शनिवार, 11 मार्च 2017

sagar ki or

प्रणाम जी 

आप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग रूह चलती हैं बड़ी रांग की और --बेहद भूमि की और से धाम धनि शोभा दिखाते हैं रूहों --सर्वप्रथम रूह ने देखे --घेर कर वनों की अलौकिक अद्भुत शोभा  --आसमान को छूते वन --






सर्व रस सागर से भीतर जाना चाहते हैं तो सामने हैं वन ..12000  की 12000  हारों का समूह --सामने आये वन की रोंस जगमगा उठी ..मानो पुकार रही हो ..पिया मेरे इधर से चलिये सागर की और --मेहरों के सागर आप पिया चलते हैं रोंस की और --विशालकाय नूरी हाथियों पर असवार हम --नूरी रोंस --

रोंस पर आते हैं फूलों के नूरी चंदवा का उल्लासित होकर फूलों की बरखा करना ,पशु पक्षियों के जुथ्थ के जुत्थ उमड़ पढ़े प्रीतम के दीदार की आस ले --पिऊ-पिऊ,तुहि -तुहि की मधुर गुंजार से आलम --

करतब कर पशु पक्षियों का प्रीतम को रिझाना --शोभा देखते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं --दोनों और वनों की शोभा --वृक्षों की प्यारी सी दिल को चुने वाली शोभा --नहरों की कलकल और संगीत लहरी के साथ उछलते रंग बिरंगी किरणों से प्रतिबिंबित होते फव्वारे --





रोंस की शोभा ,वन की शोभा में रमन करते हुए आन पहुंचे चांदनी चौक --विशाल चौक --चौक में बिखरी हीरा ,मोती ,माणिक के माफक बिखरी रेती --जिनकी जो आसमान तक जा रही हैं --श्री राज श्यामा जी हाथी से उतरे ,सब सखियाँ भी ,उतरती हैं उतरते समय आभूषणों की झंकार से समा सुहाना हो गया --मंधुर स्वर लहरी में दिल निरत करने लगा --धाम के नूरी हाथी अपने स्थान पर लोट गए और हम कुछ पल यही रुकना चाहते हैं --चौक के आनद लेना चाहते हैं --

मध्य नग्न की नूरी रोंस पर श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियाँ खड़े हैं दायीं और लाल वृक्ष की अतुल्य शोभा हैं और बायीं और हरे वृक्ष की शोभा हैं --अर्शे मिलावा बढ़ता हैं लाल वृक्ष की और --अति नरम रेती  पाँव घुटनो तक धंस रहे हैं रेती भी तो  पिऊ की आशिक हैं उनके अभिनन्दन के लिये और कोमल हो रही हैं
रेती में अलबेली चाल से चलते हुए चबूतरा तक पहुंचे --नूरी तीन सीढ़ियों से चढ़कर चबूतरा पर आये --महाबिलंद हवेली की और मुख कर बैठन का मन लिया ही की सुंदर सिंहासन कुर्सियां सज उठी --उन पर विराजते हैं --युगल स्वरूप आप श्री राज श्यामा जी नूरी अति सुंदर शोभा से युक्त सिंहासन पर विराजी --घेर कर सखियाँ भी बैठी --वृक्ष की और नजर गयी तो विशालता वृक्ष का तन चबूतरा से प्रगट होते हुए --चारों दिशा में बादशाही द्वार --भीतर गए तो माणिक महल का विस्तार लिये शोभा --वृक्ष की 12000  भोम और एक एक भोम में 12000  भोमे समाहित --

देख मेरी सखी जुत्थ जुत्थ के पक्षी पशु हाजिर धाम धनि को रिझाने के लिये --उनकी प्रममयी लीलाएं देखती हम रूहें --मोरो का नृत्य ,बंदरों की कलाबाजियां और हाथियों की मस्त चाल घोड़ो की उड़ान 



अब चलते हैं सीढ़ियों की और --विशाल रोंस के आगे लगती विशाल सीढियां --अद्भुत शोभा लिये ,रंग बिखेरती सीढियां और चांदे --चांदों पर सजी बैठके ----

दर्पण की भांति सजी नूरी सीढियां नूरी कठेड़े --आप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग रूहें सीढियां चढ़ती हैं --अति कोमल सीढियां --दोनों और लगते नूरी कठेड़े उनमें आएं चित्रामन भी सजीव रूहों के संग चल रहे हैं --सीढ़ियों पर हाथों में हाथ थामें एक दुजें में मगन हम सब सखियाँ सीढियां चढ़ रही हैं --हर कदम के साथ बढ़ती ख़ुशी ,मेहेरें धाम धनि की खुशबु बिखेरेती उनके इश्क में गर्क करती --

चांदों पर सजी बैठके ,कुछ पल यहाँ रुकें ..खुबखुशालियाँ हाजिर मेवें मिष्टान ले आपके --खुशियों के रंग बरसाते मेरे श्री राज जी श्री श्यामा जी 
 

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