रविवार, 29 जनवरी 2017

chandni chouk se lekar mulmilava ki shobha

प्रणाम जी

चलिये आज चांदनी चौक से लेकर मुलमिलावा की शोभा को दिल में बसाएं

श्री राज जी श्री श्यामा जी के चरणों का ध्यान करते हुए अपनी सुरता को परमधाम की और मोड़े

खुद को महसूस करें चांदनी चौक में

मुख श्री रंगमहल की और

धाम धनि श्री राज जी की अपार मेहर से देखे कि रंगमहल के मुख्यद्वार के सामने अमृत वन के तीसरे हिस्से में चांदनी चौक की अपार शोभा आयीं हैं ---166  मंदिर के लंबे चौड़े चौक में खड़ी हैं  रूह --166  मंदिर का लंबा चौड़ा चौक --जिसमें हीरा मोती से भी उज्जवल ,निर्मल ,अत्यंत ही कोमल रेती सुशोभित हैं --रेती के दोखुने ,तीनखुने और चौखुने कणों की झिलमिलाहट आसमान तक जा रही हैं --ठीक मध्य में दो मंदिर की चौड़ी नंगों की रोंस जो पाटघाट को पीठ देकर चले तो अमृत वन के ठीक मध्य भाग से होती हुई चांदनी चौक के मध्य से होती हुई धाम की सीढ़ियों तक ले जा रही हैं -

इन रोंस से चांदनी चौक के दो हिस्से प्रतीत हो रहे हैं --उत्तर दिशा में कमर भर ऊंचे चबूतरे पर लाल वृक्ष की शोभा आयीं हैं और दक्षिण की और हरे वृक्ष की अपार शोभा हैं --यह वृक्ष आपके अभिनन्दन के लिये प्रस्तुत हैं --उत्तर दिशा के वृक्ष की और बढ़ती हैं रूह --अत्यन्त ही नूरमयी कोमल रेती --कि पाँव घुंटनों तक धंस रहे हैं --एक एक कदम जब रूह का बढ़ता हैं इन धाम की नूरी रेती में तो वह अपार आनंद उल्लास का अनुभव करती हैं --रेती के उड़ते नूरमयी कण भूषण बन रूह के नूरी तन का नूरी सिनगार बन मुस्करा उठते हैं
इठलाती बलखाती अति मदमस्त चाल से चलती चंचल,श्री राज जी की मस्ती में डूबी रूह पहुँचती हैं चबूतरा तक--और देखती हैं प्यारी सी शोभा--तीन सीढ़ी ऊंचा यह चबूतरा ३३ मंदिर की लंबाई चौड़ाई लिये सुशोभित हैं-चबूतरा के चारों  दिशा से आठ आठ मंदिर की जगह लेकर तीन तीन सीढियां चांदनी चौक की रेती में उतरी हैं शेष जगह घेर कर नूरी फूलों से जड़ित सुगन्धित कठेड़े की खुशहाल करने वाली शोभा आयीं हैं

