प्रणाम जी
श्री रंगमहल की पश्चिम दिशा जहाँ फूल बाग नूर बाग की अपार शोभा हैं --फूलों की बेशुमार शोभा और नहरों चेहेबच्चों की शोभा --
नेऋत्य (पश्चिम दक्षिण कोण )और वाय्यव कोण (पश्चिम उत्तर कोण ) --इन दोनों के मध्य रंगमहल की पश्चिम दिशा में 1500 मंदिर आएं हैं
इन्ही 1500 मंदिरों के आगे पश्चिम दिशा में फूल बाग़ की अपरम्पार शोभा हैं
फूलों के बगीचे --कितनी प्यारी शोभा --ये शोभा यहाँ तो सहूर कर मेरी रूह परमधाम के फूलबाग नूर बाग में क्या अद्भुत मनोहारी चेतन शोभा होगी👆
कहीं स्वेत फूलों के बगीचे
कहीं लाल गुलाब महकते हुए
श्याम रंग में जगमगाते फूलों का बगीचा
वो देखे नीली आभा से झिलमिलता बगीचा
फूलों के यह चित्र यहाँ नासूत जिमि के तो सहूर कर मेरी सखी --दिव्य परमधाम के दिव्य नूरी फूल कितने सुन्दर होंगे ,चेतन फूल आपसे बाते करेंगे --आओ मेरी सखी --फूल आपके हाथो में श्री राज जी के लिए सुन्दर अति सुन्दर माला बनकर प्रस्तुत हैं और नूरी श्वेत फूल नंगों से जड़कर श्री श्यामा जी की कोमल कोमल अंगुरियों में अंगूठी बन सज रहे हैं
फव्वारा --सीधा ऊपर को उठकर गिरते हुए फव्वारे का मनोहारी दृश्य
रंग बिरंगे नूरी फूलों से प्रतिबिंबित होकर फूलों से उठते फव्वारे ,नूरी जल की फुहारें
एक फव्वारे से मेहराब बना कर अनुपम छटा बिखरेते फव्वारे का दृश्य
श्वेत बगीचा में उठते श्वेत नूरी आभा से श्वेझिलमिलाते फुहारों का दृश्य
एक ही नूरी चहबच्चे से नूरी मेहराब बनाकर उठती फुहारे --मनोरम दृश्य
चहबच्चे में सुन्दर कलात्मक फव्वारा
इन जड़ जमीन पर धाम धनि ने इतनी शोभा दिखा दी ताकि उनकी रूहें परमधाम की सुंदरता ,सुख ,कोमलता ,नूर ,सुगन्धि को महसूस कर सके
अति सुन्दर शोभा लिए नेहेरें और फुहारों का प्रतिबिम्ब जल में झलकता हुआ
नाम निमूना इत झूठ है, तो भी तिन पर होत साबूत ।
जोत झूठी देख नासूत की, अधिक है मलकूत ।। २३ ।।पर १ सागर
यधपि इस संसार के सभी प्रदार्थ ,नाम झूठे हैं ,वन ,मोहोल ,बाग -बगीचे ,फूल असत्य हैं मिट जाने वाले हैं फिर भी इनकी उपमा देने से वहां (दिव्य परमधाम ) की कुछ पहचान होती हैं --नासूत की ज्योति देखिये फिर देखे बैकुंठ की --तो बैकुंठ की जोति ज्यादा होगी
सो मलकूत पैदा फना पलमें, कै करत खावंद जबरूत ।
सो रोसनी निमूना देख के, पीछे देखो अरस लाहूत ।। २४ ।।
इन विध सहूर जो कीजिए, कछू तब आवे रूह लजत ।
और भांत निमूना ना बने, ए तो अरस अजीम खिलवत ।। २५ ।।
अक्षर धाम के स्वामी अक्षर ब्रह्म पाव पलक के कोटवें हिस्से में कोटो ब्रह्माण्ड बना पल भर लय कर देते हैं तो सुन्दरसाथ जी ,इन क्षर ब्रह्माण्ड ,बैकुंठ लोक की ज्योति देख कर सहूर कीजिए कि परमधाम की दिव्य जोत कैसे होगी ,उनमें कितने अखंड सुख होंगे ,उनमें धाम धनी श्री राज जी का लाड़ महसूस कीजिए ---
तो इस प्रकार सहूर करे --पृथ्वी लोक से बैकुंठ की ज्योति आशिक होगी
बैकुंठ धाम से बेहद भूमि की ज्योति बहुत ही अधिक होगी और
बेहद भूमि से अपार जोति ,अपार सुख दिव्य परमधाम में होंगे इन विध सहूर करेंगे तो परमधाम की नूरमयी शोभा का कुछ स्वाद मिल सकता हैं --हद बेहद के ब्रह्माण्ड के परे दिव्य परमधाम की खिलवत में प्रवेश करने के लिये इसी प्रकार की दृष्टि चहिए
प्रेम प्रणाम जी
