शनिवार, 3 जून 2017

shri rangmahal -prtham prikrma

श्री परमधाम की अखंड निसबती रूह ने पहली परिक्रमा सम्पूर्ण की --आत्मिक दृष्टि से नव भोम दसवीं आकाशी के सुख लिए --

रंगमहल की प्रथम भूमिका में रसोई के चौक में धाम धनि और सखियों संग आरोगने के अखंड सुख लिए --मुलमिलावे में जा कर धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी के चरणों में सजदा किया --उनके नूरी स्वरूप सिनगार को हृदयगम किया --

दूसरी भूमिका में युगल स्वरूप के स्वरूप सिंगार में डूब उनके संग भुलवनी की  अपार क्रीड़ाएं कर खड़ोकली में झीलना के सुख लिए  --कभी झीलना सिंगार कर क्रीड़ा की तो कभी क्रीड़ा कर झीलन सिंगार के सुख लिए 

तीसरी भूमिका में तीजी भोम की पड़साल के सुख धनि ने महसूस कराए --बड़ी बैठक --वो बड़े बड़े झरोखों से धाम धनि की एक अमृतमयी नजर के लिए उमड़ते पशु पक्षी ,वन भी झुक कर धाम धनि को नमन करते हैं और जमुना जी का वन भी उछल उछल कर दीदार चाहता हैं --यही बाल भोग से ले राज भोग की लीला के सुख लिए

धनि के इश्क में सराबोर रूह चौथी भोम में खुद को भुला झूम उठी ,निरत की अलौकिक लीला के आनद रूह ने लिए --जब निरत की हवेली में धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियों ने निरत के सुख लिए तब सम्पूर्ण परमधाम में लीला के सुख प्रतिबिम्बित हुए --सबने यही जाना कि मेरे सामने ही निरत हो रही हैं  --

नृत्य लीला के आंनद मे सराबोर हो पांचवीं भोंम में पधारते हैं  |रंग परवाली मंदिर मे श्री राज-श्यामा जी को शयन करा जैसे ही नमन करते है तो आत्म खुद को अपने मंदिर मे सेज्या पर अपने को सुभान  के सन्मुख पाती है | यहां धाम  धनी  अपनी रूहों को सेज्या सुख देते हैं | प्रातः श्रीराज जी  अपनी लीला समेत पुन अद्वेत रूप में आ जाते है | जब हम सखियां उन्हे सुबह अपने पास नही  पाती तो व्याकुल हो रंगपरवाली मंदिर जा कर युगल स्वरूप के दर्शनो मे आराम पाती है |

छठी भूमिका मे सुखपाल और तख्तरवा का स्थान है ! प्रियतम श्रीराज जी  जब  मन में  चाहना करते है तो  उसी पल उनके  आत्म स्वरूप सुखपाल और तख्तरवा हाजिर हो तीजी भोंम की पड़साल से लग जाते है | सुखपालो मे दो दो सखियां बैठ बनो मे सैर को जाती है  और जब मिलावे मे जाने का मन हो तो तख्तरवा हाजिर हो जाता है | उड़ान भरता तख्तरवा गोल महल की तरह भाता है | जब हम बनो मे जाते है तो आकाश के जीव आकाश मे ,,,,ज़मीन की जीव ज़मीन पर बाजे बजावते ,नाचते कूदते ,पिऊ-पिऊ की रट लगा कर  अस्वारी के साथ चलते हैं |

सातवीं आठवीं भोम में रूह ने हिंडोलों में धाम धनि जी कि नयनों में नयन बाँध झूलन के सुख लिए --सामने प्रियतम हो ,मस्त समा और मधुर संगीत स्वर लहरी ,सुगन्धि के झोंके और पीया का साथ 

नवी  भोम में प्रीतम संग सम्पूर्ण परमधाम के नजारें देखे --धाम के इन विशाल झरोखो में जब हक़ हादी  रूहों के साथ आएं  तो धाम धनि ने  हम रूहो को अपनी अंगुली के इशारों पर दिखाते हे

पूर्व में बैठे हे तो
चांदनी चौक 
सातघाट 
यमुना जी
अक्षरधाम

पश्चिम में बैठते हे तो
नुरबाग
फूलबाग
दुब दुलीचा
पश्चिम के मैदान 

उत्तर में बैठते हे तो
तिरछी निगाहों से नीचे की और खडोकली
बडोवन के वृक्ष
पुखराज पहाड़ 

दक्षिण में बैठते हे तो
नीचे की तरफ नजर करके बट पीपल की चौकी
कुञ्ज निकुंज वन
माणेक पहाड़
चौबीस हास के महल

दसवीं चांदनी पर आएं तो मेरी रूह को याद आते हैं रंगमहल की दसवीं चाँदनी के अखंड सुख –
आप श्री युगल स्वरूप और सब साथ पूर्णिमा को रंगमहल की चांदनी पर रमण करने के लिए आते हैं | अर्शे मिलावा मध्य में सुशोभित चबूतरे पर सिंघासन कुर्सियों पर विराजमान होता हैं और चांदनी के मनोहारी नज़ारों के सुख लेता हैं —
201 हांस में आया नूरमयी चबूतरे की शोभा रूहें देखती हैं |जिसके चारो कोनो पर आए कुंडो से मोतियो की बूँदो के मानिंद फव्वारे उछल रहे हैं | फव्वारों से उछलती मोती के मानिंद निर्मल ,उज्जवल ,सुगंधित रंगबिरंगी बूँदियां रूहों को धाम धनी श्री राज जी के इश्क प्रीति में डुबो रही हैं |
चबूतरे के चारों और घेर कर चाँदनी पर बाग -बगीचों की मनोहारी शोभा आईं हैं | चबूतरे के साथ लगते मेवों के बगीचे शोभित हैं तो कहीं फूलों की सुगंधी में सराबोर करते फूलों के बगीचे हैं और बीच-बीच में आईं दूब–रंगों की अदभुत चटा बिखेरती दूब –जिन पर सुसज्जित दुलीचों पर रूहें श्री राज जी के संग रमण करती हैं | खुली चाँदनी के नीचे आईं फूलों की नूरी बैठकों पर श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं | देखिए खूब खुशालियाँ हाजिर हैं -मेवों से भरे थाल लेकर और मनुहार कर के प्रेम के साथ धाम दूल्हा को आरोगवाती हैं |
किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की —कुछ एक सखियां श्रीराज-श्यामा जी के संग चबूतरे पर बैठ धनी के संग मीठी मीठी बाते करती है —तो कुछ युगल जोड़ी की अनुपम छब फॅब को एकटक निहार रही है—,कुछ सखियां बनो मे एक दूसरे का हाथ थामे नहर के किनारे रमण करती हैं |.तो कुछ दहलानो मे हांसविलास करती है —तो कभी चांदनी पर आए कुंडो मे झीलना कर दहलानों में सिंगार सज मध्य चबूतरे पर रास खेलते हैं | चाँदनी रात में यहाँ देर तक नृत्य लीला के सुख लेते हैं |

प्रथम परिक्रमा की रूह ने धनि संग --

अब रूह की अर्जी --पिया जी ले चलिए दूसरी परिक्रमा में

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