शनिवार, 22 अप्रैल 2017

RANGMAHAL KI PANCHVI BHOM

                        अब कहूं भोंम पांचवीं ,जहां पोढ़न को पधारत |
निरत देख चढ़त है ,पोहोर एक रात बख़त ||1/22 बड़ी विर्त लाल दास जी महाराज

ए जिमी जवेर सब नूर की ,ए वाहिदत सब विस्तार |

जाको कहिए अद्वैत ,सो जानत परवर दिगार || 2/22

 परमधाम की चौथी भोम में नवरंगबाई की अलौकिक निरत हो रही हैं -.हक हादी और रूहें अखंड सुखदायी निरत में झूम रहे हैं | धाम के 25 पक्ष ,उनमे निवास करने वाले पशु पक्षी और खूब खुशालियां भी निरत की मस्ती में डूबे हैं | दिन का अंतिम पहर सिमटने को हैं तो धामधनी श्रीराज जी ने भी निरत की लीला समेत पांचवीं भोम मे जाने का मन में लिया | एकदिली वाहिदत की भूमि में प्रियतम श्रीराज जी के मन मे यह विचार आते ही सबके मन में यह चाह उपजी कि अब पांचवी भोम में पिया श्री राज जी ले चले और खुद को अखंड सुखों के सागर में डुबो देवे|                        


नवरंग बाई और उनके जुथ की सखियों के अलौकिक , अद्भुत निरत से रीझ श्री राज जी उन्हे पान का बीड़ा बड़े ही प्यार से भेंट करते हैं और श्री राज श्री श्यामा जी और सब सखियां — अब चले पांचवी भोम….सीढ़ी वाले मंदिर से मिलावा चौथी भोम से पांचवी भोम में जा रहा हैं | नूरी सीढ़ियाँ पर नरम गिलम बिछी है और दोनो और रत्नो जडित कठेड़े और उन पर बिखरे नूरी फूल उनकी सुगंधी — रूह अपने श्री राज श्यामा जी और प्यारी सखियों संग यह सब शोभा निहारते पांचवी भोम मे जा रही हैं |सीढ़ियां चढ़ते समय अर्शे- मिलावे के भुखनो की झंकार से नवो भोम गूंज रहे हैं |                        



पांचवी भोम में पहुच अर्शे मिलावा उत्तर दिशा के द्वार से बाहिर निकल मध्य गली में आया और पश्चिम की और मुख कर श्री राज श्री श्यामा जी सब सखियों को संग ले रंगपरवाली मंदिर की और प्रस्थान करते हैं |गोल चौरस हवेलियों के फिरावों की शोभा निरखते आगे बढ़ रहे हैं -सुहानी रात का समा… मध्म मध्म रोशनी …संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि …श्री राज जी के साथ झूमते गाते गोल और चौरस हवेलियों के फिरावे पार कर रहे हैं ,रंगों -नंगों और फूलों से सुसज्जित हवेलियों की शोभा श्री राज जी रूहों को दिखा रहे हैं ,आमने सामने जहाँ दो हवेलियों के दरवाजे आते हैं वहां 24  मेहराबों की अद्भुत शोभा रूहें निरखती हैं और जहाँ चार हवेलियों के कोने मिलते हैं वहां भी 24  मेहराबों में बनी सुंदर बादशाही बैठके --कुछ पल श्री राज जी श्री श्यामा जी यहाँ रुक हान्स विलास करते हैं



चौरस -गोल ,चौरस -गोल इस क्रम से हवेलियों के आठ फिरावे रूहें श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग पार करती हैं --आगे हैं नवा फिरावा पंच मोहोलों का --



अलौकिक ,अद्भुत शोभा धाम के इन पंच मोहोलों की --इन हवेलियों में पांच मंदिरों की गजब शोभा आयीं हैं --एक मध्य में मंदिर और चार मंदिर चार दिशाओं में शोभित हैं ,अति सुन्दर इन हवेलियों की शोभा देखते हुए पंच मोहोलों की हार भी पार की तो ठीक
28 मंदिर की नूरमयी फुलवारी की बेशुमार शोभा श्रीराज जी ने रूहों को दिखलाई |दूर तक फैले फूल ही फूल ,उनके नूरी रंग रूह को भा रहे हैं और महक से रूह खुद को भुला रही हैं | नहरे चहेबच्चों की न्यारी शोभा हैं | इन रंगीन नज़ारों को निहारते फुलवारी पार की और सामने तीन चौक की तीन हारे आपस में सटी हुई --



श्री राज जी के बेशक इलम से रूहों ने जाना की यह नव चौक एक सामान शोभा लिए हैं ,इन सबमें 12000  मंदिरों की शोभा हैं ,चौक -हवेलियों ,बड़े दरवाजे सब चौक में एक सामान आये हैं ,ठीक मध्य के चौक की शोभा धाम धनि रूहों को दिखाते हैं क्योंकि मध्य चौक में रंगपरवाली मंदिर की विशेष शोभा आयीं है


अब चलना हैं मध्य चौक में तो कैसे जाए ?
रूहें खड़ी हैं 28  मंदिर की फुलवाड़ी में 



सामने 630  मंदिर की सुखदायी झलकार करती मंदिरों की दीवार 

इन सभी मंदिरों में दरवाजे आये हैं साथ ही साथ बड़े बादशाही शोभा से कोट गुनी शोभा लिए विशाल मुख्य दरवाजे भी हैं --

एक सीधा सरल रास्ता यह हैं कि हम रूहें सामने जो 630  मंदिर की दीवार हैं उनमें जो भी सामने मंदिर हैं उनसे निकल कर चौक के भीतर जाए ,चौक हवेलियों को पार करते हुए एक चौक पार करेंगे तो ठीक मध्य के चौक में पह्नुच जाएंगे जिसकी शोभा श्री राज जी की मेहर से रूहें देखती हैं
अब यहाँ पर एक प्रश्न यह भी रूह के दिल में आता हैं कि सामने जो 630  मंदिर की दीवार आयी हैं वह कैसे ?



तो इसका उत्तर यह हैं कि तीन चौक कि तीन हार ,नव चौक आपस में सटे हुए सुशोभित हैं और एक चौक को देखे तो उसकी चारों  दिशा में 210 -210  मंदिरों की दीवार आयी हैं तो जब तीन चौक आपस में मिलकर शोभित होते हैं तो 630  मंदिर की दीवार नज़रों में आती हैं 210 +210 +210 =630
नव चौक में ठीक मध्य की चौक की शोभा श्री राज जी श्री श्यामा जी की अपार मेहर से रूहें देखती हैं --



चौक की बाहिरी दीवार नूरी शोभा से झिलमिलाते मंदिरों की आयीं हैं --चारों दिशा में 210  -210  मंदिरों की शोभा हैं --इन चौक में बड़े दरवाजों की शोभा आयीं हैं --पूर्व से पश्चिम देखते तो आठ दरवाजों की नौ हारें आयीं हैं इसी प्रकार से उत्तर से दक्षिण दिशा में भी आठ दरवाजों की नौ हारें आयीं हैं--कुल बड़े दरवाजे एक चौक में 144  हुए--

