भीतर जाकर डेढ़ मंदिर सीधा चलती हैं फिर दायीं और मुड़ कर उत्तर दिशा की और दस मंदिर चलती हैं , तो रूह खुद को त्रिपुड़ा के चौक में खुद को पाती हैं अब यहाँ से अपने बायीं हाथ की और मुड़ कर पश्चिम की और आगे बढ़ती हैं ।त्रिपुड़ा के चौक की शोभा देखते हुए चौक को पार करती हैं ।पश्चिम दिशा की और चलती हुई जड़ाफ़े के मंदिरों ,हवेलियों की शोभा देखते हुए सात चौपड़े की हद भी पार करती हैं और आगे बढ़ कर चौक के किनार पर आये त्रिपुड़े के चौक में आ जाती हैं अब यहाँ से दक्षिण की और रूह चलती हैं ,दस मंदिर चल कर पश्चिम की मुड़ कर डेढ़ मंदिर चलकर दरवाजे पार करती हैं क्योंकि यहाँ दो चौक जुड़े होने से दो दरवाजे आएं हैं ।इन दो बड़े दरवाजों की तीन मेहराबें शोभित हैं इन तीन मेहराबों को रूह पार करती हैं । पुनः डेढ़ मंदिर चलकर दायीं और मुड़कर दस मंदिर चलती हैं रूह ,अब यहाँ से पश्चिम की और मुख कर सीधा आगे बढ़ती हैं ।त्रिपुड़ा के चौक सहित चार चौक पार कर पांचवें में आती हैं तो इसी चौक में रूह को दर्शन होते हैं रंगपरवाली मंदिर के
इन बड़े दरवाजों से तो रूह जाती हैं कभी कभी ठीक सामने आये मंदिर से दौड़ती हुई जाती हैं और सीधा जाकर रंगपरवाली मंदिर से जाकर टकराती हैं ।
चौसठ तहाँ हवेलिया ,मध्य परवाली रंग लाल |
जित श्री राज ठकुरानी जी पोढ़त ,संग रूहें चले खुशाल ||100 /17बड़ी विर्त लाल दास जी महाराज
अति सुखकारी सेज है ,आगे चौकी झल्कत नूर |
पाँव मुबारक तापर धरे ,सो क्यूँ कर कहूं ज़हूर ||102 /17
श्री ठकुरानी जी संग राज के ,जोड़े सेज पर बैठे जब |
रूहें कदमो लागत ,सिर उठावत तब ||103 /17
जाने अपनी सेज पर ,बैठे संग श्री राज |
कै सुख इन सेज के ,हक पूरे मनोरथ काज ||104 /17
दो मदिर का लंबा चौड़ा रंगपरवाली मंदिर है जिसमें चारों दिशा में दरवाजे हैं | दरवाजे धाम दरवाजे की शोभा के सामान ही शोभित हैं|रंगपरवाली मंदिर की चारों दिशाओं में दो मंदिर की बड़ी मेहराब आयीं हैं |इन बड़ी मेहराब के ठीक सामने जुदाफ़ों के मंदिर भी दो मंदिर की बड़ी मेहराब में झलकते सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं |
रंगपरवाली मंदिर को घेर कर तीन मंदिर की परिक्रमा आयीं हैं |रंगपरवाली मंदिर की दीवार से लगते हुए एक मंदिर की परिकर्ण नजदीकी परिक्रमा कहलाती हैं |
इन्ही रंगपरवाली मंदिर में श्री राज श्री ठकुरानी पोढ़ते हैं | रंगपरवाली मंदिर में बहुत ही सुखदायक सेज्या हैं , सेज के आगे नूर की चौकी हैं , जिन पर मुबारक पाँव रख युगल स्वरूप सेज्या पर विराजते हैं |रूहें जैसे ही उनके कदमों में सिजदा कर अपना मुख ऊपर करती हैं तो खुद को अपने मंदिर में सुख सेज्या पर श्री राज जी के सन्मुख पाती हैं |इन सेज के बेसुमार सुख हैं धाम धनी उनके सभी मनोरथ पूरण करते हैं |
प्रातः काल सवा पांच बजे सखियाँ जब अपने -अपने मंदिर में जब उठती हैं तो अपनी सुख सेज्या पर प्रियतम श्री राज जी को न पर बैचेन हो जाती हैं । तो रूह ,मैं भी इन्हीं सखियों में एक हूँ , यही भाव लेकर सेवा करती हैं ।सखियाँ शीघ्रता से दातून ,झीलना इत्यादि करके वस्त्रों का सिनगार सज कर रंगपरवाली मंदिर के सम्मुख आती हैं और उत्तर दिशा के द्वार के सामने आकर प्रणाम करती हैं ।उत्तर से पूर्व होकर परिक्रमा लगाती हैं । उस समय की लीला में रूह खुद को महसूस कर रही हैं ..परिक्रमा लगा रही हैं तो चारों दिशा में आएं दर्पण के द्वारों से नूरी परदे मानों आपके लिए ही सिमट रहे हैं ताकि रूहें श्रीराज-श्यामा जी की एक झलक पा सके ,उनकी नूरानी छबि का दीदार कर सके । वो द्वारों से भीतर के नज़ारे लेने की कोशिश --जय श्री राज जी
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