सोमवार, 10 अप्रैल 2017

नामें जाको नवरंग ,ताकि निरत कहूं क्यों कर

ब्रह्म मुनि श्री लाल दास जी महाराज श्री कृत परमधाम की बड़ी वृति में रंगमहल की चौथी भोम का विहंगम वर्णन  हम रूहों के वास्ते हुआ हैं ।रूहों को आह्वान ,आइये अपने निजघर परमधाम और देखे अपने घर के सुख 

 आप श्री युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी के साथ निश दिन ,चौसठ घडी अखंड सुखों में रमण  करते हो ,उन सुखों की फेर फेर धनी याद दिला रहे हैं 

अब कहूं भोम चौथी की ,जहां निरत होत पंदरा दिन ।
हक़ हादी रुहें देखन की ,जो ठौर बका चेतन ॥प्रकरण २० चौपाई १

ब्रह्म मुनि श्री लाल दास जी महाराज के धाम ह्रदय में विराजमान श्री महामति जी रूहों से कह रहे हैं कि अब मैं श्री रंगमहल की चौथी भूमिका का वर्णन कर रहे हैं ।दिव्य परमधाम में स्थित अखंड निजघर की चौथी भूमिका में कृष्ण पक्ष के पद्रह दिन निरत की अलौकिक लीलाएं होती हैं ।धाम की निरत कमाल की है जिसका आनंद श्री राज जी श्री श्यामा जी और रुहें लेते हैं ।

दिव्य परमधाम की नूरी धरती एक हीरा की हैं ।चेतन दिव्य प्रकाश से भरपूर इन नूरी हीरा की जोत आसमान में नहीं समाती ।वहां के एक कण की रौशनी का वर्णन नहीं हो सकता तो परमधाम में दिव्य जवेरहातों का वर्णन किन जुबान से हो ?दिव्य परमधाम की शोभा अपार हैं ,धाम धनी श्री राज जी मेहर करके शोभा शब्दों में ले आये ताकि उनकी रुहें सुख पा सके ।

अब हम श्री रंगमहल की चौथी भोम का वर्णन कर रहे हैं ।श्री रंगमहल की चौथी भोम में अपनी निज नजर दिल में दृढ विश्वास कर ले कर आओ और देखों कि चौथी भोम की शोभा --

चौथी भोम में बाहिरी किनार पर 6000  -6000  मंदिरों की नूर से जगमगाती हारों की शोभा देखिए ।इन रूहों  में आप युगल स्वरूप के साथ रमण कर सुख लेते हो ।मंदिरों के भीतरी तरफ हवेलियों के फिरावे अलौकिक शोभा लिए आएं हैं ।पहले फिरावे की शोभा देखिए --

चौरस हवेली का रमणीय फिरावा अत्यधिक शोभा से युक्त हैं  ।धाम दरवाजे के ठीक सामने 28  थम्भ के चौक की शोभा देखते हुए तीन हवेलियों को पार करते ही देखिए सामने निरत की हवेली हैं ।



चौथी भोम की चौथी हवेली निरत की हवेली हैं ।अद्भुत अलौकिक शोभा से लबरेज इन हवेली के सामने आते ही मानो आपके कदम उल्लास के साथ थिरकने लगे ।

हवेली की तीन  दिशा में मुख्य दरवाजों की शोभा आयीं हैं ।बादशाही शोभा से युक्त इन दरवाजों के दोनों और कमर भर ऊंचे चबूतरे आएं हैं ।चारों दिशाओं में बड़े दरवाजों की शोभा आनी थी पर पूर्व दिशा में 21  मंदिर की देहलान आयीं हैं ।तीसरी हवेली के पश्चिम दरवाजे से बाहर निकलते ही सामने नूरी देहलान की शोभा आयीं हैं ।पूर्व की और तीसरी हवेली से चौथी हवेली के मध्य आएं कमर भर ऊंचे चबूतरा तक मंदिर -मंदिर के अंतर पर छः हार थंभों की शोभा ले रही हैं जिनसे देहलान की शोभा और भी बढ़ गयी हैं ।पूर्व दिशा में रत्न जडित नीले रंग के स्तंभ (थम्भ) प्रकाशमान हैं |जहाँ जिस रंग की दिवाल हैं वहाँ उसी रंग के थम्भ हैं 

