शनिवार, 11 मार्च 2017

pragat vani

                        
निजनाम श्रीकृस्नजी, अनादि अक्षरातीत ।
सो तो अब जाहेर भए, सब विध वतन सहित ।। १ ।।३७ प्रकाश हिंदुस्तानी                        

 मेरी वास्तविक पहचान (निजनाम)यह है कि मैं क्षर ,अक्षर से परे रहने वाला वह अनादि उत्तम पुरुष अक्षरातीत हूँ ,जिसने इस आत्म जागनी लीला से पूर्व श्री कृष्ण नाम से ब्रज एवम् रास मंडल में ब्रह्म लीला की है !मेरी इन गुझ लीलाओं के भेद ,एवम् हमारे मूल वतन सत,चित्त,आनंद ,अनन्त,अद्वैत परमधाम की हर प्रकार की हर प्रकार की ज्ञान रूपी निधि सहित मैं अब इस संसार में जाहिर हो रहा हूँ  !

श्री श्यामाजी जी वर सत्य हैं ,सदा सत सुख के दातार ।
विनती एक जो वल्लभा ,मो अंगना की अविधार ॥2                        

 श्री इंद्रावती जी कहती हैं कि श्री श्यामा जी के प्रियतम ,धनी आप अक्षरातीत श्री राज जी सत्य हैं ,सदा सत्य सुखों को देने वाले हैं ,अखंड सुख के मालिक श्री राज जी सदैव रूहों को सत्य सुखों की अनुभूति कराते हैं ,परमधाम के पच्चीस पक्षों में रमण के सुख हो या सिंगार के सुख ..श्री राज जी तो सदैव रूहों पर मेहेरबान रहते हैं -

हे मेरे धाम धनी ,मेरे प्रियतम आपसे विनती हैं मुझ अंगना को स्वीकार कीजिये --मुझे अपनी मेहरों की छाँव तले लीजिए                        

 वाणी मेरे पिऊ की ,न्यारी जो संसार ।
निराकार के पार थे ,तीन पार के भी पार ॥3                        


 वाणी मेरे प्रीतम की इन संसार से न्यारी हैं --मेरे धाम धनी की बेशक वाणी संसार के अन्य सभी ज्ञान से अलग हैं ,यह बेशक इल्म हैं ,जागृत बुध्दि का ज्ञान हैं जो क्षर ब्रह्माण्ड के पार जो अक्षर ब्रह्माण्ड हैं ..उनसे भी परे जो दिव्य ,अखंड ,अनादि धाम ,परमधाम हैं  ,उन धाम की सम्पूर्ण पहचान कराता हैं ..प्रियतम पारब्रह्म श्री राज -श्री श्यामा जी के स्वरूप की सम्पूर्ण पहचान कराता हैं यह बेशक इल्म

अंग उत्कंठा उपजी ,मेरे करना एह विचार ।

ए सत वानी मथ के ,लेऊं जो इनका सार ॥४

हे मेरे धाम धनी ,आपकी मेहर से आपके वचनों को सुनकर दिल में यह इच्छा उपजी है कि मुझे आपकी कही वाणी पर विचार करना हैं ,गहन चिंतन  मनन करना हैं --इन सत्य वाणी को अच्छे से चिंतन करके बेशक वाणी के सार तत्व को ग्रहण करना हैं

इन सार में कई सत्य सुख ,सो मैं निरने करूँ निरधार ।

एक सुख देऊं ब्रह्म सृष्ट को ,तो मैं अंगना नार  ॥५

हे मेरे धाम धनी ,आपकी मेहर से आपके वचनों को सुनकर दिल में यह इच्छा उपजी है कि मुझे आपकी कही वाणी पर विचार करना हैं ,गहन चिंतन  मनन करना हैं --इन सत्य वाणी को अच्छे से चिंतन करके बेशक वाणी के सार तत्व को ग्रहण करना हैं

जब ए सुख अंग में आवहीं ,तब छूट जाए विकार ।

आयो आनंद अखंड घर को ,श्री अक्षरातीत भरतार ॥६

जब अपनी ,अपने घर ,अपने धाम धनी की पहचान हो जाती हैं तब ह्रदय में दिव्य परमधाम के अखंड सुख प्रवाहित होने लगते हैं ,परमधाम के अखंड सुखों की बरखा से सभी मायावी विकार मिट जाते हैं -


हमारी आत्मा के आधार ,हमारे भरतार ,अक्षरातीत श्री राज जी परमधाम के सभी सुख ,सभी न्यामते आत्मा के धाम ह्रदय में देते  हैं

 अब लीला हम जाहेर करें, ज्यों सुख सैयां हिरदे धरें ।
पीछे सुख होसी सबन, पसरसी चौदे भवन ।। १ ।।                        

श्री महामति के धाम ह्रदय में विराजमान होकर स्वयं श्री धाम धनि अपने हुकम से कहलवा रहे हैं कि अब हम परमधाम की आनंदमयी लीलाए जाहिर कर रहे हैं -दिव्य परमधाम युगल स्वरूप कि पहचान जाहिर कर रहे हैं जिसको ह्रदय में धारण करने से मोमिनों को अखंड सुखों की अनुभूति होगी ।पहला सुख मोमिनों का है उसके बाद तो सभी संसार के सभी लोग सुख प्राप्त करेंगे -यह बेशक इलम चौदह लोक में फैल  जायेगा ।                        

अब सुनियो ब्रह्मसृष्ट विचार, जो कोई निज वतनी सिरदार ।
अपने धनी श्री स्यामा स्याम, अपना बासा है निजधाम ।। २ ।।        
                
 🌹अब सुनियो ब्रह्मसृष्ट विचार🌹,

श्री महामति जी आह्वान कर रहे हैं मोमिन को 
सुनिए ब्रह्म सृष्टियों दिल से 

 🌹जो कोई निज वतनी सिरदार ।🌹
मोमिन जिनका मूल परमधाम से नाता हैं ,जो निज वतन ,दिव्य परमधाम की निस्बती अंगना हैं 

🌹अपने धनी श्री स्यामा स्याम🌹,
ऐसे निसबती मेरे वतन की सखियों ,सुनिए ,अपने धाम धनि अक्षरातीत ,पारब्रह्म श्री युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी हैं 

 🌹अपना बासा है निजधाम ।। २ ।।🌹

और अपना निजवतन दिव्य परमधाम हैं

 सोई अखंड अक्षरातीत घर, नित बैकुंठ मिने अक्षर ।
अब ए गुझ करूं प्रकास, ब्रह्मानंद ब्रह्मसृष्टि विलास ।। ३ ।।                        

🌹सोई अखंड अक्षरातीत घर,🌹

अपना घर जो परमधाम हैं वहीं अखंड घर हैं ।अपना घर क्षर अक्षर के पार परमधाम हैं ।मोमिनों का मूल मुकाम वहीं हैं 

 🌹नित बैकुंठ मिने अक्षर ।🌹

अक्षर ब्रह्म एक पल में कोटो ब्रह्माण्ड बनाता हैं और पल में लय कर देता हैं ,अक्षर ब्रह्म की यह लीला सबलिक और अव्याकृत में होती हैं एहि नित्य बैकुंठ हैं 

🌹अब ए गुझ करूं प्रकास,🌹

हे मेरे परमधाम के संगियों ,अब मैं एहि छिपे रहस्य जाहिर कर रही हूँ 

 🌹ब्रह्मानंद ब्रह्मसृष्टि विलास ।। ३ ।।🌹


गुझ रहस्य जो आज दिन तक छिपे हुए थे अब स्वयं श्री राज जी अपने हुकम से जाहिर कर रहे हैं कि पारब्रह्म अपनी अंगनाओं के साथ किस तरह से प्रेममयी लीलाएं करते हैं

ए बानी चित दे सुनियो साथ, कृपा कर कहें प्राणनाथ ।

ए किव कर जिन जानो मन, श्रीधनीजी ल्याए धामथें वचन ।। ४ ।।
🍁ए बानी चित दे सुनियो साथ,🍁

महामति जी फेर फेर सुन्दर साथ को आह्वान कर रहे हैं कि हे मेरे साथ जी ,इन वाणी को चित्त देकर के सुनना ,मन चित्त ,बुद्धि को एक चित्त होक दिल दे के ग्रहण करना 

 🍁कृपा कर कहें प्राणनाथ ।🍁

अपने प्राणवल्लभ ,आत्मा के आधार श्री प्राणनाथ जी ने हम पर अपार मेहर करके यह वचन कहे हैं 

🍁ए किव कर जिन जानो मन,🍁

ऐसा मत समझाना कि यह कविता हैं 

 🍁श्रीधनीजी ल्याए धामथें वचन ।। ४ ।।🍁


आप श्री धाम के दुलहा ,श्री धनि जी यह वचन परमधाम से आपके वास्ते ल्याएं हैं

🌹सो केहेती हूं प्रगट कर, पट टालूं आडा अंतर 🌹।
🌹तेज तारतम जोत प्रकास, करूं अंधेरी सबको नास ।। ५ ।।🌹                        

💜सो केहेती हूं प्रगट कर,💜

श्री महामति जी कह रही हैं कि मेरे धाम धनी जी जो वचन धाम से ल्याएं हैं उन्हीं वचनों को प्रगट करके कहती हूँ ,उनका खुलासा करती हूँ 

 💜पट टालूं आडा अंतर ।💜

तारतम वाणी के बेशक वचनों को प्रगट कर आपकी अज्ञानता को दूर करती हूँ 

💜तेज तारतम जोत प्रकास,💜

बेशक इल्म ,जागृत बुद्धि के ज्ञान तारतम ज्ञान की अखंड ज्योति के तेज में प्रकाश में 

 💜करूं अंधेरी सबको नास ।। ५ ।।💜

सबके दिलों में व्याप्त अंधकार को नष्ट कर दूंगी                        

🍁धाम धनी की जो वाणी हम रूहों पर अपार मेहर करके धाम से लेकर अवतरित हुए हैं उन वचनों को प्रगट कर के ,उनका स्पष्टीकरण करके ,बेशक इलम तारतम वाणी के जोत के प्रकाश में सबके दिलों के अंधकार रूपी अज्ञान को समाप्त करके अखंड ज्योति के दीप जला दूंगी ..इन वाणी की बरकत से मोमिन को परमधाम की सम्पूर्ण पहचान हो सकेगी 🍁                        