रूह के कदम उठते हैं चबूतरा पर जाने के लिये --वह अति सोहनी शोभा से युक्त सीढ़ियों पर पाँव धरती हैं --अहो कितनी कोमल हैं सीढियां मानो फूलों की सीढियां प्रस्तुत हैं रूह के लिये --सीढ़ियों के दोनों और फूलों के कठेड़े -सुगंधि का आलम-रूह सीढ़ियों से चढ़कर चबूतरा पर पहुँचती हैं तो देखती हैं चबूतरा के ठीक मध्य भाग में एक मंदिर का विस्तार लिये तना आया हैं -और देखती हैं तने की चारों दिशा में दरवाजा आएं हैं अत्यंत ही सुन्दर द्वार-पहली भोम में वृक्ष का तना 75  हाथ सीधा जाकर डालियों का विस्तार करता हैं और अति सुन्दर चंदवा चबूतरा की शोभा बढ़ता हैं ,वृक्ष की पहली भोम में वृक्ष के चारों और सुन्दर बैठकों की शोभा ,जिस दिशा में बैठना हो वहीँ बैठक सज जाती हैं -वृक्ष की शीतल छाँव में बैठ प्रीतम श्री राज जी श्री श्याम जी के संग अखंड सुख रूहें ही लेती हैं                      
अब कदम बढ़ते हैं वृक्ष की दूजी भोम में जाने लिये तो रूह तने में दरवाजा के भीतर प्रवेश करती हैं -तने के भीतर बड़ी ही विशाल शोभा रूह देखती हैं सुन्दर मनमोहक दृश्यों के बीच चढ़ती गोल फूलों की सीढियां जिनसे रूह चढ़ वृक्ष की दूसरी भोम में आतीं हैं-दूसरी भोम में पहली भोम जितना  विस्तार, नीचे मानो फूलों का मखमली गिलम बिछा हैं और फूलों के मध्य से प्रगट होता वृक्ष का भोम भर का तना जिसकी नूरी छत दूसरी भोम की शोभा मोहोल माफक बना रही हैं-चारों दिशा में 33 -33  खुली मेहराबों की शोभा और इन अलौकिक शोभा के बीच फूलों के हिंडोलों में झूलना तो कभी फूलों की मेहराबों में खड़े होकर चांदनी चौक की अलौकिक छटा को निहारना

और अब देखती हैं दो भोम तीसरी चांदनी के वृक्ष की चांदनी की मनोहारी शोभा -चांदनी की किनार पर कठेड़े की शोभा और ठीक मध्य फूलों की देहुरी की शोभा आयीं हैं,देहुरी पर कलश ध्वजा की अपार शोभा हैं-ठीक ऐसे ही शोभा दक्षिण दिशा में आएं चबूतरा की भी आयीं हैं
अब रूह बढ़ती हैं धाम की सीढ़ियों की और-मध्य रोंस से आगे बढ़ती हुई-रूह के उत्तर ,दक्षिण और पश्चिम दिशा में अमृत वन के वृक्षों के दो भोम के छज्जे और ठीक सामने रंगमहल की शोभा-रोंस से होती हुई रूह सीढ़ियों तक पहुंचती हैं

रूह ने देखा कि सीढियां दो मंदिर की  रोंस के आगे दो मंदिर की  ही लंबाई लेकर चढ़ी हैं और पहला कदम बढ़ाती हैं और पहली सीढ़ी पर रखती हैं यह सीढ़ी एक हाथ की ऊंची और एक ही हाथ की चौड़ी आयीं हैं,रूह एक एक करके पांच सीढियां चढ़ती हैं तो देखती हैं एक अद्भुत शोभा कि पांचवीं सीढ़ी के आगे पांच हाथ के चांदा की शोभा आयीं हैं-विशेष ध्यान देने योग्य बात यहाँ रूह के लिये यह हैं कि पांचवीं सीढ़ी और चांदा एक ही लेवल पर आएं हैं-सीढ़ी और चांदा दोनों पर आएं गिलम की जुदी शोभा आयीं हैं-इसी तरह से हर पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा की शोभा आयीं हैं-दसवीं ,पन्द्रवीं ,बीसवीं-इस तरह से -तो रूह शोभा निरखती हुई धाम की बादशाही सीढियां चढ़ रही हैं -सीढ़ियों पर आयीं गिलम और कोमल हो रही हैं और रूह भी बड़ी नाजुकता से कदम बढ़ा रहीं हैं-दोनों और आएं सुन्दर कठेड़े भी रूह के साथ साथ मानो आगे बढ़ रहे हैं
सौ सीढियां बीस चांदों सहित रूह पार करके दो मंदिर के चौक में आतीं हैं-दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक के चारों कोनों में हीरा के नूरमयी थम्भ आएं हैं -यह थम्भ 88  हाथ सीधा ऊपर जाकर 88  हाथ में अति सुन्दर मेहराब बनाते हैं-इनके ऊपर 28  हाथ की जगह में सुन्दर चित्रकारी आने से इन चौक की छत 204  हाथ ऊंची आयीं हैं
(दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक की छत 204  हाथ ऊंची आयीं हैं --चारों कोनों में  आये हीरा के थम्भ 88  हाथ सीधा जाकर 88  हाथ की मेहराब बनाते हैं-इनके ऊपर 24  हाथ की जगह में चित्रकारी होनी थी पर 28 
 हाथ की आयीं हैं 

वजह ?

