शनिवार, 27 मई 2017

shri rangmahal ki dasvin chandni

रूह आज रंगमहल की दसवीं चांदनी की शोभा को जी भर के निहारना चाहती हैं | हक श्री राज जी की अपार मेहर से रूह की सुरता दसवीं चांदनी पहुँचती हैं और देखती हैं चांदनी के मनोरम शोभा —
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सर्व प्रथम रूह की नज़र जाती हैं चांदनी की किनार पर -रूह ने देखा कि रंगमहल की नवमी भूमिका में एक मंदिर का चौड़ा छज्जा सुशोभित हैं जो लंबाई में तो चारों ओर घेर कर आया हैं | ठीक इसी छज्जे की छत पर दसवीं चांदनी पर एक मंदिर का चौड़ा और लंबाई में चारों और घेर कर छज्जा आया हैं |
रूह छज्जे पर आती हैं और निहारती हैं छज्जे की शोभा –छज्जे की बाहिरी किनार पर अत्यंत ही मनोहारी कठेड़ा आया हैं | कठेड़े पर आएं चित्रामन में जडित जवारातों की झलकार आकाश तक जा रही हैं | कठेड़ा के बाहिरी तरफ ढालदार छज्जा हैं और छज्जे की भीतरी किनार पर देहेलान शोभा ले रही हैं |बाहिरी हार 6000 मंदिरों की छत पर देहेलान आईं हैं |
एक देहेलान की अलौकिक शोभा रूह ने निरखी -देहेलान में एक एक मंदिर की हद में चार थम्भ आएं हैं |जिन पर आईं एक बड़ी महेराब में तीन मेहेराबें आईं हैं | मध्य की मेहेराब में नूरमयी ,रत्नों की नक्काशी से जडित दीवार आईं हैं और दीवार के दाएँ बाएँ की महेराबें खुली आने से दहेलान में देखने के आठ आठ पर गिनती में छः छः ही द्वार आएं हैं क्योंकि पाखे में आएं द्वार दोनों ओर की देहेलान में काम आते हैं |
देहेलान की चांदनी पर 12000 देहूरियों की शोभा झलकार कर रहीं हैं |देहूरियों पर कलश ,ध्वजा और पताका की शोभा आईं हैं | दहेलान के भीतरी और बाहिरी किनार पर कंगुरें हैं और कंगुरों के बीच बीच में कांगरी हैं |
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रंगमहल की चांदनी पर मुख्यद्वार के दस मंदिर के हांस मे दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर चौड़ी देहेलान आईं हैं |देहेलान में 10 थम्बो की चार चार हारें आईं हैं | देहेलान की चाँदनी पर चारों कोनों पर मनोहारी शोभा को धारण किए देहूरियां आई हैं | 201 गुर्ज भी यहाँ तक आएँ हैं | प्रत्येक गुर्ज पर गुमट की शोभा हैं | गुमटो पर कलश आएँ हैं और कलशो पर ध्वजाएँ शोभा ले रही हैं |
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बाहिरी छज्जा देहेलान और देहेलान के भीतर एक मंदिर की जगह ,यह तीन मंदिर की जगह चांदनी से तीन सीढ़ी ऊँची आईं हैं | रूह मेरी देहेलान पार करके एक मंदिर की रोंस को भी पार करके तीन सीढ़ी उतर कर चाँदनी पर आतीं हैं |
-और निहारती हैं चांदनी की मनोहारी शोभा -यहां बगीचो की शोभा आईं हैं | नीचे जो हवेलियों के फिरावे आएं हैं उनकी छत पर बाग-बगीचों की अपार शोभा आईं हैं |चौरस हवेलियों की छत पर फूलों के बगीचे आएं हैं जिनके नूरी रंग ,उनकी सुगंधी से रूह को प्यारी लगती हैं |गोल हवेलियों पर रंग बिरंगी दूब खिली हैं तो पंच मोहोलों की छत पर फलों और मेवों के बगीचे लहरा रहे हैं | बगीचों में आईं नहरे ,उनमें कलरव करता निर्मल जल और चहेबच्चों से उठती उज्ज्वल ,सुगंधित जल की बूंदीयाँ –रूह इन शोभा को एकटक निहारती हैं |
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चाँदनी पर आएं बाग-बगीचों की अनुपम शोभा निरखते रूह चांदनी के मध्य भाग में पहुँचती हैं और देखती हैं -नीचे जो मध्य मे नौ चौक आए हैं उनकी छत पर चांदनी पर तीन सीढ़ी ऊंचा चबूतरा उठा जिसके चारो दिशा से चांदनी पर तीन तीन सीढ़ी उतरी हैं |चबूतरे पर अति सुंदर पशमी गिलम बिछी हैं और उन पर सिंहासन कुर्सियों की अपार शोभा आईं हैं |
और चबूतरा के चारों कोनों पर चार चहेबच्चें सुशोभित हैं |चेहेबच्चा के तीनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं ,एक तरफ से चबूतरा मिल गया हैं |
|श्रीराज श्री ठकुरानी जी तथा समस्त सुंदर साथ पूर्णिमा की रात्रि को इस चांदनी पर पधारतें हैं |चबूतरे पर खड़े होकर चारों तरफ की शोभा नज़रों में आती हैं |

मंगलवार, 23 मई 2017

rangmahal ki navmi bhom -que-ans



रूह चले निजदरबारा 
हद बेहद के ब्रह्माण्ड से परे दिव्य परमधाम में 

रंगमहल की नौवीं भोम                        

🌹आठवीं भोम में धाम धनी श्री राज जी ,श्री श्यामा जी के संग हिंडोलों के सुख ले रूह अब बढ़ती हैं नवी भोम की और --आठवीं भूमिका में घेर कर आएं बाहिरी हार मंदिरों के भीतर की और खड़ी  हैं रूह ,

