सोमवार, 12 जून 2017

SAT VAN SHOBHA QUE-ANS

1--रूह खड़ी हैं श्री रंगमहल के मुख्य दरवाजे के आगे दो मंदिर के लम्बे चौड़े चौक में -चौक की उज्ज्वल आभा और दोनों और चबूतरों की अपार शोभा और ठीक सामने धाम की अति विशाल ,मनोहारी सीढ़ियां उत्तर रही हैं --रूह इन सीढ़ियों पर पग धरती हैं ,अति कोमल सीढ़ियां रूह को कहाँ पहुंचाएंगी ?

यह सीढ़ियां  रूह को 166 मंदिर लंबे चौड़े अमृत वन के तीसरे हिस्से में आएं चांदनी चौक में मध्य रोंस पर पहुंचाएगी  
2--चांदनी चौक में खड़ी हैं और हाजिर खिलौने असवारी के लिए प्रस्तुत 
नूरी घोड़े पर रूह असवार हुई और धाम का नूरी घोड़ा आकाश में उड़ान भर रूह को धाम नजारें दिखाने लगा 
रूह हैं धाम में और वहां से देखती हैं वन 
सात वनों की अलौकिक शोभा 

तो यहाँ रूह को धनि ने किस क्रम में वन दिखाए  ?

हम धाम में हैं तो धाम के धनि यह सबसे रंगमहल के पूर्व में आये सात वनों में से मध्य के अमृत वन की शोभा दिखाएंगे फिर दक्षिण  की और आये केल वन, लिबोई वन अनार वन,अमृत ,जाम्बु ,नारंगी ,वट  ( दक्षिण से उत्तर  की और)


यह क्रम धाम में खड़े होकर से देखने पर हैं अगर हम कालमाया के ब्रह्माण्ड को पार कर बेहद को पार कर पहुँचते हैं तो देखेंगे यही क्रम --उत्तर से दक्षिण की और 

3--जमुना जी का निर्मल ,दूध से उज्जवल ,मिश्री से मीठा जल और जमुना पर आये दो पुल 

तो किन दो पुलों के बीच सात घाटों के रूह ने दर्शन किए   ?
केल पुल और वट पुल इन दो पुलों के बीच में सातों घाटों के दर्शन किये ।

4--रूह नूरी घोड़े पर असवार सात वनों के ऊपर आसमान की ऊंचाइयों में हैं ..धनि की मेहर से रूह ने दर्शन किए --वनों की अति सुन्दर चांदनी के --फूलों -फलों और पत्तियों ने कृपा कर एक रूप छत्रीमण्डल डाला हैं --मखमली चांदनी --रूह इन चांदनी पर उत्तरी हैं --साथ में सखियाँ भी आ गयी --चांदनी पर रमन के सुख रूह ले रही हैं ..अति कोमल ,सुगन्धि से महकती वनों की चांदनी --रूह ने धाम धनि ने दिखाया कि वन दो भोम तीसरी चांदनी के सुशोभित हैं और जमुना कि पार पर बड़ो वन के वृक्षों की पांच हारें हैं जो घाट रूप में सुशोभित हैं इनकी कितनी भोम हैं ?

 पांच भोंम और छट्ठी चांदनी

5--केल वन और वट वन में से बड़ो वन के वृक्षों की हार आने से यह वन कितने भोम के प्रतीत हो रहे हैं ?

बड़ो वन के वृक्ष आने से केल वन और बट वन पांच भोम छट्ठी चांदनी के रूप में प्रतीत हो रहे हैं

6--रूह ने देखा कि तीन वन रंगमहल की दिवार से लगे हैं यह कोनसे तीन वन हैं ?

अनार,अमृत  और जाम्बू यह तीन वन रंगमहल की दिवार से लगे है ।

7--रंगमहल के मुख्यद्वार के सामने रूह ने देखा कि अमृत वन शोभयमान हैं --द्वार के ठीक सामने अमृत वन के तीसरे हिस्से में चांदनी चौक आया हैं --द्वार से सीढ़ियां उत्तर कर चांदनी चौक कि मध्य रोंस हैं यह रोंस अमृत वन को दो हिस्सों में बाटती हुई अमृत वन से जमुना जी और बढ़ रही हैं --आगे पुखराजी रोंस ,वन रोंस पाल पर होते हुए यह कोनसे घाट पहुंचाती हैं ?

धामधनि के साथ चलती हुई रूह चांदनी चौक के मध्य नंगो की रोस पार कर अमृत वन की रोस जिस पर अमृत वन के वृक्षो की मेहेराबे बनी हुई है यह रोस पार करके पुखराजी रोस एवं वन रोस एवं पाल पार करके पाटघाट पर पहुचती है

8--रूह वन की चांदनी से तले की भोम में पहुँचती हैं और देखती हैं आडी खड़ी नहरों के मध्य 500  मंदिर के लम्बे चौड़े बगीचे आयें हैं --इन बगीचों में डोरी बांध वृक्षों की हारें आयीं हैं यह वृक्ष कितने मंदिर की दुरी पर आयें हैं ?

500 मंदिर के लम्बे चौड़े बगीचों में यह वृक्ष दो दो मंदिर की दूरी पर आए है ।

9--रंगमहल से लगते तीन वन आयें हैं जिनके रंगमहल से लगती वृक्षों की हारों ने आगे बढ़कर मंदिरों से मिलान किया हैं --पहली भोम रंगमहल के झरोखों से मिलान करती हैं तो वनों की दूसरी भोम की डालियाँ बढ़कर  किससे मिलान करती हैं ?

