शनिवार, 1 जुलाई 2017

bat pipal ki chouki

प्रणाम जी 
चले सखियों बट पीपल की चौकी 

अपनी आत्मिक दृष्टि को श्री राज जी की मेहर से परमधाम में लेकर चलते हैं जहाँ  मध्य में भोम भर ऊंचे चबूतरे पर रंगमहल सुशोभित हैं --रंगमहल की पूर्व दिशा में सात वनों की अपार शोभा को दिल में धारण कर अब रूह बढ़ती हैं दक्षिण दिशा की और 

जहाँ अग्नि कोण (दक्षिण पूर्वी कोण ) और नैऋत्य कोण (दक्षिण -पश्चिम ) के मध्य रंगमहल के 1500  मंदिर आयें हैं ।इन 1500  मंदिरों के आगे आयी नूरी रोंस हमारी धाम रोंस पर खुद को देखे ,महसूस करे कि मैं रंगमहल की दक्षिण दिशा में आयीं धाम रोंस पर खड़ी हूँ ।
दक्षिण दिशा की और आयीं धाम रोंस पर हैं हम - धाम की नंगों की सुन्दर रोंस ,नरमायी लिए ,सुगन्धि से महकती चेतन रोंस  -धाम रोंस के भीतरी तरफ रंगमहल के मंदिरों की अलौकिक शोभा हैं ,बेशुमार रंगों-नंगों से सुसज्जित अति सुन्दर नूरी मंदिर --


धाम के बाहिरी किनार प्रत्येक हान्स में चांदे से नूरमयी सीढ़ियां उतरी हैं और शेष जगह कठेड़ा आया हैं --1500  मंदिर हैं दक्षिण दिशा में ,30  मंदिर का एक पहल/हान्स होने से 50  हान्स हुए तो रूह देख रही हैं --50  हाँसों से उतरती मनोहारी सीढ़ियां और शेष जगह रत्नो जड़ित  कठेड़ा (रेलिंग) आयी हैं --


रूह सीढ़ियों की और बढ़ती हैं तो देखती हैं की धाम के भोम भर ऊंचे चबूतरा के साथ एक चबूतरा उठा हैं जिसके दोनों और से भोम भर सीढ़ियां उतरी हैं
रूह चांदा से सीढ़ियां उतरती हैं --एक और तो (रंगमहल की और ) चबूतरा की सुंदर दीवार आयीं हैं और वनों की तरफ सुन्दर कठेड़े की शोभा हैं ।रूह सीढ़ियों की अनुपम शोभा देखते हुए सीढ़ियां उत्तर रही हैं --सीढ़ियों पर बेहद ही नरम फूलों सी महकती गिलम बिछी हैं ,चेतन गिलम जो रूह के कदम धरती ही और भी कोमल हो अभिनन्दन कर रही हैं --धाम की और दीवार में आये सुन्दर चित्रामन और कठेड़े के चित्रामन भी अति सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं --भोम भर की सीढ़ियां उत्तर कर रूह नीचे आयीं एक मंदिर की रोंस पर हैं --रूह  का मुख हैं दक्षिण की और --

नीचे आयीं एक मंदिर की रोंस के साथ ही बट पीपल की चौकी की अलौकिक शोभा आयीं हैं --रंगमहल के साथ लगती हुई 1500  मंदिर की लम्बी और दक्षिण  की और 500  मंदिर की चौड़ी बट पीपल की चौकी चार भोम पांचवी चांदनी की सुशोभित हैं

रूह इन एक मंदिर की रोंस पर खुद को महसूस करती हैं ,इन रोंस के साथ लगता ही बट पीपल की चौकी का पहला नहर का चबूतरा आया हैं --
रोंस के साथ लगता पहला नहर का चबूतरा एक मंदिर का चौड़ा और 1500  मंदिर का लंबा रंगमहल की दक्षिण दीवार के साथ साथ आया हैं --(आडी)


इस तरह के छः चबूतरा आये हैं 100 -100 - मंदिर की दुरी पर 

और रंगमहल  की रोंस से दक्षिण की और 500  मंदिर के लम्बे सोलह खड़े चबूतरा आएं हैं -यह भी 100 -100 - मंदिर की दुरी पर आएं हैं 

इन नहरों के आने से पांच की पंद्रह हार चौक बने
एक नहर के चबूतरा की शोभा रूह देख रही हैं


