बुधवार, 2 नवंबर 2016

तीजी भोम की शोभा को निरखे



||  तीसरी भोम  ||

दरवाजे के ऊपर चार मंदिर की दहेलान हैं |भीतरी तरफ चार मंदिर का चबूतरा हैं जो कमर भर ऊँचा हैं |तीन तीन सीढ़ियाँ चबूतरे के तीनों तरफो हैं |चार मंदिर के  दहेलान की  दाहिनी तरफ का मंदिर ,नीला ना पीला बीच के रंग का हैं |दूसरी हार में दाहिनी तरफ का पहला मंदिर आसमानी रंग का हैं |दहेलान के दोनों तरफ के छः मंदिर जो कमर भर ऊँचे हैं |छहो मंदिर के आगे चांदे हैं |जिनके दोनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं - श्री लाल दास जी महाराज जी 
छोटी वृत्त 


तीजी भोम की पडसाल 

प्रथम भूमिका में दो मंदिर का धाम दरवाजा आया हैं और इस दरवाजे के मंदिर के ऊपर तीसरी भोम में चार मंदिर की दहलान आयीं हैं ..अति सुन्दर ,मनोहारी दहलान -

-तीसरी भोम में धाम दरवाजा और दरवाजा के आस पास के एक एक मंदिर के स्थान पर दहलान आयीं हैं ।चार मंदिर की इन दहलान के पूर्व और पश्चिम दिशा में चार चार नूरी थम्भ आएं हैं --मध्य की मेहराब दो मंदिर की चौड़ी आयीं हैं और दाएं -बाएं की एक एक मंदिर की मेहराब हैं --


चार मंदिर मनोहारी दहलान के भीतरी तरफ चार मंदिर का लंबा दहलान से लगता हुआ और एक मंदिर चौड़ा चबूतरा हैं --यह चबूतरा तीन सीढ़ी ऊंचा हैं --चबूतरा ने पश्चिम दिशा से तो दहलान से मिलान किया हैं --इसके उत्तर और दक्षिन दिशा में 25  हाथ की जगह ले कर गली में सीढियां उतरी हैं --और चार मंदिर के चबूतरा के पूर्व दिशा में दो मंदिर की जगह में तीन सीढियां 28  थम्भ के चौक में उतरी हैं
चार मंदिर की दहलान के दाहिनी तरफ पहला मंदिर नीला रंग में आया हैं दूसरा नीलो न पिलो और तीसरा मंदिर पीला रंग में शोभित हैं --दहलान के बायीं और भी तीन मंदिर हैं --दहलान के दोनों और के यह छः मंदिर कमर भर ऊंचे हैं --इन छहो मंदिरों की भीतरी दीवार में दरवाजा के आगे चांदा आया हैं जिनके  दोनों तरफ तीन तीन सीढ़ी उतरी हैं
और देखे --मंदिरों की दूसरी हार का दाहिनी और का पहला मंदिर आसमानी रंग का हैं

*दर्शन देने के पश्चात श्री राज जी चार मंदिर की दहेलान में सिनगार करते हैं | श्री ठकुरानी जी दूसरी हार का प्रथम मंदिर जो आसमानी रंग का हैं उस आसमानी रंग के मंदिर में सिनगार करती हैं |और सिनगार करके साथ सहित श्रीराज जी के पास आती हैं | चार घड़ी दिन चढ़ते श्रीराज जी श्री ठकुरानी जी चार मंदिर के चबूतरे पर मेवा मिठाई आरोग कर बाहिर के छज्जे पर आकर विराजतें हैं *|

