सोमवार, 30 जनवरी 2017

mulmilava

प्रणाम जी 
अभी तक रूह ने शोभा देखी कि 28  थम्भ चौक के पश्चिम तरफ पहली रसोई की हवेली सहित चार चौरस हवेलियों की शोभा आयीं हैं-चार चौरस हवेलियों के आगे पांचवीं गोल हवेली आयीं हैं जो रूह का मूल मिलावा हैं ।

रूह मूल मिलावा की शोभा निरखती हैं श्री राज  जी मेहर से -मुलमिलावा -पांचवीं गोल हवेली में 64  मंदिरों की गृद आयीं हैं ।हवेली सवा 21  मंदिर की लंबी चौड़ी सुशोभित हैं ।इन हवेली के मध्य चबूतरा के ऊपर श्री राज श्यामा जी तथा सखियों की बैठक आने से इन गोल हवेली को मूल मिलावा कहते हैं -इस गोल हवेली के सामान ही सभी हवेलियां आयीं हैं ।



चौथी चौरस हवेली के पश्चिम द्वार से रूह बाहर आती हैं तो वह देखती हैं एक अद्भुत दृश्य-नूरमयी झलकार करते थंभों की एक हार तो सीधी  गयी हैं और दूसरी गोलाई में -तो यह गोल घूमें थम्भ मुलमिलावा की गोल हवेली के चारों और आएं हैं -हवेली को घेर कर 64  थम्भ आएं हैं जिन पर अति सुन्दर  नक्काशी से सुसज्जित 64  मेहराबे आयीं हैं -नूरी जगमग करते इन थंभों के भीतरी तरफ घेर एक मंदिर की दुरी पर एक मंदिर की हार आयीं हैं 

अब रूह घेर कर आएं इन मंदिरों की शोभा निरख रही हैं -रूह देखती हैं 60  मंदिरों की जगह पर अति मनोहारी रंगीन शोभा बिखेरते 60  मंदिर आएं हैं और चारों  दिशा में चार मंदिरों की जगह 88 -88  हाथ की बड़े विशाल दरवाजे आएं हैं इन दरवाजों के ऊपर मनोहारी शोभा लिये 12  हाथ की मेहराब सज्जित हैं।बड़े द्वार पर चेतन घोड़ो  के चित्रामन तो रूह एकटक निरख रही हैं-

रूह 60  मंदिरों में एक मंदिर की शोभा देखती हैं -100  हाथ लंबा चौड़ा मंदिर अत्यंत ही मनोहारी शोभा लिये हैं -मंदिर की चारों दीवारों में सुन्दर द्वार की शोभा आयीं हैं -मंदिर के भीतर सुख सुविधा के सभी साजो सामान उपलब्ध हैं ,सेज्या ,चौकी ,संदूक ,हिंडोलों ,शीशे और सिनगार का सभी सामान कहाँ तक वर्णन करे ?

रूह मंदिरों की बाहिरी दीवार की अलौकिक शोभा देख रही हैं -एक बड़ी मेहराब की शोभा में तीन मेहराबे झलक रही हैं जिनके मध्य मेहराब में दरवाजा आया हैं दाएं बाएं की महवराब में सुन्दर ,चेतन चित्रामन अंकित  हैं -इन मेहराबों के साथ साथ लाल रंग की अति सुन्दर डोरी की शोभा रूह निरख रही हैं 
रूह पूर्व दिशा के बड़े द्वार से मुलमिलावा के भीतर आती हैं और देखती हैं फेर फेर घेर कर आये साथ मंदिर और चारों  दिशा में शोभा बड़े दरवाजों की अलौकिक शोभा को -इन मंदिरों के भीतरी तरफ एक थम्भ की हार और दो गालिया आयीं हैं -इनके भीतरी तरफ ठीक मध्य में एक चबूतरा कमर भर ऊंचा चौसठ पहल का आया हैं -



रूह अब इन चौसठ पहल के चबूतरा की अलौकिक शोभा को दिल में बसा रही हैं मंदिरों के भीतर के थम्भ की हार से एक मंदिर की दुरी पर भीतरी तरफ एक चबूतरा कमर भर ऊंचा चौसठ पहल है आया हैं -चबूतरा की किनार अपर हान्स हान्स के कोने पर आएं थंभों की अनोखी जुगति उनकी शोभा को रूह निरख रही हैं 64 थंभों के ऊपर सुन्दर नक्काशी से सज्जित कटावदार मेहराबें आयीं हैं और चारों से सीढियां उतरी हैं और घेर कर रत्न जड़ित कठेड़े की झलकार -अहो क्या शोभा हैं हमारे धाम की -