अब इन दरवाजों की शोभा को रूहें देख रही हैं -
यह बड़े द्वार बेहद ही विशाल शोभा को धारण किए हैं --यह दरवाजे एक हवेली से दूसरी हवेली तक ले जाते हैं --बाहिरि दिवार में आएं इन दरवाजों से सीधा हवेली तक पहुँच सकते हैं --यह दरवाजे एक मंदिर के चौड़े और दस मंदिर के लम्बे अद्भुत शोभा लिए हैं --लम्बाई तरफ ग्यारह मेहराब गिनती में शुमार की जाती हैं और चौड़ाई तरफ 12  मेहराब गिनी जाती हैं जो जड़ाफ़े के दोनों और आये त्रिपोलिया  में आती हैं -कुल 23  मेहराब
                        इन दरवाजों से भीतर गए तो रूहें देखती हैं 
नव चौक की नव हारें 
यह चौक बेहद ही प्यारी शोभा लिए आएं हैं ,चौक को घेर कर नूरमयी थंभों की शोभा हैं ,नीचे अति नरम पश्मी गिलम पर सोहनी बैठके और ऊपर थंभों को भराए के चन्द्रवा की शोभा आयी हैं --

एक चौक के भीतर आये ये नव चौक की नव हारें चौक तीन प्रकार की शोभा लिए नजर आते हैं --चौक के चारों किनार वाले चौक दोपुड़ा कहे जाते हैं 


                        इन नक़्शे में चौक के चारों कोनों में आये हरे रंग के निशान दोपुड़ा के चौक के हैं



दोपुड़ा के चौक में रूह खुद को महसूस करती हैं --चौक में आएं नूरी सिंहासन कुर्सियों पर सखियों के बैठकर चौक की अलौकिक शोभा के सुख लेती हैं --चारों और घेर  कर आये नूरी थंभों की शोभा ,उनमे आयी अति सुन्दर मेहराबें - दोपुड़ा के चौक की दो दिशाओं में मंदिरों की कतार नजर आ रही हैं जो नव चौक में से एक मध्य चौक की बाहिरी दीवारे हैं और दो दिशा में ठीक मध्य जुड़ाफे के मंदिरों की शोभा नजर आ रही हैं ,दो मंदिरों की शोभा जो आपस में सटे हुए हैं --जुड़ाफे के मंदिरों के दोनों और त्रिपोलिये की शोभा हैं दो थम्भ की हार तीन गालियां तो एहि हैं चौक के दो रास्ते                        


और चौक के भीतरी कोने पर हवेली का कोना लगा हुआ हैं
अभी देखा की चौक की दो दिशा में बाहिरी दीवार के मंदिरों की कतारें हैं --तो चौक के कोना से पहले बड़े दरवाजे तक दोपुड़ा के चौक की हद हैं --तो पहला दरवाजा 17  मंदिर की हद में आया हैं --तो इन दो दिशा में आएं यह मंदिर हुए 16 +16 =32  



कोने का मंदिर गिनती में नहीं लिया जाता क्योंकि यह गुर्ज की शोभा लिए हैं 
जुड़ाफे के मंदिर दो दिशाओं में लगे हैं ..आठ की दो हार --कुल सोलह 
दो दिशाओं के हुए 16 +16 =32 

हवेली का कोना देखे तो कोना दोनों और आठ आठ मंदिर का हैं सोलह हुए देखन के पर गिनती में 15  ही हुए क्योंकि कोने का मंदिर दोनों और गिनती  में आता हैं 

कुल हुए मंदिर 
32 +32 +15=79
अब शोभा देखनी हैं रूहों को --त्रिपुड़ा के चौक की 
त्रिपुड़ा का चौक जिनके तीन रास्ता हैं
इन नक़्शे में जो PURPLE रंग में निशान हैं चारों दिशा में बाहिरी किनार पर लगते हुए वह त्रिपुड़ा के निशान हैं


इन नक़्शे में तीन की तीन हार चौक दिखा रखे हैं ठीक मध्य चौक की और नजर करे जिसमे हरे रंग में चौरस निशान हैं यह नव की नव हार चौक हैं जिनके चारों कोनों में आये दोपुड़ा की शोभा अभी देखी--चारों कोनों के दोपुड़े  के चौक के बाद चारों दिशा में चौक की बाहिरी मंदिरों की भीतर की और लगते हुए सात -सात चौक आयें हैं तो चारों दिशा के 28  त्रिपूड़े हुए
इसमें PURPLE  रंग में चारों और सात की जगह एक एक चौक को समझाने के लिए दर्शाया गया हैं

