रविवार, 26 फ़रवरी 2017

chandni se le rangmahal ki uttr disha khadokli ki or

चांदनी चौक से रूह चलती हैं खड़ोकली की और तो रूह को क्या क्या शोभा नजर आएगी ?
रूह श्री राज जी मेहर उनके जोश का आसरा ले अपनी निज नजर से हद बेहद से परे परमधाम पहुँचती हैं --परमधाम के ठीक मध्य आएं भोम भर ऊंचे चबूतरा की पूर्व दिशा में धाम दरवाजे के सम्मुख चांदनी चौक में आकर रूह सर्वप्रथम चांदनी चौक की शोभा को देखती हैं --विशाल चांदनी चौक की अलौकिक शोभा रूह अपनी नज़रों में बसाती हैं --अमृत वन के तीसरे हिस्से में सुशोभित चौक में हीरा ,मोती ,माणिक के माफक नूरमयी रेती की अपार शोभा हैं जिनकी तेजोमयी ज्योति की झलकार आसमान को छू रही हैं--रूह चांदनी चौक के ठीक मध्य में आयीं रोंस पर आती हैं .नंगों की यह अति सुन्दर रोंस पाट घाट से अमृत वन के मध्य से होती हुई रंगमहल की सीढ़ियों तक ले जाती हैं


रोंस पर खड़ी हैं रूह --उसके दायीं और चबूतरा पर लाल वृक्ष की शोभा हैं और बायीं और हरे वृक्ष की अपार शोभा हैं -चांदनी चौक की उत्तर दक्षिण आवर पूर्व किनार पर अमृत वन के वृक्षों के दो भोम के छज्जे शोभा ले रहे हैं --इन शोभा को निरखती हुई रूह रोंस पर अपने कदम बढ़ाती हुई सीढ़ियों तक पहुँचती हैं --


सीढियां चढ़ कर दो मंदिर के चौक में आ सखी और देख ---श्वेत महक से महकता चौक --चारों कोनों में हीरा के थम्भ --दो भोम ऊंचा यह चौक हैं --चौक के पूर्व में उतरती सीढिया देखी --उत्तर दक्षिन में एक सीढ़ी ऊंचे दो मंदिर के चौड़े और चार मंदिर के चबूतरा आएं हैं --और ठीक सामने नूरी दर्पण का धाम दरवाजा --हरे रंग की बेनी और लाल रंग की एक सीढ़ी ऊंची चौखट --                        

 और अब रूह को चलना हैं यहाँ से खड़ोकली शोभा देखते हुए --तो रूह मेरी बायीं और मुड़कर एक सीधी चढ़कर बायीं और आएं चार मंदिर के चौड़े दो मंदिर के चौड़े चबूतरे पर आतीं हैं --चबूतरा की शोभा देखती हैं रूह --

 चबूतरा की पूर्व किनार पर (चांदनी चौक की और )हीरा ,माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ आएं हैं --इन थंभों के मध्य सुन्दर कठेड़े की शोभा हैं और पश्चिमी किनार पर बाहिरी हार मंदिरों की शोभा हैं --नीचे पशमी गिलम ऊपर नूरी चंदवा की झलकार --देखते हुए रूह दक्षिन दिशा की और चलती हुई चबूतरा की दक्षिणी किनार पर आन पहुँचती हैं --यहाँ से एक सीढ़ी नीचे उतर कर रूह धाम रोंस पर आ जाती हैं                        रूह अभी रंगमहल की पूर्व दिशा में और बढ़ रही हैं दक्षिण दिशा की और --रूह की दायीं और रंगमहल के बाहिरी हार मंदिरों की शोभा हैं और बायीं और सात वनों की अपार शोभा हैं --वनों के छत्रीमंडल ने आगे बढ़कर रंगमहल के झरोखों से मिलान किया हैं --तो रूह शोभा देखती हुई वनों के सुगन्धित चंदवा तले चलती हुई दक्षिण पूर्व कोण अमृत कोण में पहुँचती हैं

