सोमवार, 30 जनवरी 2017

mulmilava

प्रणाम जी 
अभी तक रूह ने शोभा देखी कि 28  थम्भ चौक के पश्चिम तरफ पहली रसोई की हवेली सहित चार चौरस हवेलियों की शोभा आयीं हैं-चार चौरस हवेलियों के आगे पांचवीं गोल हवेली आयीं हैं जो रूह का मूल मिलावा हैं ।

रूह मूल मिलावा की शोभा निरखती हैं श्री राज  जी मेहर से -मुलमिलावा -पांचवीं गोल हवेली में 64  मंदिरों की गृद आयीं हैं ।हवेली सवा 21  मंदिर की लंबी चौड़ी सुशोभित हैं ।इन हवेली के मध्य चबूतरा के ऊपर श्री राज श्यामा जी तथा सखियों की बैठक आने से इन गोल हवेली को मूल मिलावा कहते हैं -इस गोल हवेली के सामान ही सभी हवेलियां आयीं हैं ।



चौथी चौरस हवेली के पश्चिम द्वार से रूह बाहर आती हैं तो वह देखती हैं एक अद्भुत दृश्य-नूरमयी झलकार करते थंभों की एक हार तो सीधी  गयी हैं और दूसरी गोलाई में -तो यह गोल घूमें थम्भ मुलमिलावा की गोल हवेली के चारों और आएं हैं -हवेली को घेर कर 64  थम्भ आएं हैं जिन पर अति सुन्दर  नक्काशी से सुसज्जित 64  मेहराबे आयीं हैं -नूरी जगमग करते इन थंभों के भीतरी तरफ घेर एक मंदिर की दुरी पर एक मंदिर की हार आयीं हैं 

अब रूह घेर कर आएं इन मंदिरों की शोभा निरख रही हैं -रूह देखती हैं 60  मंदिरों की जगह पर अति मनोहारी रंगीन शोभा बिखेरते 60  मंदिर आएं हैं और चारों  दिशा में चार मंदिरों की जगह 88 -88  हाथ की बड़े विशाल दरवाजे आएं हैं इन दरवाजों के ऊपर मनोहारी शोभा लिये 12  हाथ की मेहराब सज्जित हैं।बड़े द्वार पर चेतन घोड़ो  के चित्रामन तो रूह एकटक निरख रही हैं-

रूह 60  मंदिरों में एक मंदिर की शोभा देखती हैं -100  हाथ लंबा चौड़ा मंदिर अत्यंत ही मनोहारी शोभा लिये हैं -मंदिर की चारों दीवारों में सुन्दर द्वार की शोभा आयीं हैं -मंदिर के भीतर सुख सुविधा के सभी साजो सामान उपलब्ध हैं ,सेज्या ,चौकी ,संदूक ,हिंडोलों ,शीशे और सिनगार का सभी सामान कहाँ तक वर्णन करे ?

रूह मंदिरों की बाहिरी दीवार की अलौकिक शोभा देख रही हैं -एक बड़ी मेहराब की शोभा में तीन मेहराबे झलक रही हैं जिनके मध्य मेहराब में दरवाजा आया हैं दाएं बाएं की महवराब में सुन्दर ,चेतन चित्रामन अंकित  हैं -इन मेहराबों के साथ साथ लाल रंग की अति सुन्दर डोरी की शोभा रूह निरख रही हैं 
रूह पूर्व दिशा के बड़े द्वार से मुलमिलावा के भीतर आती हैं और देखती हैं फेर फेर घेर कर आये साथ मंदिर और चारों  दिशा में शोभा बड़े दरवाजों की अलौकिक शोभा को -इन मंदिरों के भीतरी तरफ एक थम्भ की हार और दो गालिया आयीं हैं -इनके भीतरी तरफ ठीक मध्य में एक चबूतरा कमर भर ऊंचा चौसठ पहल का आया हैं -



रूह अब इन चौसठ पहल के चबूतरा की अलौकिक शोभा को दिल में बसा रही हैं मंदिरों के भीतर के थम्भ की हार से एक मंदिर की दुरी पर भीतरी तरफ एक चबूतरा कमर भर ऊंचा चौसठ पहल है आया हैं -चबूतरा की किनार अपर हान्स हान्स के कोने पर आएं थंभों की अनोखी जुगति उनकी शोभा को रूह निरख रही हैं 64 थंभों के ऊपर सुन्दर नक्काशी से सज्जित कटावदार मेहराबें आयीं हैं और चारों से सीढियां उतरी हैं और घेर कर रत्न जड़ित कठेड़े की झलकार -अहो क्या शोभा हैं हमारे धाम की -

श्री राज जी की अपार मेहर से रूह देखती हैं कि  पूर्व दिशा में पाच के दो थम्भों के दरम्यान आया महेराबी द्वार हरित आभा बिखेर रहा हैं जिनके दोनों और नीलवी के थम्भ शोभित हैं | पश्चिम दिशा में नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिनसे नीली महक से जगमगाते द्वार की शोभा बन गयीं हैं | इनके दाएँ बाएँ पाच के नूरी थम्भ शोभा ले रहें हैं |
ऊतर दिशा में पुखराज के दवार के दोनों और माणिक के थम्भ है| दक्षिण मे माणिक के द्वार के दोनों और पुखराज के थम्भ आये है |
और  चारों द्वारों के मध्य में आएँ चारों खाँचों में हीरा, लसनिया, गोमादिक, मोती, पन्ना, परवाल, हेम, नूर, चाँदी, कँचन, पिरोजा और कपूरिया के थम्भ आये है ।रूह थम्भो की शोभा को देख रही हैं | थम्भ के निचली तरफ चार हांस आएँ हैं ,उसके ऊपर आठ और मध्य में थम्भ सोलह हांस का शोभित हैं फिर पुनः आठ और चार हांस क्रमशः आएँ हैं | इस प्रकार से  बहुत ही प्यारी जुगति से थम्भो की शोभा आईं हैं |जिनमें कई कटाव हैं कई प्रकार के अनुपम नक्काशी हैं | अलग अलग प्रकार के चित्रामन है और हर चित्र के जुदे ही भाव हैं | एक एक रंग का अद्भुत जवेर और उसी में आईं चेतन नक्काशी ,उनके अलग अलग कटाव एक से बढ़कर एक सुंदर हैं |
इस प्रकार से रूह ने चारों खाँचों में आएं अड़तालीस थम्भ और उनकी शोभा को फेर फेर निरखा | सोलह थम्भ चारों द्वारों के हैं -यह चौसठ थम्भ चबूतरे पर सुशोभित हैं |