दूसरी भोम के छज्जों से 

शुक्रवार, 9 जून 2017

jamuna ji ke kinare sat ghaato men raman

प्रणाम जी 

रूह मेरी चले धाम की सैर करने ,संग में धाम धनि हो ,प्यारी निसबती सखियाँ हो --रंगमहल की नवमी भोम में रूह खुद को महसूस कर --पूर्व दिशा की मनोहारी बैठक और धाम धनि तुझे अंगूरी के इशारे से सात वनों की मनोहारी ,अलौकिक शोभा दिखला रहे हैं --


धाम में हैं रूह  --

देख तो बायीं और से --केल ,लिबोई ,अनार ,अमृत ,जाम्बु ,नारंगी और वट वन की अलौकिक ,सुहानी शोभा ---कितनी सुन्दर चांदनी ,फूलों की मखमली चादर सी बिछी ,सुगन्धि से लबरेज --केल और वट वन पांच भोम छठी चांदनी के दिखाई दे रहे हैं  --यह वन दो भोम तीसरी चांदनी के ही हैं पर इन वनों से बड़ो वन के पांच वृक्षों की हारें निकली हैं जिनकी पांच भोम  छठी चांदनी हैं --यह वृक्ष केल वन में गुजरे तो केल वन का रूप ले कर शोभित हुए वट में निकले तो वट वृक्ष के रूप से सुसज्जित हो गए जिनसे इनकी पांच भोम छठी चांदनी दिखाई देती हैं --इन वृक्षों में अति सुंदर फूलों के सुखदायी हिंडोले हैं ।रूह के दिल में आयीं इन हिंडोलों में धाम धनि श्री राज जी के संग झूमों ,श्री श्यामा जी के संग हिंडोलों में सेज्या हिंडोलों में झूलूं --तो देख तो रूह --दिल में इच्छा उपजते ही युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग ,सखियों के साथ वट वन में आएं वट रूप में सज्जित वृक्षों के अति सुखदायी हिंडोलों में खुद को देखा --
रूह को श्री राज जी ने दिखाएं अति सुन्दर हिंडोलों की शोभा --कहीं बैठ के झूलने की लीला तो कहीं सेज्या हिंडोले तो कहीं रूह खड़े खड़े हिंडोलों में हींचने का सुख ले रही हैं ।अति सुन्दर ,सुखदायी धाम के अखंड सुखों से रूह को प्रसन्न करते झूले --रूह इन हिंडोलों में झूलने के सुख ले रही हैं --कोई सखी श्री राज जी का मुख निहार रही हैं तो कोई उनके अंग -संग झूला झूल रही हैं --एक का सुख सभी के दिल को आनंदित  कर रहा हैं --सभी के मुख उल्लास से भरे ,प्रेममयी क्रीड़ा में मग्न --


इन समय में पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड आ आ कर अर्शे मिलावा का दीदार कर रहे हैं ,उनकी पीऊ-पीऊ,तुहि -तुहि की मीठी गुंजार और नजर से नजर बाँध झूलते प्रियतम श्री राज जी की लाड़ली सखियाँ ,उनके भुखनों की मधुर स्वरों की गूंज और ठंडी ठंडी बयार के झोंके सहलाते हुए --

सामने पांच वनों की अति सुन्दर चांदनी और केल के वन की शोभा --

झूलों के सुख ले तले की भोम में आएं तो धनि ने दिखाई शोभा 


यह सात वन अति मनोहारी शोभा से युक्त हैं ,सभी वन 500  मंदिर के चौड़े और जमुना जी तक 2000  मंदिर के लम्बे आएं हैं । आडी -खड़ी नहरों के मध्य 500  -500  मंदिर के चार चार बगीचे शोभित हैं --इन एक बगीचा में दो-दो मंदिर के अंतर पर नूरी वृक्ष आएं हैं --जिनकी डालियों ,फूलों पत्तियों ने एकल छत्रीमण्डल डाला हैं --इन की दो भोम तीसरी चांदनी की शोभा रूह देख रही हैं ----


सर्वप्रथम रूह युगल स्वरूप सखियों के संग केल वन पधारती हैं ।


इन सात वन जमुना जी तक सुशोभित हैं पाल पर बड़ो वन के वृक्षों की पांच हारें आयीं हैं ।बड़ो वन के वृक्ष जिस भी वन के सामने से निकलते हैं उसी रूप में हो जाते हैं ।अब धाम धनि श्री रूह को केल पुल के नजदीक आएं केल घाट की शोभा दिखला रहे हैं ।जिनके अंदर बहुत ही सुन्दर चौक आए हैं ।केले के गुच्छे जमुना जल पर लटकते हुए बेहद ही सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं ।जमुना जी के जल के ऊपर कच्चे और पक्के केलो के कतरे लटके हुए बहुत सुन्दर दिख रहे हैं -- बीच बीच में दरवाजे बने हैं -- केलो की डालियों की मेहेराबो ने कई तरह की शोभा से पाल को  ढका हैं --चौक के चारो तरफ केले के कतरे लटक रहे हैं - नीचे ज़मीन पर मोती के समान रेती के चौक बने हैं जिनकी नूरमयी रोशनी अपार झलकार  कर रही है।चौको के बीच गलियां आई  हैं जिनके ऊपर पत्तो ने सुखकारी  छाया की हैं ।बाहिरी हार में केले के फलों की शोभा हैं भीतरी और सभी प्रकार के नारियल ,सुपारी और आँवला आदि के वृक्ष शोभित हैं ।

केल घाट-केल वन में रूह कोमलता ,परमधाम की मनोहारी ,स्नेहिल शोभा को महसूस कर आगे लिबोई घाट पहुँचती हैं 