🌹अब खेल उपजे के कहूं कारन, ए दोऊ इछा भई उतपन ।🌹
🌹बिना कारन कारज नहीं होए, सो कहूं याके कारन दोए ।। ६ ।।🌹🌹                        

🍀अब खेल उपजे के कहूं कारन,☘

  अब मैं (महामति जी )खेल बनने के कारण  बताती हूँ 

 ए☘ दोऊ इछा भई उतपन ।☘

ये सृष्टि दो प्रकार की इच्छा से उतपन्न हुई हैं 

☘बिना कारन कारज नहीं होए☘,

बिना कारण  के कोई कार्य नहीं होता 

 ☘सो कहूं याके कारन दोए ।। ६ ।।☘

तो सृष्टि रचना के दोनों कारणों को अब मैं आपके समक्ष कहती हूँ                        

💜श्री महामति जी रूहों से कह रही हैं आपके दिल में एक प्रश्न होगा की यह सृष्टि रचना क्यों हुई ? खेल बनने का कारण क्या हैं ?
तो यह सृष्टि की रचना दो की इच्छा से हुई हैं --ब्रह्म सृष्टि और अक्षरब्रह्म इन दोनों की इच्छा के कारण यह खेल बना हैं --साथ जी यह तो निश्चित हैं कि बिना कारण कोई कारज नहीं होता हैं💜                        

🌹ए उपजाई हमारे धनी, सो तो बातें हैं अति घनी ।🌹
🌹नेक तामें करूं रोसन, संसे भान देऊं सबन ।। ૭ ।।🌹🌹                        

🌻ए उपजाई हमारे धनी,🌻

खेल देखने की इच्छा हमारे धनी ने उपजाई 

🌻 सो तो बातें हैं अति घनी ।🌻

यह बहुत गहरा रहस्य हैं 

🌻नेक तामें करूं रोसन,🌻

जिसमें मैं कुछ प्रगट करती हूँ 

 🌻संसे भान देऊं सबन ।। ૭ ।।🌻🌻

जिनसे सबके ह्रदय के संशय मिट जाए                        

☘खेल देखने की इच्छा हमारे दिलों में उत्पन्न हुई क्योंकि स्वयं श्री राज जी ने इच्छा उपजाई ।यह बहुत ही गहरी बात हैं कि धाम धनी ने ऐसा क्यों किया ।अब मैं (श्री महामति जी ) कुछ रहस्यों को स्पष्ट करती हूँ ताकि सबके दिलों के संशय मिट जाए ।☘                        

अब सुनियो मूल वचन प्रकार, जब नहीं उपज्यो मोह अहंकार ।
नाहीं निराकार नाहीं सुन, ना निरगुन ना निरंजन ।। ८ ।।🙏                        

⭐अब सुनियो मूल वचन प्रकार, ⭐

हे सुन्दर साथ जी ,अब आप सृष्टि रचना से पहले की परमधाम की लीलाओं को ध्यानपूर्वक सुनिए 

⭐जब नहीं उपज्यो मोह अहंकार ।⭐

यह लीला उस समय कि हैं जब मोह सागर के ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति नहीं हुई थी 

🌟नाहीं निराकार नाहीं सुन,🌟 

तब न निराकार आस्तित्व में था न ही शून्य  

🌟ना निरगुन ना निरंजन ।। ८ ।।🌟

ना तो निर्गुण था ना निरंजन                        

🍃ना ईस्वर ना मूल प्रकृति, ता दिनकी कहूं आपाबीती ।🍃
🍃निज लीला ब्रह्म बाल चरित, जाकी इछा मूल प्रकृत ।। ९ ।।🍃🍃                        

🌹ना ईस्वर ना मूल प्रकृति,🌹

ना तो तब आदिनारायण थे ना ही उनकी माया (संसार )था 

 🌹ता दिनकी कहूं आपाबीती ।🌹

अब मैं (श्री महामति जी )तब की लीला का वर्णन करती हूँ 

🌹निज लीला ब्रह्म बाल चरित,🌹 

अक्षर ब्रह्म की लीला उस बालक के सामान हैं जो ब्रह्नांड रूपी खिलौने बना कर पल में लय कर देता हैं 

🌹जाकी इछा मूल प्रकृत ।। ९ ।।🌹

अक्षर ब्रह्म के अंदर जो सृष्टि रचने की इच्छा हैं वही तो मूल प्रकृति हैं                        

🍁श्री महामति जी रूहों से कह रहे हैं कि खेल देखने की इच्छा धाम धनी ने स्वयं उपजाई --यह बहुत ही गहन विषय हैं जिसके बारे में मैं आपको कहता हूँ --वो पल ,वो समय जब सृष्टि की रचना अर्थात खेल नहीं बना था उससे पहले की बाते 🍁

🍁यह लीला उस समय कि हैं जब मोह सागर के ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति नहीं हुई थी--निराकार ,निरंजन ,शून्य ,निर्गुण कुछ भी नहीं था -ना ही ईश्वर थे ना ही मूल प्रकृति थी --उस समय की घटना सुनिये-पारब्रह्म श्री राज जी का बाल स्वरूप अक्षर ब्रह्म पल में कई ब्रह्माण्ड बना कर एक पल में ही लय कर देता हैं इसी को मूल प्रकृति कहा हैं --ब्रह्माण्ड रचने की उनकी इच्छा ही मूल प्रकृति हैं🍁                        

🌹नैन की पाओ पलमें इसारत, कै कोट ब्रह्मांड उपजत खपत ।🌹
🌹इत खेल पैदा इन रवेस, त्रैलोकी ब्रह्मा विस्नु महेस ।। १० ।।🌹🌹                        

🌹नैन की पाओ पलमें इसारत,🍃

इस मूल प्रकृति द्वारा ही अक्षर भगवान् पाव पलक अर्थात नैनों के संकेत मात्र से ही  

🌹 कै कोट ब्रह्मांड उपजत खपत ।🍃

एक पल में कई कोट ब्रह्मांडों का सर्जन करते हैं और पल भर में लय कर देते हैं 

🌹इत खेल पैदा इन रवेस,🍃

इस प्रकार से अक्षर ब्रह्म खेल बनाते रहते हैं 

 🌹त्रैलोकी ब्रह्मा विस्नु महेस ।। १० ।।🍃

ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश के वर्चस्व वाले ब्रह्मांडो कि उत्तपत्ति होती रहती हैं और पल में  लय को प्राप्त होती हैं                        

🍃कै विध खेले यों प्रकृत, आप अपनी इछासों खेलत ।🍃
🍃या समे श्री बैकुंठनाथ, इछा दरसन करने साथ ।। ११ ।।🍃🍃                        

🌹कै विध खेले यों प्रकृत, आप अपनी इछासों खेलत ।🌹

इस प्रकार से अक्षर ब्रह्म अपनी पृकृति के द्वारा करोडो ब्रह्मांडों को उतपन्न कर पल में प्रलय करते हैं --आदि कई प्रकार की क्रीड़ाएं अपनी इच्छा से करते हैं 

🌹या  समे श्री बैकुंठनाथ, इछा दरसन करने साथ ।। ११ ।।🌹

एक समय अक्षर ब्रह्म के मन में यह इच्छा उतपन्न  हुई कि मैं ब्रह्म सृष्टियों के दर्शन करूँ 
नहीं तो वह हमेशा बनने मिटाने की स्वाभविक इच्छा में मगन रहते थे                        

🍃अक्षर मन उपजी ए आस, देखों धनीजी को प्रेम विलास ।🍃
🍃तब सखियों मन उपजी एह, खेल देखें अक्षर का जेह ।। १२ ।।🍃                        

🌹अक्षर मन उपजी ए आस,🌹

धाम धनि श्री राज जी की प्रेरणा से अक्षर ब्रह्म के मन में यह इच्छा हुई 

 🌹देखों धनीजी को प्रेम विलास ।🌹

कि पारब्रह्म अपनी अंगनाओं के साथ कैसे प्रेममयी लीलाएं करते हैं उन्हें मैं भी देखूं 

🌹तब सखियों मन उपजी एह,🌹 

इसी प्रकार से सखियों के मन में इच्छा उपजी कि 

🌹खेल देखें अक्षर का जेह ।। १२ ।।🌹

कि अक्षर ब्रह्म जो करोडो ब्रह्मांडों की उतपत्ति करते हैं पल में लय कर देते हैं उनकी इन क्रीड़ा को मैं भी देखु                        

☘श्री राज जी ने मेहर का दरिया दिल में लिया तो रूहों के दिल में यह आस उपजी कि हम अक्षर ब्रह्म का खेल देखे 


 जब श्री राज जी ने दिल में लिया कि अपनी अंगनाओं और अक्षर ब्रह्म को अपने पूर्ण स्वरूप की पहचान दूँ यही कारण हैं महाकारण हैं कि अक्षर ब्रह्म ओर सखियों के दिल में एक दूसरे का खेल देखन की इच्छा उपजी

sagar ki or

प्रणाम जी 

आप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग रूह चलती हैं बड़ी रांग की और --बेहद भूमि की और से धाम धनि शोभा दिखाते हैं रूहों --सर्वप्रथम रूह ने देखे --घेर कर वनों की अलौकिक अद्भुत शोभा  --आसमान को छूते वन --






सर्व रस सागर से भीतर जाना चाहते हैं तो सामने हैं वन ..12000  की 12000  हारों का समूह --सामने आये वन की रोंस जगमगा उठी ..मानो पुकार रही हो ..पिया मेरे इधर से चलिये सागर की और --मेहरों के सागर आप पिया चलते हैं रोंस की और --विशालकाय नूरी हाथियों पर असवार हम --नूरी रोंस --

रोंस पर आते हैं फूलों के नूरी चंदवा का उल्लासित होकर फूलों की बरखा करना ,पशु पक्षियों के जुथ्थ के जुत्थ उमड़ पढ़े प्रीतम के दीदार की आस ले --पिऊ-पिऊ,तुहि -तुहि की मधुर गुंजार से आलम --

करतब कर पशु पक्षियों का प्रीतम को रिझाना --शोभा देखते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं --दोनों और वनों की शोभा --वृक्षों की प्यारी सी दिल को चुने वाली शोभा --नहरों की कलकल और संगीत लहरी के साथ उछलते रंग बिरंगी किरणों से प्रतिबिंबित होते फव्वारे --





रोंस की शोभा ,वन की शोभा में रमन करते हुए आन पहुंचे चांदनी चौक --विशाल चौक --चौक में बिखरी हीरा ,मोती ,माणिक के माफक बिखरी रेती --जिनकी जो आसमान तक जा रही हैं --श्री राज श्यामा जी हाथी से उतरे ,सब सखियाँ भी ,उतरती हैं उतरते समय आभूषणों की झंकार से समा सुहाना हो गया --मंधुर स्वर लहरी में दिल निरत करने लगा --धाम के नूरी हाथी अपने स्थान पर लोट गए और हम कुछ पल यही रुकना चाहते हैं --चौक के आनद लेना चाहते हैं --

मध्य नग्न की नूरी रोंस पर श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियाँ खड़े हैं दायीं और लाल वृक्ष की अतुल्य शोभा हैं और बायीं और हरे वृक्ष की शोभा हैं --अर्शे मिलावा बढ़ता हैं लाल वृक्ष की और --अति नरम रेती  पाँव घुटनो तक धंस रहे हैं रेती भी तो  पिऊ की आशिक हैं उनके अभिनन्दन के लिये और कोमल हो रही हैं
रेती में अलबेली चाल से चलते हुए चबूतरा तक पहुंचे --नूरी तीन सीढ़ियों से चढ़कर चबूतरा पर आये --महाबिलंद हवेली की और मुख कर बैठन का मन लिया ही की सुंदर सिंहासन कुर्सियां सज उठी --उन पर विराजते हैं --युगल स्वरूप आप श्री राज श्यामा जी नूरी अति सुंदर शोभा से युक्त सिंहासन पर विराजी --घेर कर सखियाँ भी बैठी --वृक्ष की और नजर गयी तो विशालता वृक्ष का तन चबूतरा से प्रगट होते हुए --चारों दिशा में बादशाही द्वार --भीतर गए तो माणिक महल का विस्तार लिये शोभा --वृक्ष की 12000  भोम और एक एक भोम में 12000  भोमे समाहित --

देख मेरी सखी जुत्थ जुत्थ के पक्षी पशु हाजिर धाम धनि को रिझाने के लिये --उनकी प्रममयी लीलाएं देखती हम रूहें --मोरो का नृत्य ,बंदरों की कलाबाजियां और हाथियों की मस्त चाल घोड़ो की उड़ान 



अब चलते हैं सीढ़ियों की और --विशाल रोंस के आगे लगती विशाल सीढियां --अद्भुत शोभा लिये ,रंग बिखेरती सीढियां और चांदे --चांदों पर सजी बैठके ----

दर्पण की भांति सजी नूरी सीढियां नूरी कठेड़े --आप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग रूहें सीढियां चढ़ती हैं --अति कोमल सीढियां --दोनों और लगते नूरी कठेड़े उनमें आएं चित्रामन भी सजीव रूहों के संग चल रहे हैं --सीढ़ियों पर हाथों में हाथ थामें एक दुजें में मगन हम सब सखियाँ सीढियां चढ़ रही हैं --हर कदम के साथ बढ़ती ख़ुशी ,मेहेरें धाम धनि की खुशबु बिखेरेती उनके इश्क में गर्क करती --

चांदों पर सजी बैठके ,कुछ पल यहाँ रुकें ..खुबखुशालियाँ हाजिर मेवें मिष्टान ले आपके --खुशियों के रंग बरसाते मेरे श्री राज जी श्री श्यामा जी 
 

गुरुवार, 9 मार्च 2017

चले सागर

मेरी रूह तू चल अपने निज दरबार 

हद बेहद से पर परमधाम में मेरी पहुँचती हैं --खुद को देखती हैं बड़ी रांग की और --

नूरी हाथ हाजिर --मेरी रूह उन पर सवार होती हैं ,साथ में धाम की सखियाँ भी संग हो ली 

मेरी रूह हाथी पर सवार हो परमधाम की परिक्रमा लगा रही हैं --घेर कर आएं सुन्दर शोभा लिये नूरी वन --बत्तीस हांसों में  जुदि  जुदि शोभा से सज्जित महाबिलंद वन --पूर्व दिशा में सर्व सागर में बेशुमार रंगों से सजे वन --तो नूर सागर की सीमा में श्वेत वन झलकार करते हुए --तो नीर सागर में लालिमा लिये वन --खीर में पिली आभा से महकते वन तो दधि सागर में हरियाली बिखेरते वन और जब निकले घृत सागर की सीमा में तो नीली आभा से रोशन हो गए --आगे मध्य सागर की श्याम जोत से होते हुए रस सागर ,निस्बत के सागर में सभी दस प्रकार के सुख लेते वापिस आन पहुंचे सर्व सागर के सामने --




