सोमवार, 24 जुलाई 2017

PHULBAG KE ASIM SUKH

                        प्रणाम जी 
फूल बाग की शोभा 

रूह रंगमहल की पश्चिम दिशा में हैं --धाम रोंस पर⁠⁠⁠⁠
रूह खुद को धाम रोंस पर महसूस कर ,रंगमहल की पश्चिम दिशा में नेऋत्य कोण और वायैव कोण के मध्य 1500  मंदिर आएं हैं --

रूह देखती हैं मंदिरों के आगे जो धाम रोंस आयीं हैं उसी रोंस से लगते साथ फूलबाग की अपार शोभा आयीं हैं --रंगमहल के 1500  मंदिरों के सामने पश्चिम की और 1500  मंदिर की लम्बाई चौड़ाई में फूल बाग़ की शोभा हैं
रंगमहल की पश्चिम दिशा में धाम रोंस के साथ एक रूप मिलान करते हुए 1500  मंदिर लम्बे और 2 .75  मंदिर   चौड़े पहले नहर के चबूतरा की शोभा आयीं हैं --150  मंदिर के अंतर से दूसरा  आड़ा नहर का चबूतरा आया हैं --इस तरह से ग्यारह नहर के चबूतरा आएं हैं --

150 -150  के अंतर  मंदिर के खड़े चबूतरा भी आएं हैं --रंगमहल की धाम रोंस से पश्चिम की और 1500  मंदिर लम्बे और 2 .75 मंदिर चौड़े नहर के चबूतरा आये हैं --इन आड़े -खड़े नहर के चबूतरों के मध्य दस की दस हार बगीचा आएं हैं
आड़े खड़े नहर के चबूतरा को दर्शाने वाला नक्शा 

रूह सर्वप्रथम एक नहर के चबूतरा की शोभा की शोभा देख रही हैं --ठीक मध्य में ७५ हाथ में विशाल अति सुन्दर ,निर्मल ,उज्जवल और सुगन्धित जल की नेहरे शोभित हैं --ये नहर कमर भर गहरी हैं --नहर के दोनों और 100 -100  हाथ की जगह में अति मनोहारी रोंस हैं --


इन रोंस के भी तीन भाग हैं --ठीक मध्य में 33  हाथ की जगह में फूलों से महकती रोंस रूह ने देखी ,इन रोंस के दोनों और 33 -33   हाथ की जगह ले कर नगन जड़ित रोंसे हैं

फूलबाग में 11  की 11  हार आडी-खड़ी  इसी प्रकार की शोभा लिए हैं --

लेकिन रूह ने एक अलौकिक शोभा देखी --धाम रोंस से एक रूप मिलान करती नहर में एक अद्भुत शोभा आयीं हैं -

सभी शोभा नहर के चबूतरा की जो शोभा अभी देखी उसी प्रकार से आयीं हैं --इनमें विशेष शोभा हैं --और वह यह हैं कि 75  हाथ की नहर के नूरी जल में 24.75-24.75  हाथ के अति सुन्दर नूरी चहबच्चे 24.75  हाथ की दुरी से आएं हैं  --इन चेहेबच्चों से पांच पांच नूरी जल के फव्वारे उठ रहे हैं --एक फव्वारा मध्य में सीधा उछाल रहा हैं और दोनों और के चहबच्चे मेहराबे बना कर पास वाले फव्वारों में गिर रहे हैं
धाम रोंस से लगती पहली आडी नहर में उठते फव्वारे 👆👆

धाम रोंस पर खड़ी रूह देख रही हैं पहली आडी नहर की अति प्यारी शोभा 


3000  चेहेबच्चों से उठते फव्वारे मानो जल की रंगीन दीवार बना रहे हो 

जल के भीतर 25 -25  हाथ के चहबच्चे 25 -25  हाथ की दुरी पर कुछ इस तरह से आएं हैं 
अर्श के नूरी फूलों से प्रतिबिंबित होते जल की नूरी दीवार 


अर्श के नूरी फूलों से प्रतिबिंबित होते जल की नूरी दीवार

आडी नहर आने से दस की दस हार नूरमयी बगीचा आएं हैं ,जहाँ नेहरे कटी हैं वहां सुन्दर चहबच्चे शोभित हैं 



रूह ने नहर के चबूतरों की शोभा के सुख लिए ,चेहेबच्चों के नूरी नज़ारे देखे और देखा धाम रोंस से लगती पहली नेहरे में आएं अद्भुत फव्वारे उनसे उठती जल की फुहारें 
अब रूह की नजर श्री राज जी की मेहेर से जाती हैं फूलबाग के 100  बगीचों की और --धाम के विशाल फूलबाग के अति सोहने विशाल बगीचे --



एक बगीचा की शोभा रूह देख रही हैं --


150  मंदिर के एक बगीचा में तीन आडी और तीन ही खड़ी नहर आयीं हैं ---एक बगीचा के  चौक में तीन-तीन आड़ी खड़ी नहरें आने एक चौक में छोटे छोटे सोलह बगीचे सुशोभित हैं | अब इन सोलह छोटे बगीचों  मनोहारी शोभा को रूह निरख रही हैं  -इन चौकों में तीन तीन मंदिर की हद में वृक्षों की शोभा आईं हैं |रंग-बिरंगे फूलों की सोहनी जुगत हैं --इन बगीचों के चारों दिशा में नेहरे और चारों कोण में चहबच्चे आएं हैं-- 


तीन-तीन आड़ी खड़ी नहरें आने तीन की तीन हार चहबच्चे कुल नौ चहबच्चे एक बड़े 150  मंदिर के बगीचे में हुए --जिनमें ठीक मध्य और चारों दिशा के चहबच्चे के फुहारे सीधा ऊपर को उठते हैं और मनोरम छठा बिखेरते हुए पुनः चहबच्चे में समा जाते हैं


सीधा उठने वाले फुहारों के कुछ दृश्य 

और चार कोण के जो फुहारे हैं वह सुन्दर मनोहारी मेहराब बनाकर दूसरे चेहेबच्चों में गिरते हैं 





इस तरह से रूह देख रही हैं फूलबाग की अपार शोभा --दस की दस हार बगीचे अति शोभित हैं --एक एक बगीचे में छोटे बगीचे झिलमिला रहे हैं जिनमें तीन तीन मंदिर के अंतर से फूलों के नूरी वृक्ष आएं हैं --बगीचे के चारों दिशा में नेहेरें और चारों कोनों में नूरी चहबच्चे जिनसे नूरी जल के फूलों की मानिंद फुहारे उठ रहे हैं --नहरों के मध्य सुन्दर पुल की शोभा आयीं हैं --प्रत्येक बगीचा में चार दिशा से और चार कोण से सीढ़ियां बगीचों में उतरी हैं 

नहर के चबूतरों के दोनों और  नूरी वृक्षों की शोभा आयीं हैं--

फूलबाग की दो भोम तीसरी चांदनी आयीं हैं --पहली भोम में नेहेरें चेहेबच्चों की अपार शोभा हैं ,कहीं एक ही रंग के फूल खिले हैं तो कहीं एक ही फूल में बेशुमार रंग हैं --पहली चांदनी ने रंगमहल के दूसरी भोम के छज्जों से मिलान किया हैं -- 
फूलबाग की दूसरी भोम तीसरी चांदनी ने तीसरी भोम के छज्जों से मिलान किया हैं --फूलों की बेशुमार शोभा --फूलों की गिलम सिंघासन कुर्सियां --







फूलबाग के चारों कोनों में सोलह हान्स के बुजरक चहबच्चे आएं हैं जिनमें रंगमहल की तरफ वाले चहबच्चे रंगमहल में गिने जाते हैं

आप श्री  राज-श्यामा और ब्रह्म प्रियाएँ कृष्ण पक्ष की चौथ को यहाँ रमण विहार कर सुख लेते हैं --फूलों का ही सिनगार सज प्रीतम को रूहें रिझाती हैं 


प्रणाम जी 

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