बुधवार, 26 अप्रैल 2017

rangparvaali mandir

श्री राज जी की अपार मेहर ,उनके जोश के बल पर रूह  रंगपरवाली मंदिर की अनुपम ,अलौकिक ,नूरी शोभा के सुख लेती हैं ।रंगमहल की पांचवीं भोम में रूह रंगों -नंगों से सजे अति सुंदर मंदिरों की दो हार पार करके नूरी हवेलियों के फिरावे पार कर 28  मंदिर की फुलवाड़ी में पहुंचती  हैं


अति सुन्दर शोभा से सज्जित 28  मंदिर की फुलवाड़ी रूह देखती हैं ।ऐसा प्रतीत हो रहा हैं कि रंगमहल के भीतर फूलबाग  प्रगट  हो गया हैं ।नहरों चेहेबच्चों की अत्यंत लुभावनी शोभा के बीच सुगन्धि  की लहरें  रूह को प्रिय लग रही हैं ।
ठीक मध्य में रूह को नजर आते हैं तीन चौको की तीन हारें ,नव चौकों की अपार शोभा दिखती हैं ।रूह आगे बढ़ती हैं ।सामने तीन चौकों की तीन हारें आपस में सटी हुई होने से 630  मंदिर की दीवार दिखाई दे रही हैं ।(तीन चौक =210 +210 +210 =630 )
रूह आज बादशाही अंदाज में इन बड़े दरवाजों से होते हुए रंगपरवाली मंदिर पहुंचना चाहती हैं तो वह ठीक सामने आये बड़े दरवाजे से भीतर जाती हैं ।दरवाजे से भीतर जाकर डेढ़ मंदिर सीधा चलती हैं फिर दायीं और मुड़ कर उत्तर दिशा की और दस मंदिर चलती हैं , तो रूह खुद को त्रिपुड़ा के चौक में खुद को पाती हैं अब  यहाँ से अपने बायीं हाथ की और मुड़ कर पश्चिम की और आगे बढ़ती हैं ।त्रिपुड़ा के चौक की शोभा देखते हुए चौक को पार करती हैं ।पश्चिम दिशा की और चलती हुई जड़ाफ़े के मंदिरों ,हवेलियों की शोभा देखते हुए सात चौपड़े की हद भी पार करती हैं और आगे बढ़ कर चौक के किनार पर आये त्रिपुड़े के चौक में आ जाती हैं अब यहाँ से दक्षिण की और रूह चलती हैं ,दस मंदिर चल कर पश्चिम की मुड़ कर डेढ़ मंदिर चलकर  दरवाजे पार करती हैं क्योंकि यहाँ दो चौक जुड़े होने से दो दरवाजे आएं हैं ।इन दो बड़े दरवाजों की तीन मेहराबें शोभित हैं इन तीन मेहराबों को रूह पार करती हैं । पुनः डेढ़  मंदिर चलकर दायीं और मुड़कर दस मंदिर चलती हैं रूह ,अब यहाँ से पश्चिम की और मुख कर सीधा आगे बढ़ती हैं ।त्रिपुड़ा के चौक सहित चार चौक पार कर पांचवें में आती हैं तो इसी चौक में रूह को दर्शन होते हैं रंगपरवाली मंदिर के                        

इन बड़े दरवाजों से तो रूह जाती हैं कभी कभी ठीक सामने आये मंदिर से दौड़ती हुई जाती हैं और सीधा जाकर रंगपरवाली मंदिर से जाकर टकराती हैं ।                        
 चौसठ तहाँ हवेलिया ,मध्य परवाली रंग लाल |
जित श्री राज ठकुरानी जी पोढ़त ,संग रूहें चले खुशाल ||100 /17बड़ी विर्त लाल दास जी महाराज

अति सुखकारी सेज है ,आगे चौकी झल्कत नूर |
पाँव मुबारक तापर धरे ,सो क्यूँ कर कहूं ज़हूर ||102 /17

श्री ठकुरानी जी संग राज के ,जोड़े सेज पर बैठे जब |
रूहें कदमो लागत ,सिर उठावत तब ||103 /17