श्री राज जी की अपार मेहर से रूह देखती हैं कि  पूर्व दिशा में पाच के दो थम्भों के दरम्यान आया महेराबी द्वार हरित आभा बिखेर रहा हैं जिनके दोनों और नीलवी के थम्भ शोभित हैं | पश्चिम दिशा में नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिनसे नीली महक से जगमगाते द्वार की शोभा बन गयीं हैं | इनके दाएँ बाएँ पाच के नूरी थम्भ शोभा ले रहें हैं |
ऊतर दिशा में पुखराज के दवार के दोनों और माणिक के थम्भ है| दक्षिण मे माणिक के द्वार के दोनों और पुखराज के थम्भ आये है |
और  चारों द्वारों के मध्य में आएँ चारों खाँचों में हीरा, लसनिया, गोमादिक, मोती, पन्ना, परवाल, हेम, नूर, चाँदी, कँचन, पिरोजा और कपूरिया के थम्भ आये है ।रूह थम्भो की शोभा को देख रही हैं | थम्भ के निचली तरफ चार हांस आएँ हैं ,उसके ऊपर आठ और मध्य में थम्भ सोलह हांस का शोभित हैं फिर पुनः आठ और चार हांस क्रमशः आएँ हैं | इस प्रकार से  बहुत ही प्यारी जुगति से थम्भो की शोभा आईं हैं |जिनमें कई कटाव हैं कई प्रकार के अनुपम नक्काशी हैं | अलग अलग प्रकार के चित्रामन है और हर चित्र के जुदे ही भाव हैं | एक एक रंग का अद्भुत जवेर और उसी में आईं चेतन नक्काशी ,उनके अलग अलग कटाव एक से बढ़कर एक सुंदर हैं |
इस प्रकार से रूह ने चारों खाँचों में आएं अड़तालीस थम्भ और उनकी शोभा को फेर फेर निरखा | सोलह थम्भ चारों द्वारों के हैं -यह चौसठ थम्भ चबूतरे पर सुशोभित हैं |

अत्यंत ही सुंदर ,नरम ,चेतन पशमी गिलम (बिछौना)चबूतरे पर बिछी हैं | यह गिलम चबूतरे की किनार पर आएं कठेड़े से जाकर लगी हैं जिसकी शोभा सुखदायी है |प्रियतम श्री राज जी को रिझावन खातिर गिलम एक पल में ही कई रंग रूप धारण करती हैं तो इनके रंग का ,शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से कैसे हो ?मेरे साथ जी ,एक बड़ी ही खुशहाल करने वाली शोभा देखिए ,दुलीचे को घेर कर श्याम ,श्वेत ,हरित और जर्द (पीला) रंग की अत्यंत ही मनोरम ,तेजोमयी दोरी आईं हैं |नूरी दोरी में कई तरह के कटाव हैं ,कई प्रकार के नूरी चेतन वृक्षों और बेलियों का चित्रामन हैं | जिनमें कई प्रकार के पत्तियाँ और फूलों का जड़ाव हैं |

थम्भों को भराए कर के नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,महीन -महीन नक्काशी से सज्जित और मोतियों की लड़ो से शोभित चंद्रवा आया हैं |चन्द्रवा के मध्य में भाँति भाँति की चित्र कला चित्रित हैं |चबूतरे की किनार पर आएं थम्भ ,उनकी महेराबे ,थम्भों पर शोभित चंद्रवा ,नीचे नूरी ,नरम दुलीचे की जोत ,उनकी तरंगे आपस में युद्ध करती हुई मनोरम प्रतीत हो रहीं हैं |
चबूतरे के मध्य में फल फूलों से चित्रामन से सज्जित पशमी गिलम पर  कंचन रंग के सिंहासन की शोभा हैं ।जिसमें छः पाये छः डांड़े आएँ हैं | जिन पर अद्भुत चित्रामन जगमगा रहा हैं और उन पर नूरी ,चेतन फूल खिले है | एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) |

दोनों स्वरूपों के ऊपर दो नूरी फूलों की शोभा लिए छत्र सुशोभित हैं | दो कलश तो इन छत्रियों पर हैं और छः कलश घेर कर आए हैं | यह आठ कलश हेम ,स्वर्ण के हैं जो आत्मा को अति प्यारे लगते हैं |छत्री की अद्भुत ,झलकार करती हुई शोभा – जिनमें कई रंग नंग हैं और किनारे भी नंगों की जोत से जगमगा रहे हैं | छत्री में कई प्रकार की सोहनी दोरी ,बेलियाँ और चारों और फिरती नूरी कांगरी अति खुशहाल करती हैं |

पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |जिन पर भी अनेक प्रकार की कई सूक्ष्म अत्यंत ही मनोहारी चित्रण हैं |चारों थम्भो पर चारों ओर से चढ़ती कांगरी सुशोभित हैं | कांगरी में कई प्रकार के नूर से भरे फूल ,पत्ते ,बेलें और महीन कटाव आएँ हैं |

सिंहासन पर एक गादी दो पशमी चाकले और दो तकिये पीछे दो दाएँ -बाएँ और मध्य मे एक तकिया रोशन है |श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख अद्भुत छब से विराजमान हैं |  

*सुरत एकै राखियो, मूल मिलावे मांहिं ।*
*स्याम स्यामाजी साथजी, तले भोम बैठे हैं जांहिं* ।। ३ ।।/7 सागर 



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