प्रणाम जी
निरत की भोम चलना हैं ...श्री राज श्याम जी और सखियों के संग निरत के अखंड आनंद में झीलना हैं -
क्यों सखियों ,धाम की लाड़लियों अपने धाम में निरत लीला का अखंड आनंद लेना हैं ना ?
तो चले सुरता से निरत की हवेली
श्री रंगमहल की चौथी भोम में निरत की हवेली में चले तो आइये मार्ग देखे --कैसे पहुंचे निरत के मनोहारी चौक में जहां निरत की अलौकिक लीला होती हैं तो परमधाम का जर्रा जर्रा निरत के आनद में मगन हो जाता हैं
तो आइये चौथी भोम की चौथी हवेली जहाँ धाम की अलौकिक निरत हो रही हैं ..पिऊ की प्यारी नवरंग बाई नृत्य कर रही हैं --पिऊ की आँखों में आँखे डाल - उनके स्नेह में भीगी रूहें निरत में झूम रही हैं ..परमधाम का जर्रा जर्रा निरत में झूम रहा हैं
निरत की भोम चलना हैं ...श्री राज श्याम जी और सखियों के संग निरत के अखंड आनंद में झीलना हैं -
क्यों सखियों ,धाम की लाड़लियों अपने धाम में निरत लीला का अखंड आनंद लेना हैं ना ?
तो चले सुरता से निरत की हवेली
श्री रंगमहल की चौथी भोम में निरत की हवेली में चले तो आइये मार्ग देखे --कैसे पहुंचे निरत के मनोहारी चौक में जहां निरत की अलौकिक लीला होती हैं तो परमधाम का जर्रा जर्रा निरत के आनद में मगन हो जाता हैं
पहले प्रथम भोम की और नजर करते हैं --चांदनी चौक से सौ सीढियां बीस चांदों सहित पार करके धाम द्वार के सन्मुख पहुँचते हैं --धाम दरवाजा पर किया --आगे एक नूरमयी गली पार कर 28 थम्भ के चौक में आये
चौक के आगे पहली चौरस हवेली को पार किया ...दूसरी -तीसरी हवेली पार की --तो सामने चौथी चौरस हवेली --ठीक इसी हवेली के ऊपर चौथी भोम में निरत की हवेली सुशोभित हैं
तो चलते हैं चौथी भोम --वहां जैसे ही तीसरी हवेली के पश्चिमी द्वार से बाहर निकलेंगे तो सामने निरत की हवेली की मनोहारी शोभा दिखेगी --
सामने चौथी भोम की चौथी हवेली -निरत की हवेली --
शोभा देखते हैं --अपनी निरत की भोम की
निरत की हवेली की पूर्व दिशा में 21 मंदिर की मनोहारी दहलान आयी हैं --पूर्व दीवार में मंदिर ना आकर नूरमयी थंभों की दो हार आयीं हैं ---
तो सखियों , हम खड़े हैं तीसरी चौरस हवेली के पश्चिम के मुख्य द्वार पर --तो यहाँ से आगे बढ़ते हैं ..सबसे पहले दो थंभों की हार तीन गालियां पार करते हैं ..आगे दहलान से होते हुए हवेली के भीतर आएं --
हवेली के भीतर आते हैं तो देखेंगे ...पूर्व में दहलान की शोभा देखी --उत्तर दिशा में पुखराज नंग में मंदिरों की दीवार आयीं हैं --दक्षिण दिशा में मंदिरों की शोभा माणिक नंग में शोभित हैं और पश्चिम में हीरा नंग में मंदिर झलकार कर रहे हैं --
इस प्रकार से हवेली की दीवार मंदिरों की आयीं हैं --घेर कर आएं इन मंदिरों की शोभा देखे --पूर्व में दहलान की शोभा --
मंदिरों की हार के भीतर एक थम्भ की हार दो गालियां आयीं हैं और ठीक मध्य में चबूतरा --
इन चबूतरा की किनार पर भी थम्भ आये हैं --तो देखे सखियों --इन चबूतरा पर खड़े होकर हवेली के चारों दिशा की शोभा --
पूर्व की और नीला रंग के थंभों की झलकार और उनके मध्य आयीं मनोहारी गालिया -उत्तर में पुखराज रंग की झलकार --दक्षिण में माणिक रंग झिलमिलाता हुआ तो पश्चिम में श्वेत रंग की जगमगाहट --चारों और से रोशन हैं निरत की हवेली
तो आइये चौथी भोम की चौथी हवेली जहाँ धाम की अलौकिक निरत हो रही हैं ..पिऊ की प्यारी नवरंग बाई नृत्य कर रही हैं --पिऊ की आँखों में आँखे डाल - उनके स्नेह में भीगी रूहें निरत में झूम रही हैं ..परमधाम का जर्रा जर्रा निरत में झूम रहा हैं
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