प्रणाम जी
रंगमहल की छठी भूमिका में रूह रमण करना चाहती हैं ।श्री राज जी की मेहर से रूह खुद को छठी भूमिका में महसूस करती हैं ।छठी भोम की अपार शोभा धाम धनि रूह को दिखाते हैं ।कई मोहोलो की शोभा हैं कई प्रकार की अति सुन्दर सुखदायी बैठकों की शोभा हैं ।
घेर कर आयीं बाहिरी हार मंदिरों की शोभा हो या भीतर आएं हवेलियों गलियों की शोभा ,सभी शोभा वर्णन से परे हैं ।छठी भूमिका सुखपालों के रहने का अनुपम स्थान हैं ।
रंगमहल की छठी भूमिका में रूह रमण करना चाहती हैं ।श्री राज जी की मेहर से रूह खुद को छठी भूमिका में महसूस करती हैं ।छठी भोम की अपार शोभा धाम धनि रूह को दिखाते हैं ।कई मोहोलो की शोभा हैं कई प्रकार की अति सुन्दर सुखदायी बैठकों की शोभा हैं ।
घेर कर आयीं बाहिरी हार मंदिरों की शोभा हो या भीतर आएं हवेलियों गलियों की शोभा ,सभी शोभा वर्णन से परे हैं ।छठी भूमिका सुखपालों के रहने का अनुपम स्थान हैं ।
बाहिरी हार 6000 मंदिरो की शोभा रूह देखती हैं ।अति सुन्दर नूरी चेतन मंदिर जिनकी बाहिरी दीवार की शोभा आलोकिक हैं ।मंदिरों में दो दो नूरी अति सुन्दर दरवाजे हैं ,जालीद्वार द्वारों की शोभा अपार हैं और झरोखे की शोभा का तो क्या वर्णन हो ?धाम धनि की अनमोल न्यामार रूह के लिए --इन झरोखों में रूह धाम धनि संग बैठकर वनों के सुन्दर नजारों के आनंद लेती हैं ।शीतल बयार वो मीठी मीठी प्रातः काल की धुप और छोटे छोटे पक्षियों का आना और मधु स्वर में गीत सुनाना
इन मंदिरों में रूह श्री राज श्यामा जी के संग ,सखियों के संग रमण करती हैं ।सुख सेज्या पर बैठे प्रीतम का दीदार करती हैं ,उनके स्वरूप को एकपल निहारना और सखियों के साथ मस्ती से भर तरह तरह की क्रीड़ाएं कर अखंड सुख लेती हैं रूह ।
इन मंदिरों में रूह श्री राज श्यामा जी के संग ,सखियों के संग रमण करती हैं ।सुख सेज्या पर बैठे प्रीतम का दीदार करती हैं ,उनके स्वरूप को एकपल निहारना और सखियों के साथ मस्ती से भर तरह तरह की क्रीड़ाएं कर अखंड सुख लेती हैं रूह ।
रूह इन गलियों में सखियों संग रमण करती हैं ।थम्भ को तक लगा खड़ा होना तो कभी थंभों में आएं चित्रामन को निहारना ,थम्भ में आएं चित्रामन के हाथी ,घोड़ों पर असवार होने की इच्छा होते ही उनका प्रत्यक्ष हाजिर हो जाना ,रूह को उल्लासित कर रहा हैं ।
प्रियतम श्रीराज जी के आत्म स्वरूप सुखपाल नौ हाथ के लंबे और चार हाथ के चौड़े हैं | चार पायों पर चार डाण्डे हैं |चार कलश डांडों पर और एक कलश मध्य नूरमयी छत्री पर हैं |छत्री पर मोतियों की झालर घेर कर आई हैं | सुखपाल के भीतर आमने सामने मनोहारी ,अति सुखदायी बैठक हैं |बैठक पर गादी चाकले हैं |मध्य चरण रखने का स्थान हैं |पकरने के लिए गजगाह हैं | नूरी रंगों नंगों और फूलों से सजे इन सुखपालों पर अस्वार हो कर श्रीराज-श्यामा जी और सखियां रमण के लिए जाते हैं |दो दो सखियां मिल अस्वार होती हैं |इन पर अस्वार हो कभी पुखराज पहाड़ जाते है तो कभी हौजकौसर तो कभी 24 हांस के मोहोल-अस्वारी के सुख अनन्त हैं |