(तीसरी हवेली और चौथी हवेली के मध्य जो दो थम्भ की हार आनी थी वह थम्भ की दो हार ,थम्भ की दो हार पूर्व की और जो मंदिर आने थे उन स्थान पर आयीं हैं ,एक हार थंभों के हवेली के भीतर और थम्भ की एक हार चबूतरा की किनार पर इसतरह से छः हार थंभों की )
अति सुन्दर नूरमयी देहलान की शोभा को देखते हुए हवेली के भीतर आइये और शोभा को महसूस कीजिए ।

बायीं हाथ की और अर्थात दक्षिण दिशा में ठीक मध्य भाग में बेहद ही विशाल ,कोट गुनी शोभा धारण किए बड़ा दरवाजा आया हैं ।दरवाजे के दाएं -बाएं ,पूर्व पश्चिम में दस दस मंदिरों की अपार शोभा आयीं हैं ।यह मंदिर माणिक रंग में सुशोभित हैं ।


अब दायीं और ,उत्तर दिशा में देखे तो ठीक मध्य में बड़े दरवाजे की शोभा हैं और दरवाजे के पूर्व पश्चिम की और दस -दस मंदिर पुखराज रंग में शोभायमान हैं और पश्चिम की दीवार श्वेत रंग में महक रही हैं ।

पूर्व में देहलान और तीन दिशाओं में मंदिरों की दीवार के भीतर की और एक मंदिर की दुरी पर थम्भ की एक हार घेर कर आयीं हैं । थम्भ की इन हार के भीतर एक मंदिर के अंतर पर कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं ।चबूतरा की चारों किनार पर थंभों की शोभा आयीं हैं ।चारों दिशा से कमर भर की सीढ़ियां उतरी हैं शेष जगह नूरी कठेड़े की शोभा आयीं हैं ।चबूतरा पर पश्मी गिलम बिछी हैं और छत पर चन्द्रवा की शोभा हैं ।जिस दिशा में जो रंग आएं हैं उन्ही रंगों में थंभों की शोभा हैं ।

चबूतरा की चारों दिशा में आएं द्वारों की शोभा देखिए ।देखिए पश्चिम दिशा में श्वेत रंग महकता हुआ हैं वहां पश्चिम के द्वार से लगता हुआ अति नूरमयी सिंहासन हैं जिसकी अनुपम शोभा देख देख रुहें खुश होती हैं ।

चारों तरफ चार द्वार हैं ,जहां सामने सेत दिवाल ।
द्वार लगते सिंहासन ,देख मोमिन होत खुशाल ॥55॥

देहलान से जब  पैठिए ,तरफ दाहिने सिंहासन ।
हक़ हादी रुहें बैठत ,गिरद फिरती रुहें मोमिन ॥56॥


पूर्व की देहलान से हवेली में जब प्रवेश करते हैं तो चबूतरा के पश्चिम द्वार के दाहिनी और सिंहासन की शोभा आयीं हैं ।श्री राज जी श्री श्यामा जी सिंहासन पर विराजमान होते हैं और सखियाँ चबूतरा पर घेर कर विराजमान होती हैं ।पीऊ की प्यारी सखी नवरंग बाई श्री राज जी श्री श्यामा जी के सामने निरत पेश करती हैं ।कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन इन निरत की हवेली में रोज निरत की लीला होती हैं ।इन समय परमधाम के पच्चीसों पक्षों में निरत की अलौकिक लीला प्रतिबिंबित होती हैं ।
मानो निरत सबो ठौर ,भासत नूर झलकार ।
एक सुख शब्दातीत का ,जाने परवरदिगार ॥60॥

निरत के समय बजने वाले सभी वाद्य यंत्र नूरमयी जवेरों के हैं ।जो अति मधुर स्वरों से सुख प्रदान करते हैं ।यहाँ होने वाली अनुपम निरत का प्रतिबिम्ब परमधाम के सभी पक्षों में पड़ता हैं ।सभी यही महसूस करते हैं कि हम श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग निरत का अखंड सुख ले रहे हैं ।हमारे सामने ही तो युगल स्वरूप विराजमान हैं ।चारों तरफ धाम की अलौकिक निरत की मीठी मीठी झंकार होती हैं ।

मेहबूब को रिझावने ,अनेक कला साधत ।
और नजर ना कर सके ,बंध ऐसे ही बांधत ॥

श्री महामति जी कहते हैं कि इन निरत का आनंद कौन ले सकता हैं  ।जिसकी आत्म दृष्टि खुली हो ,रूह कि आँखों देखिए ।

नामें जाको नवरंग ,ताकि निरत कहूं क्यों कर ।

अनेक गुन रंग ल्यावहीं ,नए नए दिल धर ॥

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