गुरुवार, 6 जुलाई 2017

bat pipal ki chouki me raman

                        प्रणाम जी 
बट पीपल की चौकी में चल मेरी रूह 

रंगमहल की दक्षिण दिशा में हैं रूह --धाम रोंस पर 
रंगमहल की दक्षिण दिशा 
 अग्नि कोण और नेऋत्य कोण के मध्य आये रंगमहल के 50  हान्स 
एक एक हान्स तीस मंदिर का तो 1500  मंदिरों की अपार झिलमिलाती शोभा

                        धाम की नूरी मंदिर और मंदिरों के बाहिरी और धाम रोंस --

अति सुन्दर नूरभरी  रोंस --आने जाने ,रमन का सुन्दर रास्ता --

तो रोंस के भीतर मंदिर और बाहिरी किनार पर हान्स हान्स से चांदा से उतरती सीढ़ियां और शेष जगह सुन्दर कठेड़ा
चांदा का निशान 👆👆👆
रूह अब होना चाहती हैं बट पीपल की चौकी की और 

तो वह बढ़ती हैं सीढ़ी की और --

रूह ने देखा एक मंदिर का लम्बा चौड़ा चबूतरा धाम चबूतरा के साथ लगता हुआ आया हैं और उसके दोनों और सीढ़ियां उतरी हैं --चबूतरा के भीतर की और धाम चबूतरा से मिलान हुआ हैं और वन की तरफ कठेड़ा आया हैं --रूह इन सीढ़ियों से नीचे उतर रही हैं ,उतरते समय रूह के पाँव घुटनों तक घंस रहे हैं ,देखिए ना गिलम की कोमलता ,नरमाई ,सुंदरता --सीढ़ियों के एक और धाम चबूतरा की नूरी द्वार ,उनमें चित्रित नूरी ,चेतन चित्रामन और दूसरी और स्वर्ण जड़ित कठेड़ा (रेलिंग)

रूह सीढ़ियों से उतर कर खुद को एक मंदिर की रोंस पर देखती हैं जो धाम चबूतरा से लगती हुई आयी हैं और जिस पर सीढिया उत्तरी हैं और अब शोभा देखनी हैं बट पीपल की चौकी की                        


रूह ने देखा --इन्हीं रोंस से लगते हुए बट पीपल की चौकी की अद्भुत ,अति मनोहारी शोभा आयीं हैं --चौकी का पहला नहर का चबूतरा रोंस से एक रूप मिलान करता हुआ आया हैं


                         तो रूह ने शोभा देखी कि सीढिया उतर कर नीचे जिन रोंस/स्थान पर पहुँचती हैं रूह, उससे लगते हुए बट पीपल की  चौकी का पहला नहर का चबूतरा एक मंदिर का चौड़ा और 1500  मंदिर का लम्बा रंगमहल की दक्षिण दिशा में साथ साथ आया हैं                        
 इन पहले आड़े चबूतरे के बाद 100  मंदिर के दुरी पर दूसरा नहर का चबूतरा आया हैं --इस तरह से कुल छः आड़े नहर के चबूतरा आएं हैं  --रंगमहल से दक्षिण की और बट पीपल की चौकी 500  मंदिर की चौड़ी और रंगमहल की दीवार के  साथ साथ 1500  मंदिर की लम्बी आने से छः आड़े नहर के चबूतरा आये हैं और खड़े चबूतरे सोलह आये हैं जो एक मंदिर के चौड़े और 500  मंदिर के लम्बे हैं यह सीढ़ी वाली रोंस से दक्षिण की और 100 -100  मंदिर के अंतर से आएं हैं
इन नक़्शे में देखे आड़े खड़े नहर के चबूतरे जो नीला रंग में दर्शाए गए हैं 👆👆
इन आड़े खड़े नहर के चबूतरों के मध्य पांच के पंद्रह हार चौक बने 

ऊपर वाले नक़्शे में जो पीला रंग में दर्शाए हैं
सर्वप्रथम रूह शोभा देखती हैं नहर के चबूतरा की 


अत्यंत मनोहारी शोभा --चबूतरा के मध्य भाग में 50  हाथ की जगह में नहर आयीं हैं ,नहर का उज्ज्वल ,नूरी जल झिलमिलाता हुआ और नहर के दोनों और नंगन के सुन्दर नूरी रोंस आयीं हैं
अब शोभा देखनी हैं पांच के पंद्रह हार जो चौक आएं हैं उनकी --


