शुक्रवार, 9 जून 2017

jamuna ji ke kinare sat ghaato men raman

प्रणाम जी 

रूह मेरी चले धाम की सैर करने ,संग में धाम धनि हो ,प्यारी निसबती सखियाँ हो --रंगमहल की नवमी भोम में रूह खुद को महसूस कर --पूर्व दिशा की मनोहारी बैठक और धाम धनि तुझे अंगूरी के इशारे से सात वनों की मनोहारी ,अलौकिक शोभा दिखला रहे हैं --


धाम में हैं रूह  --

देख तो बायीं और से --केल ,लिबोई ,अनार ,अमृत ,जाम्बु ,नारंगी और वट वन की अलौकिक ,सुहानी शोभा ---कितनी सुन्दर चांदनी ,फूलों की मखमली चादर सी बिछी ,सुगन्धि से लबरेज --केल और वट वन पांच भोम छठी चांदनी के दिखाई दे रहे हैं  --यह वन दो भोम तीसरी चांदनी के ही हैं पर इन वनों से बड़ो वन के पांच वृक्षों की हारें निकली हैं जिनकी पांच भोम  छठी चांदनी हैं --यह वृक्ष केल वन में गुजरे तो केल वन का रूप ले कर शोभित हुए वट में निकले तो वट वृक्ष के रूप से सुसज्जित हो गए जिनसे इनकी पांच भोम छठी चांदनी दिखाई देती हैं --इन वृक्षों में अति सुंदर फूलों के सुखदायी हिंडोले हैं ।रूह के दिल में आयीं इन हिंडोलों में धाम धनि श्री राज जी के संग झूमों ,श्री श्यामा जी के संग हिंडोलों में सेज्या हिंडोलों में झूलूं --तो देख तो रूह --दिल में इच्छा उपजते ही युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग ,सखियों के साथ वट वन में आएं वट रूप में सज्जित वृक्षों के अति सुखदायी हिंडोलों में खुद को देखा --
रूह को श्री राज जी ने दिखाएं अति सुन्दर हिंडोलों की शोभा --कहीं बैठ के झूलने की लीला तो कहीं सेज्या हिंडोले तो कहीं रूह खड़े खड़े हिंडोलों में हींचने का सुख ले रही हैं ।अति सुन्दर ,सुखदायी धाम के अखंड सुखों से रूह को प्रसन्न करते झूले --रूह इन हिंडोलों में झूलने के सुख ले रही हैं --कोई सखी श्री राज जी का मुख निहार रही हैं तो कोई उनके अंग -संग झूला झूल रही हैं --एक का सुख सभी के दिल को आनंदित  कर रहा हैं --सभी के मुख उल्लास से भरे ,प्रेममयी क्रीड़ा में मग्न --


इन समय में पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड आ आ कर अर्शे मिलावा का दीदार कर रहे हैं ,उनकी पीऊ-पीऊ,तुहि -तुहि की मीठी गुंजार और नजर से नजर बाँध झूलते प्रियतम श्री राज जी की लाड़ली सखियाँ ,उनके भुखनों की मधुर स्वरों की गूंज और ठंडी ठंडी बयार के झोंके सहलाते हुए --

सामने पांच वनों की अति सुन्दर चांदनी और केल के वन की शोभा --

झूलों के सुख ले तले की भोम में आएं तो धनि ने दिखाई शोभा 


यह सात वन अति मनोहारी शोभा से युक्त हैं ,सभी वन 500  मंदिर के चौड़े और जमुना जी तक 2000  मंदिर के लम्बे आएं हैं । आडी -खड़ी नहरों के मध्य 500  -500  मंदिर के चार चार बगीचे शोभित हैं --इन एक बगीचा में दो-दो मंदिर के अंतर पर नूरी वृक्ष आएं हैं --जिनकी डालियों ,फूलों पत्तियों ने एकल छत्रीमण्डल डाला हैं --इन की दो भोम तीसरी चांदनी की शोभा रूह देख रही हैं ----