रंगमहल की छठी भूमिका में आएं 28 थम्भ का चौक तख्तरवा के रहने का स्थान हैं | तख्तरवा 16 पहल का शोभा ले रहा हैं 16 पायों पर 16 कलश हैं और एक कलश मध्य छतरी पर हैं |तख्तरवा में बैठने की सोहनी बैठके हैं | इसमे श्रीराज-श्यामा जी और ब्रह्म -प्रियाएं एक साथ बैठकर हांस विलास करते रमण के लिए दूर -दूर जाते हैं | कभी सागरों में रमण करते हैं तो कभी माणिक पहाड़ के हिंडोलों के अखंड सुख लेते हैं | 16 पायों के मध्य कठेड़ा की शोभा हैं जो ज़रूरत पड़ने पर सीढ़ी बन जाता हैं |उड़ते हुए यह तख्तरवा गोल महल की तरह शोभा देता हैं |
इस प्रकार से रूह की नज़रों में आता हैं कि छठी भूमिका का विस्तार बहुत बड़ा हैं | यहा कई तरह की बैठको की शोभा हैं |बाहिरी तरफ शोभित छज्जों और झरोखों में बैठ श्रीराज जी ,श्री श्यामा जी और सखियाँ वनों के रमणीक दृश्यों के सुख लेते हैं | यहाँ कई प्रकार की मनोहारी बैठके आईं हैं |
यहाँ की नूरमयी बैठकों में सिंहासन कुर्सियों की अद्भुत शोभा आईं हैं | कई प्रकार की शोभा लिए सिंहासन सुशोभित है |कुछ सिंहासन छोटे है तों कई अत्यंत ही विशाल हैं | उनमें कई तरह के मनोहारी रत्नों से सुसज्जित छत्र शोभा ले रहे हैं |
अस्वारी के समय के सुख और शोभा क्या कहे ?यह तो हक दिल के अनुसार हैं |उन समय की लीला को रूह याद करती हैं ,रूह को स्मरण आते हैं वह सुख , जब हम सखियाँ परमधाम में युगल स्वरूप के संग पच्चीस पक्षों में रमण करते हैं |
अस्वारी का समय होते ही श्री राज जी के आशिक खिलौने हाजिर हो जाते हैं और अपनी अपनी सेन्या समेत सभी अस्वारी को घेर कर चलते हैं | हाथी ,घौड़े ,चीते ,शेर आदि सभी अपनी फ़ौजों का निशान लिए शान के साथ चलते हैं और अति उमंग से विध विध के करतब कर युगल स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी और सखियों को रिझाते हैं |
धाम के नूरमयी पक्षी भी सुखपालों के दाहिनी ओर चलते हैं तो कभी बाईं ओर उड़ान भरते हैं तो कभी मस्ती में आकर नीचे आ जाते हैं तो कभी सुखपाल के ठीक ऊपर -दिल में सबके यही उमंग कि धाम दुलहा श्रीराज जी के दीदार को पाऊँ |
पशु -पक्षी तरह -तरह के अनोखे खेल करके प्रियतम श्री राज जी श्री श्यामा जी को प्रसन्न करते हैं | पिऊ पिऊ की गूंजार से वतन गूंज उठता हैं | देखिए तो परमधाम के तोते आते हैं और बड़ी ही नज़ाकत से अक्षरातीत श्री राज जी को फूल पेश करते हैं |
अस्वारी की दृश्य मनमोहक हैं | अस्वारी की जोत आसमान जिमी को रोशन कर रही हैं |हर और नूर ही नूर छा जाता हैं ,अस्वारी की जोत आसमान तक झलकार करती सुखदायी प्रतीत होती हैं |
कोई सखी अपना सुखपाल युगल स्वरूप के सुखपाल के नज़दीक रखती है कि उनकी मीठी मीठी बतियां सुन सके तो कोई इसलिए सुखपाल युगल स्वरूप के सुखपाल के सन्मुख ले जाती हैं कि उनसे बाते कर सके और देख तो मेरी सखी श्री राज भी हंस हंस के उत्तर देते हैं तो कोई इसीलिए नज़दीक रहती है कि उनकी मनमोहिनी छबि एक तक निहार सके |
सुखपालों में अस्वारी के समय या तख्तरवा में अस्वारी के समय के सुखों का क्या वर्णन करें ? उन सुखों को तो अर्शे-सहूर ही महसूस कर सकता हैं |
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