श्री रंगमहल की पश्चिम दिशा जहाँ फूल बाग नूर बाग की अपार शोभा हैं --फूलों की बेशुमार शोभा और नहरों चेहेबच्चों की शोभा --
नेऋत्य (पश्चिम दक्षिण कोण )और वाय्यव कोण (पश्चिम उत्तर कोण ) --इन दोनों के मध्य रंगमहल की पश्चिम दिशा में 1500 मंदिर आएं हैं
इन्ही 1500 मंदिरों के आगे पश्चिम दिशा में फूल बाग़ की अपरम्पार शोभा हैं
फूलों के बगीचे --कितनी प्यारी शोभा --ये शोभा यहाँ तो सहूर कर मेरी रूह परमधाम के फूलबाग नूर बाग में क्या अद्भुत मनोहारी चेतन शोभा होगी👆
कहीं स्वेत फूलों के बगीचे
कहीं लाल गुलाब महकते हुए
श्याम रंग में जगमगाते फूलों का बगीचा
वो देखे नीली आभा से झिलमिलता बगीचा
फूलों के यह चित्र यहाँ नासूत जिमि के तो सहूर कर मेरी सखी --दिव्य परमधाम के दिव्य नूरी फूल कितने सुन्दर होंगे ,चेतन फूल आपसे बाते करेंगे --आओ मेरी सखी --फूल आपके हाथो में श्री राज जी के लिए सुन्दर अति सुन्दर माला बनकर प्रस्तुत हैं और नूरी श्वेत फूल नंगों से जड़कर श्री श्यामा जी की कोमल कोमल अंगुरियों में अंगूठी बन सज रहे हैं
फूल बाग -नूर बाग में खिले फूल
फूल बाग में आयीं सुन्दर निर्मल उज्जवल सुगन्धित जल की अति मनोहारी नहरों को महसूस कर मेरी सखी --चेतन जल फूलों से प्रतिबिंबित हो रूह को खुशहाल करता हुआ
रंग बिरंगे नूरी फूलों से प्रतिबिंबित होकर फूलों से उठते फव्वारे ,नूरी जल की फुहारें
एक ही नूरी चहबच्चे से नूरी मेहराब बनाकर उठती फुहारे --मनोरम दृश्य
इन जड़ जमीन पर धाम धनि ने इतनी शोभा दिखा दी ताकि उनकी रूहें परमधाम की सुंदरता ,सुख ,कोमलता ,नूर ,सुगन्धि को महसूस कर सके
अति सुन्दर शोभा लिए नेहेरें और फुहारों का प्रतिबिम्ब जल में झलकता हुआ
नाम निमूना इत झूठ है, तो भी तिन पर होत साबूत ।
जोत झूठी देख नासूत की, अधिक है मलकूत ।। २३ ।।पर १ सागर
यधपि इस संसार के सभी प्रदार्थ ,नाम झूठे हैं ,वन ,मोहोल ,बाग -बगीचे ,फूल असत्य हैं मिट जाने वाले हैं फिर भी इनकी उपमा देने से वहां (दिव्य परमधाम ) की कुछ पहचान होती हैं --नासूत की ज्योति देखिये फिर देखे बैकुंठ की --तो बैकुंठ की जोति ज्यादा होगी
सो मलकूत पैदा फना पलमें, कै करत खावंद जबरूत ।
सो रोसनी निमूना देख के, पीछे देखो अरस लाहूत ।। २४ ।।
इन विध सहूर जो कीजिए, कछू तब आवे रूह लजत ।
और भांत निमूना ना बने, ए तो अरस अजीम खिलवत ।। २५ ।।
अक्षर धाम के स्वामी अक्षर ब्रह्म पाव पलक के कोटवें हिस्से में कोटो ब्रह्माण्ड बना पल भर लय कर देते हैं तो सुन्दरसाथ जी ,इन क्षर ब्रह्माण्ड ,बैकुंठ लोक की ज्योति देख कर सहूर कीजिए कि परमधाम की दिव्य जोत कैसे होगी ,उनमें कितने अखंड सुख होंगे ,उनमें धाम धनी श्री राज जी का लाड़ महसूस कीजिए ---
तो इस प्रकार सहूर करे --पृथ्वी लोक से बैकुंठ की ज्योति आशिक होगी
बैकुंठ धाम से बेहद भूमि की ज्योति बहुत ही अधिक होगी और
बेहद भूमि से अपार जोति ,अपार सुख दिव्य परमधाम में होंगे इन विध सहूर करेंगे तो परमधाम की नूरमयी शोभा का कुछ स्वाद मिल सकता हैं --हद बेहद के ब्रह्माण्ड के परे दिव्य परमधाम की खिलवत में प्रवेश करने के लिये इसी प्रकार की दृष्टि चहिए
प्रेम प्रणाम जी
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