जहाँ दो थंभों की हार तीन नूरमयी गलियों की अपार शोभा के आगे दूसरी 6000  मंदिरों की हार शोभित है ।मध्य गली में हिंडोलों की अति मनोहारी शोभा हैं --जाना हैं नवमी भोम तो 
रूह के दिल में इच्छा उपजते ही थंभों की हारों में नूरी सीढ़ियां झलकने लगी --उन सीढ़ियों से रूह चलती हैं नवमी भोम की और -
नूरी सीढ़ियों से चढ़ रूह आन पहुंची नवी भोम 
यहाँ पहुँच कर धाम धनी श्री राज जी की अपार मेहर से रूह शोभा निरख रही हैं ।दो थंभो की हार और तीन नूर से झिलमिलाती गलियों की शोभा --दूसरी हार मंदिरों की शोभा और नजर की बाहिरी हार मंदिरों की और तो रूह प्यारी ने देखा कि बाहिरी हार मंदिर इन तीन गलियों दूसरे शब्दों में कहे तो नवमी भूमिका की  जमीन से तीन सीढ़ी  ऊँचे दिख रहे हैं ।यहाँ से बाहिरी हार इन मंदिरों की भीतरी दीवार की अति मनोहारी शोभा रूह निरख रही हैं ।100  हाथ की ऊँची और 100  हाथ की ऊंची इन दीवार में एक बड़ी मेहराब दिख रही हैं ।बड़ी मेहराब की नोक और दोनों और लाल माणिक के नूरी फूल महक रहे हैं ।इन बड़ी मेहराब में तीन मेहराब आयीं हैं --तो मध्य की बड़ी मेहराब में दरवाजा शोभित हैं --घेर कर आएं इन मंदिरों में जाना हैं तो रूह कैसे जाएगी ❓        
 रूह इन बाहिरी हार मंदिरों की और कदम बढ़ती हैं वह देख रही हैं ,एक प्यारी सी ,न्यारी सी शोभा --तीन सीढ़ी ऊँची शोभा हैं और घेर कर आये  मंदिरों की भीतरी दीवार के दरवाजे के आगे एक चबूतरा लगा हैं जिसके दोनों और से तीन सीढ़ियां भीतरी गली में उतरी हैं ।इन चांदों  से रूह सीढ़ियां चढ़कर चबूतरे पर आतीं हैं और द्वार पार करती हैं                

🌹बाहिरी हार मंदिर की भीतरी दीवार से पहली गली में कुल कितने  चांदा  आएं हैं और मुख्यद्वार के ठीक ऊपर आएं बड़े मंदिर से सीढ़ियों की शोभा कैसे आयीं हैं ❓                  
 बाहिरी हार मंदिर घेर कर 5999  आएं हैं ।  प्रत्येक मंदिर की भीतरी दीवार के सन्मुख आये द्वार के सामने 33  हाथ के लम्बे चौड़े चांदे आएं हैं जिनसे तीन तीन सीढ़ियां उत्तरी हैं मुख्यद्वार के सन्मुख 88  मंदिर का लम्बा और 33  हाथ का चौड़ा चांदा आया हैं 
🌹बाहिरी हार मंदिरों के स्थान पर रूह खड़ी हैं और वह देख रही हैं कि यह स्थान तीन सीढ़ी ऊंचा आया हैं ।बाहिरी हार मंदिरों की भीतरी दीवाल की शोभा आयीं है और ऐसे क्या शोभा हैं इन स्थान पर जो इन भूमिका की खूबी बढ़ाती हैं ❓      
                  
रूह देख रही हैं कि  नवमी भूमिका में बाहिरी 6000  मंदिर शेष भूमिका से तीन सीढ़ी ऊँचे आएं हैं ।मंदिरों की भीतरी दीवार पूर्ववत शोभित हैं ।लेकिन मंदिरों की पाखे की दीवार नहीं आयीं और बाहिरी दीवार भी नहीं आयीं हैं ।भीतरी दीवार से एक मंदिर की दुरी पर थंभों की एक हार आयीं हैं ।इन हार से एक मंदिर का छज्जा निकला हैं जिसकी किनार पर भी थम्भ आएं हैं और थंभों के मध्य नूरी कठेड़ा आया हैं ।

🌹रूह देख रहीं हैं कि रंगमहल की प्रथम भूमिका में एक मंदिर की धाम रोंस परिक्रमा के वास्ते आयीं हैं ।दूसरी भोम से आठवीं भूमिका तक 33  हाथ के छज्जे आएं हैं जो मंदिरों से एक सीढ़ी नीचे आएं हैं ।मंदिर से एक सीढ़ी नीचे उत्तर इन छज्जों पर रूह आ सकती हैं ।अब शोभा देखनी हैं नवमी भोम के छज्जा की --
तो यहाँ छज्जा कितना शोभित हैं और छज्जा की क्या शोभा आयीं हैं ।छज्जा की किनार पर क्या शोभा हैं ❓     

 रूह ने देखा कि नवमी भूमिका में एक मंदिर का चौड़ा छज्जा निकला हैं जिसकी किनार पर थम्भ आएं हैं ।थंभों के मध्य कठेड़े की शोभा हैं ।आगे ढालदार छज्जा हैं ।बाहिरी हार मंदिरों का स्थान और छज्जा मिलकर दो मंदिर की जगह हुई ।                  

🌹रंगमहल के 201  पहल आएं हैं ।प्रत्येक पहल पर 66  हाथ के लम्बे चौड़े गुर्ज शोभित हैं जिनकी दस भोम ग्यारवीं चांदनी हैं ।तो इस तरह से बाहिरी हार मंदिरों की जगह तो खुला स्थान आया हैं पर गुर्ज अपनी जगह पर सुशोभित हैं ।201  गुर्ज आने से नवमी भोम में कितने   झरोखे रूह को नजर आ रहे हैं ❓                        
गुर्ज अपने स्थान पर आने से 201  झरोखे नजर आते हैं ।दस मंदिर के हान्स में दो मंदिर का चौड़ा और दस मंदिर का लम्बा झरोखा  नजर आ रहा हैं ।इसके दोनों और 25  मंदिर के दो मंदिर के चौड़े झरोखा हैं और शेष 30  मंदिर के लम्बे दो मंदिर के चौड़े झरोखे हैं।
ऐ दो सौ एक छज्जे कहे

दोए गुर्जो दरम्यान

🌹नवमी भोम को किस नाम से जाना जाता हैं ❓                        


नवमी भोम को दूरदर्शिका  से जाना जाता हैं

🌹नवमी भोम में धाम धनी हक श्री राज जी अंगूरी के इशारे से क्या दिखाते हैं ❓

धाम के इन विशाल झरोखो में जब हक़ हदी रूहों के साथ आते हैं तो धाम धनि रूहों को जिस  भी दिशा में बैठते हैं वहां के दूर दूर शोभा हम रूहो को राजजी महाराज अपनी अंगुली के इशारों पर दिखाते हे