श्री लाल दास महाराज जी छोटी वृति

प्रातः काल पोने छे बजे श्री राज श्री ठकुरानी जी समस्त साथ जी को लेकर पाँचवी भोंम से तीसरी भोंम की पड़साल पधारते हैं |28 थम्ब के चौक से होकर तीन सीढ़ी चढ़कर चार मंदिर के चबूतरे को पार करते हैं -आगे चार मंदिर की दहलान पार कर दस मंदिर के लंबे दो मंदिर के चौड़े छज्जे की मध्य की दो मंदिर की चौड़ा हीरा की मेहराब मे जा कर खड़े होते हैं और दाएं बाएं सखियां खड़ी होती हैं | सर्वप्रथम श्री राज़ जी अमृतमयी नज़रो से चाँदनी चौक मे खड़े पशु पक्षियों पर अमृत वर्षा करते हैं | श्री राज़ जी के इश्क मे सराबोर हो सभी पशु पक्षी नाचते कूदते वापिस जाते हैं |आकाश भी सिजदे के लिए नीचे झुक जाता हैं , जमुना जल भी उछल उछल कर धनी का दीदार पाना चाहता है |बन भी सिजदे में झुकते हैं

इसके बाद चार सखियां श्री राज़ जी का सिंगार चार मंदिर की दहलान में कराती हैं और श्री श्यामा जी का सिंगार 28 थम्ब के दक्षिण दिशा में दूसरी हार के आसमानी मंदिर मे होता हैं | सब सखियां भी सिंगार कर श्यामा जी के पास आती हैं |श्री श्यामा जी को लेकर सखियां आसमानी रंग के मंदिर के उत्तर द्वार से निकल कर 28 थम्ब के चौक में आती हैं |चार मंदिर के चबूतरे से जो सीढी 28 थम्ब के चौक में उतरी  हैं  ,उसके सामने मिलावा आता हैं| श्री राज़ जी भी जी श्यामा जी के दिल की बात जान आगे आते हैं |
एक सीढी श्री राज़ जी नीचे उतरते हैं और एक सीढी श्री श्यामा जी चढ़ती हैं ,बीच की सीढी मे युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी मिलते हैं 

अर्श मिलावा ले चली ,अपने संग सुभान |
किया चाहया सब दिल का ,आगू आए लिए मेहरबान ||
तत्पश्चात धाम के धनी मृग नयनी दुलहिन श्यामा जी की अगुवानी कर अपना नूरी हस्तकमल महारानी जी के काँधे पर रखते हुए सीढी चढ़ दो मंदिर की मेहराब में  आमने सामने खड़े हो जाते हैं |जिस समय प्राण प्रिय दूल्हा ने दुलहिन को निहारा, उसी समय सभी अंग फूल के समान खिल गये | श्री श्यामा महारानी बड़ी मोहक अदा से दूल्हे को चंदन चढाती हैं ,और नूरी पुष्प की माला पहनाती हैं |प्राण प्रियतम दूल्हा भी दुलहिन की माँग में  सिंदूर भरते हैं |माथे पर बिंदिया सजाते हैं और गले में  माला पहनाते हैं |सब सखियां श्यामा जी अंग स्वरूपा हैं तो श्री श्यामा जी के साथ साथ उनकी माँग भी भर जाती हैं| बिंदिया और गले मे माला भी स्वतः ही आ जाती हैं |सभी साथ दूल्हा दुलहिन पर फूलों की बारिश करते हैं |

इसके बाद युगल स्वरूप के साथ सब सखियाँ चार मंदिर की दहलान में मेवा मिठाई आरोगते हैं |तत्पश्चात श्री राज श्यामा जी जी निलो ना पिलो मंदिर के सामने पुखराज और पाच के थम्बो के बीच कठेड़े से लगकर आएं सिंघासन पर विराजमान होते हैं

*श्री नवरंग बाई गान करती हैं |इसी समय अक्षर ब्रह्म श्री राज जी दर्शन के दर्शन लेकर अपने मोहोल को पधारते हैं और सखियाँ पहर दिन बीत जाने पर ,शाक पानादि लेकर वापिस आती हैं |श्री राज श्री ठकुरानी जी को फूलों के आभूषण पहनाती हैं |डेढ़ पहर दिन व्यतीत होने पर सखियाँ पान के बीड़ा सेवा में हाजर करती हैं |श्री राज श्री ठकुरानी जी आरोग के पान बीड़ी लेकर ,दो पहर को नीले पीले मंदिर के बीच में जो मंदिर हैं ,उस मंदिर में शयन करते हैं और सर्व सखियाँ तले प्रथम भूमिका में आरोग के पान की बीड़ी लेकर वन को खेलने जाती हैं |पहर दिन पिछला बाकी रहता हैं ,तब श्री राज श्री ठकुरानी जी सुख शय्या से उठते हैं |*श्री लाल दास महाराज जी छोटी वृति

 इसी समय अक्षर ब्रह्म दर्शन के लिए आते हैं |
इसी समय नवरंग बाई अपने जूथ के साथ संगीत गायन कर सब का मन मोह लेती है !कुछ सखियाँ बनो से पान, फूल और फल मेवा आदि लेकर वनो से वापिस आती हैं |श्री राज श्यामा जी को फूलों के हार पहनाती हैं |पान के ब़ीड़े तैयार कर सखियाँ निलो ना पिलो मंदिर में सेज्या के नीचे रखती हैं | 11.15 बजे लाड़बाई भोजन की अनुमति ले कर राज भोग आरोगवती है |सखियाँ दोड़ कर मनुहार कर युगल स्वरूप को लाड़ से प्यार से भोजन करती हैं | श्री राज श्यामा जी भी उन्हे बीच बीच मे अपने हाथो से खिलाते हैं | सब सखियाँ भोजन करती हैं और श्री राज श्यामा जी के चरणों लग पान के बीड़े ले सैर के वनो मे जाती है |इधर युगल स्वरूप भी निलो ना पिलो मंदिर मे विश्राम करते हैं !

**सखियाँ सब वन से खेलकर आती हैं और श्रीराज श्री ठकुरानी जी के चरणों लगती हैं |तत्पश्चात चार मंदिर की दहेलान में --चार सखियाँ मिलकर श्री राज जी को दिव्य वस्त्रालंकारों से सिंगारती हैं |तत्पश्चात सुखपालों की इच्छा की तो उसी क्षण छठी भोम के सुखपाल ,तीसरी भोम के झरोखों में आकर सेवा में उपस्थित होते हैं |एक सुखपाल में श्री युगल स्वरूप विराजमान होते हैं |एक एक सुखपाल मे दो दो सखियाँ जोड़े जोड़े वीराजती हैं |अंतरिक्ष इच्छाचारी -मन के समान वेग वाले सुखपालों की आसमान में सवारी छाई चली जाती हैं |श्रीराज श्री ठकुरानी जी समस्त सुंदर साथ को लेकर पाट के घाट पधारते हैं |
इच्छानुसार पच्चीस पक्षों मे -से कोई भी पक्षों की सैर -मनोरंजन क्रीड़ा करने को जाते हैं |वहाँ रमते खेलते छः घड़ी व्यतीत हुई और दो घड़ी दिन बाकी रहा ,एक घड़ी में झीलना (जलक्रीड़ा )किए और एक घड़ी में श्रिगार | कृशन पक्ष में श्रीराज श्री ठकुरानी जी तथा समस्त सुंदर साथ तले की भोम आरोग के एक पहर रात्रि तक चौथी भोम में नृत्य देखते हैं |तत्पश्चात पाँचवी भोम में पौढ़ते हैं |शुक्ल पख में एक पहर रात्रि तक वन में अनेक प्रकार की क्रीड़ा करते हैं एवम् वहीं -वन में ही आरोग कर पाँचवीं भोम में पौढ़ते हैं |(शयन लीला )*श्री लाल दास महाराज जी छोटी वृत्त 