लिबोई घाट के वृक्ष हर कतार मे पाँच भोंम छठी चाँदनी के अपार नूरमयी झलकार कर रहे हैं ।इस घाट में निम्बू के अलग अलग वृक्षों की लंबी लंबी डालियां एक दूसरे से मिलकर सबकी एक  छत हो गयी हैं।इनकी शीतल छाया सुगन्धि से भरपूर हैं ।जल के किनार वृक्षों की जो हार आयीं हैं उनके कच्चे पक्के निम्बू के फल जवेरहातों  की तरह लटक रहे हैं ।लिबोई वन में निम्बू के नूरी फल छतरियों की छाया में लटक रहे हैं जो सुगन्धित हवा के झोंके से जब हिलते हैं तो रूह का अंग प्रत्यंग झूम उठा ।एक भोम नीचे ज़मीन पर है जिसमें मोती के सामान उज्जवल  रेती बिछी हैं ,दूसरी भोंम मध्य में आई है , और तीसरी चाँदनी कही है। चांदनी की शोभा अति सुन्दर हैं ।नींबू घाट की हद पश्चिम में ताड़ वन तक आई है।
लिबोई वन में श्री युगल स्वरूप सखियों के संग प्रेममयी क्रीड़ा करते हैं उन समय वन की शोभा का वर्णन नहीं कर सकते हैं ।अब श्री राज जी के हुकम से परमधाम के अलौकिक अनार घाट की और जा रही हैं


अब पाल चबूतरे पर अनार के घाट के वृक्षों की शोभा धाम धनी रूहों को दिखला रहे हैं -- पाल चबूतरे की शोभा एक ही हीरे की आई है।पाल के दोनों किनारों पर दो हार वृक्षों की आई है और वृक्षों की तीन हार चबूतरे के मध्य आई है।जमुना जी की तरफ वृक्षो की जो हार है उसके आगे रत्नों  से जडित सीढ़ियां शोभा ले रही हैं --जल चबूतरे से सीढ़ियाँ उतरते हुए जल की ज़मीन तक आई है।अनार वन की दो भोम छठी चांदनी आयीं हैं और जमुना जी के पाल पर  अनार रूप में आएं बड़ो वन के  दोरी बँध वृक्षों की पाँच भोंम छठी चाँदनी आई है जिनके बीच चौक आए हैं।जिनकी शोभा बहुत ही सुहावनी है ।अनार के फल और फूलों की लालिमा चारो और झलकार कर रही है !यहाँ पर श्री युगल स्वरूप सखियों के साथ नित्य विहार करते हैं।यह घाट रंगमहल के पाँच सौ मंदिर के सामने आया है- इस घाट के सामने रंगमहल के  पाँच सौ झरोखे और एक हज़ार दरवाजे सुन्‍दर शोभा ले रहे हैं ।अनार वन में यहाँ वृक्षो की हार मे दो दो मंदिर की दूरी पर एक एक वृक्ष आया है !अतः घाट की चौड़ाई में दो सौ पचास वृक्ष हुए यह शोभा अत्यंत सुखकारी है।इन वृक्षो की दो भोंम है ! एक भोंम ज़मीन पर और एक मध्य मे है ! तीसरी चाँदनी की पहचान रूह कर रही हैं ।जब रूह रंगमहल की पहली भोंम के दरवाजे मे खड़े होकर देखती  हैं तो नीचे की ज़मीन दिखाई देती है और जब झरोखों में बैठते हैं तो वृक्षो की दूसरी भोंम दिखाई देती हैं -जब रंगमहल की दूसरी भोम मे बैठते हैं तो बनो की तीसरी चाँदनी नज़र आती है


अब धाम धनि श्री राज जी पाट घाट के सामने अमृत वन की अति मनोहारी ,सुन्दर शोभा में रूह को ले जा रहे हैं
दोनों पुलों के बिच में जमुना जी के दोनों किनारों पर सात सात घाट आएं हैं जिनके मध्य में अमृत वन के सामने पाट घाट आया हैं ।पाट घाट के सामने आया अमृत वन अत्यधिक सुन्दर हैं ।रंगमहल के मुख्य द्वार के अति निकट यह वन मनोरम शोभा से युक्त हैं ।अमृत वन में अखरोट ,अंजीर के नूरी वृक्ष आयें हैं जिनके ऊपर अंगूर की बेलों की शीतल छाया रूह महसूस कर रही है जो धाम दीवार तक चली गयी हैं ।

पाट घाट से दो मंदिर की नूरी रोंस जो अमृत वन के बीच में होती हुई धाम की सीढ़ियों तक ले जा रही हैं और धाम दरवाजे के सम्मुख विशाल चांदनी चौक रूह देख रही हैं 

अब जमुना  जी किनारे जाम्बू घाट में रूह रमन कर रही हैं --जाम्बू घाट और बटघाट के बीच में नारंगी घाट की शोभा है -जमुना जी के दोनो किनारे  रतन जडित शोभेयमान है और दोनो बाजू दो पाल चबूतरो का बराबर विस्तार है -कमर भर  जल के नीचे एक जल चबूतरा शोभा ले रहा है--रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग जल रोंस से सीढ़ियाँ उतर कर जल चबूतरे पर आयीं --यह सभी शोभा नूरमयी जवेरहातों की हैं जिनकी झलकार आकाश तक जा रही हैं --जमुना जी का जल दूध से भी उज्ज्वल है और अपार सुगंधी से महक रहा है !जमुना जी किनारे सुशोभित वन ,वृक्ष और पत्ते भी सुगंधी फैला रहे हैं।