दो मंदिर के चौक और दोनों और आये मंदिरो पर दो भोम ऊपर जो एक छत आती हैं वही तीजी भोम की पड़साल हैं --तीजी भोम की पड़साल तीसरी भोम के मंदिरों ,सम्पूर्ण शोभा से तीन सीढ़ी ऊंची आयीं हैं और दूसरी ,तीसरी ,चौथी किसी  की भोम की शोभा देखे तो वह शोभा छत से एक हाथ ऊंची आयीं हैं --अर्थात तीसरी भोम की जमीन से एक हाथ ऊंची उनकी सम्पूर्ण शोभा आयीं हैं --

इसीलिये दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक की छत 204  हाथ की ऊंची शोभयमान हैं)
-चौक के चारों दिशा की शोभा रूह निरखती हैं -पूर्व दिशा में चांदनी चौक में उतरती सीढियां रूह ने देखी-

ऊतर दक्षिण दिशा में चार मंदिर के लंबे और दो मंदिर के चौड़े चबूतरे आएं हैं-अब रूह निरखती हैं दक्षिण दिशा में आएं चबूतरा की शोभा-चबूतरा एक सीढ़ी ऊंचा आया हैं-चबूतरा पर जाना हैं तो चबूतरा की उत्तर किनार जो दो मंदिर के चौक की और पढ़ती हैं-वहां ठीक मध्य में 50  हाथ की जगह सीढ़ी चढ़ने के लिये हैं और दोनों 75 -75  हाथ में कठेड़ा आया हैं-मध्य 50 हाथ की जगह से हो रूह दक्षिण दिशा में आये चबूतरा पर आती हैं तो देखती हैं कि चबूतरा की पूर्व किनार पर नूरमयी थम्भ आएं हैं -दो मंदिर के चौक की और से थंभों की शोभा देखे तो क्रमशः हीरा ,माणिक,पुखराज,पाच,नीलवी के थम्भ आएं हैं ,हीरा के थम्भ वही हैं जो मंदिर के चौक के कोने में हैं-इन थंभों के मध्य नूरी ,स्वर्णिम कठेड़े की शोभा हैं क्योंकि आगे भोम भर नीचा चांदनी चौक सुशोभित हैं-चबूतरा की पश्चिम किनार पर चार मंदिर लगे हैं जो रंगमहल के बाहिरी हार मंदिर हैं(दरवाजे के वास्ते आये दस हान्स के मंदिर जिनमें चार चार मंदिर दो मंदिर के दोनों और आये चबूतरों  की पश्चिम किनार से लगे हैं और मध्य में दो मंदिर का लंबा और एक मंदिर का चौड़ा मंदिर दरवाजे के वास्ते आया हैं)थंभों की शोभा पूर्व दिशा की तरह ही हैं अंतर मात्र यह हैं की पूर्व दिशा में थम्भ खुले आएं हैं और और पश्चिम दिशा में अक्स मात्र हैं-चबूतरा के ऊपर चंदवा की शोभा हैं और नीचे  गिलम की अपार शोभा हैं
चबूतरों की शोभा देख अब रूह की नजर जाती हैं धाम दरवाजा की और-दो मंदिर के चौक के पश्चिम दिशा में दो मंदिर की चौड़ी और दो मंदिर की ही ऊंची नूरमयी दीवार आयीं हैं तो रूह धाम धनी श्री राज जी की मेहर से निरखती हैं कि दो भोम की ऊंची दीवार के प्रथम भोम में मध्य 88  हाथ में नूरी दर्पण का दरवाजा आया हैं और दरवाजा के दोनों और 56 -56  हाथ की जगह में नूरी लाल मणियों से जड़ित अति सुन्दर दीवार शोभित हैं-88  हाथ का नूरी दर्पण का झिलमिलाता दरवाजा हरित रंग की बेनी और एक सीढ़ी ऊंची लाल रंग की सुन्दर चित्रामन से जड़ित चौखट--दरवाजे के ऊपर 12  हाथ की अति सुन्दर मेहराब