 सखिया चाँदनी चौक से हो जोड़े जोड़े मे रमण को जुदी जुदी जगह जाती है --कही रंगमहल की चाँदनी मे बिहार करती है तो कुछ बटपीपल की चौकी मे झूला झूलते समय राज के सुख एक दूजी को बताती है- कोई फुलबाग मे हाथ मे हाथ डाले दोड़ लगाती है तो देखिए वो सखिया तो आकाशी मोहोल मे रमण सुख ले रही है- कोई ताडबन के हिंडोले हिंच रही है तो कुछ बड़ोबन के ---दो दो के जोड़े से सखिया भिन्न भिन्न लीलाए एक पहर कर तीन बजे निलो ना पिलो मंदिर के सन्मुख आती है पट खुले और नूरी युगल स्वरूप का दीदार पा रूहे अति खुशाल होती है -हक सुभान श्यामा जी और रूहो से पूछते है आज रमण के लिए कहाँ चले तब सभी खुशाल मन से एक स्वर मे उत्तर देती है की आज घाटो मे चल रमण करेगे -सभी बनो मे जानेके लिए तैयार हैं

तब हक श्री राज सुखपालो को हाजिर हाने का हुकुम देते है-श्री राज का हुकुम पाते ही मन वेगी सुखपाल तीजी भोम की पड़साल से आ लग जाते है -- रूहे दो दो के जोड़े से सुखपालो मे अस्वार होती है-- जिनके सामने जो सुखपाल हाजिर होता है रूहें उन्ही मे अस्वार हो जाती है - श्री राज  जी श्री श्यामा जी भी अस्वार होते है और उनके संग दो सखिया भी दिल मे सेवन की आस ले अस्वार होती है -और यह सुखपाल भी कैसे है यह तो युगल स्वरूप के आसक है-- तख्तरवा के समान ही शोभा रखते है-- उनके चारो डान्डो की अनुपम शोभा है-- चारों डांडों  नूर की छतरियां शोभित हैं- हक के आसक यह सुखपाल  चेतन है जो श्री राज की दिल की बात जानकर उड़ान भरते है --

अस्वारी के समय श्री राज के आसक खिलोने हाजिर हो जाते है -- अपनी अपनी सेन्या समेत सब अस्वारी को घेर कर चलते है- हाथी ,घौड़े ,चीते ,शेर सब अपनी अपनी फ़ौजो के निशान लिए चलते है और अति उमंग से विध विध के करतब कर युगल स्वरूप और सखियो को रिझाते है -- नूरी पक्षी भी सुखपालो के दाहिने तो कभी बाईं और तो कभी उप्पर तो कभी नीचे उड़ान भरते है-- तरह तरह के खेल दिखा हक हादी रूहो को प्रसन्न करते है --पिउ पिउ की गूंजार करना तो कभी गुलाब की कली पेश करना …..अस्वारी की दृश्य मनमोहक है !हर और बस बस अस्वारी की जोत आसमान जिमी को रोशन कर रही है ! हर और नूर ही नूर ..अस्वारी की जोत …मिलावे के बस्तर भूखन की जोत …चेतन फल फूल जिमी मोहोलातों  की जोत इनके सुख हक हादी और रूह ही जान पाते है 

कोई सखी अपना सुखपाल युगल स्वरूप के सुखपाल के नज़दीक रखती है की उनकी मीठी मीठी बतिया सुन सके तो कोई इसलिए सुखपाल युगल स्वरूप के सुखपाल के सन्मुख ले जाती है की उनसे बाते कर सके और देखिए ना श्री राज भी हंस हंस के उत्तर देते है तो कोई इसीलिए नज़दीक रहती है की उनकी मनमोहिनी छबि एक तक निहार सके

सुखपाल उतरते है पाट घाट पर ---- हक हादी सुखपाल से उतर रहे है देखिए चेतन जिमी और कोमल हो उठी फुलो ने पलक पावडे बिछा दिए की मेरा महबूब आया है -- संग चलने वाले खिलोने अपने स्थानो मे खड़े है -- बनो मे धाम धनी संग रूहे खूब हांस विलास करती है -- कई तरह के खेल खेलती है -- पंद्रह दिन बनो मे खेल निरत का आनंद ले झिलना सिंगार सज आरोग के पाँचवी भोंम पधारते है और पंद्रह दिन खेल उपरांत धाम मे चौथी भोंम मे निरत का आनंद लेते है और रसोई के चौक में  आरोग के पाँचवी भोंम पधारते है 

















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