रूह देखती हैं अग्नि कोण पर रंगमहल की धाम रोंस से एक रूप मिलान करते हुए सोलह हान्स के चहबच्चे की शोभा --चहबच्चे से उठते ऊंचे अत्यंत ऊंचे फव्वारे --यहाँ से रूह अपने दाएं हाथ को मुड़कर रंगमहल की दक्षिण दिशा में आ जाती हैं और बढ़ती हैं पश्चिम दक्षिण कोण की और --नेऋत्य कोण कोण की और --दायीं और रंगमहल की बाहिरी मंदिरों की शोभा --हान्स हान्स में आएं गुरजों की शोभा और बायीं और अर्थात रंगमहल के दक्षिण दिशा में बट पीपल की चौकी की शोभा --
मेरी रूह कुछ पल इन चौकी में रमण करे ,नहरों चेहेबच्चों के ऊपर नूरी बूंदियों की बारिश के बीच धाम धनी संग हिंडोले झूले     दक्षिण दिशा की अपार खुशाल करने वाली शोभा देखते रूह दक्षिण पश्चिन कोण नेऋत्य कोण पर पहुँचती हैं --कोण पर आया सोलह हान्स का नूरी चहबच्चा --यहाँ दायीं और मुड़कर मेरी रूह रंगमहल की पश्चिम दिशा में आ -
अब रूह निरख रही हैं रंगमहक की पश्चिम दिशा में धाम रोंस से लगते फूल बाग़ की अलौकिक शोभा --नहरों चेचेबच्चों की अपार शोभा --उनसे उठते नूरी फव्वारे ,फूलों से प्रतिबिंबित हो कर जल की बुंदिया भी फूल प्रतीत होती हुई ---




फूलबाग में क्रीड़ा करते नूरी पशु पक्षी


फूलबाग में फूलों की नरमाई महसूस करते उनकी सुगंधि में लबरेज होती हुई रूह पश्चिम उत्तर कोण तक पहुँचती हैं


रूह अब वाय्यव कोण पर खड़ी हैं और रूह को चलना हैं ईशान कोण की और --तो रूह अपने दायीं हाथ को मुड़कर रंगमहल की उत्तर दिशा में आती हैं --वाय्यव कोण पर आएं सोलह हान्स के चहबच्चे की शोभा देखते हुए रूह आगे बढ़ रही हैं --दायीं और मंदिरों की शोभा हैं एक एक मंदिर में तीन तीन दरवाजे --और रंगमहल की उत्तर दिशा में अर्थात हमारे बाएं हाथ की और लाल चबूतरा की शोभा हैं --हान्स हान्स में सजी सुन्दर बैठके --रूह वाय्यव कोण से ईशान कोण की और चल रही हैं --1200  मंदिर लाल चबूतरा की शोभा देखते हुए पर किया आगे 300  मंदिर में रंगमहल की उत्तर दिशा में ताड़वन की शोभा आयीं हैं

ताड़वन के 10  बगीचों की 17  हारें - ऊंचे महाबिलंद झूलों पर नहरों और चेहेबच्चों के ऊपर हिंडोलों में झूलने के सुख याद आएं ----लाल चबूतरा की हद के आगे 40  मंदिर रूह और चलती हैं ताड़वन की शोभा देखते हुए --इन 40  मंदिर के आगे जो तीस मंदिर की जगह आयीं हैं उन्हीं तीस मंदिर की हद में  रंगमहल के चबूतरा के साथ लगते हुए रंगमहल की उत्तर दिशा में ताड़वन के एक बगीचे के स्थान पर खड़ोकली की अपार शोभा आयीं हैं

