गुरुवार, 9 मार्च 2017

चले सागर

मेरी रूह तू चल अपने निज दरबार 

हद बेहद से पर परमधाम में मेरी पहुँचती हैं --खुद को देखती हैं बड़ी रांग की और --

नूरी हाथ हाजिर --मेरी रूह उन पर सवार होती हैं ,साथ में धाम की सखियाँ भी संग हो ली 

मेरी रूह हाथी पर सवार हो परमधाम की परिक्रमा लगा रही हैं --घेर कर आएं सुन्दर शोभा लिये नूरी वन --बत्तीस हांसों में  जुदि  जुदि शोभा से सज्जित महाबिलंद वन --पूर्व दिशा में सर्व सागर में बेशुमार रंगों से सजे वन --तो नूर सागर की सीमा में श्वेत वन झलकार करते हुए --तो नीर सागर में लालिमा लिये वन --खीर में पिली आभा से महकते वन तो दधि सागर में हरियाली बिखेरते वन और जब निकले घृत सागर की सीमा में तो नीली आभा से रोशन हो गए --आगे मध्य सागर की श्याम जोत से होते हुए रस सागर ,निस्बत के सागर में सभी दस प्रकार के सुख लेते वापिस आन पहुंचे सर्व सागर के सामने --




 आठों सागरों की झिलमिलाती शोभा --32  हान्स में आये वन की न्यारी शोभा अब मेरी रूह हैं सर्व रस सागर के सन्मुख                        

 सामने बेशुमार रंगों से झिलमिलाता महावन --12000  वनों की 12000  हारें --12000  वन ले चलते हैं हवेली के सन्मुख --

-रूह देखती सामने आये सोहने वन को --एक वन --वन में 12000  बगीचों का समूह --एक बगीचे की और नजर की तो 12000  वृक्षों की 12000  हारें ---ठीक मध्य में जाती सोहनी रोंस आवर रोंस के दोनों और वृक्षों की कतारें 

सबसे पहले नजर गयी रोंस की अलौकिक शोभा पर --राहों में बिछते फूल आपका अभिनन्दन कर रहे हैं ,नूर की बरखा रूह को इश्क में मगन कर रही हैं






नूरमयी रोंस पर चलते हुए रूह दोनों और आये वृक्षों की शोभा देखती हैं --नजर एक चौक में गयी तो चारों दिशा में प्रवाहित नूर की नहरे जिनमें नूरी जल की तरंगे रूह को अपनी और खिंच रही हैं --चारों कोनों में आये उठते चहबच्चे --


चौक के ठीक मध्य में कमर भर ऊंचे चबूतरे पर नूरी तन प्रगट होता हुआ जो डालियाँ बढ़ाकर साथ में दूसरे चौक के वृक्षों से एक रूप मिलान कर फूलों की सोहनी छाया कर रहे हैं -टनों में दरवाजे जिनसे चढ़कर ऊपर की भोमोम में आये वन मोहोलातों की शोभा रूह देखती हैं



तने की अलौकिक शोभा --उनमें आये नूरी द्वार --और अब रूह देखती हैं चारों दिशा में आये नहरों की शोभा ---निर्मल उज्जवल जल की लहरे --लहरों के किनार पर बनी सुखदायी बैठके और जल में क्रीड़ा करे जल जीव




सुन्दर नोकाएं प्रगट हो गयी --मीठी ध्वनि मुझ पर विराजिये मैं आपको वन के शीतल चंदवा के तले शीतल शीतल जल में सैर करा दूँ  --सवार होते ही जल जीव भी उमड़ पड़े --साथ साथ चलते ,पिऊ पिऊ तुहि तुहि की गुंजार





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