नूरी दर्पण का अति सुन्दर धाम दरवाजा और दरवाजे के ऊपर बारह हाथ की नूरी मेहराब की शोभा देख अब रूह की नजर जाती हैं-दूसरी भोम की और -बारह हाथ की मेहराब के ऊपर झरोखा की शोभा आयीं हैं और झरोखा के दोनों और नूरमयी चित्रामन से युक्त जाली द्वार आएं हैं


रूह दो मंदिर के चौक में खड़ी होकर धाम दरवाजे की शोभा देख रही हैं -प्रथम भोम में दर्पण का नूरी बादशाही शोभा से भी कोट गुनी शोभा किया द्वार और दूसरी भोम में बड़ी मेहराब में नव मेहराब शोभित हैं -ठीक मध्य की तीन मेहराबों की शोभा अभी रूह ने देखी -झरोखा और दोनों और आये जाली द्वार-अब इन के आस पास की शोभा रूह देखती हैं -इन दोनों और की तीन तीन मेहराबों के मध्य में दरवाजा आया हैं और दाये बाएं जाली द्वार शोभित हैं
इन दरवाजो की एक विशेष शोभा और हैं इन दरवाजों के आगे कठेड़ा लगा हुआ हैं क्योंकि आगे भोम भर निचे दो मंदिर का लंबा चौड़ा चौक हैं तो एक तरह से यह द्वार भी झरोखा की शोभा लिये हैं -यहाँ खड़े रूहें दो मंदिर के चौक की शोभा देखती हैं-
धाम द्वार की शोभा निरख अब रूह धाम अंदर प्रवेश करना चाहती हैं ,रूह की नजर नूरी दर्पण के धाम द्वार की और हैं -जहाँ वह अपना ही प्रतिबिम्ब देख उल्लासित हो रही हैं-सुन्दर स्वरुप अर्शे परमधाम की लाडली का --नूरी तन ,नूरी वस्त्र और नूरी भुखन और मुख पर तेज --,-दर्पण में झलकते अमृत वन के दृश्य सोहने लगते हैं -और अमृत वन की मनोहारी झलकार --फूलों की अपार खुशबु ,नहरों चेहेबच्चों के मध्य नूरी रेती से प्रगट होते नूरी फल फूलों से लडे वृक्ष और उनमें रमन करते पशु पक्षी --छोटे छोटे पक्षियों की मस्त उड़ान और मीठी ध्वनि --मेरे प्राण प्रियतम श्री राज जी की लाडली सखी ,यह गुलाब की कली आपके लिये और रूह अपने  हाथों में गुलाब के कोमल कोमल,अति सुन्दर नूरी फूल देख रही हैं-

रूह देखती हैं-धाम का मुख्य दरवाजा खुल रहा हैं --खुलते समय का स्वर अहो कितना मधुर हैं--सर्व संगीत से ऊपर मीठी ध्वनि--एक सीढ़ी ऊंची सेंदुरिया रंग जडाव की नूरी चौखट का नूर--

मैं श्री राज जी की दुल्हिन नार हूँ --अपने धाम ह्रदय में यह भाव दृढ रूह करके बड़ी ही नाजुकी से ,सलूकी से दुल्हिन  सी शर्माती हुई चौखट उलंघ कर खुद को देखती हूँ --