प्रियतम श्री राज जी की मेहर से रूह पांचवां घाट जाम्बु घाट में रमण कर रही हैं ।उन समय के सुख वर्णन से परे हैं ।इन घाटों के बीच रूहें  श्रीराज  जी के साथ खेलती हैं - जमुना जी में झीलने के समय  दिल में मान लेकर धनी से बाते करती हैं -रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग जमुना जी के नूरी उज्जवल  जल में प्रवेश करती हैं-तो कोई रूह वनों की डालियों को पकड़ जमुना जी के जल में छलांग  लगाती हैं 
कुछ प्यारी सखियाँ जमुना जी की पाल पर शर्त लगाकर दौड़ लगा रही हैं।कोई सखी प्रियतम श्री राज जी के संग पाल पर आयीं बैठकों में बैठ उनसे मीठी मीठी रसना के सुख का रसास्वादन कर रही हैं तो एक रूह श्री राज जी श्री श्यामा जी के मुख को निरख रही हैं ।कोई सखी वृक्षों के ऊपर से खड़े खड़े कूदने के लिए शोर करती है !कुछ एक दूसरे को बुलाते हुए जगह जगह रमण करती है।कोई सखी विचार करते हुए दूसरी सखी का हाथ पकड़ के वृक्षों के ऊपर जाती हैं और दोनो हाथ जोड़कर  कूदती हैं।एक सखी दूसरी सखी के सामने जल छाँटने लगती है और सामने से दूसरी सखी भी जल छाँटने लगती है!श्री राज जी दोनो सखियों के मुख की आभा देख प्रसन्न हो रहे हैं ।श्रीराज जी और श्री श्यामा जी जब सखियों के साथ जल में तैरते हैं तब सखियाँ रमण करते समय जल छिटक कर श्रीराज जी के साथ सुख लेती हैं।इस अलौकिक रमण के समय कोई सखी तृप्त नही होती - जल से किसी भी तरह निकलती ही नही है क्योकि रमण में उसे अपार सुख की अनुभूति हो रही होती है ।जब श्रीराज जी श्यामा जी वापिस आते हैं तो साथ में रूहें भी दौड़कर आती हैं।चार-चार सखियाँ तत्क्षण पहले अपना सिनगार सजती है और जैसे श्रीराज जी और श्यामा जी चबूतरे पर आते हैं उन्हे घेर लेती हैं।सिनगार के समय एक एक सखी श्रीराज जी श्यामा जी को सिनंगार कराती हैं - सभी सखियों में हक के माफक इश्क और उमंग है।श्री राज जी श्री श्यामा जी के स्वरूप मस्ती भरे हैं ! उनके नख से सिख तक के सभी अंग-अंग अपार नूरमयी शोभा से युक्त हैं।उनके वस्त्राभूषण की नूरी ज्योति झलकार कर रही है और उनकी रंग बिरंगी किरणे आसमान में जंग कर रही हैं यह सुख धाम धनी या उनकी रूहें ही जानते हैं।
यह जाम्बु घाट में रमण कर रूह अब नारंगी घाट की और बढ़ती हैं 

नारंगी घाट में रूहें रमण कर रही हैं - यह उस अद्वैत भूमि का वर्णन हैं जहाँ एक पत्ता भी कभी गिरता ना ही एक पक्षी का पंख ही गिरता है- जहाँ के कण के तेज के आगे करोड़ो सूरज छिप जाते हैं- ऐसे नूरमयी, चेतन ,प्रकाशमान और सुगंधी से भरपूर अलौकिक घाट में रूहें प्रियतम श्रीराज जी के संग रमण कर रही  है और श्रीराज-श्यामा जी के साथ अलौकिक झीलने की क्रीड़ा के सुख ले रही हैं ।यह नारंगी घाट दक्षिण में वट घाट से जा कर मिला है और उत्तर मे जांबू  घाट से मिलकर अपार शोभा बढ़ा रहा है।जमुना जी की जल रोंस पर फलों के चार हारों के नीचे सात-सात फलों की कांगरी की शोभा आई है जिनकी लालिमा युक्त पीलापन लिए शोभा सुखकारी दिखाई देती है।इन वनों के बीच श्रीराज जी श्री श्यामा जी और सखियाँ रमण करते हैं।नारंगी वन के फल लटकते हुए मनोहारी प्रतीत हो रहे हैं ।कोई ब्रह्म प्रिया श्री राज जी  के सन्मुख आकर उनसे बाते करती है और महबूब श्रीराज जी उन्हे जवाब देते हैं ।कोई सखी श्रीराज जी के क्रीड़ा करती है तो कोई सखी रूहों के साथ खेलती है।वनों में रमण करती अपनी ब्रह्म प्रियाओं को जब श्रीराज जी देखते हैं तो उनके अंग प्रत्यंग में उमंग नहीं समाती है ।


जब श्रीराज जी और श्री श्यामा जी इन सीढ़ियों से उतरते हैं तो सभी ब्रह्म प्रियाएँ भी जल बिहार करने के लिए जमुना जी के निर्मल जल मे उतरती हैं ।कोई सखी तो ऊपर वनों से दौड़कर जल मे कूदती हैं और एक दूसरे को जल में रमण करने  के लिए बड़ी ही युक्ति से बुलाती हैं।कोई सखी हाथ जोड़ कर दूसरी सखी के साथ जल में कूदती हैं !श्रीराज श्यामा जी और सखियाँ खड़े खड़े  इनकी सराहना करते हैं।कोई सखी जल में तैरते हुए बहुत दूर तक निकल जाती है कोई सखी इनके पीछे चलती है तो कोई सखी खड़े रहकर बाते करती हैं।कोई सखी प्रेम से जल छांटती है फिर आमने सामने जुदे हो जाती हैं उन सखियों की इस लीला पर बहुत हाँसी होती है और श्रीराज जी श्यामा जी भी इस हंसी में शामिल होते हैं।सखियाँ जल छोड़ते हुए आसमान में उछाल रही हैं ! कई सखियाँ श्रीराज जी की तरफ होती हैं तो कई सखियाँ श्री श्यामा जी की तरफ होती हैं।श्रीराज जी के साथ कई प्रकार की जल क्रीड़ा करके बेशुमार सुख बिलास लिए।कोई सखी श्रीराज जी के सन्मुख खड़ी होकर सिनगार कराती है तो कोई श्री श्यामा जी को  सिनगार कराती है।झीलन के सुख रमण के सुख --अब धनि ले चल रहे बट घाट की और


बट वन की कुछ ख़ास शोभा हैं --बट वन की जगह कुञ्ज निकुंज की शोभा रूह ने देखी और बट घाट आया हैं -पाल और वन रोंस पर बट घाट सुशोभित हैं 


 इस चौक मे मध्य मे एक बट का पैड आया है। जिसकी चारो तरफ अस्सी बॅडवाईया आई है और एक मध्य मे बट का पैड । सब मिलकर 81 हुए जिनकी नौ की नौ हारे आई है। एक दिशा मे आठ मेहराबे हुई।इनकी पाँच भोंम छटी चाँदनी आई है ।हर भोंम मे आठ की आठ हारे चौक हुए जिनमे हिंडोले आए है। जमुना जी तरफ चौक से तीन सीढी उतर रूह सखियों के संग जल रोंस पर उतरती हैं  कभी  रंगमहल की तरफ चबूतरे से वन रोंस पर सीढी उतर वनो मे जाती हैं ! जमुना की तरफ वाली डालियों ने जल चबूतरे तक छतरिमंडल किया है और रंगमहल की और पुखराजी रोंस से मिलान किया है।बट वृक्ष के पत्तों ,फूलों और डालियों सभी नूरमयी विस्तार लिए हैं - इनमें आए नूरी हिंडोलों पर श्रीराज श्री श्यामा जी विहार करते हैं।
जब युगल स्वरूप श्रीराज श्री श्यामा जी की अस्वारी बट घाट पर उतरी  तब खिलौने एक कतार में खड़े हो गए ।सभी सुखपाल श्रीराज श्यामा जी के सुखपाल को घेरकर एक ही स्थान उतरते हैं।श्रीराज श्यामा जी सुखपाल से उतर कर लटकनी मटकनी चाल से चलते हैं-रूहें इस शोभा को देखकर अपार खुशहाल हो रही हैं ।किशोर स्वरूप अति सुन्दर श्रीराज जी के आभूषण  झलकार कर रहे हैं और उनके वस्त्र अंगों से लगे हुए हैं जिनसे तरंगों की कई ल़हेरें उठ रही हैं।
कोई सखी वन की डालियों पर चढ़ कर रमण कर रही  है तो कोई सखी  बट वृक्ष के नीचे क्रीड़ा करती है -कोई वट की डाली पर चढ़ जाती है तो कोई जमुना जी के तट पर खेलती है।कोई सखी हिंडोलों में हींचती है तो कोई सखी वट की डारी पर चढ़ ऊँचे जाकर दूसरी सखियों को टेर (आवाज़ ) कर बुलाती है।सखियाँ बट घाट की भोम -भोम मे हिंडोलें हींचती है और श्रीराज श्यामा जी उनके संग होते हैं-हक श्री  राज जी के सामने यहाँ कई विलास किए ! कोई सखी तो प्राण प्रियतम के सुखों को नयनों से निहारती हैं

श्री राज जी के बेशक इलम से जाना यह सुख हमारे अखंड निज घर परमधाम के हैं जिन्हे चितवन से रूह महसूस कर रही हैं ।

सोमवार, 5 जून 2017

sat van

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kelvan...
उत्तर से दक्षिण केल ,लिबोई,अनार ,अमृत ,जांबू ,नारंगी और बट वन आएँ हैं |बटघाट बनरोंस और पाल पर आए चबूतरे पर आया है जिसमे एक ही वृक्ष का मोहोल रूप में विस्तार हैं |
रंगमहल से जमुना जी तक आए इन बनो ने पुखराजी रोंस से मिलान किया हैं और पुखराजी रोंस ने पाल पर आए बड़ोबन के पेडो से मिलान किया हैं | बड़ोबन की जमुना जी तरफ वाली वृक्षों की हार ने छतरिमंडल बड़ा कर जल चबूतरे तक छाया की हैं |kunj nikunj
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एक बन 500 मंदिर का चौड़ा और 2000 मंदिर का लंबा हैं | दो नहरे खड़ी 2000 मंदिर की लंबी है और आड़ी 500 मंदिर की पाँच नहरे आने से एक बन मे 500-500 मंदिर के चार चौक आए हैं |हर चौक को घेर कर नहेरें आईं हैं और कोनो में चहेबच्चों की सुंदर शोभा आईं हैं |500 मंदिर के इन बगीचो मे 2-2 मंदिर की हद में वृक्ष आए हैं जिनकी डालियों ,फूलों और पत्तियों ने मिलकर एक चंद्रवा किया हैं | दूसरी भोंम मे पुनः तने उठ कर डालियां बड़ा कर दूसरा छतरिमंडल डालते हैं | वृक्षों के छतरिमंडल ने पहली भोंम मे झरोखो से मिलान किया हैं और दूसरी भोंम मे 33 हाथ के छज्जे से मिलान हुआ हैं |वृक्षों के मध्य तले में मोती सी निर्मल रेती आई हैं |
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श्री रंगमहल के सामने तीन बनो की शोभा आईं हैं |अनार ,अमृत और जांबू-मध्य आए अमृत बन के पश्चिम में तीसरे हिस्से मे 166 मंदिर का लंबा चौड़ा चाँदनी चौक आया हैं | चाँदनी चौक मे उज्ज्वल रेती बिछी हैं दाएँ बाए लाल हरे वृक्षों की शोभा हैं | मध्य में रंगमहल की सीढ़ियो के सामने से दो मंदिर की नूरी रोंस अमृत बन के मध्य से पाटघाट तक गयी हैं जिससे अमृत बन के आठ बगीचे हो गये है |slide4saat-van-1

शनिवार, 3 जून 2017

shri rangmahal -prtham prikrma

श्री परमधाम की अखंड निसबती रूह ने पहली परिक्रमा सम्पूर्ण की --आत्मिक दृष्टि से नव भोम दसवीं आकाशी के सुख लिए --