जाने अपनी सेज पर ,बैठे संग श्री राज |
कै सुख इन सेज के ,हक पूरे मनोरथ काज ||104 /17
दो मदिर का लंबा चौड़ा रंगपरवाली मंदिर है जिसमें चारों दिशा में दरवाजे हैं | दरवाजे धाम दरवाजे की शोभा के सामान ही शोभित हैं|रंगपरवाली मंदिर की चारों दिशाओं में दो मंदिर की बड़ी मेहराब आयीं हैं |इन बड़ी मेहराब के ठीक सामने जुदाफ़ों के मंदिर भी दो मंदिर की बड़ी मेहराब में झलकते सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं  | 

रंगपरवाली मंदिर को घेर कर तीन मंदिर की परिक्रमा आयीं हैं |रंगपरवाली मंदिर की दीवार से लगते हुए एक मंदिर की परिकर्ण नजदीकी परिक्रमा कहलाती हैं |

इन्ही रंगपरवाली मंदिर में श्री राज श्री ठकुरानी पोढ़ते हैं | रंगपरवाली मंदिर में बहुत ही सुखदायक सेज्या हैं , सेज के आगे नूर की चौकी हैं , जिन पर मुबारक पाँव रख युगल स्वरूप सेज्या पर विराजते हैं |रूहें जैसे ही उनके कदमों में सिजदा कर अपना मुख ऊपर करती हैं तो खुद को अपने मंदिर में सुख सेज्या पर श्री राज जी के सन्मुख पाती हैं |इन सेज के बेसुमार सुख हैं धाम धनी उनके सभी मनोरथ पूरण करते हैं |

प्रातः काल सवा पांच बजे सखियाँ जब अपने -अपने मंदिर में जब उठती हैं तो अपनी सुख सेज्या पर प्रियतम श्री राज जी को न पर बैचेन हो जाती हैं । तो रूह ,मैं भी इन्हीं सखियों में एक हूँ , यही भाव लेकर सेवा करती  हैं ।सखियाँ शीघ्रता से दातून ,झीलना इत्यादि करके वस्त्रों का सिनगार सज कर रंगपरवाली मंदिर के सम्मुख आती हैं और उत्तर दिशा के द्वार के सामने आकर प्रणाम करती हैं ।उत्तर से पूर्व होकर परिक्रमा लगाती हैं  । उस समय की लीला में रूह खुद को महसूस कर रही हैं  ..परिक्रमा लगा रही  हैं तो चारों  दिशा में आएं दर्पण  के द्वारों से नूरी परदे मानों आपके लिए ही सिमट रहे हैं ताकि  रूहें श्रीराज-श्यामा जी की एक झलक पा सके ,उनकी नूरानी छबि का दीदार कर सके । वो द्वारों से भीतर के नज़ारे लेने की कोशिश --जय श्री राज जी

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

badi rang ki chitvan

श्री राज जी की अपार मेहर ,उनके जोश के बल से रूह हद बेहद से परे परमधाम पहुंचती हैं ,खुद को महसूस करती हैं बड़ी रांग में ,सर्वरस सागर की हद में 

इलम से श्री राज जी रूह को नूरी नज़रों से एक पल में दिखा रहे हैं बड़ी रांग की नूरी अलौकिक शोभा  --

बड़ी रांग में 32  पहल से सुशोभित हैं --बेहद भूमिका की और 32  महाबिलंद  हवेलियों की शोभा हैं और 32  महाबिलंद हवेलियां छोटी रांग की और हैं --मध्य भाग में 16 महाबिलंद हवेलियां आयीं हैं --16  महाबिलंद हवेलियां जहाँ नहीं आयीं वहां आठ सागर आठ जिमी की अपार शोभा हैं

रूह को याद आते हैं पल ,वह समय जब वह श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग बड़ी रांग में रमन करती हैं ,सागरों के सुख ,जिमी के अखंड सुख 

इन याद के मांहें श्री राज जी 
रूह उनकी मेहर से खुद को महसूस करती हैं सर्वरस सागर में ,सामने विशाल महाबिलंद वन ,एक वन में 12000  बगीचों का समूह --एक बगीचा में 12000  वृक्षों की 12000  हारें --और उनमें नूरी नंगों की रोंस जो चांदनी चौक पहुंचाएगी 
12000  बगीचों की शोभा उनमें 12000  वन बिगर रोंसों की शोभा  --

कभी चांदनी चौक की नगन जड़ित रोंस से आगे बढ़ना तो कभी रेती रोंस से बलखाते इठलाते हुए चलना --

चांदनी चौक से रूह आगे बढ़ती हैं ,दोनों और वृक्षों की शोभा ,नहरों चेहेबच्चों के मध्य सुन्दर चौक जिनमें आएं कमर भर ऊंचे चबूतरे पर विशाल वृक्ष की शोभा --


नूरी रोंस की अलौकिक शोभा ,रोंस की कोमलता ,चेतनता ,सुगन्धि रूह महसूस कर रही हैं ,सुगन्धि के पुर से रूह के अंग अंग उल्लासित हो रहे हैं --रूह रोंस से आगे बढ़ रही हैं दोनों और वृक्षों की अपार शोभा देखते हुए ,फूलों से रूह का अभिनन्दन ,स्वागत


फूलों की बरखा के बीच बड़ी ही मदमस्त चाल से ,रूह की चाल आगे बढ़ते हुए रूह देखती हैं रंगों से झिलमिलाते वन ,सर्वरस सागर के सभी रंग--हर रांग में श्री राज जी की प्रेम ,प्रीति ,स्नेह ,लाड़ रूहों के वास्ते झलक रहा हैं                        


रोंस से होते हुए रूह आ पहुँचती हैं महा हवेली के सम्मुख ,चांदनी चौक में 

विशाल चांदनी चौक की शोभा ,रूह के दोनों हाथ और पीठ की और चौक की किनार पर लगते महाबिलंद वन ,12000  भोम के ऊंचे ,एक एक भोम में 12000  भोम ,चांदनी चौक में उनके छज्जों की शोभा ,भोम दर भोम नूरी फूलों के छज्जे   --

दायीं और आसमान कोंचते लाल वृक्ष की शोभा तो बायीं और हरे वृक्ष की अपार शोभा सामने विशाल सीढ़ियां चढ़ती हुई
सुन्दर अति सुन्दर विशाल चढ़ती सीढ़ियां ,रूह इन सीढ़ियों से चढ़ कर आगे बढ़ती हैं ,सीढ़ियों पर आयीं अति कोमल गिलम ,दोनों और आएं सुन्दर कठेड़े की शोभा --बीच बीच में चांदों की शोभा --कुछ पल इन चांदों पर विश्राम करना ,अखंड सुखों की याद --हँसते खेलते सीढ़ियों को पार किया
 सीढ़ियां चढ़ कर महाबिलंद हवेली की रोंस पर आ पहुंची --इन महाबिलंद हवेली में 12000  हवेलियों की 12000  हारें हैं --एक हवेली से दूसरी हवेली के मध्य त्रिपोलियों की शोभा आयीं हैं --


यहाँ खड़े होकर रूह ने नजर की वनों की और --देखा कि इन महाबिलंद हवेली के सामने 12000  हवेलियों के सामने वन आएं हैं ,हवेली के ठीक सामने चांदनी चौक --12000  चांदनी चौक की शोभा हैं और त्रिपोलियों के सामने वन बिगर रोंस ,रेती रोंस की शोभा हैं                        
हवेली की और मुख किया तो 12000  हवेलियों की कतार 
12000  त्रिपोलिये की शोभा हैं 
एक हवेली की और नजर की तो --मुख्य द्वार की शोभा ,अति विशाल बड़ा दरवाजा और दरवाजे के दोनों और चबूतरों की अपार शोभा हैं
अति विशाल शोभा लिए बेशुमार रंगों से महकता द्वार और दोनों और चबूतरों की शोभा आयीं हैं ,चबूतरों की चारों किनार पर विशाल थम्भ शोभित हैं ,भोम दर  भोम चबूतरों की भोम चौरस गुर्ज की शोभा लिए हैं
दरवाजे के भीतर रूह प्रवेश करती हैं अपार शोभा ,रूहों की साहिबी को दिखलाती ---रूह एक हवेली के भीतर जाती हैं तो सबसे पहले उसे नजर आती हैं हवेली को घेर कर आये 6000 -6000  मंदिरों की दो नूरी हारें नजर आती हैं --बाहरी हार 6000  मंदिर ,दो थम्भ की हार तीन गलियां फिर दूसरी हार मंदिरों की 

दूसरी हार मंदिरो के भीतर दो थम्भ की हार तीन गलियां ,त्रिपोलिये की शोभा 
इन शोभा के भीतर की और 
 12000  मोहोलों की 12000  हारें आयी हैं  --एक मोहोल से दूसरे मोहोल तक नूरी त्रिपोलिया की शोभा आयी हैं ।एक मोहोल की शोभा रूह देखती हैं तो मोहोल के चारों और बड़े दरवाजे आयें हैं और दरवाजों के दोनों और चबूतरा की शोभा हैं ।जहाँ मोहोल के दरवाजे आमने सामने आये हैं वहां अति सुन्दर बैठक 24  मेहराबों की शोभा में आयीं हैं जहाँ चार हवेलियों के कोने मिलते हैं वहां भी 24  मेहराब की अति प्यारी शोभा आयी हैं ।


 12000  मोहोलों की 12000  हारों में एक मोहोल के भीतर रूह जाती हैं तो वह पुनः वही शोभा के दीदार करती हैं ।6000 -6000  मंदिरों की दो हारें आयीं हैं ,इन हारों के भीतर 12000  मंदिरों की 12000  हारें आयीं हैं ।एक मंदिर से दूसरे मंदिर की और रूह जाती हैं तो त्रिपोलिया की शोभा से निकल कर जाती हैं ।मंदिरों के चारों दिशा में बड़े दरवाजे और आठ चबूतरा आयें हैं ।


रूह एक मंदिर में जाती हैं तो वह पुनः उसी प्यारी शोभा के दीदार करती हैं ।6000 -6000  मंदिरों की दो हारों के भीतर 12000  कोठरियों  की 12000  हारें आयीं हैं ।

हवेलियों की शोभा निरख अब रूह बढ़ती हैं महाबिलंद हवेली के ठीक मध्य त्रिपोलियों की और ,रूह मध्य त्रिपोलिये में पहुँचती हैं और आगे बढ़ती हैं ।                        
रूह आगे बढ़ रही हैं ,दोनों और आयी हवेलियों की अपार शोभा को देखते हुए रूह बढ़ रही हैं ।अति सुंदर धाम की विशाल हवेलिया ,विशाल ही शोभा लिए त्रिपोलियाँ की शोभा रूह को खुशहाल कर रही हैं ।रंगों -नंगों से झिलमिलाती हवेलियां ,फूलों से सज्जित हवेलियां ,नूरी रास्ते ,नूरी मोहोल ,क्या वर्णन करे धाम की शोभा का ?रूहों को अपार साहिबी श्री राज जी दिखला रहे हैं ।

श्री राज जी के इश्क की बरखा में झीलते हुए रूह पहुँचती हैं ठीक मध्य में ,हवेली के ठीक मध्य भाग में जहां से चारों दिशा में 6000 -6000  हजार हवेलियां की शोभा हैं ।यहाँ भी एक हवेली की शोभा आयीं हैं ।
 मध्य भाग में आयी यह हवेली विशेष हैं ।हवेली के चारों दिशा में मंदिरों की शोभा हैं ,चारों दिशा में मुख्य द्वार सुशोभित हैं ।भीतर जाती हैं रूह तो देखती हैं एक थम्भ की हार दो गलियों की अपार शोभा  हैं ।इनके भीतर बेशुमार बाग़-बगीचों की शोभा हैं ।बगीचा के भीतर कमर भर ऊंचा चबूतरा शोभायमान हैं ।चबूतरा की किनार पर अति सुन्दर थम्भ हैं ,चारों दिशा से सीढ़ियां उतरी हैं ,शेष जगह कठेड़े की शोभा हैं ।चबूतरा के ठीक मध्य जल का स्तून हैं जो चांदनी पर खुलता हैं ।स्तून के चारों दिशा में चबूतरा पर सुंदर बैठकें सजी हैं ।                        


हवेली शोभा देखकर रूह पुनः त्रिपोलिये से आगे बढ़ती हैं ।हवेली पार करके खुद को रोंस पर देखती हैं ।सामने त्रिपिलये के आगे रेती का नूरी रास्ता हैं जो सीधा सागर ले जाएगा ।रेती के इन रास्ते से रूह जाती हैं तो वह तीन सीढ़ियां चढ़कर सागर की पाल पर पहुंचेगी ।अगर सामने आये चांदनी चौक की रोंस से रूह जाती हैं तो वह दौड़ते हुए सागर की पाल पर पहुँच जायेगी ।

महाबिलंद हवेली से 24000  सीढ़ियां उतरी हैं ,12000  सीढ़ियां त्रिपोलियों के आगे वन रोंसों में उतरी हैं 12000  सीढ़ियां हवेलियों के सामने चांदनी चौकों में मध्य रोंस पर उतरी हैं
इन रोंसों से होती हुई रूह सागर किनारे पाल पर पहुँचती हैं और देखती हैं सागर की शोभा


                        रूह सागर किनारे पाल पर खड़ी हैं --सुन्दर शोभा लिए सागर की पाल रूह निरख रही हैं ।नूरी नंगों से झिलमिलाती पाल अति नरम ,चेतनता से युक्त हैं ।सागर की चारों दिशा में पाल सुशोभित हैं ।चांदनी चौक और रेती से आती नूरी रोंस इन्ही पाल तक रूह को पहुंचाती हैं ।24  हजार रास्तों के सामने 24  हजार नूरी घाटों की अजब शोभा हैं ।चारों दिशा में इसी तरह से शोभा है ।घाटों की जगह छोड़कर नूरी स्वर्णिम कठड़े जल तरफ आएं हैं ।इन कठेडों के साथ लग लग कर खड़ी रहें सामने सर्वरस सागर के अथाह जल राशि के दर्शन करती हैं ।


बेशुमार रंगों की आभा जल में झलकती रही हैं  और तीसरे हिस्से में टापू मोहोलों की अलौकिक शोभा हैं ।12000  टापू मोहोलों की 12000  हारें अति सुन्दर प्रतीत हो रही हैं ।12000  भोम ऊंचे यह टापुमोहोल की एक एक भोम में 12000  भोमों की अद्भुत शोभा हैं ।रूह अब चलना चाहती हैं टापू मोहोल की और 


नूरी जल यान हाजिर हैं रूह के लिए और रूह उनमें सवार होकर बढ़ती हैं टापू मोहोलों की और ।

 नूरी जल में असवारी कर रूह कुछ ही पलों में टापू मोहोलों तक आ पहुँचती हैं ।400  कोस में जल 400  कोस में टापू मोहोल की अद्भुत ,अति सुन्दर शोभा आयीं हैं ।                        

 एक टापू मोहोल में रूह जाती हैं और निरखती हैं टापू मोहोल की प्यार सी शोभा ,तीसरे हिस्से में भोम भर ऊंचा चबूतरा उठा हैं ।चबूतरा की चारो दिशा और चारों कोनों में वन की शोभा है ।टापू मोहोल की चारों दिशा में चांदनी चौक की शोभा आयीं हैं ।चांदनी चौक से रूह सीढ़ियां चढ़कर भोम भर ऊंचे चबूतरा पर आती हैं ।रोंस की जगह छोड़कर हवेली की शोभा आयीं हैं ।हवेली की शोभा बड़ी रांग की हवेली के सामान ही आयीं हैं ।हवेली के चारों दिशा में मुख्य बड़े दरवाजों की शोभा आयीं हैं ।दरवाजों के दोनों और चबूतरे शोभायमान हैं जिनकी ऊपराऊपर भोम आने से चौरस गुर्ज की शोभा हुई हैं ।रूह दरवाजे से भीतर प्रवेश करती हैं और देखती हैं टापू मोहोल की विशाल शोभा --घेर कर 6000 -6000  मंदिरों की अति सुन्दर हारे आयीं हैं ।एक एक मंदिर की अति विशाल शोभा हैं ।रूहों के सुख सुविधा के सभी साजो सामान हाजिर हैं ।भीतर 12000  मोहोलों की 12000  हारें मानिंद बड़ी रांग के सुशोभित हैं ।मोहोलों में जाएं तो मंदिरों की दो हारों के भीतर मंदिरों की 12000  की 12000  हारें शोभित हैं ।एक मंदिर में जाते हैं तो  मंदिरों की दो हारों के भीतर 12000  कोठरियों की 12000  हारें आयीं हैं ।टापू मोहोल की भोम दर भोम अलौकिक शोभा के दीदार कर रूह चांदनी पर आती है ।