अति मनोरम शोभा लिये विशाल मंदिर को जो दरवाजे का मंदिर के नाम से जाना जाता हैं
                        
विशाल मंदिर हर और नूर बिखरता हुआ--पलक पाँवड़े बिछते हुए--सखी के अभिनन्दन के लिये--दोनों और *अति सुन्दर द्वार जिनसे पाखे के मंदिरों में जाने का मनोरम  मार्ग हैं
सुन्दर रोमांचित करने वाले समां के बीच मंदिर की पश्चिम दीवार तक पहुंची --अद्भुत शोभा --पूर्व दिवार के माफिक ही दर्पण रंग में सुखदायी झलकार करता किवाड़--किवाड़ खुल गए और सखी मेरी ,आगे बढ़ते हैं --धाम भीतर चले--एक सीढ़ी ऊंची चौखट को उलंघ और आन पहुंची--अपने निज घर के भीतर

धाम द्वार को पर करते ही रूह खुद को एक गली में महसूस करती हैं -अति मनोरम शोभा से युक्त गली और गली पर करते ही रूह खुद को 28 थम्भ का चौक में देख रही हैं -28 थम्भ का चौक  की विहंगम शोभा को रूह निरख रही हैं 

चौक में अति सुन्दर गिलम बिछी हैं और उन पर आयीं बादशाही बैठक --एक मधुर गूंज रूह को सुनाई देती हैं -मेरी कुछ पल यहाँ बैठे और महसूस करे अपने अखंड सुख--

पूर्व की और देख मेरी सखी--नूरी रंगों नंगों से झिलमिलाते दस थम्भ और उन पर आयीं अति सुंदर चित्रमें से युक्त मेहराबे--और आगे देखे तो विशाल गली और गली के पार धाम दरवाजा की खुशहाल करने वाली जगमगाहट                        
28 थम्भ का चौक की पश्चिम दिशा में भी दस झिलमिलाते थंभों की शोभा--और रसोई के चौक के मनोरम नजारें


उत्तर दक्षिण दिशा में चार चार थंभों की सोहनी झलकार--और दोनों दिशाओं में दूसरी हार के मंदिर नजर आ रहे हैं -और थंभों को भराए के सुन्दर चंदवा
इन चौक की अलौकिक शोभा--चारों और नूरी थंभों की सोहनी झलकार --रंगों नंगों की अनोखी जुगत और थंभों में आयीं अति सुन्दर मेहराबे और थंभों को भर कर आया अति सुन्दर चंदवा ,चंदवा में आयीं चेतन नक्काशी --लटकते मोती ,झूमर --मानों सखियों पार खुशियों ,उल्लास की बरखा
28 थम्भ के चौक की सुखद शोभा में झील कर रूह  चौक को पार करती हैं ,एक नूर गली भी पार करती हैं तो खुद को देखती हैं  रसोई की हवेली में ,पहली चौरस हवेली
धाम की पहली चौरस हवेली की शोभा रसोई के चौक की आयीं हैं-यह रसोई की हवेली 23 मंदिर की लंबी चौड़ी शोभित हैं-रसोई की हवेली की पूर्व दिशा में मध्य में ग्यारह मंदिर की नूरमयी ,अति सुन्दर दहलान की शोभा आयीं हैं ,इन दहलान में थंभों की दो हारे झिलमिला रही हैं -ग्यारह मंदिर की लंबी और एक मंदिर की चौड़ी इन दहलान के दोनों और नूरमयी  शोभा बिखेरते पांच पांच मंदिर आएं हैं