सर्वप्रथम रूह युगल स्वरूप सखियों के संग केल वन पधारती हैं ।


इन सात वन जमुना जी तक सुशोभित हैं पाल पर बड़ो वन के वृक्षों की पांच हारें आयीं हैं ।बड़ो वन के वृक्ष जिस भी वन के सामने से निकलते हैं उसी रूप में हो जाते हैं ।अब धाम धनि श्री रूह को केल पुल के नजदीक आएं केल घाट की शोभा दिखला रहे हैं ।जिनके अंदर बहुत ही सुन्दर चौक आए हैं ।केले के गुच्छे जमुना जल पर लटकते हुए बेहद ही सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं ।जमुना जी के जल के ऊपर कच्चे और पक्के केलो के कतरे लटके हुए बहुत सुन्दर दिख रहे हैं -- बीच बीच में दरवाजे बने हैं -- केलो की डालियों की मेहेराबो ने कई तरह की शोभा से पाल को  ढका हैं --चौक के चारो तरफ केले के कतरे लटक रहे हैं - नीचे ज़मीन पर मोती के समान रेती के चौक बने हैं जिनकी नूरमयी रोशनी अपार झलकार  कर रही है।चौको के बीच गलियां आई  हैं जिनके ऊपर पत्तो ने सुखकारी  छाया की हैं ।बाहिरी हार में केले के फलों की शोभा हैं भीतरी और सभी प्रकार के नारियल ,सुपारी और आँवला आदि के वृक्ष शोभित हैं ।

केल घाट-केल वन में रूह कोमलता ,परमधाम की मनोहारी ,स्नेहिल शोभा को महसूस कर आगे लिबोई घाट पहुँचती हैं 



लिबोई घाट के वृक्ष हर कतार मे पाँच भोंम छठी चाँदनी के अपार नूरमयी झलकार कर रहे हैं ।इस घाट में निम्बू के अलग अलग वृक्षों की लंबी लंबी डालियां एक दूसरे से मिलकर सबकी एक  छत हो गयी हैं।इनकी शीतल छाया सुगन्धि से भरपूर हैं ।जल के किनार वृक्षों की जो हार आयीं हैं उनके कच्चे पक्के निम्बू के फल जवेरहातों  की तरह लटक रहे हैं ।लिबोई वन में निम्बू के नूरी फल छतरियों की छाया में लटक रहे हैं जो सुगन्धित हवा के झोंके से जब हिलते हैं तो रूह का अंग प्रत्यंग झूम उठा ।एक भोम नीचे ज़मीन पर है जिसमें मोती के सामान उज्जवल  रेती बिछी हैं ,दूसरी भोंम मध्य में आई है , और तीसरी चाँदनी कही है। चांदनी की शोभा अति सुन्दर हैं ।नींबू घाट की हद पश्चिम में ताड़ वन तक आई है।
लिबोई वन में श्री युगल स्वरूप सखियों के संग प्रेममयी क्रीड़ा करते हैं उन समय वन की शोभा का वर्णन नहीं कर सकते हैं ।अब श्री राज जी के हुकम से परमधाम के अलौकिक अनार घाट की और जा रही हैं


अब पाल चबूतरे पर अनार के घाट के वृक्षों की शोभा धाम धनी रूहों को दिखला रहे हैं -- पाल चबूतरे की शोभा एक ही हीरे की आई है।पाल के दोनों किनारों पर दो हार वृक्षों की आई है और वृक्षों की तीन हार चबूतरे के मध्य आई है।जमुना जी की तरफ वृक्षो की जो हार है उसके आगे रत्नों  से जडित सीढ़ियां शोभा ले रही हैं --जल चबूतरे से सीढ़ियाँ उतरते हुए जल की ज़मीन तक आई है।अनार वन की दो भोम छठी चांदनी आयीं हैं और जमुना जी के पाल पर  अनार रूप में आएं बड़ो वन के  दोरी बँध वृक्षों की पाँच भोंम छठी चाँदनी आई है जिनके बीच चौक आए हैं।जिनकी शोभा बहुत ही सुहावनी है ।अनार के फल और फूलों की लालिमा चारो और झलकार कर रही है !यहाँ पर श्री युगल स्वरूप सखियों के साथ नित्य विहार करते हैं।यह घाट रंगमहल के पाँच सौ मंदिर के सामने आया है- इस घाट के सामने रंगमहल के  पाँच सौ झरोखे और एक हज़ार दरवाजे सुन्‍दर शोभा ले रहे हैं ।अनार वन में यहाँ वृक्षो की हार मे दो दो मंदिर की दूरी पर एक एक वृक्ष आया है !अतः घाट की चौड़ाई में दो सौ पचास वृक्ष हुए यह शोभा अत्यंत सुखकारी है।इन वृक्षो की दो भोंम है ! एक भोंम ज़मीन पर और एक मध्य मे है ! तीसरी चाँदनी की पहचान रूह कर रही हैं ।जब रूह रंगमहल की पहली भोंम के दरवाजे मे खड़े होकर देखती  हैं तो नीचे की ज़मीन दिखाई देती है और जब झरोखों में बैठते हैं तो वृक्षो की दूसरी भोंम दिखाई देती हैं -जब रंगमहल की दूसरी भोम मे बैठते हैं तो बनो की तीसरी चाँदनी नज़र आती है


अब धाम धनि श्री राज जी पाट घाट के सामने अमृत वन की अति मनोहारी ,सुन्दर शोभा में रूह को ले जा रहे हैं
दोनों पुलों के बिच में जमुना जी के दोनों किनारों पर सात सात घाट आएं हैं जिनके मध्य में अमृत वन के सामने पाट घाट आया हैं ।पाट घाट के सामने आया अमृत वन अत्यधिक सुन्दर हैं ।रंगमहल के मुख्य द्वार के अति निकट यह वन मनोरम शोभा से युक्त हैं ।अमृत वन में अखरोट ,अंजीर के नूरी वृक्ष आयें हैं जिनके ऊपर अंगूर की बेलों की शीतल छाया रूह महसूस कर रही है जो धाम दीवार तक चली गयी हैं ।

पाट घाट से दो मंदिर की नूरी रोंस जो अमृत वन के बीच में होती हुई धाम की सीढ़ियों तक ले जा रही हैं और धाम दरवाजे के सम्मुख विशाल चांदनी चौक रूह देख रही हैं 

अब जमुना  जी किनारे जाम्बू घाट में रूह रमन कर रही हैं --जाम्बू घाट और बटघाट के बीच में नारंगी घाट की शोभा है -जमुना जी के दोनो किनारे  रतन जडित शोभेयमान है और दोनो बाजू दो पाल चबूतरो का बराबर विस्तार है -कमर भर  जल के नीचे एक जल चबूतरा शोभा ले रहा है--रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग जल रोंस से सीढ़ियाँ उतर कर जल चबूतरे पर आयीं --यह सभी शोभा नूरमयी जवेरहातों की हैं जिनकी झलकार आकाश तक जा रही हैं --जमुना जी का जल दूध से भी उज्ज्वल है और अपार सुगंधी से महक रहा है !जमुना जी किनारे सुशोभित वन ,वृक्ष और पत्ते भी सुगंधी फैला रहे हैं।


