1⃣निरत की लीला रंगमहल की किस भोम में होती हैं और वाणी के अनुसार किस पक्ष में निरत की हवेली में जाकर लीला करते हैं ?❓
परमधाम के दरवाजे स्वयं धाम धनि ने रूहों के वास्ते खोले हैं --परमधाम के रहस्य जो अभी तक जाहिर नहीं हुए थे वह खुद श्री राज जी जाहिर कर रहे हैं --हक़ श्री राज जी की बेशक इलम की वाणी तारतम वाणी से रूह दृढ हैं कि परमधाम के मध्य में स्थित श्री रंगमहल की चौथी भोम में निरत की अलौकिक लीला होती हैं --रूहों के दिल में शोभा बस सके इसीलिए श्री राज जी ने वर्णन करवाया कि रंगमहल की चौथी भोम में कृष्ण पक्ष में संध्या के समय निरत की लीला का आनंद लेते हैं --परमधाम के दिन रात भी रूहों की इच्छा के आधीन हैं ,जिस समय में जो लीला का सुख रहें लेना चाहती हैं वह पल समय हजूर में हाजिर होता हैं --रूहों की दिल चाहि बादशाहत हैं तो रूह मेरी लीजिए चौसठ घडी श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग निरत की लीला के --अंग अंग उनके सुखों की अनुभूति में थिरक उठे ,आत्मिक सुखों की अनुभूति से इश्क में भीग जाए एहि तो असल धाम की निरत
2⃣खुद को रंगमहल की चौथी भोम में ले कर चलते हैं --खड़े हैं हम 28 थम्भ के चौक में और मुख हैं भीतर हवेलियों की और
अब रूह जाना चाहती हैं निरत की हवेली तो रूह को क्या क्या शोभा को पार करना होगा कि वह निरत की हवेली में पहुँच सके ❓
रूह चौथी भोम में अपनी आत्मिक दृष्टि से पहुँचती हैं -- 28 थम्भ के चौक में --अद्भुत शोभा लिए धाम का चौक --निरत करना हैं तो निरत का समा यही से श्री राज जी दिखाते हैं रूह को --चौक को घेर कर आये थंभों के चित्रामन में निरत की लीला के अनोखे दृश्य ,संगीत के मधुर स्वर और क़दमों की थाप -रूह भी उल्लासित हो कर बढ़ती हैं भीतर की और --निरत के मस्ती में सराबोर चौरस हवेलियों को पार करती हैं जैसे हो तीसरी हवेली के पश्चिम दरवाजे से रूह बाहर निकलती हैं सामने शोभा देखती हैं निरत की हवेली की
3⃣निरत की हवेली की पूर्व दिशा में क्या शोभा आयीं हैं ❓
रूह देखती हैं चौथी भोम की चौथी चौरस हवेली निरत की हवेली के रूह में सुशोभित हैं --हवेली की पूर्व दिशा में मंदिर न आकर थंभों की दो हारें आयीं हैं -सामने- पूर्व दिशा में बीस मंदिर की दहेलान हैं |उस दहेलान में मंदिरों की जगह पर बीस बीस थम्भो की दो हारें हैं |मुख्यदरवाजा भी देहलान में शामिल होने से 21 मंदिर की देहलान हुई
रूह ने देखा हवेली के पूर्व की और छः थंभों की हारों के मध्य सुन्दर देहलान शोभित हैं --छः थंभों के दरम्यान बनी सुन्दर देहलान ,रंगों -नंगों से झिलमिल करती हुई
छः हारें कैसे हुई ?
तीसरी हवेली और चौथी हवेली के मध्य में आने वाली थम्भ की दो हार =2
पूर्व की और मंदिर न आकर थंभों की दो हार आने से 21 मंदिर की देहलान =२
मंदिरो के भीतर की और एक हार थम्भ की और =1
मध्य चबूतरा पर किनार पर थम्भ की हार -1
कुल हुई=6
4⃣ दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशा में क्या शोभा हैं ❓
पूर्व दिशा की देहलान की शोभा रूह ने देखी --अब नजर गयी दक्षिण दिशा की और तो देखा माणिक नंग में जगमगाते मंदिर--मध्य में मुख्य बड़ा दरवाजा और दरवाजे के दोनों और 10 -10 मंदिरों की शोभा
पश्चिम की और भी इसी तरह से 12 मंदिर की दीवार आयीं हैं ,यह मंदिर श्वेत रंग (हीरा ) में शोभायमान हैं
उत्तर दिशा में पुखराज रंग में खुशाल करते मंदिर आएं हैं
5⃣हवेली की चारों दिशाओं में बड़े मुख्यद्वार कितने आएं हैं ❓
हवेली की पूर्व दिशा में नूरमयी देहलान और शेष तीनों दिशाओं में मंदिरों की जगमग करती नूरी दिवार और उनके ठीक मध्य में सुशोभित बड़े दरवाजे --तीन बड़े अति विशाल दरवाजो की नूरी शोभा आयीं हैं
6⃣चारों दिशा की मंदिरों की दीवार के भीतर एक थम्भ की हार घूमी हैं इन हार के भीतर की तरफ ठीक मध्य में क्या शोभा हैं ❓
चरों और की शोभा रूह देखती हैं --इनके भीतर एक मंदिर की दुरी पर एक थम्भ की हार घूमी हैं --थंभों में सुन्दर मेहराबे --इन थंभों के भीतर एक मंदिर की दुरी पर कमर भर ऊंचा चबूतरा आने से दो नूरी गलियों की शोभा नजर आ रही हैं --
ठीक मध्य में कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं जिसके किनार पर भी थंभों की हार आयीं हैं --चारों दिशा से तीन तीन सीढ़ियां उत्तरी हैं घेर कर कठेड़ा आया हैं --चबूतरा पर पश्मी गिलम बिछी हैं और थंभों को भराए के चन्द्रवा की झलकार सुखद प्रतीत हो रही हैं
7⃣धाम की अलौकिक निरत के समय श्री राज श्यामा जी की सोहनी बैठक ,सखियों की बैठक की शोभा कहें ❓
पूर्व की देहलान से हवेली में जब रूह प्रवेश करटी हैं तो चबूतरा के पश्चिम द्वार के दाहिनी और सिंहासन की शोभा आयीं हैं ।श्री राज जी श्री श्यामा जी सिंहासन पर विराजमान होते हैं और सखियाँ चबूतरा पर घेर कर विराजमान होती हैं ।पीऊ की प्यारी सखी नवरंग बाई श्री राज जी श्री श्यामा जी के सामने निरत पेश करती हैं ।कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन इन निरत की हवेली में रोज निरत की लीला होती हैं ।इन समय परमधाम के पच्चीसों पक्षों में निरत की अलौकिक लीला प्रतिबिंबित होती हैं ।
निरत के समय बजने वाले सभी वाद्य यंत्र नूरमयी जवेरों के हैं ।जो अति मधुर स्वरों से सुख प्रदान करते हैं ।यहाँ होने वाली अनुपम निरत का प्रतिबिम्ब परमधाम के सभी पक्षों में पड़ता हैं ।सभी यही महसूस करते हैं कि हम श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग निरत का अखंड सुख ले रहे हैं ।हमारे सामने ही तो युगल स्वरूप विराजमान हैं ।चारों तरफ धाम की अलौकिक निरत की मीठी मीठी झंकार होती हैं ।
परमधाम के दरवाजे स्वयं धाम धनि ने रूहों के वास्ते खोले हैं --परमधाम के रहस्य जो अभी तक जाहिर नहीं हुए थे वह खुद श्री राज जी जाहिर कर रहे हैं --हक़ श्री राज जी की बेशक इलम की वाणी तारतम वाणी से रूह दृढ हैं कि परमधाम के मध्य में स्थित श्री रंगमहल की चौथी भोम में निरत की अलौकिक लीला होती हैं --रूहों के दिल में शोभा बस सके इसीलिए श्री राज जी ने वर्णन करवाया कि रंगमहल की चौथी भोम में कृष्ण पक्ष में संध्या के समय निरत की लीला का आनंद लेते हैं --परमधाम के दिन रात भी रूहों की इच्छा के आधीन हैं ,जिस समय में जो लीला का सुख रहें लेना चाहती हैं वह पल समय हजूर में हाजिर होता हैं --रूहों की दिल चाहि बादशाहत हैं तो रूह मेरी लीजिए चौसठ घडी श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग निरत की लीला के --अंग अंग उनके सुखों की अनुभूति में थिरक उठे ,आत्मिक सुखों की अनुभूति से इश्क में भीग जाए एहि तो असल धाम की निरत
2⃣खुद को रंगमहल की चौथी भोम में ले कर चलते हैं --खड़े हैं हम 28 थम्भ के चौक में और मुख हैं भीतर हवेलियों की और
अब रूह जाना चाहती हैं निरत की हवेली तो रूह को क्या क्या शोभा को पार करना होगा कि वह निरत की हवेली में पहुँच सके ❓
रूह चौथी भोम में अपनी आत्मिक दृष्टि से पहुँचती हैं -- 28 थम्भ के चौक में --अद्भुत शोभा लिए धाम का चौक --निरत करना हैं तो निरत का समा यही से श्री राज जी दिखाते हैं रूह को --चौक को घेर कर आये थंभों के चित्रामन में निरत की लीला के अनोखे दृश्य ,संगीत के मधुर स्वर और क़दमों की थाप -रूह भी उल्लासित हो कर बढ़ती हैं भीतर की और --निरत के मस्ती में सराबोर चौरस हवेलियों को पार करती हैं जैसे हो तीसरी हवेली के पश्चिम दरवाजे से रूह बाहर निकलती हैं सामने शोभा देखती हैं निरत की हवेली की
3⃣निरत की हवेली की पूर्व दिशा में क्या शोभा आयीं हैं ❓
रूह देखती हैं चौथी भोम की चौथी चौरस हवेली निरत की हवेली के रूह में सुशोभित हैं --हवेली की पूर्व दिशा में मंदिर न आकर थंभों की दो हारें आयीं हैं -सामने- पूर्व दिशा में बीस मंदिर की दहेलान हैं |उस दहेलान में मंदिरों की जगह पर बीस बीस थम्भो की दो हारें हैं |मुख्यदरवाजा भी देहलान में शामिल होने से 21 मंदिर की देहलान हुई
रूह ने देखा हवेली के पूर्व की और छः थंभों की हारों के मध्य सुन्दर देहलान शोभित हैं --छः थंभों के दरम्यान बनी सुन्दर देहलान ,रंगों -नंगों से झिलमिल करती हुई
छः हारें कैसे हुई ?
तीसरी हवेली और चौथी हवेली के मध्य में आने वाली थम्भ की दो हार =2
पूर्व की और मंदिर न आकर थंभों की दो हार आने से 21 मंदिर की देहलान =२
मंदिरो के भीतर की और एक हार थम्भ की और =1
मध्य चबूतरा पर किनार पर थम्भ की हार -1
कुल हुई=6
4⃣ दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशा में क्या शोभा हैं ❓
पूर्व दिशा की देहलान की शोभा रूह ने देखी --अब नजर गयी दक्षिण दिशा की और तो देखा माणिक नंग में जगमगाते मंदिर--मध्य में मुख्य बड़ा दरवाजा और दरवाजे के दोनों और 10 -10 मंदिरों की शोभा
पश्चिम की और भी इसी तरह से 12 मंदिर की दीवार आयीं हैं ,यह मंदिर श्वेत रंग (हीरा ) में शोभायमान हैं
उत्तर दिशा में पुखराज रंग में खुशाल करते मंदिर आएं हैं
5⃣हवेली की चारों दिशाओं में बड़े मुख्यद्वार कितने आएं हैं ❓
हवेली की पूर्व दिशा में नूरमयी देहलान और शेष तीनों दिशाओं में मंदिरों की जगमग करती नूरी दिवार और उनके ठीक मध्य में सुशोभित बड़े दरवाजे --तीन बड़े अति विशाल दरवाजो की नूरी शोभा आयीं हैं
6⃣चारों दिशा की मंदिरों की दीवार के भीतर एक थम्भ की हार घूमी हैं इन हार के भीतर की तरफ ठीक मध्य में क्या शोभा हैं ❓
चरों और की शोभा रूह देखती हैं --इनके भीतर एक मंदिर की दुरी पर एक थम्भ की हार घूमी हैं --थंभों में सुन्दर मेहराबे --इन थंभों के भीतर एक मंदिर की दुरी पर कमर भर ऊंचा चबूतरा आने से दो नूरी गलियों की शोभा नजर आ रही हैं --
ठीक मध्य में कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं जिसके किनार पर भी थंभों की हार आयीं हैं --चारों दिशा से तीन तीन सीढ़ियां उत्तरी हैं घेर कर कठेड़ा आया हैं --चबूतरा पर पश्मी गिलम बिछी हैं और थंभों को भराए के चन्द्रवा की झलकार सुखद प्रतीत हो रही हैं
7⃣धाम की अलौकिक निरत के समय श्री राज श्यामा जी की सोहनी बैठक ,सखियों की बैठक की शोभा कहें ❓
पूर्व की देहलान से हवेली में जब रूह प्रवेश करटी हैं तो चबूतरा के पश्चिम द्वार के दाहिनी और सिंहासन की शोभा आयीं हैं ।श्री राज जी श्री श्यामा जी सिंहासन पर विराजमान होते हैं और सखियाँ चबूतरा पर घेर कर विराजमान होती हैं ।पीऊ की प्यारी सखी नवरंग बाई श्री राज जी श्री श्यामा जी के सामने निरत पेश करती हैं ।कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन इन निरत की हवेली में रोज निरत की लीला होती हैं ।इन समय परमधाम के पच्चीसों पक्षों में निरत की अलौकिक लीला प्रतिबिंबित होती हैं ।
निरत के समय बजने वाले सभी वाद्य यंत्र नूरमयी जवेरों के हैं ।जो अति मधुर स्वरों से सुख प्रदान करते हैं ।यहाँ होने वाली अनुपम निरत का प्रतिबिम्ब परमधाम के सभी पक्षों में पड़ता हैं ।सभी यही महसूस करते हैं कि हम श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग निरत का अखंड सुख ले रहे हैं ।हमारे सामने ही तो युगल स्वरूप विराजमान हैं ।चारों तरफ धाम की अलौकिक निरत की मीठी मीठी झंकार होती हैं ।
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