एक चौक की शोभा रूह देख रही हैं --100  मंदिर का लम्बा चौड़ा चौक सुशोभित हैं जिसकी चारों दिशा में शित्म सुगन्धित जल की नेहेरें प्रवाहित हो रही हैं और चारों कोनों पर सुन्दर जल के कुंड चहबच्चे हैं जिनसे पांच पांच जल के फुहारें उठ रही हैं --जल की एक धारा ऊपर की और जाकर नीचे गिरती हैं और चार धाराएं चारों दिशा के जल कुंडों में मेहराब बना कर जाती हैं
                        और चौक के ठीक मध्य में 33  मंदिर का लम्बा चौड़ा चबूतरा शोभायमान हैं --

रूह अब बढ़ती हैं रोंस से आगे 
नहर के चबूतरा को पार करना हैं तो नहर की रोंस पर आयीं जो उस रोंस से एक रूप मिलान करती हुई आयीं हैं जिन रोंस पर सीढ़ियां उतरी हैं --नहर की अति सुन्दर ,मनोहारी रोंस --रोंस पर सजी मनोहारी बैठके --

आगे नहर --कितना शीतल ,सुगन्धित और उज्जवल जल ---सामने सुन्दर पुल हैं --रूह पुल से नहर को पार कर रही हैं ,पुल पार करते समय कदम मानो जल के ऊपर हो ,ऐसा महसूस हो रहा हैं --धाम का नूरी जल ,रूह को धनि के इश्क में भिगोता हुआ
रूह पुल पार करके पुनः रोंस पर आती हैं --रोंस से भीतर तीन सीढ़ियां उतरी हैं ,उन सीढ़ियों से उतर कर रूह खुद को चौक में देखती हैं --चौक के मध्य में चबूतरा पर वृक्ष शोभित हैं ,चबूतरा को घेर कर नूरी मोती बिछी हैं और चारों दिशा में नेहेरें और चारों कोण में चेहेबच्चों की अपार शोभा रूह देख रही हैं
नरम ,कोमल चेतन रेती में होते हुए रूह चबूतरा पर आती हैं और देखती हैं शोभा --चबूतरा की चारों दिशा से तीन तीन सीढ़ियां रेती में उतरी हैं --सीढ़ियों की जगह छोड़कर शेष जगह कठेड़ा आता हैं
चबूतरा के ठीक मध्य में वृक्ष का नूरी तना ,अत्यंत ही विशाल तना उठा --तने के चारों दिशा ने सुन्दर दरवाजे आये हैं --इन वृक्ष ने दूसरे चौक में वृक्षों से एक रूप मिलान करते हुए फूलों पत्तियों की सुन्दर चन्द्रवा किया हैं --


इसी तरह से सभी चौक की शोभा हैं ,एक बट ,एक पीपल ,फिर एक बट एक पीपल --इसी क्रम से वृक्ष आएं हैं --

इन वृक्षों की डालियों ने मेहराबें बना कर मिलान किया हैं उनमें सुन्दर फूलों से सुसज्जित हिंडोले आएं हैं
आप श्री राज श्यामा जी के संग रहे इन वन में विहार करती हैं ,कई प्रकार के रंगों से खिली खिली यह चौकी चार भोम पांचवीं चांदनी की आयीं हैं --

तले की भोम में जब हिंडोले झूलते हैं तो नीचे नेहरे चल रही होती हैं फुहारों का नूरी जल प्रतिबिंबित होता हुआ बड़ा ही सुन्दर प्रतीत होता हैं
नूरी जल का शीतल अहसास ,सुगन्धि चेतनता हर और बिखरी हुई और छोटे छोटे पशु पक्षियों का उमड़ उमड़ कर आना और करतब करके धाम धनि को रिझाना और सबसे  सुखद पल जब श्री राज जी के नयनों में नयन जोड़ रूह झूलों में झूलती हैं




नूरी जल का शीतल अहसास ,सुगन्धि चेतनता हर और बिखरी हुई और छोटे छोटे पशु पक्षियों का उमड़ उमड़ कर आना और करतब करके धाम धनि को रिझाना और सबसे  सुखद पल जब श्री राज जी के नयनों में नयन जोड़ रूह झूलों में झूलती हैं                        

 ऊपर की भोमों में फूलों की छाँव तले धाम धनी संग झूलना -चौकी की चार भोम पांचवीं चांदनी आयीं हैं ,प्रत्येक भोम में हिंडोलों के अपार सुख रूह लेती हैं --और चांदनी के सुख की तो क्या कहे ?
                        बट पीपल की चांदनी की बेहद ही प्यारी शोभा हैं मानो फूलों की गिलम बिछी हो और चारों कोनों में सुन्दर जल के कुंड 

इन चेहेबच्चों से फुहारें उछाल रहे हैं --चांदनी की पूर्व दिशा में नारंगी वन शोभित हैं ,उत्तर दिशा में रंगमहल की अपार शोभा हैं चांदनी से निरत की भोम में जाइये 

दक्षिण और पश्चिम दिशा में बड़ों वन की शोभा हैं 

इन सुख को निसबती रूहें ही जानती हैं

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