 आठों सागरों की झिलमिलाती शोभा --32  हान्स में आये वन की न्यारी शोभा अब मेरी रूह हैं सर्व रस सागर के सन्मुख                        

 सामने बेशुमार रंगों से झिलमिलाता महावन --12000  वनों की 12000  हारें --12000  वन ले चलते हैं हवेली के सन्मुख --

-रूह देखती सामने आये सोहने वन को --एक वन --वन में 12000  बगीचों का समूह --एक बगीचे की और नजर की तो 12000  वृक्षों की 12000  हारें ---ठीक मध्य में जाती सोहनी रोंस आवर रोंस के दोनों और वृक्षों की कतारें 

सबसे पहले नजर गयी रोंस की अलौकिक शोभा पर --राहों में बिछते फूल आपका अभिनन्दन कर रहे हैं ,नूर की बरखा रूह को इश्क में मगन कर रही हैं






नूरमयी रोंस पर चलते हुए रूह दोनों और आये वृक्षों की शोभा देखती हैं --नजर एक चौक में गयी तो चारों दिशा में प्रवाहित नूर की नहरे जिनमें नूरी जल की तरंगे रूह को अपनी और खिंच रही हैं --चारों कोनों में आये उठते चहबच्चे --


चौक के ठीक मध्य में कमर भर ऊंचे चबूतरे पर नूरी तन प्रगट होता हुआ जो डालियाँ बढ़ाकर साथ में दूसरे चौक के वृक्षों से एक रूप मिलान कर फूलों की सोहनी छाया कर रहे हैं -टनों में दरवाजे जिनसे चढ़कर ऊपर की भोमोम में आये वन मोहोलातों की शोभा रूह देखती हैं



तने की अलौकिक शोभा --उनमें आये नूरी द्वार --और अब रूह देखती हैं चारों दिशा में आये नहरों की शोभा ---निर्मल उज्जवल जल की लहरे --लहरों के किनार पर बनी सुखदायी बैठके और जल में क्रीड़ा करे जल जीव




सुन्दर नोकाएं प्रगट हो गयी --मीठी ध्वनि मुझ पर विराजिये मैं आपको वन के शीतल चंदवा के तले शीतल शीतल जल में सैर करा दूँ  --सवार होते ही जल जीव भी उमड़ पड़े --साथ साथ चलते ,पिऊ पिऊ तुहि तुहि की गुंजार





सोमवार, 6 मार्च 2017

खड़ोकली का वर्णन श्री जवाहरदास महाराज जी की वृति के आधार पर --

प्रणाम जी 
खड़ोकली का वर्णन एक बार फिर से करें ?
श्री जवाहरदास महाराज जी की वृति के आधार पर --
खड़ोकली का ब्यान 


यह खड़ोकली ताड़वन की हद में आयीं हैं ।लाल चबूतरा से पूर्व की तरफ 40  मंदिर की दुरी पर रंगभवन के बाहर एक मंदिर की रोंस के साथ लगकर आयी हैं ,खड़ोकली तीस मंदिर की लंबी चौड़ी हैं -40  मंदिर खड़ोकली के पूर्व तरफ आयें हैं ।इन्हीं 110  मंदिरों के भीतर दक्षिण तरफ भुलवनी के मंदिर आएं हैं जो चार हार में चार हवेली आयीं हैं
खड़ोकली का चबूतरा 


लाल चबूतरा के पूर्व तरफ 39  मंदिर की दुरी पर रंगमहल से लगता हुआ दो मंदिर का चौड़ा पश्चिम से पूर्व तरफ तथा दक्षिण से उत्तर तरफ रोंस के साथ लगता हुआ 31 मंदिर का लंबा ताड़वन की जमीन से एक भोम ऊंचा चबूतरा आया हैं फिर चबूतरा घूमकर पूर्व तरफ 31  मंदिर चलकर फिर दक्षिण तरफ घूमकर सीधा 30  मंदिर जाकर रंगमहल की रोंस से जाकर मिल जाता हैं
पश्चिम तरफ के रोंस और मंदिर 


पश्चिम तरफ जो दो मंदिर का चौड़ा चबूतरा आया हैं ।इस चबूतरा पर बाहर वन की तरफ एक मंदिर की चौड़ी रोंस आयीं हैं और 31  मंदिर की लंबी हैं ।खड़ोकली के नैऋत्य कोना से लेकर ऊतर तरफ 16  वृक्ष छोड़कर चबूतरे के साथ एक मंदिर का लंबा उत्तर से दक्षिण ,आधा मंदिर का चौड़ा पूर्व से पश्चिम चांदा का चौक आया हैं ।इस चांदा के ठीक मध्य १७वां  वृक्ष आया हैं ।वृक्ष के दाएं बाएं उत्तर दक्षिण चांदा की आध-आध मंदिर जगह बचेगी ।इस चौक के दोनों तरफ उत्तर-दक्षिण सीढ़ी उतरी हैं ।इस रोंस के बाहिरी तरफ चांदा की जगह छोड़कर किनारे पर कठेड़ा आया हैं ।इस रोंस के भीतरी तरफ चबूतरा के ऊपर एक मंदिर की जगह में  30  मंदिर उत्तर -दक्षिण की तरफ आये हैं
उत्तर तरफ की रोंस और मंदिर 