चांदनी की अलौकिक शोभा श्री राज जी अपार मेहर करके रूहों को दिखला रहे हैं ।ठीक मध्य में कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिस पर सोहनी बैठके आयीं हैं ।चबूतरा की चारों दिशा से चांदनी पर सीढ़ियां उतरी हैं और घेर कर कठेड़ा आया हैं ।चबूतरा को घेर कर बगीचों की बेशुमार शोभा आयीं हैं ।उज्जवल ,सुगन्धित जल की नेहेरें और चेहेबच्चों की अति सुन्दर शोभा आयी हैं ।किनार पर भोम भर ऊंची दीवार उठी हैं ।चांदनी से इन दीवार पर सीढ़ियां चढ़ी हैं तो रूह रूह सीढ़ियां चढ़कर चांदनी से उठी भोम भर ऊंची दीवार पर आ जाती हैं ।टापू मोहोल के चारों दिशा के दरवाजे की कमाने यहाँ तक आयीं हैं और चौरस गुरजों पर देहुरी की शोभा बनी हैं ।देहुरियों पर कलश ध्वजा पताका की शोभा हैं ।रूह अति सुन्दर देहुरियों की शोभा देखती हैं और यहाँ से चारों और के नजारों के सुख लेती हैं ।            अथाह जल राशि के सुख ,जल को घेर कर आयी पाल ,पाल से लगते वन देखती हैं ।वन के आगे चारों दिशा में महाबिलंद हवेली आयीं हैं और चारों कोनों में रेती के मैदान  के अपार खुशहाल करने वाले सुख हैं ।चारों कोनों में इन रेती के मैदान में बड़े बड़े हाथी पर रूहें असवारी करती हैं ।                        


अब चलना हैं जिमि की और तो रूह चांदनी से सागर की दक्षिण की और चलने का जैसे ही मन में लेती हैं तो खुद को दक्षिण की और आयीं पाल पर देखती हैं ।

रूह खड़ी हैं सर्वरस सागर के दक्षिण की और पाल पर ,आगे बढ़ना हैं जिमि की और -तो रूह मुख दक्षिण की और कर आगे बढ़ती हैं ।पाल पार करते ही वन की शोभा आई हैं ।महाबिलंद वन की अति सुन्दर शोभा हैं ।सभी रंगों से जगमगाहट करता वन आसमान को छूटा प्रतीत हो रहा हैं ।इन वन की 12000  भोम आयीं हैं और एक एक भोम में 12000  भोम समाई हैं ।भोम दर भोम आएं वनों के छज्जे आगे बढ़कर सागर पर छाया डाल रहे हैं ।पाल के ऊपर से हो कर जल तक यह वन शीतल छाया करते हैं तो वनों की झलकार जब पाल पर पढ़ती हैं तो ऐसे सज उठती हैं मानो फूलों की गिलम बिछी हो ।जल पर वनों का प्रतिबिम्ब पढता अति  सोहना लगता हैं ।                        
 रूह ने बढ़ना हैं दक्षिण की और ,लेकिन वनों की इतनी प्यारी शोभा रूह के कदम वहीं थम जाते हैं ।पाल किनारे आसमान की ऊंचाई तक जाते वृक्षों की सोहनी कतारे ,उनका जल में पढता प्रतिबिम्ब रूह एक तक निरखती हैं ।

वनों की जल में झलकार अति सोहनी लग रही हैं ।ओस की बूंदों से भीगे भीगे वृक्ष ,उनकी पत्तियाँ और जब उनकी बुँदे सागर में गिरती हैं तो क्या मनोरम दृश्य उपस्थित हो रहा हैं 