पूर्व में बैठे हे तो
चांदनी चौक 
सातघाट 
यमुना जी
अक्षरधाम

पश्चिम में बैठते हे तो
नुरबाग
फूलबाग
दुब दुलीचा
पश्चिम के मैदान 

उत्तर में बैठते हे तो
तिरछी निगाहों से नीचे की और खडोकली
बडोवन के वृक्ष
पुखराज पहाड़ 

दक्षिण में बैठते हे तो
नीचे की तरफ नजर करके बट पीपल की चौकी
कुञ्ज निकुंज वन
माणेक पहाड़
चौबीस हास के महल

हौज कौशर ताल की शीतल शीतल हवा यहाँ बैठे बैठे महसूस करवाते हे

शुक्रवार, 19 मई 2017

shri rangmahal ki nouvi bhom ke akhand sukh

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आप श्री युगल स्वरूप सब सुंदर साथ जी को लेकर सीढ़ी वाले मंदिर से नवमीं भोम में आते हैं |सीढ़ी वाले मंदिर के उत्तर दिशा में आएं दरवाजे से निकल कर अपने दाएँ हाथ की ओर मुड़कर पूर्व दिशा की और बढ़ते हैं |चार-पाँच मंदिर चलकर फिर दाईं और चल कर 28 थम्भ के चौक में पहुँचते हैं |28 थम्भ के चौक बाईं हाथ पूर्व दिशा की और बढ़े और धामधनी ने दिखाया कि बाहिरी हार मंदिर यहाँ तीन सीढ़ी ऊँचे आएँ हैं |इन मंदिरों की भीतरी दीवार में आएँ द्वारों से भीतरी गली में चाँदों से तीन तीन सीढ़ियाँ उतरी हैं |मुख्यद्वार के सामने दो मंदिर की जगह लेकर तीन सीढ़ियाँ 28 थम्भ के चौक और मुख्यद्वार के मध्य गली में उतरी हैं |घेर कर आईं यह सीढ़ियाँ ज़ुदी ज़ुदी जिनस से सुसज्जित हैं | फूलों से महकते इनके कठेडे उनके चित्रामन रूह को मुग्ध कर रहे हैं |
श्रीराज श्यामा जी और सखियों ने तीन सीढ़ियों से चढ़कर मुख्यद्वार को पार किया और देखी नवमी भूमिका की अदभुत मनोहारी शोभा -
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बाहिरी हार मंदिरों की भीतरी दीवार की शोभा तो आईं हैं लेकिन इन मंदिरों की पाखे की दीवार और बाहिरी दीवार ना आकर थम्भ आएँ हैं |आगे एक मंदिर का नूरी छज्जा आया हैं जिसकी किनार पर मनमोहक थम्बो की हार आईं हैं | इनके मध्य रत्नो नंगो और फुलो से सज्जित कठेड़ा की शोभा आई हैं |
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छज्जे बडे नौमी भोम के, बोहोत बडो विस्तार ।
बैठक धनी साथ की, बाहेर की किनार ।।
201 हाँसो मे गुर्ज आने से झरोखो की शोभा आईं हैं |इस भूमिका को दूरदर्शिका भी कहते हैं | यहां बैठकर धामधनी श्रीराज जी हमे परमधाम के दर्शन कराते है |
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जब बैठें तरफ नूरकी, तब तितहीं का विस्तार ।
जित सिफत जिन चीज की, तिन सुख नाहीं सुमार ।|

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युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी जब पूर्व दिशा के नूरमयी छज्जों में विराजमान होते हैं तो चाँदनी चौक के नज़ारे दिखाते हैं |सात बनो की अलौकिक शोभा रूहों को दिखाते हैं |जमुना जी के दर्शन रूहें करती हैं |
जब अग्नि कोण में अर्शे मिलावा आता हैं तो नूर सागर के मनोहारी दर्शन होते हैं | हर ओर श्वेत जोत से जगमगाता वतन |
या हौज या जोए के, कै विध देवें सुख ।
जब हक आराम देवहीं, तब सोई करें रूहें रुख ।।

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दक्षिण दिशा में जब कभी श्री राज़ जी श्री श्यामा जी नूरी छज्जों में विराजते हैं तो बटपीपल की चौकी की चांदनी रूहें देखती हैं | बनो की मखमली चांदनी पर चलती नहरे -चहेबच्चों से उठते फव्वारे और इनके मध्य फूलों से सजी नूरी बैठके -कुंजनिकुंज बन की शोभा-हौजकौसर तालाब की संक्रमणिक सीढ़ियां-चारों घाट -कमल के फूल से खिले टापू मोहोल की शोभा दिखा कर धामधनी माणिक पहाड़ के दर्शन रूहों को कराते हैं |
नैरित्य कोण में खीर सागर की पीली आभा से खिली आकाश छूती महाबिलंद हवेलियों के दर्शन रूहें करती हैं |
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रंगमहल की पश्चिम दिशा में जब कभी श्रीराज-श्यामा जी और सखियां आते हैं तो फूलों के सिंहासन कुर्सियों पर विराजमान होते हैं |फूलों के दर्शन रूहें करती हैं और फूल बाग के आगे अन्नवन ,दूबदुलीचा और पश्चिम की चौगान के दर्शन रूहें करती हैं |और आगे नज़र ले जाती हैं तो दधि सागर की हरित जोत ,उनकी तरंगों ,उनसे उठती किरणों को देख देख कर रूहें उल्लासित होती हैं |
वाय्यव कोण में रूहें घृत सागर की अनुपम शोभा को धाम हृदय में बसाती हैं |
और पहाड जोए जित के, कै विध की मोहोलात ।
ताल कुंड कै चादरें, इन जुबां कही न जात ।।
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उत्तर दिशा मे जब कभी श्रीराज-श्यामा जी और सखियां आते नूरी छज्जो मे विराजते है तो बड़ोबन ,मधुबन और महाबन की बनती तीन सीढ़ियों की अदभुत शोभा को रूहें देखती हैं |स्वर्णिम आभा से झिलमिलाते पुखराज पहाड़ के दर्शन श्रीराज जी प्यारी रूह को कराते हैं |
और जब ईशान कोण की ओर आईं बैठकों में विराजमान होते हैं तो रससागर के दस रंग में सजे मनोहारी नज़ारें रूहें देखती हैं |
नजरों सब आवत हैं, इन ऊपर की बैठक ।
देख दूर की बातें करेंं, रंग रस उपजावें हक ।।134

