रविवार, 15 जनवरी 2017

दोऊ कमाड रंग दरपन

दोऊ कमाड रंग दरपन

परमधाम में कोई दरवाजा की आवश्यकता नहीं  --रूह विरह प्रेम के मार्ग पर चल जब चितवन के माध्यम से परमधाम पहुँचती हैं तो कोई द्वार नहीं --सब मार्ग स्वयम खुले हुए --मार्ग प्रशस्त करते --रूह को आह्वान करते हुए आओ मेरी लाडली ---अभिनन्दन 

यह शोभा रूह के अखंड आनंद के लिये हैं तभी तो स्वयम श्री राज जी ने श्री महामति जी के माध्यम से परिक्रमा ग्रन्थ में किवाड़ का बेहद ही मनोरम वर्णन किया हैं --

कै मिलावे सोहने, धनी सैयों के खेलोंने ।
पसू पंखी जूथ मिलत, आगे बडे दरवाजे खेलत ।। ५९ ।।३परिक्रमा 

अक्षरातीत श्री राज श्री श्यामा जी और सखियों के खिलौने के सामान परमधाम के नूरी पशु पक्षी बड़े ही प्रेम प्रीति के साथ जुत्थ के जुत्थ रंगमहल के बड़े द्वार के सामने चांदनी चौक में क्रीड़ा कर रिझाते हैं 


दोऊ कमाड रंग दरपन, माहें झलकत सामी बन ।
नंग बेनी पर देत देखाई, ए सोभा कही न जाई ।। ६० ।।

तारतम वाणी के माध्यम से श्री राज जी अपनी रूहों को धाम दरवाजे के अलौकिक दर्शन करवा रहे हैं --धाम दरवाजा कैसा हैं ?

धाम द्वार के दोनों किवाड़ दर्पण रंग में सुशोभित हैं --देख तो मेरी सखियों ,दर्पण के किवाड़ में सामने आएं अमृत वन का पड़ता सोहना प्रतिबिम्ब --अमृत वन के नूरी वृक्ष ,उनकी डालियों ,फूलों से सुसज्जित नूरी मेहराबें ,वृक्षों की भौमों के नूरी छज्जे --वनों में खेलते पशु पक्षी ,पिऊपिऊ  तुहि तुहि की गुंजार --

और देखे --किवाड़ के बॉर्डर (बेनी )पर आयीं सुन्दर ,चेतन नक्काशी --जिनका वर्णन इन जुबान से नहीं हो सकता हैं --रूह के नयनों से ही महसूस कर सकते हैं --

तो इन अलौकिक शोभा को फेर फेर रूह को दर्शन श्री राज जी करवा रहे हैं --सोच मेरी रूह --तू किन ख़ुशबोय में रहती हैं --कैसा है तेरा निजघर जहाँ अष्ट प्रहार चौसठ घडी तू श्री राज श्री श्यामा जी के संग अखंड सुखों में विलसती हैं और अब क्या हाल है तेरा --यह मोह माया के बंधन तुझे बहुत ही प्रिय हैं जहाँ स्वार्थ ही स्वार्थ है कुछ भी अपना --अपने घर में आ रूह --धनि तुझे फेर फेर अखंड सुखों की याद दिल रहे हैं  --चल निजघर जहाँ 

कै कटाव नकस जवेर, सोभित नंग चौक चौफेर ।
फिरते द्वारने जो मनी, ताकी जोत प्रकास अति घनी ।। ६१ ।।

जहाँ निजघर का द्वार भी मनोहारी शोभा लिये तुम्हें ही पुकार रहा हैं --दरोपण रंग के किवाड़ ,बेनी पर सुंदर चित्रामन ,कई प्रकार की जेवरातों की नकासकारी आयीं हैं --चारों और नूरी जगमागते खुशहाली बिखेरते नंग जडे  हैं ,द्वार को घेर कर मणि माणिक लगे हैं उनकी जोत तो अति घनी हैं --नज़रों में बस जाए तो बस वही शोभा नज़रों में --

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें