सोमवार, 14 नवंबर 2016

*महामत कहे ए मोमिनों ,ए चोथी भोम कहे निरत | अब कहूं भोम पाँचवी ,जित पधारे पोढ़न के बख़त*

|| *चौथी भोम* ||

*चौथी भूमिका में हवेलियों की तीन हार छोड़कर चौथी हार हवेली में नृत्य की बाखर नृत्य शाला हैं |*श्री लाल दास महाराज जी की परमधाम की बड़ी वृति 

मेरी रूह ,निज नजर से परिक्रमा कर धाम की नूरी गलियों में ..अपनी सुरता को लेकर चल --श्री रंगमहल की चौथी भूमिका में -

खुद को महसूस कर धाम दरवाजे के भीतर पहले चौक में ..28  थम्भ का नूरी चौक --

चौक की शोभा वहीं जो पहली भोम से हैं --चौक के चारों दिशाओं में नूरी थम्भ --नीचे गिलम की अपार शोभा और ऊपर नूरी चंदवा की झलकार --पर कुछ अलग बात हैं इन भोम की --जर्रे जर्रे में उल्लास झलक रहा हैं --थंभों ,मेहराबों ,गिलम और चंदवा में आएं चित्रामन के पशु पक्षी ,पुतलियाँ भी थिरकती हुई महसूस हो रही हैं और दिशा निर्देश करती हुई --कि धाम की अलौकिक लीला हो रही हैं --हमें भी वहीं पहुँच कर लीला में शामिल होना हैं --
*चौथी भूमिका में हवेलियों की तीन हार छोड़कर चौथी हार हवेली में नृत्य की बाखर नृत्य शाला हैं* |

28  थम्भ के चौक से भीतर की और रूह चलती हैं --सामने पहली चौरस हवेली --हवेली के दोनों और त्रिपोलियों की शोभा --दो थम्भ की हार तीन गालियां --

तो 28  थम्भ के चौक से होकर एक गली में आये --थोड़ा उत्तर की और चलते हैं और मध्य गली से भीतर चले --दोनों और नूरी थम्भ ..चौरस हवेलियां की शोभा --निरत की हवेली में जाने की उमंग ..आगे बढ़ते हुए तीन चौरस हवेलियों को पार किया --दक्षिन की और मुडकर तीसरी चौरस हवेली के पश्चिम के द्वार के सामने आये और शोभा देखी

*जिसमें उत्तर ,दक्षिण और पश्चिम -तीनों तरफ बीस बीस मंदिर हैं |सामने- पूर्व दिशा में बीस मंदिर की दहेलान हैं |उस दहेलान में मंदिरों की जगह पर बीस बीस थम्भो की दो हारें हैं | दाहिनी-(दक्षिण) तरफ लाखी रंग की दीवाल हैं और बाईं–(उत्तर)तरफ पीले रंग की दीवाल हैं |पीछे ( पश्चिम )तरफ श्वेत रंग की दीवार हैं |और सामने पूर्व दिशा में रत्न जडित नीले रंग के स्तंभ (थम्भ) प्रकाशमान हैं* |

२८ थम्भ से होते हुए हवेलियों को पार कर जब तीसरी हवेली के पश्चिम दिशा के मुख्यद्वार पर पहुंचे तो सामने हवेली का मनोरम दृश्य --

चौथी भोम की चौथी हवेली -- निरत की हवेली की उत्तर ,दक्षिन और पश्चिम दिशा में तीनों और नूरमयी बीस बीस मंदिर हैं
और सामने पूर्व दिशा की और बीस मंदिर की मनोहारी दहलान की शोभा आयीं हैं जिसमें बीस बीस थंभों की दो हार आयीं हैं -हे मेरी रूह ,खुद को निरत की हवेली में महसूस कर --और मुख पूर्व की और अर्थात २८ थम्भ के चौक की और रख तो तुमारे दाहिनी हाथ की और माणिक नंग के मंदिर आएं हैं और बाएं हाथ की और पुखराज नंग में भीगे पुखराजी आभा बिखेरते मंदिर आएं हैं और हवेली की पश्चिमी दीवार श्वेत रंग में शोभित हैं -


पूर्व में रंत्नों -नंगों से जड़ित नीले रंग के थंभों की अद्भुत शोभा आयीं हैं


*जहाँ जिस रंग की दिवाल हैं वहाँ उसी रंग के थम्भ हैं |श्री राज श्री ठकुरानी जी श्वेत दिवाल को पीठ देकर पूर्वाभि-मुख ,सिंहासन के ऊपर विराजमान होते हैं |और निखिल सखी गण चारों तरफ भर कर बैठती हैं |श्री नवरंग बाई कई तरह से नृत्य करती हैं एवं श्री राज जी के अनेक आनन्दोत्पादक गुणों का गान करती हैं*

जहाँ जिन रंग के मंदिर सुशोभित हैं वहां उन्हीं रंगों में थंभों की अपार शोभा आयीं हैं --निरत की भोम चेतन ,नूरमयी ,प्रकाशमान और इश्क की सुगंधी से लबरेज हैं | एक हीरे से सुसज्जित भोम में जुदे जुदे रंग जवेरातों के समाए हैं जिनकी बेशुमार जोत हैं | इनसे उठती तरंगें उनकी किरणें संपूर्ण वतन को महका रही हैं | अहो ! निरत का समय हो गया | मेरी रूह के  प्रियतम श्रीराज-श्यामा जी चबूतरे पर श्वेत दीवार को पीठ देकर पूर्व की और  मुख करके सुसज्जित नूरमयी सिंहासन पर विराजमान हुए और हम रूहें उन्हें घेर कर बैठती हैं |

देखिए ,नवरंग बाई हाजिर हैं निरत के लिए-वो अति किशोर स्वरूप धामधनी जी की लाड़ली अगना हैं |उन्होने कितने सुन्‍दर बस्तर भूखन धारण किए हैं जिनकी जोत चारों और जगमगा कर रही हैं |

ऐसी मेरी प्यारी नवरंग बाई चौक के मध्य आ कर धनीधनी के सन्मुख निरत के लिए पेश होती हैं | साथ मे उनके जूथ की सखियां है जो नूर जमाल का नूरी मुखमंडल एकटक निहार रहीं हैं |

और प्रीतम श्रीराज जी की नज़रों का इशारा पाते ही नवरंग बाई का अलौकिक निरत प्रारंभ हो गया -बाजे की सेवा करने वाली सखियों ने बाजे बजाने शुरू कर दिए | मृदंग बाई ने मृदंग बजाया और तान बाई ताल से ताल मिला रही हैं और सुनिए सेन बाई सुरीले स्वर में गायन कर रही हैं | कोई पिऊ की प्यारी रूह ढोलक बजा रही है तो कोई मृदंड कोई तो कोई बाजे से मधुर स्वर निकाल रही हैं |रस मे डूबी मीठी आवाज़ पूरे वतन को गुजायमान कर रही है |भाँति भाँति के बाजो से छत्तीसों राग गूँज रहे है और मेरी रूह के भी कदम मचल उठे निरत के लिए-

प्रियतम श्री राज जी की प्यारी नवरंग बाई अपनी मीठी रसना से धनी का गुणगान करते गायन प्रारंभ करती हैं और दिल मे भाव ले मनमोहक अदा से निरत करती हैं तो जूथ वाली सखियां भी वैसे ही ताल से ताल मिला गायन कर निरत करती हैं |जैसा नवरंग बाई चाहती हैं वैसे ही मृदंग बजते हैं और बाजे बजते हैं |बाजो की गूँज भी ताल से ताल मिला कर समा बाँधती हैं | श्रवनो को प्रिय लगने वाले मधुर स्वर लहरी और नवरंग बाई की मोहक लुभावनी अदाएं मेरी रूह को पुलकित कर रहे हैं | नवरंग बाई की निरत के साथ साथ मृदंग भी ज़ोर से बज उठे |संगीत की लहरियों पर होता निरत ,प्रियतम श्रीराज-श्यामा जी को रिझाने के भाव

धाम की अलौकिक निरत हो रही हैं और सब की चाह कि मैं श्रीराज-श्यामा जी के सम्मुख निरत करूँ | सभी सखियां निरत करते करते हक के नज़दीक जाती हैं |सब जगह उनके निरत के प्रतिबिंब नज़र आ रहे हैं |मेरी रूह की नज़र जहाँ भी जाती हैं वहाँ निरत हो रही हैं |25 पक्षों मे हर शह निरत की गूँज में मदमस्त हो निरत कर रही हैं |

निरत करते मदमस्त अदा से आना और जाना ,घेरा बना कर निरत करना और अंगूरियों को चलाना , हर स्टेप में बाजे वाली सखियों का साथ अद्भुत हैं |नवरंग बाई की चतुराई मेरी रूह देख रही हैं | निरत करते समय उनकी चाहना से भूखन बजते हैं | अगर उनकी चाह हैं कि एक घूंघरी का स्वर गूँजे तो एक ही घूंघरी बजती हैं | दो की चाह हो तो जोड़े से दो घूंघरी मीठे स्वर मे बजती हैं और नवरंग बाई अगर यह चाहे कि तीन घूंघरी बजे तो वैसा ही होता हैं | आभूषण भी उनकी दिल के भाव जान मीठी आवाज़ में झंकार करते है |घूंघरी के मधुर स्वर के साथ जब मृदंग बज़ उठे तो क्या कहे |सारंगी भी बज उठी और उसके साथ स्वर से स्वर मिला सब बाजे भी स्वतः ही बज़ उठे |जंत्र बजता हैं तो उसकी मधुर आवाज़ से ताल मिला कर बाजे बजते हैं |जब श्री मंडल के छत्तीसो स्वर गूंजते हैं और रूहें मीठे स्वरो से पिऊ का गुणगान करती हैं तो कोई भी निरत करने से खुद को नही रोक पाता |सभी झूम उठते हैं | हक के सन्मुख जो निरत के विलास हैं आनंद हैं वो कथनी से परे हैं |

एक पहर तक रूह ने निरत का सुख लिया ,अब समय हो गया पोढ़न का |हक ने रीझ कर प्रसन्न हो पान की बीड़ी रूह को दी …मेरे हक श्री राज और श्यामा जी सिंघासन से उठे संग रूहे भी उठी और अर्शे मिलावा चला पाँचवी भोंम…उनके पाँवो की थाप से नवो भोम में गर्जना हो रही है और आ पहुचे पाँचवी भोम …जहाँ श्री राज शयन सुख देते हैं |

*महामत कहे ए मोमिनों ,ए चोथी भोम कहे निरत |
अब कहूं भोम पाँचवी ,जित पधारे पोढ़न के बख़त* ||30/21बड़ी विर्त लाल दास जी महाराज     


                                                                      
                                                                     

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