शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

KHADOKLI CHLE SATH JI

प्रणाम जी 

श्री राज जी के मेहर से अपनी निज नजर को हद बेहद से पर परमधाम ले कर चलती हैं--परमधाम के ठीक मध्य भोम भर ऊंचे चबूतरा पर रंगमहल की शोभा हैं जिसके वाय्यव कोण में रूह पहुँचती हैं --सबसे पहले  नजर जाती रूह की वाय्यव कोण पर आये सोलह हाँस के चहबच्चे पर --विशाल चहबच्चा ,उनसे उठते निर्मल जल के फव्वारे हो दसवीं आकाशी को छू रहे हैं उनकी नूरी बुंदिया रूह को भिगो रही हैं
वाय्यव कोण अर्थात रंगमहल के ऊतर पश्चिम  दिशा में कोने से रूह अपना मुख करती हैं पूर्व की और --और रूह आगे बढ़ती हैं --रूह के दायीं और हैं रंगमहल के मंदिर और बायीं और लाल चबूतरा की शोभा --
अब रूह की नजर जाती हैं बायीं और --रूह हैं धाम रोंस पर --रोंस के भीतरी और अर्थात रूह के दायीं और मंदिरों की बाहिरी हार की शोभा देखा --अब देखती हैं मेरी रूह -- बायीं और जहाँ इन रोंस के साथ लगते लाल चबूतरा की शोभा आयीं हैं --हान्स हान्स में सुन्दर बैठको की शोभा

इन शोभा में झीलते हुए रूह 1200  मंदिर पार कर लेती हैं --आगे 300  मंदिर में ताड़वन की शोभा है --लंबे ऊंचे वृक्ष --नहरे चेहेबच्चों के ऊपर लंबे झूलों में झूलती रूहें --लाल चबूतरा को पार कर रूह चालीस मंदिर और चलती हैं --आगे के तीस मंदिर --इन मंदिरों के ठीक सामने उत्तर की और ताड़वन में खड़ोकली की शोभा आयीं हैं
हे मेरी रूह --इन शोभा को धाम ह्रदय में दृढ कर

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