और रसोई की हवेली की उत्तर और दक्षिण दिशा में नजर गयीं तो देखा कि दोनों दिशाओं में ठीक मध्य मुख्य द्वार की अपार शोभा आयीं हैं..द्वार से पहले मंदिरों की अपार शोभा हैं और द्वार के आगे पश्चिम दिशा में दहलान की शोभा आयीं हैं--और उत्तर दिशा में एक विशेष शोभा-कोने का मंदिर छोड़कर दूसरा मंदिर रसोई का मंदिर हैं जो श्याम रंग में झिलमिला रहा हैं आगे सीढ़ियों का मंदिर हैं जिनसे सखियाँ श्री राज श्याम जी के संग उतरती चढ़ती हैं--सीढ़ी वाले मंदिर के आगे श्वेत मंदिर हैं
और रूह देख रही हैं -रसोई की हवेली की पश्चिम दिशा में मंदिरों की दिवार की अपार शोभा आयीं हैं ,ठीक मध्य में द्वार और दोनों और मंदिरों की शोभा जगमगा रही हैं-रसोई की हवेली की चारों और निरखती हैं उसे कुल तीन मुख्यद्वार दिखाई देते हैं --पूर्व दिशा का मुख्य द्वार पूर्व के दहलान में शामिल हो जाने से यहाँ मुख्यद्वार नहीं आया हैं-तो इस तरह से रसोई की हवेली में 54  मंदिर आएं है- 31मंदिर की दहलान आयीं हैं-रसोई की हवेली में तीन देहेलानों की शोभा आयीं हैं ,पूर्व की दहलान में थंभों की दी हारे आयीं हैं तो उत्तर दक्षिण दिशा में बड़े दरवाजे के आगे आने वाली दहलान की बाहिरी दीवार तो शोभा हैं पर  भीतरी ,और दाएं बाएं /पाखे की दीवार नहीं आयीं हैं ,मात्र थम्भ आने सुन्दर दहलाने बन गयीं हैं-सखी ,चारों दिशा की शोभा देखी ,इन शोभा के भीतरी तरफ एक  थम्भ की हार दो गालियां आयीं हैं और ठीक मध्य एक कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिसकी किनार पर थम्भ अपार खुशाली बिखेर रहे हैं ..थंभों को भराए के चंदवा की अपार शोभा हैं नीचे गिलम --सिंहासन कुर्सियों  की शोभा --और चारों दिशा से उतरती सीढियां- और शेष जगह चबूतरे की किनार पर थंभों के मध्य  स्वर्णिम कठेड़े की शोभा हैं
रसोई की हवेली की अलौकिक शोभा निरख अब रूह हवेली के पश्चिम द्वार से बहार निकल पहली चौरस हवेली को पार करती हैं-हवेली के पश्चिम द्वार से निकल रूह देखती हैं दो थंभों की हार तीन गालियां-त्रिपोलिये की विहंगम शोभा
रूह आगे बढ़ती हैं और नूर से लबरेज नूरमयी गलियों को पार करके दूसरी चौरस हवेली के पूर्व दिशा में आये मुख्य द्वार के सम्मुख पहुँचती हैं-पूर्व दिशा में सुशोभित बड़े द्वार से हो रूह दूसरी हवेली के भीतर आन पहुँचती हैं -जगमग करती धाम की विशाल हवेली -अद्भुत शोभा -घेर कर आएं रंगों नंगों की सुखद झलकार से झिलमिलाते मंदिर और चारों दिशा में आएं मंदिरों के ठीक मध्य विशाल बड़े द्वार की शोभा आयीं हैं -बादशाही शोभा से भीत गुनी शोभा लिये यह बड़े द्वार बेहद ही सुन्दर ,अनुपम हैं

मंदिरो के भीतरी तरफ एक थम्भ की हार और दो गालियां और ठीक मध्य में कमर भर ऊंचा चबूतरा-रूह निरखती हैं कि चबूतरा की किनार पर भी अति सुन्दर नूरमयी थंभों की शोभा हैं-थंभों को भराए कर चंदवा की सुखद झलकार और नीचे पशमी गिलम शोभायमान हैं-हवेली की सम्पूर्ण शोभा को दिल में दृढ करते हुए रूह आगे बढ़ कर हवेली पार करती हैं,इसी तरह से दूसरी और तीसरी चौरस हवेली भी रूह पार कर जैसे ही चौथी हवेली के पश्चमी द्वार से बहार निकलती हैं तो रूह की नज़रों में आती हैं एक अलौकिक शोभा 

यहाँ थंभों की एक हार सीधी घुमी हैं और दूसरी हार गोलाई में गयीं हैं और सामने हैं गोल फिरावे के पहली हवेली -हमारा मूल मुकाम -मुलमिलावा- जहाँ रूह के प्राण वल्लभ श्रीराज-श्यामा जी धाम की सखियों को संग ले कर विराजमान हैं |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें