रविवार, 5 मार्च 2017

bhulvani se lekar khadokli ki shobha

प्रणाम जी 

आज चलते हैं भुलवनी में लीला कर खड़ोकली में झीलना करने 


तो खुद को महसूस करते हैं भुलवनी के ठीक मध्य आये 100  मंदिर के चौक में 


इन चौक की शोभा को धाम धनि श्री राज जी की मेहर से देखते हैं --110  मंदिरों की 110  हारें आने से 12100  मंदिर होते हैं जिनमें ठीक मध्य भाग में 100  मंदिर का चौक अपार शोभा ले रहा हैं --इन चौक में 8  मंदिर का लंबा चौड़ा एक सीढी ऊंचा चबूतरा सुशोभित हैं --चबूतरा की किनार पर आठ-आठ नूर के थम्भ --ऊपर चंदवा की झलकार और नीचे पशमी गिलम शोभित हैं --इन चबूतरा को घेर कर एक मंदिर की रोंस आयीं हैं --चबूतरा की चारों दिशा में 10  -10  मंदिर झलक रहे हैं --और चबूतरा से चारों दिशा में देखे तो चारों और आये इन मंदिरों की बाहिरी किनार तक 50 -50  मंदिर अपार शोभा से युक्त नजर आते हैं

भुलवनी के मंदिर नूरमयी दर्पण के हैं --इनकी सभी जोगबाई नूरी दर्पण  की हैं 


दर्रो-दीवारे सभी नूरी दर्पण के --सभी साजो सामान नूरमयी दर्पण के
इन मंदिरो के देखने में चार चार दरवाजे हैं पर गिनती में दो -दो हैं क्योंकि प्रत्येक दरवाजा दूसरे मंदिर का भी हैं --मंदिर आपस में सटे हुए हैं --तो यह भी एक भुलवन हुई --


चार दरवाजे होने से 48000  दरवाजे गिनती में आते हैं जबकि गिनती में 24240  दरवाजे होते हैं --प्रत्येक दरवाजा दूसरे मंदिर का भी है तो एक मंदिर में दो दरवाजे हुए --तो 24000  दरवाजे हुए --अब देखते हैं बाहिरी किनार पर चारों दिशा के 440  दरवाजे --इनके आधे दरवाजे पहले गिन चुके तो 220  और हुए --ध्यान रहे यह द्वार एक ही मंदिर में काम आ रहे हैं --इसी तरह से मध्य चौक के चारो दिशा में लगने वाले मंदिरों के दरवाजों 40  हुए जिनमें से बीस पहले गिन चुके हैं तो टोटल हुए ..24000 +220 +20 +२४२४०

सोए भई इत भूलवनी, भए द्वार चौबीस हजार ।
एक दूजे में गिनात है, खेलें हंसे रूहें अपार ।।31/१७परिक्रमा


भुलवनी की लीलाएं कर अब हम रूहें इच्छा जाहिर करती हैं खड़ोकली में झीलें की तो अब चलना हैं खड़ोकली की और तो कैसे चले ?

चबूतरा से उतर कर उत्तर दिशा की और मुख किया --सामने दस मंदिर --किसी भी मंदिर में प्रवेश करते हैं खड़ोकली में जाने के लिये --एक के बाद एक किनार तक आये सभी मंदिरों के दरवाजे खुल गए गए --एक बादशाही रास्ता आपके लिये हाजिर --तो बढ़ते हैं रूह की चाल से --हंसते खेलते ..हान्स विलास करते भुलवनी को पार किया --

भुलवनी के मंदिरों से बाहर निकलते ही रूह को नजर आती हैं -दो थंभों की हार और तीन गलियों की नूरमयी शोभा - त्रिपोलिया पार कर के रूह मंदिरों की हार भी पार करती हैं पुनः दो थंभों की हार और तीन गलियों की नूरमयी शोभा - आगे बाहिरी हार मंदिर --रूह सामने आये बाहिरी हार मंदिरों में प्रवेश करती हैं --अति सुन्दर शोभा मंदिरों की --पूर्व दीवार में नूरमयी जाली द्वारों की सोहनी झलकार और दो द्वारों की शोभा --
रूहें द्वार तक पहुँचती हैं तो ठीक सामने खड़ोकली की शोभा के दर्शन होते हैं --रूह कदम आगे बढ़ाती हैं तो आगे एक सीढ़ी नीचे पुल हैं जो खड़ोकली की दक्षिण दिशा में आयीं दीवार और दूसरी हार मंदिरों को जोड़ता हैं --


हम दूसरी भोम के मंदिर में हैं --और एक मंदिर की दुरी पर खड़ोकली की दक्षिण दिशा की दीवार हैं जो रंगमहल की पहली भोम के साथ साथ उठती हैं --तो इन के बीच के फासले को एक करता हैं यह धाम की नूरी पुल 
अब रूहे खड़ोकली की शोभा देखती हैं --खड़ोकली 28  मंदिर की लंबी चौड़ी शोभायमान हैं --निर्मल ,उज्जवल ,अति शीतल जल के दर्शन रूहें करती हैं --खड़ोकली तीन भोम गहरी आयीं हैं एक भोम परमधाम की जमीन के नीचे 

एक भोम रंगमहल के चबूतरा 
और एक भोम रंगमहल की पहली भोम के साथ 
इस तरह से रूहें भुलवनी से निकल कर तीन भोम गहरी खड़ोकली के पावन शीतल जल के दर्श करती हैं 

यह जल भी तो रूहों का इंतज़ार कर रहा हैं कब प्यारी रूहें आएँगी और झीलना करेंगी ,जल क्रीड़ा करेंगी 
रूह मेरी फेर फेर शोभा दिल में ले 

28 मंदिर मे लहराता जल दूध से कोट गुना उज्ज्वल मिश्री से भी कोट गुना मीठा जल की झलकार आकाश तक जा रही है | यह खड़ोकली तीन भोंम गहरी है 

चारो दिशा मे जल चबूतरे पर चान्दो से सीढ़ी उतरी है और घेर कर जल तरफ कठेड़ा की शोभा हैं |जल रोंस कहे या पाल उनकी अनुपम शोभा को रूह बार बार निहार दिल मे धारण करती हैं ! इन रोंस पर सुन्‍दर बैठके हैं जिन पर बैठ रूहे दर्श करती हैं ताड़ बन के नज़ारो का | खड़ोकली के तीन तरफ तो ताड़ बन के वृक्षों की शोभा हैं जिन्होने 10 चाँदनी पर जा कर जल चबूतरे तक छतरिमंडल डाला हैं और दक्षिण तरफ भोंम दर भोंम 10 वी भोंम तक रंगमहल के मंदिर उनके छज्जो की शोभा हैं | इन सबका प्रतिबिंब जल में जब पड़ता हैं तो मनोहारी प्रतीत होता हैं |

रूह खड़ोकली की पाल पर खड़ी हैं और देखती हैं खड़ोकली की भीतरी दीवाल से जल में तीन सीढ़ी नीचे एक मंदिर का चौड़ा और लंबा तो खड़ोकली को घेर कर छज्जा आया हैं -छज्जा की भीतरी किनार पर कठेड़ा आया हैं --इन्ही छज्जा पर चारो तरफ चांदों से जल चबूतरा पर सीढ़ी उतरी हैं --दसरी तरह से कहे तो यह एक मंदिर का छज्जा जो जल के भीतर आया हैं यही जल चबूतरा हैं
खड़ोकली का नूरी जल ,लहराता निर्मल जल --जल की झलकार आसमान को छुटि हुई प्रतीत हो रही है --रूह को याद आते हैं धाम धनी श्रीराज जी के संग लिए झीलन क्रीड़ा के अखंड सुख | नूरी ,उज्ज्वल ,सुगंधित ,चेतन जल में जल क्रीड़ा करना ,एक दूसरे पर जल के पूर के पूर उछालना कि चारों और बस जल ही जल नज़र आएँ | देखिए पशु पक्षियों के झुंड के झुंड आ गये ,इन अलौकीक लीला के दर्शन करने के लिए |पिऊ पिऊ ,तूही तूही की मीठी गूंजार ,मोरों का पंख फैला झूमना और ताड़ के वन भी नीचे की और झुक गये क़ि आज पिऊ का दीदार कर तो लूँ |

रूह खड़ोकली के दर्शन कर रही हैं --28  मंदिर की लंबी चौड़ी खड़ोकली के दर्शन रूह ने दूसरी भोम में किया --जल दर्शन रंगमहल की दूसरी भोम में होता हैं --खड़ोकली का लहराता जल --और चारों दिशाओं से जल में चांदों से उतरती सीढियां जो जल चबूतरा तक ले जाती हैं --शेष जगह कठेड़े की शोभा --

जल की चारों दिशा में पाल की शोभा --जहाँ बैठन के सुन्दर ठौर बने हैं रूहों के वास्ते --ऊपर ताड़वन के वृक्षों की शीतल छाया जो जल चबूतरे तक छाया डालती हैं --इन ताड़ वनों में वृक्षों की एक ही भोम में रंगमहल की दस भोम समाई  हैं --तो वनों के छत्रिमंडल ने रंगमहल की चांदनी से मिलान करते हुए खड़ोकली के जल चबूतरा तक छाया की हैं 

खड़ोकली के जल ,घेर कर आयीं सुंदर पाल और ऊपर झलूबती ताड़वन के वृक्षों की डालियाँ --वन तरफ आये कठेड़े -तो रूह इन्ही कठेडों के साथ लगकर एक नजर में सम्पूर्ण खड़ोकली के दर्शन करती हैं -

लाल चबूतरा से चालीस मंदिर पूर्व की और ताड़ बन की हद में 30 मंदिर की लंबी चौड़ी खड़ोकली शोभा ले रही हैं | --खड़ोकली का चबूतरा धाम चबूतरे के साथ ही उठा है |चबूतरे के मध्य 28 मंदिर मे जल है जिसका दर्श दूसरी भोंम मे होता हैं  |2 मंदिर के चौड़ा चबूतरा धाम चबूतरे से उत्तर तरफ 31 मंदिर जा फिर पूर्व तरफ 30 मंदिर जाकर दक्षिण मे घूम कर 29 मंदिर जा कर धाम चबूतरे से मिल गया है | इस घेर कर आए चबूतरे के मध्य जल है |खड़ोकली के पूर्व पश्चिम और उत्तर दिशा में मंदिरों की शोभा हैं और मंदिरों के बाहर एक मंदिर की रोंस हैं जिनसे तीनों दिशा से चाँदों से सीढ़ियाँ ताड़ बन में उतरी हैं, शेष जगह किनार पर कठेड़े की शोभा हैं | इन एक मंदिर की रोंस का मिलान धाम रोंस से हुआ हैं | इन मंदिरो की संपूर्ण शोभा रंगमहल के मंदिरो के समान ही आई हैं केवल भीतरी दीवाल में यहाँ द्वार नही आया क्योंकि  भीतर जल है | धाम की और अर्थात रंगमहल की ओर दीवार आईं हैं |इन्ही मंदिरों और दीवार के ऊपर पड़साल की शोभा हैं और रूहें जल के दर्शन भी इन्हीं दूसरी भोम से करती हैं |                        

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