अत्यंत ही सुंदर ,नरम ,चेतन पशमी गिलम (बिछौना)चबूतरे पर बिछी हैं | यह गिलम चबूतरे की किनार पर आएं कठेड़े से जाकर लगी हैं जिसकी शोभा सुखदायी है |प्रियतम श्री राज जी को रिझावन खातिर गिलम एक पल में ही कई रंग रूप धारण करती हैं तो इनके रंग का ,शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से कैसे हो ?मेरे साथ जी ,एक बड़ी ही खुशहाल करने वाली शोभा देखिए ,दुलीचे को घेर कर श्याम ,श्वेत ,हरित और जर्द (पीला) रंग की अत्यंत ही मनोरम ,तेजोमयी दोरी आईं हैं |नूरी दोरी में कई तरह के कटाव हैं ,कई प्रकार के नूरी चेतन वृक्षों और बेलियों का चित्रामन हैं | जिनमें कई प्रकार के पत्तियाँ और फूलों का जड़ाव हैं |

थम्भों को भराए कर के नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,महीन -महीन नक्काशी से सज्जित और मोतियों की लड़ो से शोभित चंद्रवा आया हैं |चन्द्रवा के मध्य में भाँति भाँति की चित्र कला चित्रित हैं |चबूतरे की किनार पर आएं थम्भ ,उनकी महेराबे ,थम्भों पर शोभित चंद्रवा ,नीचे नूरी ,नरम दुलीचे की जोत ,उनकी तरंगे आपस में युद्ध करती हुई मनोरम प्रतीत हो रहीं हैं |
चबूतरे के मध्य में फल फूलों से चित्रामन से सज्जित पशमी गिलम पर  कंचन रंग के सिंहासन की शोभा हैं ।जिसमें छः पाये छः डांड़े आएँ हैं | जिन पर अद्भुत चित्रामन जगमगा रहा हैं और उन पर नूरी ,चेतन फूल खिले है | एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) |

दोनों स्वरूपों के ऊपर दो नूरी फूलों की शोभा लिए छत्र सुशोभित हैं | दो कलश तो इन छत्रियों पर हैं और छः कलश घेर कर आए हैं | यह आठ कलश हेम ,स्वर्ण के हैं जो आत्मा को अति प्यारे लगते हैं |छत्री की अद्भुत ,झलकार करती हुई शोभा – जिनमें कई रंग नंग हैं और किनारे भी नंगों की जोत से जगमगा रहे हैं | छत्री में कई प्रकार की सोहनी दोरी ,बेलियाँ और चारों और फिरती नूरी कांगरी अति खुशहाल करती हैं |

पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |जिन पर भी अनेक प्रकार की कई सूक्ष्म अत्यंत ही मनोहारी चित्रण हैं |चारों थम्भो पर चारों ओर से चढ़ती कांगरी सुशोभित हैं | कांगरी में कई प्रकार के नूर से भरे फूल ,पत्ते ,बेलें और महीन कटाव आएँ हैं |

सिंहासन पर एक गादी दो पशमी चाकले और दो तकिये पीछे दो दाएँ -बाएँ और मध्य मे एक तकिया रोशन है |श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख अद्भुत छब से विराजमान हैं |  

*सुरत एकै राखियो, मूल मिलावे मांहिं ।*
*स्याम स्यामाजी साथजी, तले भोम बैठे हैं जांहिं* ।। ३ ।।/7 सागर 



रविवार, 29 जनवरी 2017

chandni chouk se lekar mulmilava ki shobha

प्रणाम जी

चलिये आज चांदनी चौक से लेकर मुलमिलावा की शोभा को दिल में बसाएं

श्री राज जी श्री श्यामा जी के चरणों का ध्यान करते हुए अपनी सुरता को परमधाम की और मोड़े

खुद को महसूस करें चांदनी चौक में

मुख श्री रंगमहल की और

धाम धनि श्री राज जी की अपार मेहर से देखे कि रंगमहल के मुख्यद्वार के सामने अमृत वन के तीसरे हिस्से में चांदनी चौक की अपार शोभा आयीं हैं ---166  मंदिर के लंबे चौड़े चौक में खड़ी हैं  रूह --166  मंदिर का लंबा चौड़ा चौक --जिसमें हीरा मोती से भी उज्जवल ,निर्मल ,अत्यंत ही कोमल रेती सुशोभित हैं --रेती के दोखुने ,तीनखुने और चौखुने कणों की झिलमिलाहट आसमान तक जा रही हैं --ठीक मध्य में दो मंदिर की चौड़ी नंगों की रोंस जो पाटघाट को पीठ देकर चले तो अमृत वन के ठीक मध्य भाग से होती हुई चांदनी चौक के मध्य से होती हुई धाम की सीढ़ियों तक ले जा रही हैं -

इन रोंस से चांदनी चौक के दो हिस्से प्रतीत हो रहे हैं --उत्तर दिशा में कमर भर ऊंचे चबूतरे पर लाल वृक्ष की शोभा आयीं हैं और दक्षिण की और हरे वृक्ष की अपार शोभा हैं --यह वृक्ष आपके अभिनन्दन के लिये प्रस्तुत हैं --उत्तर दिशा के वृक्ष की और बढ़ती हैं रूह --अत्यन्त ही नूरमयी कोमल रेती --कि पाँव घुंटनों तक धंस रहे हैं --एक एक कदम जब रूह का बढ़ता हैं इन धाम की नूरी रेती में तो वह अपार आनंद उल्लास का अनुभव करती हैं --रेती के उड़ते नूरमयी कण भूषण बन रूह के नूरी तन का नूरी सिनगार बन मुस्करा उठते हैं
इठलाती बलखाती अति मदमस्त चाल से चलती चंचल,श्री राज जी की मस्ती में डूबी रूह पहुँचती हैं चबूतरा तक--और देखती हैं प्यारी सी शोभा--तीन सीढ़ी ऊंचा यह चबूतरा ३३ मंदिर की लंबाई चौड़ाई लिये सुशोभित हैं-चबूतरा के चारों  दिशा से आठ आठ मंदिर की जगह लेकर तीन तीन सीढियां चांदनी चौक की रेती में उतरी हैं शेष जगह घेर कर नूरी फूलों से जड़ित सुगन्धित कठेड़े की खुशहाल करने वाली शोभा आयीं हैं

रूह के कदम उठते हैं चबूतरा पर जाने के लिये --वह अति सोहनी शोभा से युक्त सीढ़ियों पर पाँव धरती हैं --अहो कितनी कोमल हैं सीढियां मानो फूलों की सीढियां प्रस्तुत हैं रूह के लिये --सीढ़ियों के दोनों और फूलों के कठेड़े -सुगंधि का आलम-रूह सीढ़ियों से चढ़कर चबूतरा पर पहुँचती हैं तो देखती हैं चबूतरा के ठीक मध्य भाग में एक मंदिर का विस्तार लिये तना आया हैं -और देखती हैं तने की चारों दिशा में दरवाजा आएं हैं अत्यंत ही सुन्दर द्वार-पहली भोम में वृक्ष का तना 75  हाथ सीधा जाकर डालियों का विस्तार करता हैं और अति सुन्दर चंदवा चबूतरा की शोभा बढ़ता हैं ,वृक्ष की पहली भोम में वृक्ष के चारों और सुन्दर बैठकों की शोभा ,जिस दिशा में बैठना हो वहीँ बैठक सज जाती हैं -वृक्ष की शीतल छाँव में बैठ प्रीतम श्री राज जी श्री श्याम जी के संग अखंड सुख रूहें ही लेती हैं                      
अब कदम बढ़ते हैं वृक्ष की दूजी भोम में जाने लिये तो रूह तने में दरवाजा के भीतर प्रवेश करती हैं -तने के भीतर बड़ी ही विशाल शोभा रूह देखती हैं सुन्दर मनमोहक दृश्यों के बीच चढ़ती गोल फूलों की सीढियां जिनसे रूह चढ़ वृक्ष की दूसरी भोम में आतीं हैं-दूसरी भोम में पहली भोम जितना  विस्तार, नीचे मानो फूलों का मखमली गिलम बिछा हैं और फूलों के मध्य से प्रगट होता वृक्ष का भोम भर का तना जिसकी नूरी छत दूसरी भोम की शोभा मोहोल माफक बना रही हैं-चारों दिशा में 33 -33  खुली मेहराबों की शोभा और इन अलौकिक शोभा के बीच फूलों के हिंडोलों में झूलना तो कभी फूलों की मेहराबों में खड़े होकर चांदनी चौक की अलौकिक छटा को निहारना

और अब देखती हैं दो भोम तीसरी चांदनी के वृक्ष की चांदनी की मनोहारी शोभा -चांदनी की किनार पर कठेड़े की शोभा और ठीक मध्य फूलों की देहुरी की शोभा आयीं हैं,देहुरी पर कलश ध्वजा की अपार शोभा हैं-ठीक ऐसे ही शोभा दक्षिण दिशा में आएं चबूतरा की भी आयीं हैं
अब रूह बढ़ती हैं धाम की सीढ़ियों की और-मध्य रोंस से आगे बढ़ती हुई-रूह के उत्तर ,दक्षिण और पश्चिम दिशा में अमृत वन के वृक्षों के दो भोम के छज्जे और ठीक सामने रंगमहल की शोभा-रोंस से होती हुई रूह सीढ़ियों तक पहुंचती हैं

रूह ने देखा कि सीढियां दो मंदिर की  रोंस के आगे दो मंदिर की  ही लंबाई लेकर चढ़ी हैं और पहला कदम बढ़ाती हैं और पहली सीढ़ी पर रखती हैं यह सीढ़ी एक हाथ की ऊंची और एक ही हाथ की चौड़ी आयीं हैं,रूह एक एक करके पांच सीढियां चढ़ती हैं तो देखती हैं एक अद्भुत शोभा कि पांचवीं सीढ़ी के आगे पांच हाथ के चांदा की शोभा आयीं हैं-विशेष ध्यान देने योग्य बात यहाँ रूह के लिये यह हैं कि पांचवीं सीढ़ी और चांदा एक ही लेवल पर आएं हैं-सीढ़ी और चांदा दोनों पर आएं गिलम की जुदी शोभा आयीं हैं-इसी तरह से हर पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा की शोभा आयीं हैं-दसवीं ,पन्द्रवीं ,बीसवीं-इस तरह से -तो रूह शोभा निरखती हुई धाम की बादशाही सीढियां चढ़ रही हैं -सीढ़ियों पर आयीं गिलम और कोमल हो रही हैं और रूह भी बड़ी नाजुकता से कदम बढ़ा रहीं हैं-दोनों और आएं सुन्दर कठेड़े भी रूह के साथ साथ मानो आगे बढ़ रहे हैं
सौ सीढियां बीस चांदों सहित रूह पार करके दो मंदिर के चौक में आतीं हैं-दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक के चारों कोनों में हीरा के नूरमयी थम्भ आएं हैं -यह थम्भ 88  हाथ सीधा ऊपर जाकर 88  हाथ में अति सुन्दर मेहराब बनाते हैं-इनके ऊपर 28  हाथ की जगह में सुन्दर चित्रकारी आने से इन चौक की छत 204  हाथ ऊंची आयीं हैं
(दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक की छत 204  हाथ ऊंची आयीं हैं --चारों कोनों में  आये हीरा के थम्भ 88  हाथ सीधा जाकर 88  हाथ की मेहराब बनाते हैं-इनके ऊपर 24  हाथ की जगह में चित्रकारी होनी थी पर 28 
 हाथ की आयीं हैं 

वजह ?

दो मंदिर के चौक और दोनों और आये मंदिरो पर दो भोम ऊपर जो एक छत आती हैं वही तीजी भोम की पड़साल हैं --तीजी भोम की पड़साल तीसरी भोम के मंदिरों ,सम्पूर्ण शोभा से तीन सीढ़ी ऊंची आयीं हैं और दूसरी ,तीसरी ,चौथी किसी  की भोम की शोभा देखे तो वह शोभा छत से एक हाथ ऊंची आयीं हैं --अर्थात तीसरी भोम की जमीन से एक हाथ ऊंची उनकी सम्पूर्ण शोभा आयीं हैं --

इसीलिये दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक की छत 204  हाथ की ऊंची शोभयमान हैं)
-चौक के चारों दिशा की शोभा रूह निरखती हैं -पूर्व दिशा में चांदनी चौक में उतरती सीढियां रूह ने देखी-

ऊतर दक्षिण दिशा में चार मंदिर के लंबे और दो मंदिर के चौड़े चबूतरे आएं हैं-अब रूह निरखती हैं दक्षिण दिशा में आएं चबूतरा की शोभा-चबूतरा एक सीढ़ी ऊंचा आया हैं-चबूतरा पर जाना हैं तो चबूतरा की उत्तर किनार जो दो मंदिर के चौक की और पढ़ती हैं-वहां ठीक मध्य में 50  हाथ की जगह सीढ़ी चढ़ने के लिये हैं और दोनों 75 -75  हाथ में कठेड़ा आया हैं-मध्य 50 हाथ की जगह से हो रूह दक्षिण दिशा में आये चबूतरा पर आती हैं तो देखती हैं कि चबूतरा की पूर्व किनार पर नूरमयी थम्भ आएं हैं -दो मंदिर के चौक की और से थंभों की शोभा देखे तो क्रमशः हीरा ,माणिक,पुखराज,पाच,नीलवी के थम्भ आएं हैं ,हीरा के थम्भ वही हैं जो मंदिर के चौक के कोने में हैं-इन थंभों के मध्य नूरी ,स्वर्णिम कठेड़े की शोभा हैं क्योंकि आगे भोम भर नीचा चांदनी चौक सुशोभित हैं-चबूतरा की पश्चिम किनार पर चार मंदिर लगे हैं जो रंगमहल के बाहिरी हार मंदिर हैं(दरवाजे के वास्ते आये दस हान्स के मंदिर जिनमें चार चार मंदिर दो मंदिर के दोनों और आये चबूतरों  की पश्चिम किनार से लगे हैं और मध्य में दो मंदिर का लंबा और एक मंदिर का चौड़ा मंदिर दरवाजे के वास्ते आया हैं)थंभों की शोभा पूर्व दिशा की तरह ही हैं अंतर मात्र यह हैं की पूर्व दिशा में थम्भ खुले आएं हैं और और पश्चिम दिशा में अक्स मात्र हैं-चबूतरा के ऊपर चंदवा की शोभा हैं और नीचे  गिलम की अपार शोभा हैं
चबूतरों की शोभा देख अब रूह की नजर जाती हैं धाम दरवाजा की और-दो मंदिर के चौक के पश्चिम दिशा में दो मंदिर की चौड़ी और दो मंदिर की ही ऊंची नूरमयी दीवार आयीं हैं तो रूह धाम धनी श्री राज जी की मेहर से निरखती हैं कि दो भोम की ऊंची दीवार के प्रथम भोम में मध्य 88  हाथ में नूरी दर्पण का दरवाजा आया हैं और दरवाजा के दोनों और 56 -56  हाथ की जगह में नूरी लाल मणियों से जड़ित अति सुन्दर दीवार शोभित हैं-88  हाथ का नूरी दर्पण का झिलमिलाता दरवाजा हरित रंग की बेनी और एक सीढ़ी ऊंची लाल रंग की सुन्दर चित्रामन से जड़ित चौखट--दरवाजे के ऊपर 12  हाथ की अति सुन्दर मेहराब


नूरी दर्पण का अति सुन्दर धाम दरवाजा और दरवाजे के ऊपर बारह हाथ की नूरी मेहराब की शोभा देख अब रूह की नजर जाती हैं-दूसरी भोम की और -बारह हाथ की मेहराब के ऊपर झरोखा की शोभा आयीं हैं और झरोखा के दोनों और नूरमयी चित्रामन से युक्त जाली द्वार आएं हैं


