निजनाम श्रीकृस्नजी, अनादि अक्षरातीत ।
सो तो अब जाहेर भए, सब विध वतन सहित ।। १ ।।३७ प्रकाश हिंदुस्तानी
मेरी वास्तविक पहचान (निजनाम)यह है कि मैं क्षर ,अक्षर से परे रहने वाला वह अनादि उत्तम पुरुष अक्षरातीत हूँ ,जिसने इस आत्म जागनी लीला से पूर्व श्री कृष्ण नाम से ब्रज एवम् रास मंडल में ब्रह्म लीला की है !मेरी इन गुझ लीलाओं के भेद ,एवम् हमारे मूल वतन सत,चित्त,आनंद ,अनन्त,अद्वैत परमधाम की हर प्रकार की हर प्रकार की ज्ञान रूपी निधि सहित मैं अब इस संसार में जाहिर हो रहा हूँ !
श्री श्यामाजी जी वर सत्य हैं ,सदा सत सुख के दातार ।
विनती एक जो वल्लभा ,मो अंगना की अविधार ॥2
श्री इंद्रावती जी कहती हैं कि श्री श्यामा जी के प्रियतम ,धनी आप अक्षरातीत श्री राज जी सत्य हैं ,सदा सत्य सुखों को देने वाले हैं ,अखंड सुख के मालिक श्री राज जी सदैव रूहों को सत्य सुखों की अनुभूति कराते हैं ,परमधाम के पच्चीस पक्षों में रमण के सुख हो या सिंगार के सुख ..श्री राज जी तो सदैव रूहों पर मेहेरबान रहते हैं -
हे मेरे धाम धनी ,मेरे प्रियतम आपसे विनती हैं मुझ अंगना को स्वीकार कीजिये --मुझे अपनी मेहरों की छाँव तले लीजिए
वाणी मेरे पिऊ की ,न्यारी जो संसार ।
निराकार के पार थे ,तीन पार के भी पार ॥3
वाणी मेरे प्रीतम की इन संसार से न्यारी हैं --मेरे धाम धनी की बेशक वाणी संसार के अन्य सभी ज्ञान से अलग हैं ,यह बेशक इल्म हैं ,जागृत बुध्दि का ज्ञान हैं जो क्षर ब्रह्माण्ड के पार जो अक्षर ब्रह्माण्ड हैं ..उनसे भी परे जो दिव्य ,अखंड ,अनादि धाम ,परमधाम हैं ,उन धाम की सम्पूर्ण पहचान कराता हैं ..प्रियतम पारब्रह्म श्री राज -श्री श्यामा जी के स्वरूप की सम्पूर्ण पहचान कराता हैं यह बेशक इल्म
अंग उत्कंठा उपजी ,मेरे करना एह विचार ।
ए सत वानी मथ के ,लेऊं जो इनका सार ॥४
हे मेरे धाम धनी ,आपकी मेहर से आपके वचनों को सुनकर दिल में यह इच्छा उपजी है कि मुझे आपकी कही वाणी पर विचार करना हैं ,गहन चिंतन मनन करना हैं --इन सत्य वाणी को अच्छे से चिंतन करके बेशक वाणी के सार तत्व को ग्रहण करना हैं
इन सार में कई सत्य सुख ,सो मैं निरने करूँ निरधार ।
एक सुख देऊं ब्रह्म सृष्ट को ,तो मैं अंगना नार ॥५
हे मेरे धाम धनी ,आपकी मेहर से आपके वचनों को सुनकर दिल में यह इच्छा उपजी है कि मुझे आपकी कही वाणी पर विचार करना हैं ,गहन चिंतन मनन करना हैं --इन सत्य वाणी को अच्छे से चिंतन करके बेशक वाणी के सार तत्व को ग्रहण करना हैं
जब ए सुख अंग में आवहीं ,तब छूट जाए विकार ।
आयो आनंद अखंड घर को ,श्री अक्षरातीत भरतार ॥६
जब अपनी ,अपने घर ,अपने धाम धनी की पहचान हो जाती हैं तब ह्रदय में दिव्य परमधाम के अखंड सुख प्रवाहित होने लगते हैं ,परमधाम के अखंड सुखों की बरखा से सभी मायावी विकार मिट जाते हैं -
हमारी आत्मा के आधार ,हमारे भरतार ,अक्षरातीत श्री राज जी परमधाम के सभी सुख ,सभी न्यामते आत्मा के धाम ह्रदय में देते हैं
अब लीला हम जाहेर करें, ज्यों सुख सैयां हिरदे धरें ।
पीछे सुख होसी सबन, पसरसी चौदे भवन ।। १ ।।
श्री महामति के धाम ह्रदय में विराजमान होकर स्वयं श्री धाम धनि अपने हुकम से कहलवा रहे हैं कि अब हम परमधाम की आनंदमयी लीलाए जाहिर कर रहे हैं -दिव्य परमधाम युगल स्वरूप कि पहचान जाहिर कर रहे हैं जिसको ह्रदय में धारण करने से मोमिनों को अखंड सुखों की अनुभूति होगी ।पहला सुख मोमिनों का है उसके बाद तो सभी संसार के सभी लोग सुख प्राप्त करेंगे -यह बेशक इलम चौदह लोक में फैल जायेगा ।
अब सुनियो ब्रह्मसृष्ट विचार, जो कोई निज वतनी सिरदार ।
अपने धनी श्री स्यामा स्याम, अपना बासा है निजधाम ।। २ ।।
🌹अब सुनियो ब्रह्मसृष्ट विचार🌹,
श्री महामति जी आह्वान कर रहे हैं मोमिन को
सुनिए ब्रह्म सृष्टियों दिल से
🌹जो कोई निज वतनी सिरदार ।🌹
मोमिन जिनका मूल परमधाम से नाता हैं ,जो निज वतन ,दिव्य परमधाम की निस्बती अंगना हैं
🌹अपने धनी श्री स्यामा स्याम🌹,
ऐसे निसबती मेरे वतन की सखियों ,सुनिए ,अपने धाम धनि अक्षरातीत ,पारब्रह्म श्री युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी हैं
🌹अपना बासा है निजधाम ।। २ ।।🌹
और अपना निजवतन दिव्य परमधाम हैं
सोई अखंड अक्षरातीत घर, नित बैकुंठ मिने अक्षर ।
अब ए गुझ करूं प्रकास, ब्रह्मानंद ब्रह्मसृष्टि विलास ।। ३ ।।
🌹सोई अखंड अक्षरातीत घर,🌹
अपना घर जो परमधाम हैं वहीं अखंड घर हैं ।अपना घर क्षर अक्षर के पार परमधाम हैं ।मोमिनों का मूल मुकाम वहीं हैं
🌹नित बैकुंठ मिने अक्षर ।🌹
अक्षर ब्रह्म एक पल में कोटो ब्रह्माण्ड बनाता हैं और पल में लय कर देता हैं ,अक्षर ब्रह्म की यह लीला सबलिक और अव्याकृत में होती हैं एहि नित्य बैकुंठ हैं
🌹अब ए गुझ करूं प्रकास,🌹
हे मेरे परमधाम के संगियों ,अब मैं एहि छिपे रहस्य जाहिर कर रही हूँ
🌹ब्रह्मानंद ब्रह्मसृष्टि विलास ।। ३ ।।🌹
गुझ रहस्य जो आज दिन तक छिपे हुए थे अब स्वयं श्री राज जी अपने हुकम से जाहिर कर रहे हैं कि पारब्रह्म अपनी अंगनाओं के साथ किस तरह से प्रेममयी लीलाएं करते हैं
ए बानी चित दे सुनियो साथ, कृपा कर कहें प्राणनाथ ।
ए किव कर जिन जानो मन, श्रीधनीजी ल्याए धामथें वचन ।। ४ ।।
🍁ए बानी चित दे सुनियो साथ,🍁
महामति जी फेर फेर सुन्दर साथ को आह्वान कर रहे हैं कि हे मेरे साथ जी ,इन वाणी को चित्त देकर के सुनना ,मन चित्त ,बुद्धि को एक चित्त होक दिल दे के ग्रहण करना
🍁कृपा कर कहें प्राणनाथ ।🍁
अपने प्राणवल्लभ ,आत्मा के आधार श्री प्राणनाथ जी ने हम पर अपार मेहर करके यह वचन कहे हैं
🍁ए किव कर जिन जानो मन,🍁
ऐसा मत समझाना कि यह कविता हैं
🍁श्रीधनीजी ल्याए धामथें वचन ।। ४ ।।🍁
आप श्री धाम के दुलहा ,श्री धनि जी यह वचन परमधाम से आपके वास्ते ल्याएं हैं
🌹सो केहेती हूं प्रगट कर, पट टालूं आडा अंतर 🌹।
🌹तेज तारतम जोत प्रकास, करूं अंधेरी सबको नास ।। ५ ।।🌹
💜सो केहेती हूं प्रगट कर,💜
श्री महामति जी कह रही हैं कि मेरे धाम धनी जी जो वचन धाम से ल्याएं हैं उन्हीं वचनों को प्रगट करके कहती हूँ ,उनका खुलासा करती हूँ
💜पट टालूं आडा अंतर ।💜
तारतम वाणी के बेशक वचनों को प्रगट कर आपकी अज्ञानता को दूर करती हूँ
💜तेज तारतम जोत प्रकास,💜
बेशक इल्म ,जागृत बुद्धि के ज्ञान तारतम ज्ञान की अखंड ज्योति के तेज में प्रकाश में
💜करूं अंधेरी सबको नास ।। ५ ।।💜
सबके दिलों में व्याप्त अंधकार को नष्ट कर दूंगी
🍁धाम धनी की जो वाणी हम रूहों पर अपार मेहर करके धाम से लेकर अवतरित हुए हैं उन वचनों को प्रगट कर के ,उनका स्पष्टीकरण करके ,बेशक इलम तारतम वाणी के जोत के प्रकाश में सबके दिलों के अंधकार रूपी अज्ञान को समाप्त करके अखंड ज्योति के दीप जला दूंगी ..इन वाणी की बरकत से मोमिन को परमधाम की सम्पूर्ण पहचान हो सकेगी 🍁
🌹अब खेल उपजे के कहूं कारन, ए दोऊ इछा भई उतपन ।🌹
🌹बिना कारन कारज नहीं होए, सो कहूं याके कारन दोए ।। ६ ।।🌹🌹
🍀अब खेल उपजे के कहूं कारन,☘
अब मैं (महामति जी )खेल बनने के कारण बताती हूँ
ए☘ दोऊ इछा भई उतपन ।☘
ये सृष्टि दो प्रकार की इच्छा से उतपन्न हुई हैं
☘बिना कारन कारज नहीं होए☘,
बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता
☘सो कहूं याके कारन दोए ।। ६ ।।☘
तो सृष्टि रचना के दोनों कारणों को अब मैं आपके समक्ष कहती हूँ
💜श्री महामति जी रूहों से कह रही हैं आपके दिल में एक प्रश्न होगा की यह सृष्टि रचना क्यों हुई ? खेल बनने का कारण क्या हैं ?
तो यह सृष्टि की रचना दो की इच्छा से हुई हैं --ब्रह्म सृष्टि और अक्षरब्रह्म इन दोनों की इच्छा के कारण यह खेल बना हैं --साथ जी यह तो निश्चित हैं कि बिना कारण कोई कारज नहीं होता हैं💜
🌹ए उपजाई हमारे धनी, सो तो बातें हैं अति घनी ।🌹
🌹नेक तामें करूं रोसन, संसे भान देऊं सबन ।। ૭ ।।🌹🌹
🌻ए उपजाई हमारे धनी,🌻
खेल देखने की इच्छा हमारे धनी ने उपजाई
🌻 सो तो बातें हैं अति घनी ।🌻
यह बहुत गहरा रहस्य हैं
🌻नेक तामें करूं रोसन,🌻
जिसमें मैं कुछ प्रगट करती हूँ
🌻संसे भान देऊं सबन ।। ૭ ।।🌻🌻
जिनसे सबके ह्रदय के संशय मिट जाए
☘खेल देखने की इच्छा हमारे दिलों में उत्पन्न हुई क्योंकि स्वयं श्री राज जी ने इच्छा उपजाई ।यह बहुत ही गहरी बात हैं कि धाम धनी ने ऐसा क्यों किया ।अब मैं (श्री महामति जी ) कुछ रहस्यों को स्पष्ट करती हूँ ताकि सबके दिलों के संशय मिट जाए ।☘
अब सुनियो मूल वचन प्रकार, जब नहीं उपज्यो मोह अहंकार ।
नाहीं निराकार नाहीं सुन, ना निरगुन ना निरंजन ।। ८ ।।🙏
⭐अब सुनियो मूल वचन प्रकार, ⭐
हे सुन्दर साथ जी ,अब आप सृष्टि रचना से पहले की परमधाम की लीलाओं को ध्यानपूर्वक सुनिए
⭐जब नहीं उपज्यो मोह अहंकार ।⭐
यह लीला उस समय कि हैं जब मोह सागर के ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति नहीं हुई थी
🌟नाहीं निराकार नाहीं सुन,🌟
तब न निराकार आस्तित्व में था न ही शून्य
🌟ना निरगुन ना निरंजन ।। ८ ।।🌟
ना तो निर्गुण था ना निरंजन
🍃ना ईस्वर ना मूल प्रकृति, ता दिनकी कहूं आपाबीती ।🍃
🍃निज लीला ब्रह्म बाल चरित, जाकी इछा मूल प्रकृत ।। ९ ।।🍃🍃
🌹ना ईस्वर ना मूल प्रकृति,🌹
ना तो तब आदिनारायण थे ना ही उनकी माया (संसार )था
🌹ता दिनकी कहूं आपाबीती ।🌹
अब मैं (श्री महामति जी )तब की लीला का वर्णन करती हूँ
🌹निज लीला ब्रह्म बाल चरित,🌹
अक्षर ब्रह्म की लीला उस बालक के सामान हैं जो ब्रह्नांड रूपी खिलौने बना कर पल में लय कर देता हैं
🌹जाकी इछा मूल प्रकृत ।। ९ ।।🌹
अक्षर ब्रह्म के अंदर जो सृष्टि रचने की इच्छा हैं वही तो मूल प्रकृति हैं
🍁श्री महामति जी रूहों से कह रहे हैं कि खेल देखने की इच्छा धाम धनी ने स्वयं उपजाई --यह बहुत ही गहन विषय हैं जिसके बारे में मैं आपको कहता हूँ --वो पल ,वो समय जब सृष्टि की रचना अर्थात खेल नहीं बना था उससे पहले की बाते 🍁
🍁यह लीला उस समय कि हैं जब मोह सागर के ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति नहीं हुई थी--निराकार ,निरंजन ,शून्य ,निर्गुण कुछ भी नहीं था -ना ही ईश्वर थे ना ही मूल प्रकृति थी --उस समय की घटना सुनिये-पारब्रह्म श्री राज जी का बाल स्वरूप अक्षर ब्रह्म पल में कई ब्रह्माण्ड बना कर एक पल में ही लय कर देता हैं इसी को मूल प्रकृति कहा हैं --ब्रह्माण्ड रचने की उनकी इच्छा ही मूल प्रकृति हैं🍁
🌹नैन की पाओ पलमें इसारत, कै कोट ब्रह्मांड उपजत खपत ।🌹
🌹इत खेल पैदा इन रवेस, त्रैलोकी ब्रह्मा विस्नु महेस ।। १० ।।🌹🌹
🌹नैन की पाओ पलमें इसारत,🍃
इस मूल प्रकृति द्वारा ही अक्षर भगवान् पाव पलक अर्थात नैनों के संकेत मात्र से ही
🌹 कै कोट ब्रह्मांड उपजत खपत ।🍃
एक पल में कई कोट ब्रह्मांडों का सर्जन करते हैं और पल भर में लय कर देते हैं
🌹इत खेल पैदा इन रवेस,🍃
इस प्रकार से अक्षर ब्रह्म खेल बनाते रहते हैं
🌹त्रैलोकी ब्रह्मा विस्नु महेस ।। १० ।।🍃
ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश के वर्चस्व वाले ब्रह्मांडो कि उत्तपत्ति होती रहती हैं और पल में लय को प्राप्त होती हैं
🍃कै विध खेले यों प्रकृत, आप अपनी इछासों खेलत ।🍃
🍃या समे श्री बैकुंठनाथ, इछा दरसन करने साथ ।। ११ ।।🍃🍃
🌹कै विध खेले यों प्रकृत, आप अपनी इछासों खेलत ।🌹
इस प्रकार से अक्षर ब्रह्म अपनी पृकृति के द्वारा करोडो ब्रह्मांडों को उतपन्न कर पल में प्रलय करते हैं --आदि कई प्रकार की क्रीड़ाएं अपनी इच्छा से करते हैं
🌹या समे श्री बैकुंठनाथ, इछा दरसन करने साथ ।। ११ ।।🌹
एक समय अक्षर ब्रह्म के मन में यह इच्छा उतपन्न हुई कि मैं ब्रह्म सृष्टियों के दर्शन करूँ
नहीं तो वह हमेशा बनने मिटाने की स्वाभविक इच्छा में मगन रहते थे
🍃अक्षर मन उपजी ए आस, देखों धनीजी को प्रेम विलास ।🍃
🍃तब सखियों मन उपजी एह, खेल देखें अक्षर का जेह ।। १२ ।।🍃
🌹अक्षर मन उपजी ए आस,🌹
धाम धनि श्री राज जी की प्रेरणा से अक्षर ब्रह्म के मन में यह इच्छा हुई
🌹देखों धनीजी को प्रेम विलास ।🌹
कि पारब्रह्म अपनी अंगनाओं के साथ कैसे प्रेममयी लीलाएं करते हैं उन्हें मैं भी देखूं
🌹तब सखियों मन उपजी एह,🌹
इसी प्रकार से सखियों के मन में इच्छा उपजी कि
🌹खेल देखें अक्षर का जेह ।। १२ ।।🌹
कि अक्षर ब्रह्म जो करोडो ब्रह्मांडों की उतपत्ति करते हैं पल में लय कर देते हैं उनकी इन क्रीड़ा को मैं भी देखु
☘श्री राज जी ने मेहर का दरिया दिल में लिया तो रूहों के दिल में यह आस उपजी कि हम अक्षर ब्रह्म का खेल देखे
जब श्री राज जी ने दिल में लिया कि अपनी अंगनाओं और अक्षर ब्रह्म को अपने पूर्ण स्वरूप की पहचान दूँ यही कारण हैं महाकारण हैं कि अक्षर ब्रह्म ओर सखियों के दिल में एक दूसरे का खेल देखन की इच्छा उपजी
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