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बुधवार, 17 मई 2017

RANGMAHAL-NAVMI BHOM SHOBHA

प्रेम प्रणाम जी 

चले नवमी भोम 


आत्मिक दृष्टि से देखे रंगमहल की नवी भोम की अलौकिक अद्भुत शोभा



नौवीं भोम की शोभा को देखने से पहले रंगमहल की एक भोम की शोभा को दिल में लेते हैं --रंगमहल में घेर कर 6000 -6000  मंदिरों की दो हारे आयीं हैं।अति सुन्दर मंदिरों की दो हारों के मध्य दो थम्भ की हार तीन नूरमयी गलियों की अपार शोभा हैं ।इन मंदिरों की हारों के भीतरी तरफ हवेलियों के फिरावे शुरू हो गए हैं ।36  हार फिरावे पार करते हैं तो फुलवाड़ी की शोभा हैं और ठीक मध्य में नव चौक की शोभा हैं जिनके चारोँ कोनों में जल सतून आएं हैं जो चांदनी पर खुलते हैं ।मुख्यद्वार के ठीक सामने 28  थम्भ का चौक --भोम दर भोम एही शोभा हैं प्रत्येक भोम में कुछ विशेष शोभा हैं ।अब देखते हैं नवमी भोम की विशेष शोभा

नवमी भूमिका में बाहिरी हार मंदिर की जगह शेष शोभा से तीन सीढ़ी ऊंची शोभित हैं ।बाहिरी हार मंदिरों की भीतरी दीवार की शोभा देख रही हैं रूह सबसे पहले --


मंदिर की भीतरी दीवार में एक बड़ी सुंदर मेहराब आयीं हैं फिर इन बड़ी मेहराब में तीन छोटी मेहराबें आयीं हैं जिनमें ठीक मध्य की मेहराब में दरवाजा हैं और दाएं बाएं की मेहराब में सुन्दर नक्काशी सुशोभित हैं ।
मध्य में आएं दरवाजे की शोभा रूह देख रही हैं ।अति सुन्दर दरवाजा खुला और रूह ने देखा कि भीतर की और दो थम्भ की हार तीन गालियां हैं ।इन गलियों से दरवाजा तीन सीढ़ी ऊंचा हैं क्योंकि बाहिरी हार मंदिरों की जगह यहाँ तीन सीढ़ी ऊंची आयीं हैं ।दरवाजे के ठीक सामने 33  हाथ का लम्बा चौड़ा चबूतरा लगा हैं जिसके दोनों और से तीन तीन सीढ़ियां पहली गली में उतरी हैं ।चबूतरा ओर सीढ़ियों के भीतर की और ,अर्थात गली की और सुन्दर कठेड़े की शोभा हैं ।रूह ने देखा कि अगर बाहिरी हार मंदिर से भीतर जाना हैं तो इन चांदों से तीन सीढ़ी उतर कर जा सकते हैं ।
और  बाहिरी  हार इन मंदिरों की पाखे की और बाहिरी दीवार न आकर थंभों की एक हार आयीं हैं ।
थंभों की हार के आगे एक मंदिर का चौड़ा और लम्बाई में तो घेर कर छज्जा आया हैं ।जिसकी किनार पर मनमोहक थंभों की हार आईं हैं | इनके मध्य रत्नो नंगो और फुलो से सज्जित कठेड़ा की शोभा आई हैं |
और मुख्यद्वार के स्थान की और रूह की नजर जाती  हैं तो वहां मुख्यद्वार के सामने दो मंदिर की जगह लेकर तीन सीढ़ियाँ 28 थम्भ के चौक और मुख्यद्वार के मध्य गली में उतरी हैं |और घेर कर मंदिरों की भीतरी दीवार से चांदा से उतरती  सीढ़ियाँ ज़ुदी ज़ुदी जिनस से सुसज्जित हैं | फूलों से महकते इनके कठेडे उनके चित्रामन रूह को मुग्ध कर रहे हैं |
इस तरह से रूह देख रही हैं कि  बाहिरी 6000 मंदिरों की भीतरी दीवार और उनमें शोभा ले रहे महेराबी द्वार सभी जोगबाई आईं हैं परन्तु इन मंदिरों की बाहिरी दीवार और पाखे की दीवार नहीं आईं हैं | बाहिरी दीवार के स्थान पर  थम्भों की हार आईं हैं 


पुनः बाहिरी दीवार के स्थान पर जो थम्भों की हार आईं हैं ,उनकी किनार से मंदिर की चौड़ाई लेकर छज्जा आया हैं जो लंबाई में तो रंगमहल को घेर कर आया हैं |इन छज्जे की किनार पर भी थम्भों की हार शोभा ले रही हैं और थम्भों के मध्य कठेड़ा की शोभा आई हैं |

घेर कर आएं गुर्ज अपनी जगह पर आ रहे हैं जिनसे 201 झरोखों की शोभा दिखाई दे रही हैं |दस मंदिर के हांस में दो मंदिर का चौड़ा और दस मंदिर लंबा छज्जा शोभा ले रहा हैं |दस मंदिर के हांस के दायें बायें दो मंदिर के चौड़े और पचीस मंदिर के लंबे छज्जे आएं हैं और घेर कर आएं बाकी सब छज्जे दो मंदिर के चौड़े और तीस मंदिर के लंबे छज्जे आएं हैं |

यह शोभा तीन सीढ़ी ऊंची आई है |इस कारण मंदिरो की भीतरी दीवार से द्वार के आगे चांदे से सीढ़ियाँ भीतर गली में उतरी हैं |201 हाँसो मे छज्जो में गिलम , सिंघासन कुर्सियों की शोभा आयीं हैं ।

श्री राज श्री ठकुरानी जी जिस दिशा में विराजते हैं उसी दिशा के तमाम दृश्यों का परस्पर वर्णन करके प्रमुदित होते हैं |

मंगलवार, 16 मई 2017

satvin aathvi bhom ke hindole que-ans

प्रणाम जी 

चले सखियों सातवीं आठवीं भोम 
झूला झूले 
हक़ श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियाँ सब मिलकर झूला झूले 

अर्शे अज़ीम की साहिबी अपार --अखंड सुखों का रस पान करे

                        🌹श्री रंगमहल की सातवीं भूमिका में सखियों चलते हैं ,6000  -6000  मंदिरों की अति नूरमयी हारों की शोभा को निरख रहे हैं ।मंदिरों की दोनों हारों के मध्य दो थंभों की हार आयी हैं और उनमें अति सुन्दर मेहराबें सुशोभित हैं ।थंभों के चितरामां अति सुन्दर चेतन हैं आपके आते ही फूलों ने अपनी सुगन्धि बड़ा आपका अभिनन्दन किया --पशु पक्षियों की तुहि तुहि ,पीया पीया की तक और खूब खुशालियाँ आपकी खिदमत में हाजिर हैं ।इन नूरमयी गलियों में मदमस्त चाल से चल रहे हैं हम सखियाँ ..प्रीतम से दिल की बात कह रहे हैं और उन्हें कह रहे हैं आइये ,अखंड लीला के आनंद ले ---तो सखियाँ किस लीला के लिए यहाँ युगल स्वरूप का आह्वन कर रही हैं ❓

यहाँ पर सखिया खट छप्पर के हिंडोलों में झुलने की लीला के लिए युगल स्वरूप से आह्वान कर रही है

🌹मंदिरों की दो हारों के मध्य अति सुन्दर नूरमयी त्रिपोलिये  की शोभा हैं ।6000 -6000  थंभों की नूरी मेहराबों में 6000 -6000  हिंडोलों की दो हारें आयीं हैं ।श्री राज जी और सखियाँ नजर नजर बाँध हिंडोले हींच रहे है ।मंदिरों का नूर आपस में टकरा रहा हैं ,अर्शे की सुगन्धि से आलम महक रहा हैं ,कंचन की जंजीरों में शोभित नूरी हिंडोलों की मीठी झंकार श्रवणों में रस घोल रही हैं ---तो यहाँ कितने हिंडोलों की ताली पड़ती हैं ❓

यहाँ सातवी भोम में दो हिंडोलों की ताली पड़ती है साथ साथ झूलते समय चक्री, स्वर्ण जंजीरे की अति प्यारी आवाज झनकार कर रही है

🌹श्री राज जी के बेशक इलम से हम रूहों  ने जाना कि 6000  -6000  कंचन जड़ित हिंडोलों की दो हारें सातवीं भोम में आयीं हैं ।यहाँ एक प्रश्न  दिल में उठता हैं कि 28  थम्भ के चौक की हद में थम्भ कटे हैं तो वहां हिंडोलों की गिनती कैसे पूर्ण हुई ❓

28  थम्भ के चौक में थम्भ कटे हैं तो उन मेहराबों में जो झूले आने चहीए वह 28  थम्भ के चौक की छत में उन स्थान पर  कुंडे लगे हैं उन पर हिंडोले सुशोभित हैं 


🌹सातवीं भोम में प्रीतम संग खूब झूले झूले ,उनके संग अखंड सुख लिए ,गलियों में विहार किया और अब दिल हैं कि झूला झूलने कि लीला में कुछ ख़ास प्रबंध हों तो धनि हमें आठवीं भोम में लेकर के आएं --रंगों नंगों से सजे 6000 -6000  मंदिरों की नूरी हारों के बीच हैं हम सखियाँ 

सामने दो थम्भ की नूर भरी हारे शोभित हैं और तीन गलियों की अपार शोभा हैं ,मध्य गली में मेहराबों में हिंडोले आएं हैं --उन हिंडोलों में युगल स्वरूप और  हम सखियाँ विराजमान होती हैं और हिंडोलों में पीया संग झूलती हैं .आमने सामने नैन से नैन बाँध ,मीठे स्वरों से गुणगान करते हुए सुख लेते हैं तो यहाँ ऐसा कोनसा सुख हैं जो सातवीं भोम से सरस हैं ❓
यहाँ पर 18000 हजार हिंडोलों की शोभा आयी है सातवी भोम की तरह यहाँ त्रिपोलिये में आये थम्बो की मेहराब में लगे हिंडोले तो हे ही पर साथ में बिच  की गली में भी जो मेहराबे आयी है यहाँ भी हिंडोले लगे है जिससे यहाँ चारो तरफ से हिंडोले की ताली पड़ती है


ऐ चारो तरफ के झूलने हक हमको देत लज्जत

सातवी और आठवी भोम के हिंडोले में झूल रही और राजजी महाराज के इश्क़ में हिलोरे खा खा कर दो हिंडोलों की ताली एवं चार हिंडोलों की ताली में झूलती रूहो के मुबारक कदमो में इश्क़ सेजदा👣🙏🏻❤

रविवार, 14 मई 2017

ab kahun bhom aathmi

aath
अब कहूं भोम आठवीं ,गिरद मंदिर बारह हज़ार |
जित हादी रूहें ,हिंडोले करत बिहार ||46/26 प्र विरति बड़ी लाल दास जी महाराज
गिर्द दोय हार मन्दिरन की ,जाके साम सामी है द्वार |
ता बीच दो हार थम्भन की ,तीनो गली हिंडोलो हार ||47/26
इन थम्भ दरम्यान हिंडोले ,गिनती छः छः हज़ार !
ए मंदिरो आगे थम्भन के ,दरम्यान छः हज़ार हार ||48 /26
जमा कहूं सबन की ,गिनती अठारे हज़ार |
हक हादी रूहें हिन्चत ,याकि लहरा अति सुखकार ||49/26
अक्षरातीत श्री राज़ जी महाराज अपनी रूहों को संबोधित कर रहे हैं कि मेरी प्यारी रूहों आइए , अपने निज घर परमधाम | हमारा मूलवतन जहां नूर ही नूर हैं , जहां आनंद ही आनंद हैं , जहां का जर्रा जर्रा आपकी राह देख रहा हैं |
देख मेरी रूह तू , आठवीं भोंम में घेर कर आएं 6000-6000 मंदिरों की दो हारें शोभा ले रही हैं |वतन के अपने इन मंदिरों का नूर देखिए |
जवेरातों के नूरमयी मंदिरों में सुख सुविधा के सभी साजो -समान उपलब्ध हैं |मंदिरों की दोनों द्वारों के द्वार आमने सामने शोभित हैं |मंदिरों की हारों के मध्य थम्भो की दो हारे आईं हैं | जिन पर अदभुत चेतन चित्रामन मेरी रूह निरखती हैं | चित्रामन में आएँ पशु-पक्षी अपनी रूह को आया देख कर झूम उठे |चित्रामन में आएं वृक्ष फूलों की बरखा कर रूह का अभिनंदन कर रहे हैं |
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थम्भो की मनोहारी हारों में आईं महेराबों में 6000-6000 हिंडोलें आएँ हैं और थम्भो की मध्य गली में आईं महेराबों में भी 6000 हिंडोलें आने से रूह देख तो ,आठवीं भोम में 18000 हिंडोलें हाजिर हैं |
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जडित कड़े कंचन के ,लाल माणिक ड़ान्डे जड़ाव |
कहूँ रंग पाँच कहूँ हीरा ,सो कह्यू ना जावे ए भाव ||50/26
साज़ इन हिंडोलन के ,बिछोने तकिये नूर नरम |
साम सामे सब बैठत ,ए सुख कह्यू ना जाए मरम ||51/26
अर्श के यह नूरी हिंडोलें कैसे हैं ? निज घर के हिंडोलें कंचन जडित हैं और उनके डांडों में लाल माणिक का जड़ाव आया हैं और कहीं कहीं हरित रंग में झलकार करते डांड़े आएं हैं तो कुछ हिंडोलों में हीरे से जडित डांड़े शोभा ले रहे हैं |सिंहासन के मानिंद सुशोभित इन हिंडोलों में अति नरम बिछौने शोभित हैं |और उन पर तकियों की अपार शोभा आईं हैं |
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हार तीन हिंडोलन के ,एह बैठत युगल किशोर |
रूहें दोय दोय एक मे ,सुख पावे नज़रो और ||52/26
हिंडोले हिन्चत अंग में ,होत सुख अपार |
आवत जात लेहरा उठे ,ए सुख मोमिन जाननहार ||53/26
कहूं बैठ हिंडोले हिन्चत ,छूट जात फेर दूर |
साम सामी ताली देत है ,क्यूँ कहूं विलास ज़हूर ||54/26
ए सुख सन्मुख हक के ,लेवे रूहे बारह हज़ार |
ए अंग इश्क अरस के ,सुख जानत परवरदिगार ||55/26
वय किशोर अति सुन्‍दर ,मुख लालक लिए गौर |
गहरी छबि अति नूर को ,रहे मोमिन दिल सहूर ||56 /26
श्रीराज की अपार मेहरों की छाँव तले रूहें आठवीं भोम के अखंड सुखों का रसपान करती हैं |हिंडोलों की तीनों हारों में साम-सामी चार हिंडोलों की ताली पड़ती हैं |अति सुखदायी एक हिंडोले में युगल स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी विराजते हैं और एक-एक हिंडोलों में दो-दो सखियाँ विराजमान होती हैं |
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इन सुखदायी हिंडोलों में रूहें जब श्रीराज-श्यामा जी के साथ हींचती हैं तो अपार सुखों की अनुभूति करती हैं |युगल पिया जी के संग हिंडोलों के सुख और उन पर उनकी अमृत दृष्टि से रूहों पर प्रेम प्रीति की बरखा -यह सुख तो अरवाह अर्श की महसूस कर सकती हैं |
रूहें एकटक निरखती हैं -श्रीराज-श्यामा जी की किशोर सुरत -अहो !कितनी सुंदर हैं युगल पिया की नूरानी छब |उनका मुखारबिंद अर्श के गौर वर्ण में गहरी लालिमा से युक्त हैं |लालिमा लिए उनका नूरी मुखड़ा उनकी तिरछी चितवन -इनका अनुभव रूहें ही कर सकती हैं |
उतर हिंडोले जब चले ,पाँव भूषण करत ठमकार |
अंग उमंग बिहार रस ,कह्यो ना जाए एह बिहार ||57/ /26 प्र विरति बड़ी लाल दास जी महाराज
कहूँ साडी अति सुन्दर ,अंग गौर पर भुखन |
सब ठौरो किरना उठे ,क्यूँ कहूं नूर रोशन ||58/26
जब आवत चौक मंदिर में ,नूर थम्भ दीवालो ज़ोर |
साम सामी किरना लरे , करे बिहार युगल किशोर ||59/26
कहूं सेज पर बैठत ,तहाँ बाते करे सन्मुख |
क्यूँ कहूं इन ज़ुबान सो ,इन सेज्या पर जो सुख ||60/26
प्रियतम श्रीराज जी के संग हिंडोलों के बेशुमार सुख ले जब ब्रह्मप्रियाएँ और युगल स्वरूप हिंडोलों से उतर कर चलते हैं तो उनके पांव में आएं भूखनों की मीठी झंकार से वतन गूंज उठता हैं |अर्शे-मिलावे के अंग-प्रत्यंग में उमंग कथनी से परे हैं |अर्श के गौरे गौरे रंगों पर नूरी साड़ी और आभूषणों की सुंदर जोत की किरणें झलकार करती हैं |जब युगल स्वरूप और सखियाँ मंदिरों में आते हैं तो थम्भो और दीवारों का नूर बढ़ जाता हैं |तो कहीं कहीं सेज्या पर बैठ कर युगल पिया से मीठी मीठी बाते करते हैं यह सुख कैसे वर्णन हो ?
जब उठे इन ठौर से ,निकसत पोरी द्वार |
फिरती गलिया देखिए ,संग रूहे बारह हज़ार ||63 /26
कोई हाथ थम्भन को ,लगाए के फेरे जब |
फेर चढ़त सुख पावहीं ,एक गिरती पकड़े तब ||64/26
कोई दीवालो चित्रामन ,चाल निरखत दोनो नैन |
कोई हक सो हँसत है ,कोई बाते करे मुख बेन ||65//26
कोई चले लटकनी ,चलत देखावत जब |
हक हादी रूहें तिन पर ,रीझ बतावत तब ||66//26
कोई मंदिरो मंदिर मे ,पैठ निकसत और द्वार |
केतिक तिन पीछे चले ,कई ठौर करत बिहार ||67 /26
कोई बाँहे कंठ लगाए के ,एक दूजी संग चलत |
कोई दोय सामी मिले ,मिल बाते चारो करत ||68 /26
कोई दोड़त गलियन में ,आगे सो चली जाए |
कोई तिनके पिछल ,उतावली चली जाए ||69 /26
कोई आगे पीछे हक के ,चली जात कतार |
इनो के अंग का उमंग ,सो जानत परवरदीगार ||70 /26
हिंडोलों में झूल ,मंदिरों में बिहार करके रूहें अब मिलावे के संग थम्भो की हार के मध्य आईं गलियों में बिहार कर सुख लेती हैं |कोई सखी थम्भ को हाथ लगाए के फेरे लगाती हैं तो कोई उन पर चढ़ने का प्रयास करती हैं |तो कोई कोई सखी तिरछे नयनो से थम्भो के चित्रामन को निहारती चल रही हैं और कोई प्यारी सखी हक महबूब से बाते कर हंस रही हैं | कोई लटकनी मटकनी चाल से चल दिखाती हैं तो हक हादी और रूहें उनकी इस अदा पर रीझ उठती हैं |अरे कोई सखी तो एक मंदिर में जाकर अगले से निकल श्री राज जी को अनोखी अदाओ से रिझाती हैं | बाहों मे बाहे डाल चलना और आपस मे हसी मज़ाक करना तो कभी गलियो में दोड़ लगाना , कभी हक श्रीराज जी के आगे चलना तो कभी उनके पीछे , इनके अंगो के उमंग को तो श्री राज जी ही जान सकते हैं |
कई बिलास इन ठौर है ,लेत हक हादी संग |
झलकत वस्त्र भूखन ,कई लेहरा उठत तरंग ||71/26
जब उतरत इन दादरे ,नौ भोंम करत रनकार |
पड़छंदे पुतलिया बोलत ,ए क्यूँ कहूं नित बिहार ||72 /26
और जब सीढ़िया उतर तले की भोंम जाते है तो वस्त्रो का नूर , उनकी किरणें आपस में जंग करती हैं | भूषणो की झंकार से नवो भोंम गूंज उठती है | श्री राज कहते है मेरी रूह यह तुमारे घर के सुख हैं | तुम अर्श में मेरे चरनो तले बैठे हो , तुम ही इन अखन्ड सुखों के असल अधिकारी हो !
महामत कहे ए मोमिनो ,कहया घर तुमारा सुख |
तुम बैठे बीच अर्श के ,अब क्यूँ ना हो सनमुख ||73 /26