उत्तर तरफ जो दो मंदिर का चौड़ा चबूतरा आया हैं ।इस चबूतरा के बाहिर वन की तरफ एक मंदिर की चौड़ी और पश्चिम से पूर्व तरफ 32  मंदिर की लंबी रोंस आयी हैं ।रोंस के बाहिरी तरफ चबूतरा की किनार पर 33  वृक्ष ताड़ के आयें हैं ।जिसमें 16 -16  वृक्ष दाएं बाएं रहे ।मध्य में एक मंदिर की जगह (जहाँ सत्रहवाँ वृक्ष आया हैं )के साथ दूसरे बगीचे की किनार पर एक मंदिर का लंबा पश्चिम से पूर्व तरफ तथा आध मंदिर का चौड़ा दक्षिण से ऊतर तरफ भोम भर का ऊंचा खड़ोकली के चबूतरा के बराबर आया हैं ।इस चबूतरे के पूर्व -पश्चिम तरफ भोम भर की सीढियां बगीचा की जमीन पर उतरी हैं ।सीढ़ियों के उत्तर तरफ कठेड़ा आया हैं और दक्षिण तरफ तो खड़ोकली के चबूतरा की दीवार आयीं हैं और चांदा के चौक के उत्तर तरफ एक मंदिर का लंबा कठेड़ा शोभा ले रहा हैं और रोंस के बाहिर की तरफ चांदा की जगह छोड़कर दाएं बाएं 15 -1/2 ,15 -1/2 मंदिर का लंबा कठेड़ा आया हैं ।इस चांदा के ठीक बीच पश्चिम तरफ के अनुसार सत्रहवाँ वृक्ष आया हैं ।इस रोंस के भीतरी तरफ रोंस के साथ लगकर चबूतरा के ऊपर लंबाई में पश्चिम से पूर्व तरफ 28  मंदिर आयें हैं
पूर्व तरफ की रोंस और मंदिर 

इस खड़ोकली के पूर्व तरफ जो दो मंदिर का चबूतरा आया हैं ।इस चबूतरा के ऊपर बाहर वन तरफ एक मंदिर की चौड़ी और इकतीस मंदिर की लंबी ऊतर-दक्षिण एक रोंस आयीं हैं ।इस रोंस की बाहिर तरफ किनार पर बगीचा की जमीन में एक चांदा पश्चिम तरफ के चांदा के मुताबिक़ आया हैं ।चांदी की लंबाई चौड़ाई भी पहले के माफक आयी हैं ।चांदा की जगह छोड़कर 30  मंदिर लंबा कठेड़ा उत्तर से दक्षिण आया हैं  इस रोंस के भीतरी तरफ चबूतरा के लंबाई में 30  मंदिर उत्तर से दक्षिण में आयें हैं
दक्षिण तरफ दीवार 

इस खड़ोकली के अग्नि कोना तथा नेऋत्य कोना के जो दो मंदिर आएं हैं ।इन दोनों मंदिरों के बीच में 28  मंदिर की लंबी और एक मंदिर की चौड़ी दक्षिण से उत्तर की जगह में एक दीवार आयी हैं यह रंगभवन की दीवार की रोंस के साथ लगकर आयी हैं 
खड़ोकली के मंदिर 

इस खड़ोकली के पश्चिम-उत्तर और पूर्व तरफ कुल 88  मंदिर आएं हैं ।सो इन मंदिरों की ऊंचाई एक भोम की हैं ।इन मंदिरों की छत से 33  हाथ का चौड़ा छज्जा निकल कर रोंस पर आया हैं ।इन मंदिरों के भीतरी तरफ दरवाजे नहीं आएं हैं और दक्षिण तरफ की दीवार में भी दरवाजे नहीं आएं हैं ।इन चारों तरफ की भीतरी दीवारों के भीतरी तरफ 28  मंदिर की लंबी चौड़ी जगह में तीन भोम गहरा जल आया हैं ।इन खड़ोकली का जल दर्श पर्श दूसरी भोम से होता हैं 
 एक मंदिर का ब्यान 


88  मंदिर में से एक मंदिर का ब्यान किया जाता हैं इसी प्रकार सब मंदिर जानना जी ।एक बड़ी अकशी मेहराब में तीन मेहराबें ,फिर एक एक में तीन मेहराबें आने से 9  मेहराब हुई ।जिसमें 6  जालीद्वार दरवाजे ,दो खुले दरवाजे तथा मध्य में अक्श आया हैं ।मध्य के अक्श में झरोखा आया हैं ।पाखे की दीवार में एक एक मेहराब ,मध्य में दरवाजा दायें बायें अक्श आया हैं

