रविवार, 15 जनवरी 2017

28 थम्भ का चौक

प्रणाम जी 

 मेरी सखी ,अपनी निज नजर को धाम द्वार के सम्मुख ले चले 

दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक में है  --दोनों हाथों की और एक सीढ़ी ऊंचे चबूतरों की अपार शोभा 

और नजरे ऊपर हुई तो चौक के ऊपर कितना सुन्दर नक्काशी से युक्त नूरी छत --अद्भुत नक्काशी और सखी तेरा झलकता प्रतिबिम्ब --हर शह चेतन ,खुशियों के रंग बिखेरती हुई
सामने धाम ,श्री रंगमहल का मुख्य दरवाजा ,हमारा धाम दरवाजा 


दर्पण का द्वार ,नूर से लबरेज -विशाल दर्पण रंग के नूरी किवाड़ जिनकी बेनी हरे रंग में आयीं हैं और एक सीढ़ी ऊंची लाल चौखट
नूरमयी दर्पण के द्वार में आयीं सोहनी चित्रकारी देख मेरी सखी --और द्वार के ऊपर अति सुंदर मेहराब सुशोभित हैं --और दरवाजे के दोनों और सुंदर ,मणियों की नक्काशी से युक्त नूरी दीवार शोभित हैं और दरवाजे के ऊपर भी सुन्दर दीवार झिलमिला रही हैं
हे मेरी सखी ,जरा प्यार से द्वार की और देख --देख तेरा नूरी प्रतिबिम्ब --सुन्दर स्वरुप अर्शे परमधाम की लाडली का --नूरी तन ,नूरी वस्त्र और नूरी भुखन और मुख पर तेज --


और अमृत वन की मनोहारी झलकार --फूलों की अपार खुशबु ,नहरों चेहेबच्चों के मध्य नूरी रेती से प्रगट होते नूरी फल फूलों से लाडे वृक्ष और उनमें रमन करते पशु पक्षी --छोटे छोटे पक्षियों की मस्त उड़ान और मीठी ध्वनि --मेरे प्राण प्रियतम श्री राज जी की लाडली सखी ,यह गुलाब की काली आपके लिये और सखी तेरे हाथों में गुलाब के कोमल कोमल ,अति सुन्दर नूरी फूल

सखी मेरे धाम का मुख्य दरवाजा खुल रहा   हैं --खुलते समय का स्वर अहो कितना मधुर हैं --सर्व संगीत से ऊपर मीठी ध्वनि --एक सीढ़ी ऊंची सेंदुरिया रंग जडाव की नूरी चौखट का नूर --


सखी मेरी ,मैं श्री राज जी की दुल्हिन नार हूँ --अपने धाम ह्रदय में यह भाव दृढ करके बड़ी ही नाजुकी से ,सलूकी से दुल्हिन  सी शर्माती हुई चौखट उलंघ कर खुद को देखती हूँ --

अति मनोरम शोभा लिये विशाल मंदिर को जो दरवाजे का मंदिर के नाम से जाना जाता हैं                        
विशाल मंदिर हर और नूर बिखरता हुआ --पलक पाँवड़े बिछते हुए --सखी के अभिनन्दन के लिये --दोनों और अति सुन्दर द्वार जिनसे पाखे के मंदिरों में जाने का मनोरम  मार्ग हैं
सुन्दर रोमांचित करने वाले समां के बीच मंदिर की पश्चिम दीवार तक पहुंची --अद्भुत शोभा --पूर्व दिवार के माफिक ही दर्पण रंग में सुखदायी झलकार करता किवाड़ --किवाड़ खुल गए और सखी मेरी ,आगे बढ़ते हैं --धाम भीतर चले --एक सीढ़ी ऊंची चौखट को उलंघ और आन पहुंची --अपने निज घर के भीतर

 धाम द्वार को पार करके सखी मेरी खुद को एक गली में देखती हैं --नूरी शोभा लिये विशाल गली को पार करके श्री रंगमहल के प्रथम चौक में आओ 


और देखे ,हमारे धाम के प्रथम चौक 28 थम्भ का चौक  की विहंगम शोभा --

चौक में अति सुन्दर गिलम बिछी हैं और उन पर आयीं बादशाही बैठक --सखी कुछ पल यहाँ बैठे और महसूस करे अपने अखंड सुख --

पूर्व की --नूरी रंगों नंगों से झिलमिलाते दस थम्भ और उन पर आयीं अति सुंदर चित्रमें से युक्त मेहराबे --और आगे देखे तो विशाल गली और गली के पार धाम दरवाजा की खुशहाल करने वाली जगमगाहट                        
28 थम्भ का चौक की पश्चिम दिशा में भी दस झिलमिलाते थंभों की शोभा --और रसोई के चौक के मनोरम नजारें                        

: उत्तर दक्षिण दिशा में चार चार थंभों की सोहनी झलकार ---और दोनों दिशाओं में दूसरी हार के मंदिर नजर आ रहे हैं -और थंभों को भराए के सुन्दर चंदवा
मेरी सखी देख तो इन चौक की अलौकिक शोभा --चारों और नूरी थंभों की सोहनी झलकार --रंगों नंगों की अनोखी जुगत और थंभों में आयीं अति सुन्दर मेहराबे और थंभों को भर कर आया अति सुन्दर चंदवा ,चंदवा में आयीं चेतन नक्काशी --लटकते मोती ,झूमर --मानों सखियों पर खुशियों ,उल्लास की बरखा --

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