अति सुन्दर वन की शोभा हैं और वन से जाते 24000  हजार नूरी रास्ते हैं ।12000  रास्ते वन से नंगों की रोंस से चांदनी चौक ले जा रहे हैं और 12000  रास्ते रेती के हैं ।नूरी मोतियों से उज्जवल अति नरम रेती और भी नरम हो रूह का अभिनन्दन करती हैं ।

रूह अब बढ़ती हैं दक्षिण की और ,वनों की नूरी रोंसों से जा रही हैं ।पशु पक्षियों के जुत्थ के जुत्थ उमड़ रहे हैं कि प्यारी रूह आ रही हैं ।श्वेत अश्व रूह के समक्ष प्रस्तुत होता हैं आओ मेरी प्यारी ,श्री राज जी कि लाड़ली रूह ,मुझ पर असवार होइए ।रूह घोड़े पर असवार हो आगे बढ़ती हैं ।घोड़े से बाते करती ,वनो की शोभा देखते ,एकल छत्रीमण्डल के नीचे से शीतल छाँव से होते हुए आगे बढ़ रही हैं ।

बेशुमार रंगों नंगों की झिलमिलाहट से साथ साथ वृक्ष जवेरो से जगमग कर रहे हैं ।नूरमयी जवाहरात मानों रूह के क़दमों में बिछ रहे हो                        

 शोभा देखते हुए रूह वन पार करती हैं सामने भोम भर ऊंचे चबूतरा पर महाबिलंद हवेली हैं ।घोड़े पर असवार रूह कुछ ही पलों में नूरी जवेरों से झिलमिलाती अति सुन्दर हवेली पार कर लेती हैं ,आगे पुनः वन की शोभा हैं ।व पार करते ही रूह जिमि के सामने खुद को देखती हैं                        
 जिमि की भी शोभा सागर सामान ही विशाल आयी हैं ।चारों दिशा में वन की शोभा हैं ,महाबिलंद हवेली चारों दिशा में शोभा ले रही हैं और चारों कोनों में रेती के मैदान आएं हैं जिनकी रेती का नूर आसमान तक जा रहा हैं ।
ठीक मध्य में भोम भर ऊंचा चबूतरा उठा हैं इन जिमि पर महाबिलंद हवेली की शोभा हैं ।बड़ी 80  महाबिलंद हवेली के सामान ही इन हवेली की शोभा आयीं हैं अंतर यह हैं कि यह हवेली फूलों की हैं ।मोहोल ,मंदिर ,थम्भ गलियां सभी फूलों से हैं ।सेज्या ,सिंहासन ,कुर्सियां सभी जोगबाई फूलों की हैं ।12000  बड़ी भोम आयी हैं ।


जिमि की शोभा निरख अब जिमि की चांदनी पर चलती हैं ।चांदनी माणिक पहाड़ के सामान शोभित हैं ।चांदनी के तीसरे हिस्से में भोम भर का चौरस चबूतरा आया हैं जिसके पहले हिस्से में देहलान आयी हैं दूसरे हिस्से में ताल हैं तीसरे में टापू मोहोल हैं जो बीस भोम 21  वी चांदनी का सुशोभित हैं ।टापू मोहोल की चांदनी पर ठीक मध्य कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिसके नीचे जल स्तून खुला हैं यह वही जल स्तून हैं जो ठीक मध्य की हवेली से पहली भोम से सुशोभित हैं ।चबूतरा को घेर कर बाग़ बगीचे हैं किनार पर भोम भर ऊंची दीवार आयीं हैं 
तीसरे हिस्से दो भोम की देहलान ,भोम भर गहरा जल ,टापू मोहोल की शोभा देख कर रह शेष चांदनी की शोभा देखती हैं वहां बाग़ -बगीचों की अपार शोभा हैं ।चांदनी की किनार भोम भर ऊंची आयी हैं ,दरवाजे की कमाने यहाँ तक आयीं हैं ।चौरस गुरजों पर पहलों की देहुरी कलश ध्वजा पताका की अपार शोभा हैं ।


जिमि की चांदनी के सामान ही 80 महाबिलंद हवेलियों की चांदनी आयीं हैं ।