अब एक त्रिपुड़े के चौक में जाकर रूह देखती हैं शोभा --


चौक की एक दिशा में बाहिरी दीवार मंदिरो की शोभा हैं --बड़े दरवाजे से बड़े दरवाजे तक हद हैं तो 24  मंदिर इस दिशा के हुए 

तीन दिशा में जुड़ाफे के मंदिरों की शोभा और उनके दोनों और त्रिपोलिये शोभित हैं तो इन तीन रास्तो के मंदिर हुए 

एक जुड़ाफे के 16  तो तीन के हुए 48 

दो हवेलियों के कोने चौक से लग रहे हैं एक कोने के 15  मंदिर होते हैं तो दो के हुए 30  

टोटल एक त्रिपुड़ा के मंदिर --24 +48 +30 =102 

मंदिरों की अपार शोभा --चौक को घेर कर आये थम्भ ,जुड़ाफे ले लगते मंदिर और तीन नूरी रास्ते और हवेलियों के कोने लगते कितने सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं
चारों किनार के चौकों की शोभा देखी अब देखी अब मध्य में सात की सात हार चौक बाकी रहे यह चौपुड़े के चौक हैं इनके चार रास्ता हैं
गुलाबी रंग में एक चौक का निशान ऐसे सात की सात हार चौपुड़े के चौक हैं                        



इन चौक की शोभा रूह देखती हैं --चौक के चारों दिशा में जुड़ाफे के मंदिर ,रास्तों की अपार शोभा हैं और चारों कोनों में हवेली के कोने लग रहे हैं                        
मंदिरों की गिनती देखिए तो धनि की मेहर से कितनी आसान 

चारों कोनों के 15 +15 +15 +15 =60  मंदिर हुए 
चारों और जुड़ाफे के  16 +16 +16 +16 =64  मंदिर हुए 
कुल हुए 60 +64 =124
नव की नव हार चौकों की शोभा देखी 
ठीक मध्य के चौक में रंगपरवाली मंदिर की शोभा आयीं हैं


                        मध्य के चौक  में दो मदिर का लंबा चौड़ा रंगपरवाली मंदिर है जिसमें चारों दिशा में दरवाजे हैं | इन्ही रंगपरवाली मंदिर में श्री राज श्री ठकुरानी पोढ़ते हैं | रंगपरवाली मंदिर में बहुत ही सुखदायक सेज्या हैं , सेज के आगे नूर की चौकी हैं , जिन पर मुबारक पाँव रख युगल स्वरूप सेज्या पर विराजते हैं |रूहें जैसे ही उनके कदमों में सिजदा कर अपना मुख ऊपर करती हैं तो खुद को अपने मंदिर में सुख सेज्या पर श्री राज जी के सन्मुख पाती हैं |इन सेज के बेसुमार सुख हैं धाम धनी उनके सभी मनोरथ पूरण करते हैं |

पीले रंग में हवेली के निशान 👆👆



इन नव चौकी की नव हारों के मध्य आठ की आठ हार हवेलियां आयी हैं ,इन हवेलियों में घेर कर 44  मंदिर आयें हैं जिनमें एक मंदिर की जगह बड़ा दरवाजा आया हैं 
मंदिरों के भीतर एक गली हैं और गली के भीतर कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं जिसकी चारों दिशा में दरवाजे हैं और घेर कर आये थंभों के कठेड़ा आया हैं                        
दोपुड़े ,त्रिपुड़े ,चौपड़े ,हवेलियों के सब मंदिर मिलाकर 12000  होते हैं 

4 दोपुड़े के 79 मंदिर =316 
28  त्रिपुड़े के 102 मंदिर =2856 
49  चौपड़े के 124 मंदिर  =6076 
64  हवेलियों के 43  मंदिर =2752 

यह सब कुल 12000  मंदिर हुए

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