रंगमहल की प्रथम भूमिका में रसोई के चौक में धाम धनि और सखियों संग आरोगने के अखंड सुख लिए --मुलमिलावे में जा कर धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी के चरणों में सजदा किया --उनके नूरी स्वरूप सिनगार को हृदयगम किया --

दूसरी भूमिका में युगल स्वरूप के स्वरूप सिंगार में डूब उनके संग भुलवनी की  अपार क्रीड़ाएं कर खड़ोकली में झीलना के सुख लिए  --कभी झीलना सिंगार कर क्रीड़ा की तो कभी क्रीड़ा कर झीलन सिंगार के सुख लिए 

तीसरी भूमिका में तीजी भोम की पड़साल के सुख धनि ने महसूस कराए --बड़ी बैठक --वो बड़े बड़े झरोखों से धाम धनि की एक अमृतमयी नजर के लिए उमड़ते पशु पक्षी ,वन भी झुक कर धाम धनि को नमन करते हैं और जमुना जी का वन भी उछल उछल कर दीदार चाहता हैं --यही बाल भोग से ले राज भोग की लीला के सुख लिए

धनि के इश्क में सराबोर रूह चौथी भोम में खुद को भुला झूम उठी ,निरत की अलौकिक लीला के आनद रूह ने लिए --जब निरत की हवेली में धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियों ने निरत के सुख लिए तब सम्पूर्ण परमधाम में लीला के सुख प्रतिबिम्बित हुए --सबने यही जाना कि मेरे सामने ही निरत हो रही हैं  --

नृत्य लीला के आंनद मे सराबोर हो पांचवीं भोंम में पधारते हैं  |रंग परवाली मंदिर मे श्री राज-श्यामा जी को शयन करा जैसे ही नमन करते है तो आत्म खुद को अपने मंदिर मे सेज्या पर अपने को सुभान  के सन्मुख पाती है | यहां धाम  धनी  अपनी रूहों को सेज्या सुख देते हैं | प्रातः श्रीराज जी  अपनी लीला समेत पुन अद्वेत रूप में आ जाते है | जब हम सखियां उन्हे सुबह अपने पास नही  पाती तो व्याकुल हो रंगपरवाली मंदिर जा कर युगल स्वरूप के दर्शनो मे आराम पाती है |

छठी भूमिका मे सुखपाल और तख्तरवा का स्थान है ! प्रियतम श्रीराज जी  जब  मन में  चाहना करते है तो  उसी पल उनके  आत्म स्वरूप सुखपाल और तख्तरवा हाजिर हो तीजी भोंम की पड़साल से लग जाते है | सुखपालो मे दो दो सखियां बैठ बनो मे सैर को जाती है  और जब मिलावे मे जाने का मन हो तो तख्तरवा हाजिर हो जाता है | उड़ान भरता तख्तरवा गोल महल की तरह भाता है | जब हम बनो मे जाते है तो आकाश के जीव आकाश मे ,,,,ज़मीन की जीव ज़मीन पर बाजे बजावते ,नाचते कूदते ,पिऊ-पिऊ की रट लगा कर  अस्वारी के साथ चलते हैं |

सातवीं आठवीं भोम में रूह ने हिंडोलों में धाम धनि जी कि नयनों में नयन बाँध झूलन के सुख लिए --सामने प्रियतम हो ,मस्त समा और मधुर संगीत स्वर लहरी ,सुगन्धि के झोंके और पीया का साथ 

नवी  भोम में प्रीतम संग सम्पूर्ण परमधाम के नजारें देखे --धाम के इन विशाल झरोखो में जब हक़ हादी  रूहों के साथ आएं  तो धाम धनि ने  हम रूहो को अपनी अंगुली के इशारों पर दिखाते हे

पूर्व में बैठे हे तो
चांदनी चौक 
सातघाट 
यमुना जी
अक्षरधाम

पश्चिम में बैठते हे तो
नुरबाग
फूलबाग
दुब दुलीचा
पश्चिम के मैदान 

उत्तर में बैठते हे तो
तिरछी निगाहों से नीचे की और खडोकली
बडोवन के वृक्ष
पुखराज पहाड़ 

दक्षिण में बैठते हे तो
नीचे की तरफ नजर करके बट पीपल की चौकी
कुञ्ज निकुंज वन
माणेक पहाड़
चौबीस हास के महल

दसवीं चांदनी पर आएं तो मेरी रूह को याद आते हैं रंगमहल की दसवीं चाँदनी के अखंड सुख –
आप श्री युगल स्वरूप और सब साथ पूर्णिमा को रंगमहल की चांदनी पर रमण करने के लिए आते हैं | अर्शे मिलावा मध्य में सुशोभित चबूतरे पर सिंघासन कुर्सियों पर विराजमान होता हैं और चांदनी के मनोहारी नज़ारों के सुख लेता हैं —
201 हांस में आया नूरमयी चबूतरे की शोभा रूहें देखती हैं |जिसके चारो कोनो पर आए कुंडो से मोतियो की बूँदो के मानिंद फव्वारे उछल रहे हैं | फव्वारों से उछलती मोती के मानिंद निर्मल ,उज्जवल ,सुगंधित रंगबिरंगी बूँदियां रूहों को धाम धनी श्री राज जी के इश्क प्रीति में डुबो रही हैं |
चबूतरे के चारों और घेर कर चाँदनी पर बाग -बगीचों की मनोहारी शोभा आईं हैं | चबूतरे के साथ लगते मेवों के बगीचे शोभित हैं तो कहीं फूलों की सुगंधी में सराबोर करते फूलों के बगीचे हैं और बीच-बीच में आईं दूब–रंगों की अदभुत चटा बिखेरती दूब –जिन पर सुसज्जित दुलीचों पर रूहें श्री राज जी के संग रमण करती हैं | खुली चाँदनी के नीचे आईं फूलों की नूरी बैठकों पर श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं | देखिए खूब खुशालियाँ हाजिर हैं -मेवों से भरे थाल लेकर और मनुहार कर के प्रेम के साथ धाम दूल्हा को आरोगवाती हैं |
किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की —कुछ एक सखियां श्रीराज-श्यामा जी के संग चबूतरे पर बैठ धनी के संग मीठी मीठी बाते करती है —तो कुछ युगल जोड़ी की अनुपम छब फॅब को एकटक निहार रही है—,कुछ सखियां बनो मे एक दूसरे का हाथ थामे नहर के किनारे रमण करती हैं |.तो कुछ दहलानो मे हांसविलास करती है —तो कभी चांदनी पर आए कुंडो मे झीलना कर दहलानों में सिंगार सज मध्य चबूतरे पर रास खेलते हैं | चाँदनी रात में यहाँ देर तक नृत्य लीला के सुख लेते हैं |

प्रथम परिक्रमा की रूह ने धनि संग --

अब रूह की अर्जी --पिया जी ले चलिए दूसरी परिक्रमा में

गुरुवार, 1 जून 2017

shri rangmahal dasvi chandni que-ans

🌷श्री रंगमहल की दसवीं चांदनी के ठीक मध्य में पहुँचते हैं जहाँ सुन्दर नूरमयी चबूतरा की शोभा आयीं हैं ,चबूतरा पर गिलम सिंहासन कुर्सियों की अपार शोभा रूह देख रही हैं --चबूतरा के हर पहल पर भी सुन्दर बैठके हैं तो यह चबूतरा कितने पहल में शोभित हैं ❓
   
यह चबूतरा 200 पहल में सुशोभीत हैं  हर एक पहल 10 मंदिर का हे इस चबूतरे के चारो दिशा  से तीन तीन सीढिया चांदनी में उतरी हे और सीढ़ियों  की जगह छोड़कर सुन्दर कठेड़ा  सुशोभित हैं --मध्य में सिंहासन को घेरकर 6000 कुर्सियां  लगी है-- चबूतरे के प्रत्येक पहल पर भी सुन्दर बैठक शोभित हैं               

🌷रंगमहल की प्रथम भोम से ठीक मध्य में 28  मंदिर की फुलवारी के भीतर जो तीन चौको की तीन हारे आयीं हैं उनके सर पर चांदनी पर कमर भर ऊंचे गोल चबूतरा की बेशुमार शोभा आयीं हैं  ।इन नव चौको के चारो कोनो में जल स्टून आये हैं जो चांदनी पर जाकर खुले हैं तो वहां क्या शोभा दिखाई दे रही हैं 

 यह जल स्तुन जो पहली भोम से नौंवी भोम तक ऊपर उठे हे फिर दसवीं आकासी में  200 पहल के चबूतरे के चारो कोनो में चेहबचे के रूप में खुले हे हर एक चेहबचा 16 पहल का आया है एक चहबचा 8 मंदिर का लंबा चौड़ा आया है चहेबचे में रंगबेरंगी जल के फव्वारे लगे है जिसका जल चांदनी में आये बाकि चहबचो तक जाता है इन फव्वारों की हर एक जल बून्द से चांदनी पर शीतलतायूक्त सुगंध छायी हुई है                    
🌷चबूतरा पर रूह प्यारी सखियों संग बैठ हान्स विलास कर रही हैं ,चबूतरा के चारों कोनों पर सुन्दर नूरी चहबच्चे हैं जिन्होंने चबूतरा से एक रूप  मिलान किया हुआ हैं --उठते नूरी फव्वारों का रूह आनंद ले रही हैं और घेर कर आयीं नूरी शोभा श्री राज जी रूहों को दिखा रहे हैं -मध्य चबूतरा को घेर कर कोनसी सुंदर शोभा आयीं हैं ?

नूरी चबूतरा ,चबूतरा के चारों कोनों पर विशाल चहबच्चे उनसे उठता नूरी जल --इन फव्वारों के आनंद लेती रूह जब चबूतरा को घेर कर चांदनी की शोभा देखती हैं वो देखती हैं बेशुमार फुलवाड़ी की शोभा --नहरों चेहेबच्चों की अपार शोभा 
                     
🌷रंगमहल की प्रथम भोम से जो हवेलियों की हारे आयीं हैं उनके सिर पर चांदनी पर बगीचा आये हैं --तो पञ्चमोहोलों पर कोनसे बगीचे रूह निरख रही हैं ❓                        

मेवें और मिठाई के अपार वृक्ष के बगीचा आएं हैं 

🌷चौरस हवेलियों के ठीक ऊपर चांदनी पर कोनसे बगीचा शोभित हैं ❓  

चौरस हवेलियों के ठीक ऊपर फूलों के बगीचा लहरा रहे हैं                       

🌷गोल  हवेलियों के ठीक ऊपर चांदनी पर कोनसे बगीचा शोभित हैं ❓  

गोल  हवेलियों के ठीक ऊपर चांदनी पर दूब की शोभा हैं ,बेशुमार ,मनोहारी रंगों में खिली खिली दूब रूहें निरख रही हैं                     

🌷और हवेलियों के मध्य जो त्रिपोलिया आये हैं उनकी क्या शोभा हैं चांदनी पर --जो रूह देख रही हैं ❓                        

त्रिपोलिया के सर पर चांदनी पर मध्य गली पर नेहेरें शोभित हैं और दोनों और नूरमयी रोंसों की शोभा हैं --रोंस के भी तीन भाग हैं मध्य में फुलवाड़ी हैं और दाएं बाएं नगन जड़ित  रोंस हैं 

🌷रंगमहल की दसवीं चांदनी की किनार पर एक मंदिर का छज्जा सुशोभित हैं जिसकी बाहिरी किनार पर रत्नों से जड़ित कठेड़े की शोभा हैं तो यहाँ छज्जा की भीतरी किनार क्या शोभा रूह निरख रही हैं 🌷                        
देहलान की अलौकिक शोभा रूह महसूस कर रही हैं 

🌷दसवीं चांदनी पर  देहलान की शोभा रूह देखती हैं तो क्या शोभा विशेष है जो रूह ने महसूस की ❓  

एक देहेलान की अलौकिक शोभा रूह ने निरखी -देहेलान में एक एक मंदिर की हद में चार थम्भ आएं हैं |जिन पर आईं एक बड़ी महेराब में तीन मेहेराबें आईं हैं | मध्य की मेहेराब में नूरमयी ,रत्नों की नक्काशी से जडित दीवार आईं हैं और दीवार के दाएँ बाएँ की महेराबें खुली आने से दहेलान में देखने के आठ आठ पर गिनती में छः छः ही द्वार आएं हैं क्योंकि पाखे में आएं द्वार दोनों ओर की देहेलान में काम आते हैं |

🌷घेर कर आयीं दहलान की शोभा निरख अपनी निज नजर को पूर्व दिशा की दहलान की ,दस मंदिर के दरवाजा का हान्स की और करते हैं क्या शोभा है ❓                        
घेर कर आयीं दहलान की शोभा निरख अपनी निज नजर को पूर्व दिशा की और करते हैं  -- जहाँ दस मंदिर के दरवाजा का हान्स हैं --दरवाजे की दहलान दस मंदिर की लंबाई लिये हैं और 4 मंदिर की चौड़ी हैं --दस नूर भरे थंभों की चार हारें चौड़ाई तरफ से दिख रही हैं और लंबाई में दहलान की शोभा देखे तो चार चार थंभों की दस हारें शोभित हैं ।

दस मंदिर के हान्स में जो मध्य में दो मंदिर का दरवाजा आया था --और दरवाजा के दोनों और चार चार मंदिर हैं --उनकी जगह यहाँ दसवीं चांदनी में दस दस थंभों की दो हारें आयीं हैं --थंभों की एक हार दहलान के भीतरी और जो एक मंदिर का चौड़ा और लंबा तो घेर कर उठा हैं --उन चबूतरा की किनार पर दस थम्भ आएं हैं --दस थम्भ दहलान के बाहिरी तरफ जो दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी जो पड़साल की जगह आयीं हैं उसकी पूर्वी किनार पर दस थम्भ आएं हैं --छज्जा की शोभा हैं 

🌷देहलान पर देहुरियों की शोभा और गुरजों पर गुमट की शोभा रूह ने निरखी तो वह शोभा कैसे हैं ❓    

 किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की --एक एक दहलान पर दो दो गुम्मतियां आयीं हैं --दहलान की चांदनी की किनार पर कंगूरों की शोभा --कंगूरों के बीच बीच में कांगरी की  शोभा आयीं हैं --201  हांसों में गुरजों की शोभा आयीं हैं --गुरजों पर गुम्मट की अपार शोभा आयीं हैं --गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |

🌷देहलान के भीतर चांदनी की और एक मंदिर की रोंस आयीं हैं जिनसे चांदा से प्रत्येक हान्स से तीन तीन सीढ़ियां चांदनी पर उतरी हैं  ---देहलान के भीतर रोंस के आगे सीढिया उतर कर रूह किस शोभा में रमण करती हैं 🌷 ❓ 

 दहलान के भीतरी तरफ भी एक मंदिर का चौड़ा चबूतरा उठा हैं --एक मंदिर की रोंस के रूप में इसकी भीतरी किनार पर 201  हांसों से चांदों से सीढियां चांदनी पर उतरी हैं --एक एक चाँद से तीन तीन उतरती सीढियां देखे
रूह मेरी देहेलान पार करके एक मंदिर की रोंस को भी पार करके तीन सीढ़ी उतर कर चाँदनी पर आतीं हैं |
-और निहारती हैं चांदनी की मनोहारी शोभा -यहां बगीचो की शोभा आईं हैं | नीचे जो हवेलियों के फिरावे आएं हैं उनकी छत पर बाग-बगीचों की अपार शोभा आईं हैं |चौरस हवेलियों की छत पर फूलों के बगीचे आएं हैं जिनके नूरी रंग ,उनकी सुगंधी से रूह को प्यारी लगती हैं |गोल हवेलियों पर रंग बिरंगी दूब खिली हैं तो पंच मोहोलों की छत पर फलों और मेवों के बगीचे लहरा रहे हैं | बगीचों में आईं नहरे ,उनमें कलरव करता निर्मल जल और चहेबच्चों से उठती उज्ज्वल ,सुगंधित जल की बूंदीयाँ –रूह इन शोभा को एकटक निहारती हैं |
चाँदनी पर आएं बाग-बगीचों की अनुपम शोभा निरखते रूह चांदनी के मध्य भाग में पहुँचती हैं और देखती हैं -नीचे जो मध्य मे नौ चौक आए हैं उनकी छत पर चांदनी पर तीन सीढ़ी ऊंचा चबूतरा उठा जिसके चारो दिशा से चांदनी पर तीन तीन सीढ़ी उतरी हैं |चबूतरे पर अति सुंदर पशमी गिलम बिछी हैं और उन पर सिंहासन कुर्सियों की अपार शोभा आईं हैं |
और चबूतरा के चारों कोनों पर चार चहेबच्चें सुशोभित हैं |चेहेबच्चा के तीनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं ,एक तरफ से चबूतरा मिल गया हैं |  |श्रीराज श्री ठकुरानी जी तथा समस्त सुंदर साथ पूर्णिमा की रात्रि को इस चांदनी पर पधारतें हैं |चबूतरे पर खड़े होकर चारों तरफ की शोभा नज़रों में आती हैं |