 खड़ोकली के गुर्ज 


लाल चबूतरा के पूर्व तरफ 40 वां   -41  वां जो मंदिर आया हैं ।इन दोनों मंदिरों की पाखे की जो दीवार हैं ।उस दीवार के उत्तर तरफ बाहिरी रोंस पर 66  हाथ का लंबा चौड़ा एक भोम भर का ऊंचा चौरस गुर्ज आया हैं ।इस गुर्ज के आगे पूर्व तरफ तीसवाँ और 31 वां जो मंदिर आया हैं ।इन दो मंदिरों के बीच में जो पाखे की दीवार हैं ।उस दीवार के ऊतर तरफ रोंस के ऊपर 66  हाथ का लंबा चौड़ा एक भोम भर का ऊंचा चौरस दूसरा गुर्ज आया हैं ।इन दोनों गुरजों के छज्जे नहीं आएं हैं ।बाकी सब बनक श्री रंगभवन के गुर्ज़ों जैसी आयीं हैं ।इन दोनों गुर्ज़ों के बीच में 30  मंदिर आएं हैं ।जो दक्षिण में रंगभवन के हैं और तीस मंदिर की रोंस आयीं हैं रोंस के उत्तर तरफ खड़ोकली की दक्षिण तरफ की दीवार आयी हैं 
 
रोंस के ऊपर पुल 


श्री रंगभवन की 30  मंदिरों की पहली भोम की छत से एक सीढ़ी नीचा आध मंदिर का चौड़ा छज्जा निकल कर उत्तर तरफ गया हैं और उत्तर तरफ के 30  मंदिर की लंबी खड़ोकली की दीवार में से आध मंदिर का चौड़ा छज्जा और तीस मंदिर का लंबा छज्जा निकल कर दक्षिण तरफ गया हैं ।दोनों छज्जा मिलकर एकरूप हो गया हैं ।इस प्रकार इस छत को पुल करके कहा गया हैं ।इस पुल के पूर्व पश्चिम तरफ 33 -33  हाथ का छज्जा निकल कर दोनों गुर्ज़ों से मिलकर एक रूप हो गया हैं ।ए दोनों पुल गुर्ज वास्ते हैं ।यह ३० मंदिर ६६ हाथ का लंबा आया हैं और एक मंदिर का चौड़ा उत्तर-दक्षिण आया हैं ।

खड़ोकली का चेहेबच्चा 


पुल के उत्तर तरफ 28  मंदिर का लंबा चौड़ा ताल आया हैं ।जिसकी 112  मंदिर की गृद हैं ।यह चेहेबच्चा तीन भोम गहरा आया हैं ।जिसकी एक भोम जमीन के नीचे की और दूसरी भोम एक भोम ऊंचे चबूतरे की और तीसरी भोम में खड़ोकली का मंदिर आया हैं ।इसका जल मिश्री से मीठा ,सुगंध ,शीतल ,सुख देने वाला हैं ।आधा मंदिर रंगभवन का छज्जा आधा मंदिर खड़ोकली की दीवार के छज्जा की जगह पर ऊपर रोंस आयीं हैं ।
चेहेबच्चा के चारों तरफ की रोंस 


खड़ोकली के दक्षिण तरफ 30  मंदिर 66  हाथ की लंबी और दो मंदिर चौड़ी रोंस आयीं हैं ।जिसकी एक मंदिर की जगह में 30  मंदिर की लंबी दीवार तथा छज्जा पर आयीं हैं और एक मंदिर की जगह 30  मंदिर 66  हाथ की चौड़ाई ,आधा मंदिर रंगभवन का छज्जा और आधा मंदिर खड़ोकली की दीवार के छज्जा की जगह के ऊपर रोंस आयी हैं ।
इस खड़ोकली के पश्चिम ,उत्तर और पूर्व तरफ 133  हाथ की चौड़ी रोंस आयीं हैं जिसमें 100  हाथ की जगह मंदिरों की छत पर हुई और मंदिरों से 33  हाथ का छज्जा आने से कुल जगह 133  हाथ हुई 
रोंस के बाहिरी किनारों पर --पूर्व ,उत्तर और पश्चिम किनार पर कठेड़े की शोभा आयी हैं 
जल चबूतरा तथा चांदे 


खड़ोकली की रोंस के मध्य भाग में 28  मंदिर का लंबा चौड़ा चेहेबच्चा जल का आया हैं चेहेबच्चा के चारों तरफ जल चबूतरा हैं जिस पर कमर भर जल आया हैं ।इस जल चबूतरे पर चारों दिशा में आध मंदिर के चौड़े एक मंदिर के लंबे चबूतरे उठकर रोंस के साथ लगे हैं ।इस चबूतरे (चांदे )से दोनों तरफ कमर भर की सीढ़ी उतरी हैं ।चाँदों पर सामने कठेड़ा हैं ।सीढ़ियों को छोड़कर चारों तरफों कठेड़ा आया हैं ।

खड़ोकली में झिलना 


अनेक प्रकार के खेल तमासे करके स्नान करने के वास्ते सखियाँ खड़ोकली की तरफ आती हैं ।भुलवनी के मंदिरों से चलकर बाहर आठ मंदिर निकल कर एक सीढ़ी नीचे उतर कर दो मंदिर की चौड़ी रोंस पर करके चांदे से तीन सीढ़ी उतरकर जल चबूतरा पर खूब स्नान करती हैं ।झिलना कर भुलवनी के मध्य भाग में आये 64  मंदिर चबूतरा पर सिनगार सजती हैं ।