एक मंदिर के नहर के चबूतरा के मध्य में 50  हाथ में उज्ज्वल जल की नहर शोभित हैं --नहर के निर्मल जल ,उनकी लेहेरे और नहर के दोनों और 25  -25  हाथ की नूरी रोंस आयी हैं -
                        जहाँ नेहरे आपस में काट रही हैं वहा मनोहारी चहबच्चे की शोभा हुई जिनसे पांच पांच फुहारे उठ रहे हैं
अब रूह एक चौक की शोभा देख रही हैं ऐसे पांच की पंद्रह हार चौक आएं हैं --

प्रत्येक चौक सौ मंदिर का लम्बा चौड़ा आया हैं --चौक की चारों दिशा में मनोहारी नहरों की अपार शोभा हैं और चारों कोनों पर चहबच्चे आएं हैं जिनसे नूरी सुगन्धित जल के पांच पांच फुहारे उछल रहे हैं
                        चौक के मध्य में ३३ मंदिर का लम्बा चौड़ा तीन सीधी ऊंचा चबूतरा आया हैं जिसकी चारों दिशा से आठ -आठ मंदिर की विशाल जगह से तीन तीन सीढ़ियां उतरी हैं --सीढ़ियों को छोड़कर शेष जगह घेर कर स्वर्णिम कठेड़ा हैं--

चबूतरा के मध्य में एक मंदिर का नूरी तना उठा ---अति सुन्दर नूरमयी तना जिसकी चारों दिशा में द्वार आएं हैं --तना ७५ हाथ सीधा ऊपर को उठा हैं फिर २५ हाथ में डालियाँ बढ़ी हैं जिन्होंने दूसरे चौकों में आएं वृक्ष की डालियों से एक रूप मिलान करके सुन्दर चन्द्रवा किया हैं --फूलों पत्तियों ने एक रूप मिलन करके सुंदर छत डाली हैं
इस तरह की अति मनोहारी शोभा लिए पांच की पंद्रह हार चौक आएं हैं जिनमे बट और पीपल के वृक्ष क्रमशः आएं हैं --इस तरह से 4 वट वृक्ष के बीच मे एक पीपल वृक्ष, तो 4 पीपल के वृक्ष के बीच मे एक वट वृक्ष ऐसी शोभा मेरी रुह देख रही हैं। 


इन 75  चौकों में 14  की चार हार चौक चहबच्चे के आयें हैं कुल 56  चौक --16 चहबच्चे श्री घाम की तरफ़ (उत्तर दिशा )और 16 चहबच्चे कुंज निकुंज वन (दक्षिण दिशा ) की तरफ़ हैं। 4 चहबच्चे बटपीपल की चौकी के पूर्व दिशा में  स्थित नारंगी घाट की ओर तथा 4 चहबच्चे  बटपीपल की चौकी के पश्चिम दिशा में हैं  तथा 4 चहबच्चे वटपीपल की चौकी की चाँदनी पर हैं। इस तरह कुल  100 चहबच्चे हुए।

इन 75  चौकों के वृक्षों की डालियाँ आपस में मिलकर मिलान करती हैं --इन मेहराबों में सुंदर हिंडोले आयें हैं --आप श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियाँ इन हिंडोलों में जब हींचते हैं तो नीचे नेहेरें चहबच्चे चलते हैं --शीतल जल का सुखद अहसास ,सुगन्धि ही सुगन्धि और बारिश की नूरी बुँदियाँ का उमड़ उमड़ कर आना और सपर्स्क करना 

मोरों का नृत्य कर धनि को रिझाना --नजर से नजर बाँध हिंडोलों में झूलती रहें ही इन सुखों की अनुभूति कर रही हैं
चौकी की चार भोम पांचवीं चांदनी आयीं हैं --प्रत्येक भोम में हिंडोलों के सुख और एक अजब शोभा प्रियतम श्री राज जी ने रूह को दिखलाई --


देखे 

रंगमहल की दीवार के साथ आयीं वृक्षों की पहली  हार पंद्रह वृक्षों ने पहली नहर के चबूतरा के सर पर 22  सीढ़ियां बना कर छत ऊंची की और रंगमहल की दीवार के साथ जाकर झरोखों से एक रूप मिलान किया हैं --वृक्षो की दूसरी छत  ने रंगमहल की दूसरी  भोम के छज्जों से मिलान किया हैं 

वृक्षो की तीसरी  छत ने रंगमहल की तीसरी  भोम के छज्जों से मिलान किया हैं

वृक्षो की चौथी   छत ने रंगमहल की चौथी भोम के छज्जों से मिलान किया हैं

तो बट पीपल की चांदनी से रंगमहल की निरत की भोम में जा सकते हैं --चांदनी पर चार चेहेबच्चों की मनोरम शोभा रहें देख रही हैं ---

रूह की नज़रों से ही यह शोभा दिल में उतरती हैं

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