रूह दो मंदिर के चौक में खड़ी होकर धाम दरवाजे की शोभा देख रही हैं -प्रथम भोम में दर्पण का नूरी बादशाही शोभा से भी कोट गुनी शोभा किया द्वार और दूसरी भोम में बड़ी मेहराब में नव मेहराब शोभित हैं -ठीक मध्य की तीन मेहराबों की शोभा अभी रूह ने देखी -झरोखा और दोनों और आये जाली द्वार-अब इन के आस पास की शोभा रूह देखती हैं -इन दोनों और की तीन तीन मेहराबों के मध्य में दरवाजा आया हैं और दाये बाएं जाली द्वार शोभित हैं
इन दरवाजो की एक विशेष शोभा और हैं इन दरवाजों के आगे कठेड़ा लगा हुआ हैं क्योंकि आगे भोम भर निचे दो मंदिर का लंबा चौड़ा चौक हैं तो एक तरह से यह द्वार भी झरोखा की शोभा लिये हैं -यहाँ खड़े रूहें दो मंदिर के चौक की शोभा देखती हैं-
धाम द्वार की शोभा निरख अब रूह धाम अंदर प्रवेश करना चाहती हैं ,रूह की नजर नूरी दर्पण के धाम द्वार की और हैं -जहाँ वह अपना ही प्रतिबिम्ब देख उल्लासित हो रही हैं-सुन्दर स्वरुप अर्शे परमधाम की लाडली का --नूरी तन ,नूरी वस्त्र और नूरी भुखन और मुख पर तेज --,-दर्पण में झलकते अमृत वन के दृश्य सोहने लगते हैं -और अमृत वन की मनोहारी झलकार --फूलों की अपार खुशबु ,नहरों चेहेबच्चों के मध्य नूरी रेती से प्रगट होते नूरी फल फूलों से लडे वृक्ष और उनमें रमन करते पशु पक्षी --छोटे छोटे पक्षियों की मस्त उड़ान और मीठी ध्वनि --मेरे प्राण प्रियतम श्री राज जी की लाडली सखी ,यह गुलाब की कली आपके लिये और रूह अपने  हाथों में गुलाब के कोमल कोमल,अति सुन्दर नूरी फूल देख रही हैं-

रूह देखती हैं-धाम का मुख्य दरवाजा खुल रहा हैं --खुलते समय का स्वर अहो कितना मधुर हैं--सर्व संगीत से ऊपर मीठी ध्वनि--एक सीढ़ी ऊंची सेंदुरिया रंग जडाव की नूरी चौखट का नूर--

मैं श्री राज जी की दुल्हिन नार हूँ --अपने धाम ह्रदय में यह भाव दृढ रूह करके बड़ी ही नाजुकी से ,सलूकी से दुल्हिन  सी शर्माती हुई चौखट उलंघ कर खुद को देखती हूँ --

अति मनोरम शोभा लिये विशाल मंदिर को जो दरवाजे का मंदिर के नाम से जाना जाता हैं
                        
विशाल मंदिर हर और नूर बिखरता हुआ--पलक पाँवड़े बिछते हुए--सखी के अभिनन्दन के लिये--दोनों और *अति सुन्दर द्वार जिनसे पाखे के मंदिरों में जाने का मनोरम  मार्ग हैं
सुन्दर रोमांचित करने वाले समां के बीच मंदिर की पश्चिम दीवार तक पहुंची --अद्भुत शोभा --पूर्व दिवार के माफिक ही दर्पण रंग में सुखदायी झलकार करता किवाड़--किवाड़ खुल गए और सखी मेरी ,आगे बढ़ते हैं --धाम भीतर चले--एक सीढ़ी ऊंची चौखट को उलंघ और आन पहुंची--अपने निज घर के भीतर

धाम द्वार को पर करते ही रूह खुद को एक गली में महसूस करती हैं -अति मनोरम शोभा से युक्त गली और गली पर करते ही रूह खुद को 28 थम्भ का चौक में देख रही हैं -28 थम्भ का चौक  की विहंगम शोभा को रूह निरख रही हैं 

चौक में अति सुन्दर गिलम बिछी हैं और उन पर आयीं बादशाही बैठक --एक मधुर गूंज रूह को सुनाई देती हैं -मेरी कुछ पल यहाँ बैठे और महसूस करे अपने अखंड सुख--

पूर्व की और देख मेरी सखी--नूरी रंगों नंगों से झिलमिलाते दस थम्भ और उन पर आयीं अति सुंदर चित्रमें से युक्त मेहराबे--और आगे देखे तो विशाल गली और गली के पार धाम दरवाजा की खुशहाल करने वाली जगमगाहट                        
28 थम्भ का चौक की पश्चिम दिशा में भी दस झिलमिलाते थंभों की शोभा--और रसोई के चौक के मनोरम नजारें


उत्तर दक्षिण दिशा में चार चार थंभों की सोहनी झलकार--और दोनों दिशाओं में दूसरी हार के मंदिर नजर आ रहे हैं -और थंभों को भराए के सुन्दर चंदवा
इन चौक की अलौकिक शोभा--चारों और नूरी थंभों की सोहनी झलकार --रंगों नंगों की अनोखी जुगत और थंभों में आयीं अति सुन्दर मेहराबे और थंभों को भर कर आया अति सुन्दर चंदवा ,चंदवा में आयीं चेतन नक्काशी --लटकते मोती ,झूमर --मानों सखियों पार खुशियों ,उल्लास की बरखा
28 थम्भ के चौक की सुखद शोभा में झील कर रूह  चौक को पार करती हैं ,एक नूर गली भी पार करती हैं तो खुद को देखती हैं  रसोई की हवेली में ,पहली चौरस हवेली
धाम की पहली चौरस हवेली की शोभा रसोई के चौक की आयीं हैं-यह रसोई की हवेली 23 मंदिर की लंबी चौड़ी शोभित हैं-रसोई की हवेली की पूर्व दिशा में मध्य में ग्यारह मंदिर की नूरमयी ,अति सुन्दर दहलान की शोभा आयीं हैं ,इन दहलान में थंभों की दो हारे झिलमिला रही हैं -ग्यारह मंदिर की लंबी और एक मंदिर की चौड़ी इन दहलान के दोनों और नूरमयी  शोभा बिखेरते पांच पांच मंदिर आएं हैं