गुरुवार, 11 मई 2017

SATVI BHOM CHITVAN

मैं तारतम का मौन जप कर रही हूँ --

पिया जी की अपार मैहर से मेरी सुरता का हद बेहद से परे दिव्य परमधाम पहुँचती हैं ।रूह खुद को महसूस कर रही हैं चांदनी चौक में --

श्री रंगमहल के सम्मुख विशाल चौक में रूह खड़ी हैं ।ठीक मध्य में दो मंदिर की चौड़ी नंगों की रोंस जो धाम की सीढ़ियों तक रूह को पहुंचा रही हैं ।चांदनी चौक की अपार शोभा में झीलते हुए रूह आगे बढ़ रही हैं ।चांदनी चौक की नूरी रेती मोतियों सी झिलमिला रही हैं ।उज्जवल रेती का नूर आसमान तक झलक रहा हैं ।दाएं हाथ की और लाल वृक्ष की अनुपम शोभा हैं और रह के बायीं और हरे वृक्ष की अति मनोहारी शोभा हैं ।चौक के पूर्व ,उत्तर और दक्षिण दिशा में अमृत वन की सोहनी शोभा हैं ।अमृत वन के नूरी वृक्ष उनकी मेहराबे ,नहरों चेहेबच्चों की अपार शोभा हैं ।अमृत वन के दो भोम उनके छज्जे कठेड़े अति शोभायमान हैं ।

शोभा देखते रूह धाम की विशाल सीढ़ियों के सन्मुख पहुँच जाती हैं सामने धाम की विशाल शोभा से युक्त मनोरम सीढ़ियां है ।रूह बड़े ही उल्लास से पहला कदम सीढ़ी की और बढ़ा रही हैं ।एक हाथ ऊंची सीढ़ी एक ही चौड़ी और लम्बाई में तो दो मंदिर की लम्बी अति विशाल सीढ़ियां हैं ।उत्तर से दक्षिण दो मंदिर की लम्बाई लिए धाम की सीढ़ियां --रूह बड़ी ही नाजुकी से कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ रही हैं --सीढ़ियों पर बिछी गिलम बेहद ही कोमल हैं रूह के पाँव घुटनों तक धंस रहे हैं ।सीढ़ियों के दोनों और  स्वर्णिम कठेड़े सुशोभित हैं ।उनमें आएं चित्रामन के पशु पक्षी रूह के आगमन पर प्रसन्नता से थिरक उठे और चित्रामन के वृक्ष फूल बरसा रूह का अभिनन्दन कर रहे हैं --हँसते खेलते अति उमंग से रूह सीढ़ियां चढ़ रही हैं --पांचवीं सीढ़ी की शोभा तो अति न्यारी है -पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा की अद्भुत शोभा हैं ,प्रत्येक पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा शोभित हैं  ।इस तरह से रूह ने सौ सीढ़ियां बीस चांदों सहित पार की और अब रूह ने खुद को देखा धाम दरवाजे के सम्मुख दो मंदिर के लम्बे चौड़े चौक में


दो मंदिर के लम्बे चौड़े चौक की प्यारी शोभा रूह निरख रही हैं ।चौक के चारों की किनार पर हीरा के अति विशाल शोभा लिए नूरी थम्भ हैं जिन पर दो भोम ऊंची छत की शोभा हैं ।अति सुन्दर छत नक्काशी से जड़ित हैं और उत्तर दक्षिण दिशा में चार मंदिर के लम्बे और दो मंदिर के चौड़े एक सीढ़ी ऊंचे चबूतरे शोभायमान हैं ।जिनकी दो भोम यहाँ से रूह देख रही हैं ,चबूतरा की दूसरी भोम झरोखे के रूह में शोभित हैं --सामने धाम का बड़ा दरवाजा --धाम दरवाजा रूह को निमत्रण देता हुआ आओ मेरी प्यारी रूह ,आपका स्वागत हैं