प्रियतम श्री राज जी की मेहर से रूह पांचवां घाट जाम्बु घाट में रमण कर रही हैं ।उन समय के सुख वर्णन से परे हैं ।इन घाटों के बीच रूहें  श्रीराज  जी के साथ खेलती हैं - जमुना जी में झीलने के समय  दिल में मान लेकर धनी से बाते करती हैं -रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग जमुना जी के नूरी उज्जवल  जल में प्रवेश करती हैं-तो कोई रूह वनों की डालियों को पकड़ जमुना जी के जल में छलांग  लगाती हैं 
कुछ प्यारी सखियाँ जमुना जी की पाल पर शर्त लगाकर दौड़ लगा रही हैं।कोई सखी प्रियतम श्री राज जी के संग पाल पर आयीं बैठकों में बैठ उनसे मीठी मीठी रसना के सुख का रसास्वादन कर रही हैं तो एक रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी के मुख को निरख रही हैं ।कोई सखी वृक्षों के ऊपर से खड़े खड़े कूदने के लिए शोर करती है !कुछ एक दूसरे को बुलाते हुए जगह जगह रमण करती है।कोई सखी विचार करते हुए दूसरी सखी का हाथ पकड़ के वृक्षों के ऊपर जाती हैं और दोनो हाथ जोड़कर  कूदती हैं।एक सखी दूसरी सखी के सामने जल छाँटने लगती है और सामने से दूसरी सखी भी जल छाँटने लगती है!श्री राज जी दोनो सखियों के मुख की आभा देख प्रसन्न हो रहे हैं ।श्रीराज जी और श्री श्यामा जी जब सखियों के साथ जल में तैरते हैं तब सखियाँ रमण करते समय जल छिटक कर श्रीराज जी के साथ सुख लेती हैं।इस अलौकिक रमण के समय कोई सखी तृप्त नही होती - जल से किसी भी तरह निकलती ही नही है क्योकि रमण में उसे अपार सुख की अनुभूति हो रही होती है ।जब श्रीराज जी श्यामा जी वापिस आते हैं तो साथ में रूहें भी दौड़कर आती हैं।चार-चार सखियाँ तत्क्षण पहले अपना सिनगार सजती है और जैसे श्रीराज जी और श्यामा जी चबूतरे पर आते हैं उन्हे घेर लेती हैं।सिनगार के समय एक एक सखी श्रीराज जी श्यामा जी को सिनंगार कराती हैं - सभी सखियों में हक के माफक इश्क और उमंग है।श्री राज जी श्री श्यामा जी के स्वरूप मस्ती भरे हैं ! उनके नख से सिख तक के सभी अंग-अंग अपार नूरमयी शोभा से युक्त हैं।उनके वस्त्राभूषण की नूरी ज्योति झलकार कर रही है और उनकी रंग बिरंगी किरणे आसमान में जंग कर रही हैं यह सुख धाम धनी या उनकी रूहें ही जानते हैं।
यह जाम्बु घाट में रमण कर रूह अब नारंगी घाट की और बढ़ती हैं 

नारंगी घाट में रूहें रमण कर रही हैं - यह उस अद्वैत भूमि का वर्णन हैं जहाँ एक पत्ता भी कभी गिरता ना ही एक पक्षी का पंख ही गिरता है- जहाँ के कण के तेज के आगे करोड़ो सूरज छिप जाते हैं- ऐसे नूरमयी, चेतन ,प्रकाशमान और सुगंधी से भरपूर अलौकिक घाट में रूहें प्रियतम श्रीराज जी के संग रमण कर रही  है और श्रीराज-श्यामा जी के साथ अलौकिक झीलने की क्रीड़ा के सुख ले रही हैं ।यह नारंगी घाट दक्षिण में वट घाट से जा कर मिला है और उत्तर मे जांबू  घाट से मिलकर अपार शोभा बढ़ा रहा है।जमुना जी की जल रोंस पर फलों के चार हारों के नीचे सात-सात फलों की कांगरी की शोभा आई है जिनकी लालिमा युक्त पीलापन लिए शोभा सुखकारी दिखाई देती है।इन वनों के बीच श्रीराज जी श्री श्यामा जी और सखियाँ रमण करते हैं।नारंगी वन के फल लटकते हुए मनोहारी प्रतीत हो रहे हैं ।कोई ब्रह्म प्रिया श्री राज जी  के सन्मुख आकर उनसे बाते करती है और महबूब श्रीराज जी उन्हे जवाब देते हैं ।कोई सखी श्रीराज जी के क्रीड़ा करती है तो कोई सखी रूहों के साथ खेलती है।वनों में रमण करती अपनी ब्रह्म प्रियाओं को जब श्रीराज जी देखते हैं तो उनके अंग प्रत्यंग में उमंग नहीं समाती है ।


जब श्रीराज जी और श्री श्यामा जी इन सीढ़ियों से उतरते हैं तो सभी ब्रह्म प्रियाएँ भी जल बिहार करने के लिए जमुना जी के निर्मल जल मे उतरती हैं ।कोई सखी तो ऊपर वनों से दौड़कर जल मे कूदती हैं और एक दूसरे को जल में रमण करने  के लिए बड़ी ही युक्ति से बुलाती हैं।कोई सखी हाथ जोड़ कर दूसरी सखी के साथ जल में कूदती हैं !श्रीराज श्यामा जी और सखियाँ खड़े खड़े  इनकी सराहना करते हैं।कोई सखी जल में तैरते हुए बहुत दूर तक निकल जाती है कोई सखी इनके पीछे चलती है तो कोई सखी खड़े रहकर बाते करती हैं।कोई सखी प्रेम से जल छांटती है फिर आमने सामने जुदे हो जाती हैं उन सखियों की इस लीला पर बहुत हाँसी होती है और श्रीराज जी श्यामा जी भी इस हंसी में शामिल होते हैं।सखियाँ जल छोड़ते हुए आसमान में उछाल रही हैं ! कई सखियाँ श्रीराज जी की तरफ होती हैं तो कई सखियाँ श्री श्यामा जी की तरफ होती हैं।श्रीराज जी के साथ कई प्रकार की जल क्रीड़ा करके बेशुमार सुख बिलास लिए।कोई सखी श्रीराज जी के सन्मुख खड़ी होकर सिनगार कराती है तो कोई श्री श्यामा जी को  सिनगार कराती है।झीलन के सुख रमण के सुख --अब धनि ले चल रहे बट घाट की और


बट वन की कुछ ख़ास शोभा हैं --बट वन की जगह कुञ्ज निकुंज की शोभा रूह ने देखी और बट घाट आया हैं -पाल और वन रोंस पर बट घाट सुशोभित हैं 


 इस चौक मे मध्य मे एक बट का पैड आया है। जिसकी चारो तरफ अस्सी बॅडवाईया आई है और एक मध्य मे बट का पैड । सब मिलकर 81 हुए जिनकी नौ की नौ हारे आई है। एक दिशा मे आठ मेहराबे हुई।इनकी पाँच भोंम छटी चाँदनी आई है ।हर भोंम मे आठ की आठ हारे चौक हुए जिनमे हिंडोले आए है। जमुना जी तरफ चौक से तीन सीढी उतर रूह सखियों के संग जल रोंस पर उतरती हैं  कभी  रंगमहल की तरफ चबूतरे से वन रोंस पर सीढी उतर वनो मे जाती हैं ! जमुना की तरफ वाली डालियों ने जल चबूतरे तक छतरिमंडल किया है और रंगमहल की और पुखराजी रोंस से मिलान किया है।बट वृक्ष के पत्तों ,फूलों और डालियों सभी नूरमयी विस्तार लिए हैं - इनमें आए नूरी हिंडोलों पर श्रीराज श्री श्यामा जी विहार करते हैं।
जब युगल स्वरूप श्रीराज श्री श्यामा जी की अस्वारी बट घाट पर उतरी  तब खिलौने एक कतार में खड़े हो गए ।सभी सुखपाल श्रीराज श्यामा जी के सुखपाल को घेरकर एक ही स्थान उतरते हैं।श्रीराज श्यामा जी सुखपाल से उतर कर लटकनी मटकनी चाल से चलते हैं-रूहें इस शोभा को देखकर अपार खुशहाल हो रही हैं ।किशोर स्वरूप अति सुन्दर श्रीराज जी के आभूषण  झलकार कर रहे हैं और उनके वस्त्र अंगों से लगे हुए हैं जिनसे तरंगों की कई ल़हेरें उठ रही हैं।
कोई सखी वन की डालियों पर चढ़ कर रमण कर रही  है तो कोई सखी  बट वृक्ष के नीचे क्रीड़ा करती है -कोई वट की डाली पर चढ़ जाती है तो कोई जमुना जी के तट पर खेलती है।कोई सखी हिंडोलों में हींचती है तो कोई सखी वट की डारी पर चढ़ ऊँचे जाकर दूसरी सखियों को टेर (आवाज़ ) कर बुलाती है।सखियाँ बट घाट की भोम -भोम मे हिंडोलें हींचती है और श्रीराज श्यामा जी उनके संग होते हैं-हक श्री  राज जी के सामने यहाँ कई विलास किए ! कोई सखी तो प्राण प्रियतम के सुखों को नयनों से निहारती हैं

श्री राज जी के बेशक इलम से जाना यह सुख हमारे अखंड निज घर परमधाम के हैं जिन्हे चितवन से रूह महसूस कर रही हैं ।

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