और रसोई की हवेली की उत्तर और दक्षिण दिशा में नजर गयीं तो देखा कि दोनों दिशाओं में ठीक मध्य मुख्य द्वार की अपार शोभा आयीं हैं..द्वार से पहले मंदिरों की अपार शोभा हैं और द्वार के आगे पश्चिम दिशा में दहलान की शोभा आयीं हैं--और उत्तर दिशा में एक विशेष शोभा-कोने का मंदिर छोड़कर दूसरा मंदिर रसोई का मंदिर हैं जो श्याम रंग में झिलमिला रहा हैं आगे सीढ़ियों का मंदिर हैं जिनसे सखियाँ श्री राज श्याम जी के संग उतरती चढ़ती हैं--सीढ़ी वाले मंदिर के आगे श्वेत मंदिर हैं
और रूह देख रही हैं -रसोई की हवेली की पश्चिम दिशा में मंदिरों की दिवार की अपार शोभा आयीं हैं ,ठीक मध्य में द्वार और दोनों और मंदिरों की शोभा जगमगा रही हैं-रसोई की हवेली की चारों और निरखती हैं उसे कुल तीन मुख्यद्वार दिखाई देते हैं --पूर्व दिशा का मुख्य द्वार पूर्व के दहलान में शामिल हो जाने से यहाँ मुख्यद्वार नहीं आया हैं-तो इस तरह से रसोई की हवेली में 54  मंदिर आएं है- 31मंदिर की दहलान आयीं हैं-रसोई की हवेली में तीन देहेलानों की शोभा आयीं हैं ,पूर्व की दहलान में थंभों की दी हारे आयीं हैं तो उत्तर दक्षिण दिशा में बड़े दरवाजे के आगे आने वाली दहलान की बाहिरी दीवार तो शोभा हैं पर  भीतरी ,और दाएं बाएं /पाखे की दीवार नहीं आयीं हैं ,मात्र थम्भ आने सुन्दर दहलाने बन गयीं हैं-सखी ,चारों दिशा की शोभा देखी ,इन शोभा के भीतरी तरफ एक  थम्भ की हार दो गालियां आयीं हैं और ठीक मध्य एक कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिसकी किनार पर थम्भ अपार खुशाली बिखेर रहे हैं ..थंभों को भराए के चंदवा की अपार शोभा हैं नीचे गिलम --सिंहासन कुर्सियों  की शोभा --और चारों दिशा से उतरती सीढियां- और शेष जगह चबूतरे की किनार पर थंभों के मध्य  स्वर्णिम कठेड़े की शोभा हैं
रसोई की हवेली की अलौकिक शोभा निरख अब रूह हवेली के पश्चिम द्वार से बहार निकल पहली चौरस हवेली को पार करती हैं-हवेली के पश्चिम द्वार से निकल रूह देखती हैं दो थंभों की हार तीन गालियां-त्रिपोलिये की विहंगम शोभा
रूह आगे बढ़ती हैं और नूर से लबरेज नूरमयी गलियों को पार करके दूसरी चौरस हवेली के पूर्व दिशा में आये मुख्य द्वार के सम्मुख पहुँचती हैं-पूर्व दिशा में सुशोभित बड़े द्वार से हो रूह दूसरी हवेली के भीतर आन पहुँचती हैं -जगमग करती धाम की विशाल हवेली -अद्भुत शोभा -घेर कर आएं रंगों नंगों की सुखद झलकार से झिलमिलाते मंदिर और चारों दिशा में आएं मंदिरों के ठीक मध्य विशाल बड़े द्वार की शोभा आयीं हैं -बादशाही शोभा से भीत गुनी शोभा लिये यह बड़े द्वार बेहद ही सुन्दर ,अनुपम हैं

मंदिरो के भीतरी तरफ एक थम्भ की हार और दो गालियां और ठीक मध्य में कमर भर ऊंचा चबूतरा-रूह निरखती हैं कि चबूतरा की किनार पर भी अति सुन्दर नूरमयी थंभों की शोभा हैं-थंभों को भराए कर चंदवा की सुखद झलकार और नीचे पशमी गिलम शोभायमान हैं-हवेली की सम्पूर्ण शोभा को दिल में दृढ करते हुए रूह आगे बढ़ कर हवेली पार करती हैं,इसी तरह से दूसरी और तीसरी चौरस हवेली भी रूह पार कर जैसे ही चौथी हवेली के पश्चमी द्वार से बहार निकलती हैं तो रूह की नज़रों में आती हैं एक अलौकिक शोभा 

यहाँ थंभों की एक हार सीधी घुमी हैं और दूसरी हार गोलाई में गयीं हैं और सामने हैं गोल फिरावे के पहली हवेली -हमारा मूल मुकाम -मुलमिलावा- जहाँ रूह के प्राण वल्लभ श्रीराज-श्यामा जी धाम की सखियों को संग ले कर विराजमान हैं |

बुधवार, 25 जनवरी 2017

28 thambh ke chouk se le rasoi ki haveli

1⃣प्रेम प्रणाम जी --

रूह धाम दरवाजा पार करती हैं तो खुद को एक मंदिर की चौड़ी और गोलाई में रंगमहल को घेर कर आयीं अति नूरी गली में देखती हैं --तो इन नूरमयी गली को पार करते ही क्या शोभा रूह की नज़रों में आती हैं ?❓

मेरी सखी ,श्री रंगमहल का मुख्यद्वार नूरी दर्पण का बादशाही शोभा लिये द्वार पार करती हैं तो खुद एक अति नूरमयी गली में महसूस करती हैं ,गली के आगे मनोहारी चौक की शोभा हैं --हमारे निजघर का पहला चौक जो 28  थम्भ का चौक कहलाता हैं --नूर से झिलमिलाता अति नूरमयी चौक
                       

 2⃣28  थम्भ के चौक के पूर्व पश्चिम दिशा में कितने थम्भ आएं हैं ❓                      

सखी मेरी रूह के नयनों से देख ,28  थम्भ के चौक के पूर्व पश्चिम दिशा में दस दस थंभों की रंगों नंगों से जगमगाहट करती अनुपम शोभा   आयीं हैं --थंभों में चेतन नक्काशी मन मोहती हैं और थंभों में मेहराबें उनकी मोहकता तो देखते ही बनती हैं