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

KHADOKLI CHLE SATH JI

प्रणाम जी 

श्री राज जी के मेहर से अपनी निज नजर को हद बेहद से पर परमधाम ले कर चलती हैं--परमधाम के ठीक मध्य भोम भर ऊंचे चबूतरा पर रंगमहल की शोभा हैं जिसके वाय्यव कोण में रूह पहुँचती हैं --सबसे पहले  नजर जाती रूह की वाय्यव कोण पर आये सोलह हाँस के चहबच्चे पर --विशाल चहबच्चा ,उनसे उठते निर्मल जल के फव्वारे हो दसवीं आकाशी को छू रहे हैं उनकी नूरी बुंदिया रूह को भिगो रही हैं
वाय्यव कोण अर्थात रंगमहल के ऊतर पश्चिम  दिशा में कोने से रूह अपना मुख करती हैं पूर्व की और --और रूह आगे बढ़ती हैं --रूह के दायीं और हैं रंगमहल के मंदिर और बायीं और लाल चबूतरा की शोभा --
अब रूह की नजर जाती हैं बायीं और --रूह हैं धाम रोंस पर --रोंस के भीतरी और अर्थात रूह के दायीं और मंदिरों की बाहिरी हार की शोभा देखा --अब देखती हैं मेरी रूह -- बायीं और जहाँ इन रोंस के साथ लगते लाल चबूतरा की शोभा आयीं हैं --हान्स हान्स में सुन्दर बैठको की शोभा

इन शोभा में झीलते हुए रूह 1200  मंदिर पार कर लेती हैं --आगे 300  मंदिर में ताड़वन की शोभा है --लंबे ऊंचे वृक्ष --नहरे चेहेबच्चों के ऊपर लंबे झूलों में झूलती रूहें --लाल चबूतरा को पार कर रूह चालीस मंदिर और चलती हैं --आगे के तीस मंदिर --इन मंदिरों के ठीक सामने उत्तर की और ताड़वन में खड़ोकली की शोभा आयीं हैं
हे मेरी रूह --इन शोभा को धाम ह्रदय में दृढ कर

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

bhulvni ke sukh

मेरा आइना खुद मेरे धनी है ।
मुझे खुद को निहारना होता है तो धनी के नेत्र रूपी आईने में निहारती हु ।
तब मेरा आइना मेरे धनी मुझसे कहते है आज बड़ी सुंदर लग रही हो मेरी सहजादी । मेरे दिल की रानी ।

मेरा शीश महल का एक एक आइना खुद धनी बनके खड़े है ।


भुल्वनि का यह पल दोसे एक होने का सबसे सुंदर पल है ।

जहा धनी के अंदर में समाई होती हूं ।


धनी के नैनो से सरकती हुई उनके दिल तक पहोचजाती हू और धनी के दिल में बिराजमान आप सभी सखियो के अर्श दिल को सजदा ।(pammy sakhi ke ahsas )

                      भुलवनी की सोभा को मेरी रूह अपने दिल में बसा कर अपने प्रियतम के पल पल बरसते सुखों को अपने नेत्रो से उस मनोहरी छवि की शोभा को निहार रही है । और धनि जी से कह रही है..
बहुत् खूबसूरत है आपके अहसास की खुशबू जितना भी सोचती हूं उतना ही महक जाती हूं ।
धनि जी नेत्रो की मूक भाषा पड़ लेते है और रीझ कर कहते है..

रूह को रूह से जुड़ने दो.....
इश्क़ की खुश्बू उड़ने दो ।

भुलवनी के इस पल में मै धनि जी के अंदर समाइ हुई अपने आप को पाती हूँ ।(manoj sakhi)

Safed rang ke nuri darpan ke bhulbhulavni mandir me sakhiao ki hasi ki kilkari sunte hi   un haasi ki kilkari me madhosh hote mere dhani aur us pal ko yad karane vali sakhiyon  ji ko 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻(krishna sakhi)

भुलवनी की और -प्रश्नोत्तरी

1⃣भुलवनी में रमन करना चाहती  हैं रूह मेरी तो रंगमहल की कोनसी भोम में जाना होगा ❓

रूह आज भुलवनी में रमण करना चाहती हैं तो मेरी रूह श्री राज जी के हुकम उनकी मेहर से अपनी सुरता हद बेहद से परे श्री परमधाम की और करती हैं जहाँ ठीक मध्य में भोम भर ऊंचे चबूतरा पर नव भोम दसवीं आकाशी का रंगमहल सुशोभित हैं -

