गुरुवार, 11 मई 2017

SATVI BHOM CHITVAN

मैं तारतम का मौन जप कर रही हूँ --

पिया जी की अपार मैहर से मेरी सुरता का हद बेहद से परे दिव्य परमधाम पहुँचती हैं ।रूह खुद को महसूस कर रही हैं चांदनी चौक में --

श्री रंगमहल के सम्मुख विशाल चौक में रूह खड़ी हैं ।ठीक मध्य में दो मंदिर की चौड़ी नंगों की रोंस जो धाम की सीढ़ियों तक रूह को पहुंचा रही हैं ।चांदनी चौक की अपार शोभा में झीलते हुए रूह आगे बढ़ रही हैं ।चांदनी चौक की नूरी रेती मोतियों सी झिलमिला रही हैं ।उज्जवल रेती का नूर आसमान तक झलक रहा हैं ।दाएं हाथ की और लाल वृक्ष की अनुपम शोभा हैं और रह के बायीं और हरे वृक्ष की अति मनोहारी शोभा हैं ।चौक के पूर्व ,उत्तर और दक्षिण दिशा में अमृत वन की सोहनी शोभा हैं ।अमृत वन के नूरी वृक्ष उनकी मेहराबे ,नहरों चेहेबच्चों की अपार शोभा हैं ।अमृत वन के दो भोम उनके छज्जे कठेड़े अति शोभायमान हैं ।

शोभा देखते रूह धाम की विशाल सीढ़ियों के सन्मुख पहुँच जाती हैं सामने धाम की विशाल शोभा से युक्त मनोरम सीढ़ियां है ।रूह बड़े ही उल्लास से पहला कदम सीढ़ी की और बढ़ा रही हैं ।एक हाथ ऊंची सीढ़ी एक ही चौड़ी और लम्बाई में तो दो मंदिर की लम्बी अति विशाल सीढ़ियां हैं ।उत्तर से दक्षिण दो मंदिर की लम्बाई लिए धाम की सीढ़ियां --रूह बड़ी ही नाजुकी से कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ रही हैं --सीढ़ियों पर बिछी गिलम बेहद ही कोमल हैं रूह के पाँव घुटनों तक धंस रहे हैं ।सीढ़ियों के दोनों और  स्वर्णिम कठेड़े सुशोभित हैं ।उनमें आएं चित्रामन के पशु पक्षी रूह के आगमन पर प्रसन्नता से थिरक उठे और चित्रामन के वृक्ष फूल बरसा रूह का अभिनन्दन कर रहे हैं --हँसते खेलते अति उमंग से रूह सीढ़ियां चढ़ रही हैं --पांचवीं सीढ़ी की शोभा तो अति न्यारी है -पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा की अद्भुत शोभा हैं ,प्रत्येक पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा शोभित हैं  ।इस तरह से रूह ने सौ सीढ़ियां बीस चांदों सहित पार की और अब रूह ने खुद को देखा धाम दरवाजे के सम्मुख दो मंदिर के लम्बे चौड़े चौक में


दो मंदिर के लम्बे चौड़े चौक की प्यारी शोभा रूह निरख रही हैं ।चौक के चारों की किनार पर हीरा के अति विशाल शोभा लिए नूरी थम्भ हैं जिन पर दो भोम ऊंची छत की शोभा हैं ।अति सुन्दर छत नक्काशी से जड़ित हैं और उत्तर दक्षिण दिशा में चार मंदिर के लम्बे और दो मंदिर के चौड़े एक सीढ़ी ऊंचे चबूतरे शोभायमान हैं ।जिनकी दो भोम यहाँ से रूह देख रही हैं ,चबूतरा की दूसरी भोम झरोखे के रूह में शोभित हैं --सामने धाम का बड़ा दरवाजा --धाम दरवाजा रूह को निमत्रण देता हुआ आओ मेरी प्यारी रूह ,आपका स्वागत हैं




                        धाम दरवाजा खुल गया रूह दुल्हिन सी उल्लासित अपने लहंगे को समेटे एक सीढ़ी ऊंची चौखट पार करती हैं तो खुद को धाम दरवाजे के मंदिर में पाती हैं ।धाम दरवाजे के लिए आया विशाल मंदिर --रूह आगे बढ़ रही हैं और मंदिर को पार कर धाम दरवाजे को पार कर खुद को धाम अंदर देख रही हैं ।अति सुन्दर नूरमयी गली और सामने रंगमहल का पहला चौक --
धाम दरवाजा खुल गया रूह दुल्हिन सी उल्लासित अपने लहंगे को समेटे एक सीढ़ी ऊंची चौखट पार करती हैं तो खुद को धाम दरवाजे के मंदिर में पाती हैं ।धाम दरवाजे के लिए आया विशाल मंदिर --रूह आगे बढ़ रही हैं और मंदिर को पार कर धाम दरवाजे को पार कर खुद को धाम अंदर देख रही हैं ।अति सुन्दर नूरमयी गली और सामने रंगमहल का पहला चौक --                        

 थम्भ का अति मनोहारी चौक रूह पार कर रही हैं चौक के आगे एक गली को पार कर पहली हवेली रसोई की हवेली की ग्यारह मंदिर की अति सुंदर देहलान में हैं रूह --थंभों की दो नूरी हार अति सुंदार देहलां पार कर रूह रसोई की हवेली में आती हैं --
                        

