शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

चल मेरी रूह -भुलवनी की रामत करें

चल मेरी रूह हद बेहद से परे परमधाम में जहाँ ठीक मध्य में हमारा निज
 घर  रंगमहल स्थित हैं
दूसरी भूमिका के उत्तर पूर्व कोण में छज्जा के ऊपर रूह खड़ी हैं --कोण पर आयें सोलह हान्स के चहबच्चे की शोभा रूह देखते हुए पश्चिम की और मुड़ती हैं --वाय्यव कोण की और --तो मेरी रूह के बायीं और मंदिरों की शोभा है और दायीं और सबसे पहले छज्जे की किनार पर आयीं नूरमयी झलकार करता कठेड़ा दिखाई दे रहा हैं आगे ताड़वन के विशाल वृक्षों की हार --उनमें आयें हिंडोले ,नहरों चेहेबच्चों की अपार शोभा --तो मेरी रूह इन शोभा के आनंद लेती हुई 190  मंदिर पर कर लेती हैं अब इन मंदिरों के आगे 110 मंदिर हैं जो विशेष शोभा को प्राप्त किया रूह को नजर आते हैं                        
 मेरी रूह को नजर आते हैं यह मंदिर को कुछ ख़ास 
वजह भी हैं ना --इन्हीं 110  मंदिरों के भीतरी तरफ भुलवनी धाम धनी की लाडली रूहों की प्रतीक्षा  कर रही हैं कि कब मेरी सखियाँ आएँगी और यहाँ भुलवनी कि रामत करेंगी -उछरंग उल्लास का समां होगा                        

तो रूह बढ़ती हैं इन मंदिरों में जाने के लिये --मंदिर के द्वार खुल जाते हैं तो मेरी रूह एक सीढ़ी ऊपर चढ़ कर मंदिर में प्रवेश करती हैं --विशाल शोभा लिये मेरे धाम का मंदिर --सभी साजो सामान उपलब्ध हैं -सिनगार के सभी साधन --रूह का दिल चाहता हैं कि मैं आज सजूं ,ऐसा सिनगार जो मेरे प्रीतम के दिल भावे ,इश्क का सिनगार सज रूह मंदिर को पार करती हैं सामने दो थम्भ की हार तीन गलियां
अति नूरमयी शोभा लिये दो थंभों की हार और तीन गलियाँ --अति सुन्दर शोभा से लिये यह त्रिपोलियां
मंदिर से भीतरी तरफ दरवाजा से निकलते ही रूह खुद को एक नूरी गली में देखती हैं --नूरमयी झलकार से झलकती गली को पार कर रूह पहली हार थंभों को भी पार कर लेती हैं और दूसरी गली में खुद को महसूस करती हैं --और भी सरस शोभा से खुशहाल करती मेरी धाम  की गली -दूसरी गली पार की फिर दूसरी हार थम्भ भी पार किया तो तीसरी गली में आ गयी मेरी रूह --सामने दूसरी हार मन्दिरों की शोभित है --


दूसरी हार मंदिरो की शोभा देखते हुए पार की आगे पुनः त्रिपोलिया की अलौकिक शोभा --नूरी थम्भ ,चित्रामन से सज्जित और रंग बिखेरती गलियाँ --पार करते ही हैं हमारी भुलवनी
श्री राज जी ने रूह को बताया इलम के माध्यम से मेहर कर कि इन जगह जो चार चौरस हवेलियों की चार हारें आनी थी उन स्थान पर भुलवनी शोभायमान हैं                   110  नूरी दर्पण के मंदिरों की 110  दस हारें शोभित हैं --रूह भुलवनी के दर्पण के अति सोहने ,नूरी मंदिर में प्रवेश करती हैं --सुन्दर शोभा लिये यह मंदिर दर्रो दिवारें सब दर्पण की--साजों सामान सभी दर्पण का --प्रत्येक मंदिर में चारों और चार द्वार --यह क्या शोभा हैं मेरी धनी --मेरी रूह जिस भी दरवाजे को उलंघती हैं तो दूसरे मंदिर में खुद को देखती हैं

 सुन मेरी सखी ,यह सभी मंदिर आपस में जुड़े हुए हैं -इनके दरवाजे दूसरे मंदिर के भी दरवाजे हैं --और एक शोभा --मंदिर में प्रवेश करते ही रूह देखती हजारों प्रतिबिम्ब खुद --जिधर नजर की वहीँ खुद को पाया ,श्री राज श्यामा जी स्वरूप का दरश पाया --

शोभा में झिलते हुए रूह भीतर की और बढ़ती हैं --एक के बाद एक मंदिर --उनके द्वार खुल गए और एक रोंस ,रास्ता प्रशस्त हो गया --50  मंदिर का लंबा रास्ता जो ठीक बीच में आये चबूतरे की और ले जाता हैं

110  नूरी दर्पण के 110  मंदिरों की हार से 12100  मंदिर की जगह होती हैं --तो ठीक मध्य में 100  मंदिर का चौक आया हैं जिसमें 8 का लंबा चौड़ा एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा आया हैं और इन चबूतरा को घेर कर एक गली घुमी है --

तो रूह जब दूसरी हार मंदिरों की पार कर त्रिपोलिया पार कर मध्य भाग में आये किसी भी भुलवनी के मंदिर में प्रवेक्ष करती हैं और जाना हैं चबूतरा तक --तो 100 मंदिर की चौक के  किनार तक आयें सभी मंदिरों के द्वार खुल जाते हैं प्यारी रूह के लिये --एक सुन्दर दरवाजा और रूह पंख लगा एक पल में चौक में आन पहुँचती हैं
100  मंदिर चौक में आ मेरी रूह एक तक इन चौक की शोभा निरख रही हैं --100  मंदिर का लंबा चौड़ा चौक -जिसके मध्य में 8 मंदिर का लंबा चौड़ा एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा आया हैं चबूतरा को घेर कर एक रोंस /परिक्रमा आयीं हैं --चबूतरा की किनार पर थंभों की शोभा आयीं हैं -हर दिशा में 8-8 थम्भ
मेरी रूह ठीक मध्य चबूतरा पर पहुँचती हैं --सुन्दर चबूतरा नीचे पशमी गिलम पर सुन्दर बैठक और ऊपर नूरी चंदवा की झलकार --मेरी रूह को याद आते हैं वह सुहाने पल जब 



आप श्री राज श्यामा जी इन चबूतरे पर आते हैं और चबूतरे पर सज्जित सिंहासन पर विराजमान होते हैं --क्या पल हैं --सुहाना ,अति सुखद --कुछ सखियाँ श्री राज जी के सन्मुख बैठे उन्हें एक तक निरख रहीं हैं -तो देखे तो वो प्यारी रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी  से मीठी मीठी बाते कर आनंदीत हो रही हैं और हम सब सखियाँ भी उन्हें देख देख उल्लसित हो रही हैं -श्री राज जी श्री श्यामा जी की मोहिनी सूरत -हँसता मुख और बोलते समय दर्शन देती सुन्दर अति सुन्दर दन्तावली -

तो कोई सखी थम्भ से टेक लगा लीलाएं निरख निरख खुश हो रही हैं तो कोई मंदिरों में जाकर खेल करती हैं ,एक दूजे को पकड़ने के लिये दौड़ लगाती हैं और जैसे ही लगता हैं सामने सखी हैं उसे पकड़ने लगती हैं तो दर्पण की दीवार से टकरा जाती हैं तो उन समय तालियों की गूंज ,हांसी की गूंज --

हे मेरे धनी --मेरे मेहरबान --बस तू तू ही --

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