भुलवनी की अपार शोभा रंगमहल की दूसरी भोम में आयीं हैं --मेरी रूह बढ़ती हैं दूसरी भोम की और

2⃣रंगमहल की किस दिशा में भुलवनी की शोभा आयीं हैं❓ 


श्री राज जी के बेशक इलम से रूह को यह पहचान हैं कि भुलवनी रंगमहल की दूसरी भोम में उत्तर दिशा की और आयीं हैं


3⃣रंगमहल के ईशान कोण से चले तो कितने मंदिर पर करेगी रूह मेरी तो भुलवनी की हद में पहुंचेगी


मेरी रूह रंगमहल की उत्तर दिशा में उत्तर पूर्व कोण ईशान कोण और उत्तर पश्चिम कोण वाय्यव कोण के मध्य आयें 1500 मंदिरों की और अपनी निज नजर करती हैं और दूसरी भोम के इन मंदिरों से निकले 33  हाथ के छज्जा पर आती है --श्री राज जी की मेहर से रूह ने जाना कि अगर मेरी रूह ईशान कोण से पश्चिम की और मुख करके चलती हैं तो वह 190  मंदिर पर करेगी तो भुलवनी की हद में पहुंचेगी 
--*तो रूह मेरी चाहती हैं कि मैं भुलवनी की और चलु --रूह चलती हैं पश्चिम की और --दायीं और ताड़वन की शोभा और बायीं और मंदिरों की अपार शोभा--190  मंदिर रूह चलती हैं तो पहुँच जाती हैं उन 110  मंदिरों के सम्मुख जिनके भीतरी तरफ भुलवनी शोभयामान  हैं*
  4⃣रंगमहल के वाय्यव कोण से चले तो कितने मंदिर पार कर  भुलवनी की हद में पहुंचेंगें

धाम दूल्हा श्री राज जी की अपार कृपा से रूह ने यह भी जाना कि रंगमहल के वाय्यव कोण से चलेगी रूह तो 1200  मंदिर पार करने होंगे --वाय्यव कोण से पूर्व की और मुख करके रूह चलती हैं तो दायीं और मंदिरो की शोभा हैं और बायीं और लाल चबूतरा की अपार शोभा रूह की नज़रों में आएगी 
5⃣दूसरी भोम के छज्जे पर हैं रूह तो जब वह भुलवनी की हद में पहुँच कर भीतर जाना चाहती हैं तो वह छज्जे से बाहिरी  हार मंदिर में कैसे चलेगी?

रूह उन 110  मंदिरों के सामने हैं जिनके भीतर की और भुलवनी शोभित हैं तो रूह मेरी बढ़ती हैं उन बाहिरी हार मंदिरों की और
छज्जा से रूह एक सीढ़ी चढ़कर मंदिर में प्रवेश करती हैं क्योंकि छज्जा से भोम की शोभा एक सीढ़ी ऊंची आतीं हैं
6⃣🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
                        6⃣रूह दूसरी भोम में उत्तर दिशा में छज्जे पर हैं अब उसका मुख मंदिरों की और हैं (बाहिरी हार मंदिर )-
तो रूह भुलवनी तक जाना चाहती हैं तो कितने मंदिर पार करेगी --और क्या क्या शोभा देखेगी ❓


मेरी रूह एक सीढ़ी चढ़कर मंदिर में आतीं हैं-मंदिर की शोभा देखते हुए मंदिर पार करती हैं तो सामने हैं त्रिपोलिया --दो थंभों की हार और तीन गलियों की नूरमयी शोभा - त्रिपोलिया पार कर दूसरी हार मंदिर भी पार किया रूह ने पुनः त्रिपोलिया और त्रिपोलिया के आगे ही भुलवनी की अपार शोभा --तो रूह दौड़ कर बढ़ती हैं भुलवनी की और 🌹


🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏त्रिपोलिया के कुछ उदाहरण 

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

चल मेरी रूह -भुलवनी की रामत करें

चल मेरी रूह हद बेहद से परे परमधाम में जहाँ ठीक मध्य में हमारा निज
 घर  रंगमहल स्थित हैं
दूसरी भूमिका के उत्तर पूर्व कोण में छज्जा के ऊपर रूह खड़ी हैं --कोण पर आयें सोलह हान्स के चहबच्चे की शोभा रूह देखते हुए पश्चिम की और मुड़ती हैं --वाय्यव कोण की और --तो मेरी रूह के बायीं और मंदिरों की शोभा है और दायीं और सबसे पहले छज्जे की किनार पर आयीं नूरमयी झलकार करता कठेड़ा दिखाई दे रहा हैं आगे ताड़वन के विशाल वृक्षों की हार --उनमें आयें हिंडोले ,नहरों चेहेबच्चों की अपार शोभा --तो मेरी रूह इन शोभा के आनंद लेती हुई 190  मंदिर पर कर लेती हैं अब इन मंदिरों के आगे 110 मंदिर हैं जो विशेष शोभा को प्राप्त किया रूह को नजर आते हैं                        
 मेरी रूह को नजर आते हैं यह मंदिर को कुछ ख़ास 
वजह भी हैं ना --इन्हीं 110  मंदिरों के भीतरी तरफ भुलवनी धाम धनी की लाडली रूहों की प्रतीक्षा  कर रही हैं कि कब मेरी सखियाँ आएँगी और यहाँ भुलवनी कि रामत करेंगी -उछरंग उल्लास का समां होगा                        

तो रूह बढ़ती हैं इन मंदिरों में जाने के लिये --मंदिर के द्वार खुल जाते हैं तो मेरी रूह एक सीढ़ी ऊपर चढ़ कर मंदिर में प्रवेश करती हैं --विशाल शोभा लिये मेरे धाम का मंदिर --सभी साजो सामान उपलब्ध हैं -सिनगार के सभी साधन --रूह का दिल चाहता हैं कि मैं आज सजूं ,ऐसा सिनगार जो मेरे प्रीतम के दिल भावे ,इश्क का सिनगार सज रूह मंदिर को पार करती हैं सामने दो थम्भ की हार तीन गलियां
अति नूरमयी शोभा लिये दो थंभों की हार और तीन गलियाँ --अति सुन्दर शोभा से लिये यह त्रिपोलियां
मंदिर से भीतरी तरफ दरवाजा से निकलते ही रूह खुद को एक नूरी गली में देखती हैं --नूरमयी झलकार से झलकती गली को पार कर रूह पहली हार थंभों को भी पार कर लेती हैं और दूसरी गली में खुद को महसूस करती हैं --और भी सरस शोभा से खुशहाल करती मेरी धाम  की गली -दूसरी गली पार की फिर दूसरी हार थम्भ भी पार किया तो तीसरी गली में आ गयी मेरी रूह --सामने दूसरी हार मन्दिरों की शोभित है --


दूसरी हार मंदिरो की शोभा देखते हुए पार की आगे पुनः त्रिपोलिया की अलौकिक शोभा --नूरी थम्भ ,चित्रामन से सज्जित और रंग बिखेरती गलियाँ --पार करते ही हैं हमारी भुलवनी
श्री राज जी ने रूह को बताया इलम के माध्यम से मेहर कर कि इन जगह जो चार चौरस हवेलियों की चार हारें आनी थी उन स्थान पर भुलवनी शोभायमान हैं                   110  नूरी दर्पण के मंदिरों की 110  दस हारें शोभित हैं --रूह भुलवनी के दर्पण के अति सोहने ,नूरी मंदिर में प्रवेश करती हैं --सुन्दर शोभा लिये यह मंदिर दर्रो दिवारें सब दर्पण की--साजों सामान सभी दर्पण का --प्रत्येक मंदिर में चारों और चार द्वार --यह क्या शोभा हैं मेरी धनी --मेरी रूह जिस भी दरवाजे को उलंघती हैं तो दूसरे मंदिर में खुद को देखती हैं