                        धाम दरवाजा खुल गया रूह दुल्हिन सी उल्लासित अपने लहंगे को समेटे एक सीढ़ी ऊंची चौखट पार करती हैं तो खुद को धाम दरवाजे के मंदिर में पाती हैं ।धाम दरवाजे के लिए आया विशाल मंदिर --रूह आगे बढ़ रही हैं और मंदिर को पार कर धाम दरवाजे को पार कर खुद को धाम अंदर देख रही हैं ।अति सुन्दर नूरमयी गली और सामने रंगमहल का पहला चौक --
धाम दरवाजा खुल गया रूह दुल्हिन सी उल्लासित अपने लहंगे को समेटे एक सीढ़ी ऊंची चौखट पार करती हैं तो खुद को धाम दरवाजे के मंदिर में पाती हैं ।धाम दरवाजे के लिए आया विशाल मंदिर --रूह आगे बढ़ रही हैं और मंदिर को पार कर धाम दरवाजे को पार कर खुद को धाम अंदर देख रही हैं ।अति सुन्दर नूरमयी गली और सामने रंगमहल का पहला चौक --                        

 थम्भ का अति मनोहारी चौक रूह पार कर रही हैं चौक के आगे एक गली को पार कर पहली हवेली रसोई की हवेली की ग्यारह मंदिर की अति सुंदर देहलान में हैं रूह --थंभों की दो नूरी हार अति सुंदार देहलां पार कर रूह रसोई की हवेली में आती हैं --
                        

 ठीक मध्य में कमर भर ऊंचे चबूतरा की शोभा हैं --चबूतरा की किनार पर थंभों की हार अतिशय सुन्दर प्रतीत हो रही हैं ।हवेली की उत्तर और दक्षिण दिशा की दीवार में मध्य के बड़े दरवाजे के आगे देहलानों की अपार शोभा हैं ।उत्तर दिशा में कोने का मंदिर छोड़कर श्याम मंदिर सुशोभित हैं ,श्याम मंदिर के आगे सीढ़ी का मंदिर और उन मंदिर के आगे श्वेत मंदिर शोभायमान हैं ।                        
अब रूह को बढ़ना हैं सातवीं भोम की और तो वह सीढ़ियों वाले मंदिर में आती हैं --नूरी झिलमिलाती सीढ़ियों से चढ़कर वह भोम दर भोम चढ़ते हुए सातवीं भोम आयी और सीढ़ी वाले मंदिर से उत्तर दिशा के द्वार से बाहर निकलकर त्रिपोलिये में आयीं और
सफ़ेद रंग में सीढ़ी वाले मंदिर से 28  थम्भ के चौक में कैसे पहुंचे रास्ता दिखाया हैं
दायीं और मुड़कर रूह अपना मुख पूर्व दिशा की और कर आगे बढ़ रही हैं सीढ़ी वाले मंदिर की हद पार की, आगे श्याम मंदिर ,कोने वाले मंदिर  की हद पार कर रूह पुनः दायीं और मुड़कर आगे बढ़ती हैं ,पहली हवेली की पूर्व दीवार के साथ साथ चलते हुए रूह कुछ आगे बढ़ती हैं ,सामने 28  थम्भ का चौक 

रूह चौक में जा रही हैं --28  थम्भ के चौक में खड़ी रूह नजरें घुमाती हैं तो देखती हैं 6000 -6000  मंदिरों की दो नूरी हारे
नूरी जवेरहातों से झिलमिलाते धाम के नूरी मंदिर ,अति सुन्दर शोभा लिए मंदिर और इन दो हार मंदिरों के मध्य नूरी त्रिपोलिया की शोभा



                        

 नूर भरे दो थंभों की हारे और  तीन गलियों की शोभा ,उनकी मेहराबे --ठीक मध्य की गली में घेर कर 6000  -6000  मेहराबें आयीं हैं उनमें हिंडोलों की शोभा हैं ,आमने सामने की मेहराबों में आएं हिंडोलों की अजब शोभा                        
थम्भो की मेहराबो में आएं  कंचन रंग के हीरो से जडित हिंडोले …..चार पायो पर चार ड़ाण्डे…ड़ाण्डो को भराए के चंद्रमा …और यह हिंडोले पिया जी के सिंघासन की तरह ही जोग बाई से युक्त है .ड़ान्डो से चैन छत मे मेहराब मे कुंडो मे लगी है --अति सुन्दर सुखदायी हिंडोलों को देखते ही रूह की इच्छा हुई की मैं भी धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियों के संग इन हिंडोलों के सुख लूँ --

दिल में आते ही पीया जी के आत्मस्वरूप नूरी हिंडोले नीचे आ जाते हैं
फूलों से सुसज्जित सुगन्धि बिखेरते कंचन हीरा जड़ित अर्शे अजीम के नूरमयी हिंडोले रूह को बुलाते हैं प्यारी सखी आओ ना -आप श्री राज जी श्री ठकुरानी जी के संग जब रूह इन हिंडोलों में हिंचती हैं तो उन समय के रूह जानती हैं या हक़ सुभान --हिंडोलों की मीठी मीठी झंकार ,फूलों की बरखा और रूह के नयन हक़ महबूब के नयनों से जुड़े हैं
इन गलियों में रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी का हाथ थामें घूम रही हैं ,उनके साथ नूरी बैठकों में बैठ हान्स विलास कर रही हैं

रूह श्री राज जी के नूरी मुखड़े को अपलक निहार रही हैं ,उनके संग मीठी मीठी बाते कर उल्लसित हो रही हैं --उनके नूरी सिंगार को देख रूह के अंग प्रत्यंग थिरक रहे हैं ...रूह को हँसता मुख देख श्री राज जी प्यारे जू भी रूह की मोहनी अदा पर रीझ रहे हैं                        

हक हादी रूहें हीचत ,इन हिंडोलो दरम्यान  ।
ए सुख जाने मोमिन ,या जाने हक सुभान ॥47/प्र 24लाल दास महाराज जी कृत बड़ी विरति

रूहें खेले संग राज के ,देखो फिरती इन गलीयन।
कहूँ चबूतरे बैठक ,उठे किरना नूर रोशन ॥48/प्र 24 

कोई हक सो बाता करे ,कोई ठाढी सन्मुख ।
कोई नूर जमाल का ,देख रही इत मुख ॥

कोई हसंत हक सो , बाता करे बनाय ।
साम सामी दोऊ रीझत ,ए सुख कह्यो ना जाय ॥
                        महामत कहे ए मोमिनो ,ए सातमी भोंम कही तुम ।
कहूँ भोंम आठमी ,देखावत हक हम ॥52/प्र 24॥