 3⃣28  थम्भ के चौक के  उत्तर दक्षिन दिशा में कितने थम्भ आएं हैं ❓                      

और 28  थम्भ के चौक के उत्तर दक्षिण दिशा में चार चार थंभों की सोहनी जुगत हैं --

 4⃣रूह 28  थम्ब के चौक में हैं तो उसे चौक के नीचे , ऊपर और चौक को घेर कर क्या शोभा नजर आती हैं❓                      

चेतन ,अति सुन्दर शोभा लिये धाम के इन थंभों को भराए के मोतियों की झालर से सुसज्जित सोहना चंदवा तना हैं,खुशियों ,अखंड आनंद की बरखा करता चंदवा की सुखद झलकार रूह को मुग्ध कर रही हैं और चौक के तले अति नरम पशम बिछी हैं जिन पर सुखदायी  बैठके सजी हैं सखी  ,ये बैठक हमारे लिये ही तो हैं आइये यहाँ बैठ सखियाँ आपस में मीठी मीठी रस भरी बतिया करें

 5⃣रूह 28  थम्ब के चौक को पार करती हैं चौक के आगे एक गली को पार करती हैं तो उसके आगे क्या शोभा हैं जिसमे रूह प्रवेश करेगी अब ❓  

२८ थम्भ के चौक की सुखद शोभा में झील कर सखी चौक को पार करती हैं ,एक नूरे गली भी पार करती हैं तो हैं सामने रसोई की हवेली ,पहली चौरस हवेली
                   
 6⃣पहली चौरस हवेली की विशेष शोभा आयीं है वह क्या हैं ❓                      

तो सखी ,धाम की पहली चौरस हवेली की शोभा रसोई के चौक की आयीं हैं

 7⃣रसोई की हवेली कितने मंदिर की लंबी चौड़ी आयी हैं ❓                      

तो सखी ,रसोई की हवेली 23 मंदिर की लंबी चौड़ी शोभित हैं

 8⃣रसोई की हवेली की पूर्व दिशा की शोभा क्या हैं ❓                      

सखी मेरी पूर्व दिशा की शोभा देखे --रसोई की हवेली की पूर्व दिशा में मध्य में ग्यारह मंदिर की नूरमयी ,अति सुन्दर दहलान की शोभा आयीं हैं ,इन दहलान में थंभों की दो हारे झिलमिला रही हैं -ग्यारह मंदिर की लंबी और एक मंदिर की चौड़ी इन दहलान के दोनों और नूरमयी  शोभा बिखेरते पांच पांच मंदिर आएं हैं

 9⃣रसोई की हवेली की उत्तर दक्षिन दिशा में  की शोभा क्या हैं                        

और रसोई की हवेली की उत्तर और दक्षिण दिशा में नजर गयीं तो देखा कि दोनों दिशाओं में ठीक मध्य मुख्य द्वार की अपार शोभा आयीं हैं ..द्वार से पहले मंदिरों की अपार शोभा हैं और द्वार के आगे पश्चिम दिशा में दहलान की शोभा आयीं हैं --और उत्तर दिशा में एक विशेष शोभा --कोने का मंदिर छोड़कर दूसरा मंदिर रसोई का मंदिर हैं जो श्याम रंग में झिलमिला रहा हैं आगे सीढ़ियों का मंदिर हैं जिनसे सखियाँ श्री राज श्याम जी के संग उतरती चढ़ती हैं --सीढ़ी वाले मंदिर के आगे श्वेत मंदिर हैं

1⃣0⃣रसोई की हवेली की पश्चिम  दिशा में  की शोभा क्या हैं ❓                      

और रसोई की हवेली की पश्चिम दिशा में मंदिरों की दिवार की अपार शोभा आयीं हैं ,ठीक मध्य में द्वार और दोनों और मंदिरों की शोभा जगमगा रही हैं

 1⃣1⃣रसोई की हवेली में कुल कितने मुख्य द्वार आएं हैं ❓                      

,रसोई की हवेली की चारों और निरखती हैं सखी तो उसे कुल तीन मुख्यद्वार दिखाई देते हैं --पूर्व दिशा का मुख्य द्वार पूर्व के दहलान में शामिल हो जाने से यहाँ मुख्यद्वार नहीं आया हैं

 1⃣2⃣रसोई की हवेली में कितने मंदिर आएं हैं ❓  
                   
तो इस तरह से रसोई की हवेली में 54  मंदिर आएं है 31मंदिर की दहलान आयीं हैं

1⃣3⃣रसोई की हवेली में दहलान की शोभा कहे ❓                      

रसोई की हवेली में तीन देहेलानों की शोभा आयीं हैं ,पूर्व की दहलान में थंभों की दी हारे आयीं हैं तो उत्तर दक्षिण दिशा में बड़े दरवाजे के आगे आने वाली दहलान की बाहिरी दीवार तो शोभा हैं पर  भीतरी ,और दाएं बाएं /पाखे की दीवार नहीं आयीं हैं ,मात्र थम्भ आने सुन्दर दहलाने बन गयीं हैं

 1⃣4⃣रसोई की हवेली में घेर कर आएं मंदिरों के भीतर एक थम्भ की हार दो  गालियां आयीं हैं ठीक मध्य में आयीं शोभा का वर्णन करें ❓                      

सखी ,चारों दिशा की शोभा देखी ,इन शोभा के भीतरी तरफ एक  थम्भ की हार दो गालियां आयीं हैं और ठीक मध्य एक कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिसकी किनार पर थम्भ अपार खुशाली बिखेर रहे हैं ..थंभों को भराए के चंदवा की अपार शोभा हैं नीचे गिलम --सिंहासन कुर्सियों  की शोभा --और चारों दिशा से उतरती सीढियां तो देख मेरी सखी और शेष जगह चबूतरे की किनार पर थंभों के मध्य  स्वर्णिम कठेड़े की शोभा हैं