 सुन मेरी सखी ,यह सभी मंदिर आपस में जुड़े हुए हैं -इनके दरवाजे दूसरे मंदिर के भी दरवाजे हैं --और एक शोभा --मंदिर में प्रवेश करते ही रूह देखती हजारों प्रतिबिम्ब खुद --जिधर नजर की वहीँ खुद को पाया ,श्री राज श्यामा जी स्वरूप का दरश पाया --

शोभा में झिलते हुए रूह भीतर की और बढ़ती हैं --एक के बाद एक मंदिर --उनके द्वार खुल गए और एक रोंस ,रास्ता प्रशस्त हो गया --50  मंदिर का लंबा रास्ता जो ठीक बीच में आये चबूतरे की और ले जाता हैं

110  नूरी दर्पण के 110  मंदिरों की हार से 12100  मंदिर की जगह होती हैं --तो ठीक मध्य में 100  मंदिर का चौक आया हैं जिसमें 8 का लंबा चौड़ा एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा आया हैं और इन चबूतरा को घेर कर एक गली घुमी है --

तो रूह जब दूसरी हार मंदिरों की पार कर त्रिपोलिया पार कर मध्य भाग में आये किसी भी भुलवनी के मंदिर में प्रवेक्ष करती हैं और जाना हैं चबूतरा तक --तो 100 मंदिर की चौक के  किनार तक आयें सभी मंदिरों के द्वार खुल जाते हैं प्यारी रूह के लिये --एक सुन्दर दरवाजा और रूह पंख लगा एक पल में चौक में आन पहुँचती हैं
100  मंदिर चौक में आ मेरी रूह एक तक इन चौक की शोभा निरख रही हैं --100  मंदिर का लंबा चौड़ा चौक -जिसके मध्य में 8 मंदिर का लंबा चौड़ा एक सीढ़ी ऊंचा चबूतरा आया हैं चबूतरा को घेर कर एक रोंस /परिक्रमा आयीं हैं --चबूतरा की किनार पर थंभों की शोभा आयीं हैं -हर दिशा में 8-8 थम्भ
मेरी रूह ठीक मध्य चबूतरा पर पहुँचती हैं --सुन्दर चबूतरा नीचे पशमी गिलम पर सुन्दर बैठक और ऊपर नूरी चंदवा की झलकार --मेरी रूह को याद आते हैं वह सुहाने पल जब 



आप श्री राज श्यामा जी इन चबूतरे पर आते हैं और चबूतरे पर सज्जित सिंहासन पर विराजमान होते हैं --क्या पल हैं --सुहाना ,अति सुखद --कुछ सखियाँ श्री राज जी के सन्मुख बैठे उन्हें एक तक निरख रहीं हैं -तो देखे तो वो प्यारी रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी  से मीठी मीठी बाते कर आनंदीत हो रही हैं और हम सब सखियाँ भी उन्हें देख देख उल्लसित हो रही हैं -श्री राज जी श्री श्यामा जी की मोहिनी सूरत -हँसता मुख और बोलते समय दर्शन देती सुन्दर अति सुन्दर दन्तावली -

तो कोई सखी थम्भ से टेक लगा लीलाएं निरख निरख खुश हो रही हैं तो कोई मंदिरों में जाकर खेल करती हैं ,एक दूजे को पकड़ने के लिये दौड़ लगाती हैं और जैसे ही लगता हैं सामने सखी हैं उसे पकड़ने लगती हैं तो दर्पण की दीवार से टकरा जाती हैं तो उन समय तालियों की गूंज ,हांसी की गूंज --

हे मेरे धनी --मेरे मेहरबान --बस तू तू ही --