 ठीक मध्य में कमर भर ऊंचे चबूतरा की शोभा हैं --चबूतरा की किनार पर थंभों की हार अतिशय सुन्दर प्रतीत हो रही हैं ।हवेली की उत्तर और दक्षिण दिशा की दीवार में मध्य के बड़े दरवाजे के आगे देहलानों की अपार शोभा हैं ।उत्तर दिशा में कोने का मंदिर छोड़कर श्याम मंदिर सुशोभित हैं ,श्याम मंदिर के आगे सीढ़ी का मंदिर और उन मंदिर के आगे श्वेत मंदिर शोभायमान हैं ।                        
अब रूह को बढ़ना हैं सातवीं भोम की और तो वह सीढ़ियों वाले मंदिर में आती हैं --नूरी झिलमिलाती सीढ़ियों से चढ़कर वह भोम दर भोम चढ़ते हुए सातवीं भोम आयी और सीढ़ी वाले मंदिर से उत्तर दिशा के द्वार से बाहर निकलकर त्रिपोलिये में आयीं और
सफ़ेद रंग में सीढ़ी वाले मंदिर से 28  थम्भ के चौक में कैसे पहुंचे रास्ता दिखाया हैं
दायीं और मुड़कर रूह अपना मुख पूर्व दिशा की और कर आगे बढ़ रही हैं सीढ़ी वाले मंदिर की हद पार की, आगे श्याम मंदिर ,कोने वाले मंदिर  की हद पार कर रूह पुनः दायीं और मुड़कर आगे बढ़ती हैं ,पहली हवेली की पूर्व दीवार के साथ साथ चलते हुए रूह कुछ आगे बढ़ती हैं ,सामने 28  थम्भ का चौक 

रूह चौक में जा रही हैं --28  थम्भ के चौक में खड़ी रूह नजरें घुमाती हैं तो देखती हैं 6000 -6000  मंदिरों की दो नूरी हारे
नूरी जवेरहातों से झिलमिलाते धाम के नूरी मंदिर ,अति सुन्दर शोभा लिए मंदिर और इन दो हार मंदिरों के मध्य नूरी त्रिपोलिया की शोभा



                        

 नूर भरे दो थंभों की हारे और  तीन गलियों की शोभा ,उनकी मेहराबे --ठीक मध्य की गली में घेर कर 6000  -6000  मेहराबें आयीं हैं उनमें हिंडोलों की शोभा हैं ,आमने सामने की मेहराबों में आएं हिंडोलों की अजब शोभा                        
थम्भो की मेहराबो में आएं  कंचन रंग के हीरो से जडित हिंडोले …..चार पायो पर चार ड़ाण्डे…ड़ाण्डो को भराए के चंद्रमा …और यह हिंडोले पिया जी के सिंघासन की तरह ही जोग बाई से युक्त है .ड़ान्डो से चैन छत मे मेहराब मे कुंडो मे लगी है --अति सुन्दर सुखदायी हिंडोलों को देखते ही रूह की इच्छा हुई की मैं भी धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियों के संग इन हिंडोलों के सुख लूँ --

दिल में आते ही पीया जी के आत्मस्वरूप नूरी हिंडोले नीचे आ जाते हैं
फूलों से सुसज्जित सुगन्धि बिखेरते कंचन हीरा जड़ित अर्शे अजीम के नूरमयी हिंडोले रूह को बुलाते हैं प्यारी सखी आओ ना -आप श्री राज जी श्री ठकुरानी जी के संग जब रूह इन हिंडोलों में हिंचती हैं तो उन समय के रूह जानती हैं या हक़ सुभान --हिंडोलों की मीठी मीठी झंकार ,फूलों की बरखा और रूह के नयन हक़ महबूब के नयनों से जुड़े हैं
इन गलियों में रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी का हाथ थामें घूम रही हैं ,उनके साथ नूरी बैठकों में बैठ हान्स विलास कर रही हैं

रूह श्री राज जी के नूरी मुखड़े को अपलक निहार रही हैं ,उनके संग मीठी मीठी बाते कर उल्लसित हो रही हैं --उनके नूरी सिंगार को देख रूह के अंग प्रत्यंग थिरक रहे हैं ...रूह को हँसता मुख देख श्री राज जी प्यारे जू भी रूह की मोहनी अदा पर रीझ रहे हैं                        

हक हादी रूहें हीचत ,इन हिंडोलो दरम्यान  ।
ए सुख जाने मोमिन ,या जाने हक सुभान ॥47/प्र 24लाल दास महाराज जी कृत बड़ी विरति

रूहें खेले संग राज के ,देखो फिरती इन गलीयन।
कहूँ चबूतरे बैठक ,उठे किरना नूर रोशन ॥48/प्र 24 

कोई हक सो बाता करे ,कोई ठाढी सन्मुख ।
कोई नूर जमाल का ,देख रही इत मुख ॥

कोई हसंत हक सो , बाता करे बनाय ।
साम सामी दोऊ रीझत ,ए सुख कह्यो ना जाय ॥
                        महामत कहे ए मोमिनो ,ए सातमी भोंम कही तुम ।
कहूँ भोंम आठमी ,देखावत हक हम ॥52/प्र 24॥

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