 1⃣5⃣उत्तर दिशा में कोने वाला मंदिर छोड़कर कोनसा मंदिर आया हैं ❓

रविवार, 15 जनवरी 2017

28 थम्भ का चौक

प्रणाम जी 

 मेरी सखी ,अपनी निज नजर को धाम द्वार के सम्मुख ले चले 

दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक में है  --दोनों हाथों की और एक सीढ़ी ऊंचे चबूतरों की अपार शोभा 

और नजरे ऊपर हुई तो चौक के ऊपर कितना सुन्दर नक्काशी से युक्त नूरी छत --अद्भुत नक्काशी और सखी तेरा झलकता प्रतिबिम्ब --हर शह चेतन ,खुशियों के रंग बिखेरती हुई
सामने धाम ,श्री रंगमहल का मुख्य दरवाजा ,हमारा धाम दरवाजा 


दर्पण का द्वार ,नूर से लबरेज -विशाल दर्पण रंग के नूरी किवाड़ जिनकी बेनी हरे रंग में आयीं हैं और एक सीढ़ी ऊंची लाल चौखट
नूरमयी दर्पण के द्वार में आयीं सोहनी चित्रकारी देख मेरी सखी --और द्वार के ऊपर अति सुंदर मेहराब सुशोभित हैं --और दरवाजे के दोनों और सुंदर ,मणियों की नक्काशी से युक्त नूरी दीवार शोभित हैं और दरवाजे के ऊपर भी सुन्दर दीवार झिलमिला रही हैं
हे मेरी सखी ,जरा प्यार से द्वार की और देख --देख तेरा नूरी प्रतिबिम्ब --सुन्दर स्वरुप अर्शे परमधाम की लाडली का --नूरी तन ,नूरी वस्त्र और नूरी भुखन और मुख पर तेज --


और अमृत वन की मनोहारी झलकार --फूलों की अपार खुशबु ,नहरों चेहेबच्चों के मध्य नूरी रेती से प्रगट होते नूरी फल फूलों से लाडे वृक्ष और उनमें रमन करते पशु पक्षी --छोटे छोटे पक्षियों की मस्त उड़ान और मीठी ध्वनि --मेरे प्राण प्रियतम श्री राज जी की लाडली सखी ,यह गुलाब की काली आपके लिये और सखी तेरे हाथों में गुलाब के कोमल कोमल ,अति सुन्दर नूरी फूल

सखी मेरे धाम का मुख्य दरवाजा खुल रहा   हैं --खुलते समय का स्वर अहो कितना मधुर हैं --सर्व संगीत से ऊपर मीठी ध्वनि --एक सीढ़ी ऊंची सेंदुरिया रंग जडाव की नूरी चौखट का नूर --


सखी मेरी ,मैं श्री राज जी की दुल्हिन नार हूँ --अपने धाम ह्रदय में यह भाव दृढ करके बड़ी ही नाजुकी से ,सलूकी से दुल्हिन  सी शर्माती हुई चौखट उलंघ कर खुद को देखती हूँ --

अति मनोरम शोभा लिये विशाल मंदिर को जो दरवाजे का मंदिर के नाम से जाना जाता हैं                        
विशाल मंदिर हर और नूर बिखरता हुआ --पलक पाँवड़े बिछते हुए --सखी के अभिनन्दन के लिये --दोनों और अति सुन्दर द्वार जिनसे पाखे के मंदिरों में जाने का मनोरम  मार्ग हैं
सुन्दर रोमांचित करने वाले समां के बीच मंदिर की पश्चिम दीवार तक पहुंची --अद्भुत शोभा --पूर्व दिवार के माफिक ही दर्पण रंग में सुखदायी झलकार करता किवाड़ --किवाड़ खुल गए और सखी मेरी ,आगे बढ़ते हैं --धाम भीतर चले --एक सीढ़ी ऊंची चौखट को उलंघ और आन पहुंची --अपने निज घर के भीतर

 धाम द्वार को पार करके सखी मेरी खुद को एक गली में देखती हैं --नूरी शोभा लिये विशाल गली को पार करके श्री रंगमहल के प्रथम चौक में आओ 


और देखे ,हमारे धाम के प्रथम चौक 28 थम्भ का चौक  की विहंगम शोभा --

चौक में अति सुन्दर गिलम बिछी हैं और उन पर आयीं बादशाही बैठक --सखी कुछ पल यहाँ बैठे और महसूस करे अपने अखंड सुख --

पूर्व की --नूरी रंगों नंगों से झिलमिलाते दस थम्भ और उन पर आयीं अति सुंदर चित्रमें से युक्त मेहराबे --और आगे देखे तो विशाल गली और गली के पार धाम दरवाजा की खुशहाल करने वाली जगमगाहट                        
28 थम्भ का चौक की पश्चिम दिशा में भी दस झिलमिलाते थंभों की शोभा --और रसोई के चौक के मनोरम नजारें                        

: उत्तर दक्षिण दिशा में चार चार थंभों की सोहनी झलकार ---और दोनों दिशाओं में दूसरी हार के मंदिर नजर आ रहे हैं -और थंभों को भराए के सुन्दर चंदवा
मेरी सखी देख तो इन चौक की अलौकिक शोभा --चारों और नूरी थंभों की सोहनी झलकार --रंगों नंगों की अनोखी जुगत और थंभों में आयीं अति सुन्दर मेहराबे और थंभों को भर कर आया अति सुन्दर चंदवा ,चंदवा में आयीं चेतन नक्काशी --लटकते मोती ,झूमर --मानों सखियों पर खुशियों ,उल्लास की बरखा --