बुधवार, 30 नवंबर 2016

chandni chouk se mulmilave tak

खुद को चांदनी चौक में महसूस कर मेरी सखी --मुख रंगमहल की और --तो मेरी सखी दायीं और लाल वृक्ष की शोभा हैं और बायीं और हरे वृक्ष की --ठीक मध्य में दो मंदिर की चौड़ी रोंस अमृत वन  से आती हुई जो धाम की विशाल सीढ़ियों तक ले जाकर खड़ा करती हैं
 धाम की विशाल अति सोहनी ,सुखदायी सीढियां --हर पांचवीं सीढ़ी के आगे चांदा की शोभा --और दोनों और आएं कठेड़े --
देख तो मेरी प्यारी सखी ,कठेडों के चित्रामन के पशु पक्षी भी उल्लास में गाते बाजाते तेरे तेरे साथ साथ सीढियां चढ़ रहे हैं --मधुर संगीत स्वरों की गूंज --पीया तुहि तुहि तू
सीढियां चढ़ कर दो मंदिर के चौक में आ सखी और देख ---श्वेत महक से महकता चौक --चारों कोनों में हीरा के थम्भ --दो भोम ऊंचा यह चौक हैं --चौक के पूर्व में उतरती सीढिया देखी --उत्तर दक्षिन में एक सीढ़ी ऊंचे दो मंदिर के चौड़े और चार मंदिर के चबूतरा आएं हैं --और ठीक सामने नूरी दर्पण का धाम दरवाजा --हरे रंग की बेनी और लाल रंग की एक सीढ़ी ऊंची चौखट --
द्वार स्वतः ही खुल गए --
एक सीढ़ी ऊंची चौखट को धाम धनि की लाडली दुल्हिन बड़ी ही अदा से पार करती हैं --जैसे ही धाम दरवाजा के मंदिर में प्रवेश करती हैं तो फूलों की बरखा से अभिनंदन हुआ न मेरी सखी --स्वागत में शहनाई वादन --पलक पाँवड़े बिच गए आपकी राहों में --दायीं बायीं के द्वार खुल गए और पाखे के मंदिरों से सखियाँ भी उमड़ पढ़ी --प्यारी सखी से मिल तो लूँ --
 सामने के द्वार को भी उमंग से पार किया और आ पहुंचे मेरे निजघर में ,मेरा रंगमहल
 धाम दरवाजा पार करके मेरी सखी ---तू खड़ी हैं एक गली में ,आने जाने की रोंस में 

रोंस पार कर --अब कहाँ हैं मेरी  सखी ?
अब मेरी सखी ,धनि हमें ले आएं हैं 28  थम्भ के चौक में --
 चौक में अति नूरी गिलम ,कोमलता लिये गिलम और सुंदर बैठके ---पूर्व पश्चिम में रंगों नंगों से झिलमिलाते 10 -10  थम्भ और ऊतर दक्षिण 4 -4  थम्भ 

थंभों को भराए कर छत पर नूरी चंदवा की झलकार

 आओ मेरी सखी ,कुछ देर इन चौक में विश्राम करे ,धनि की बातें करे
28  थम्भ के चौक में कुछ पल विश्राम किया ..अखंड सुखों को याद कर अब मेरी सखी आगे बढ़ते हैं --चौक से जैसे ही बाहर निकले खुद को एक नूर से लबरेज गली में देखा --सामने पहली चौरस हवेली --
पहली चौरस हवेली जो कुछ अद्भुत शोभा लिये हैं --
 पहली चौरस हवेली हमारी रसोई की हवेली हैं --
 गली में हैं हम सखी और सामने रसोई की हवेली --

तो यहाँ से क्या शोभा दिख रही हैं ?

सामने हैं रसोई की हवेली की पूर्व दीवार --अजब शोभा --
21  मंदिर की दीवार जिसमें मध्य में दो थंभों की हार आने से सुंदर दहलान आयीं हैं और दहलान के दाएं बाएं 5-5 मंदिर रंगों नंगों से युक्त सुखदायी झलकार करते दिख रहे हैं
 ग्यारह मंदिर की लंबी एक मंदिर चौड़ी दहलान --दोनों और मंदिर --
थंभों की सुन्दर मेहराबे ,नूरी छत ---में बनी सुन्दर दहलान के दृश्य इन नासूत जिमी में 

👆👆हे मेरी सखी ,रसोई के चौक की पूर्व दिशा की शोभा को दिल में बसा -- नूरमयी जगमगाते थंभों के मध्य अति सुन्दर ,मनोहारी दहलान --दहलान के दोनों और नूरमयी मंदिरों की अपार शोभा
पूर्व की शोभा को निरखते हुए दहलान में होते हुए पहली चौरस हवेली ...निजघर की रसोई की हवेली के भीतर प्रवेश किया --सुगंधि का आलम और चारों और का विहंगम दृश्य --

सबसे पहले मेरी सखी निरख --उत्तर ,दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य आएं नूरमयी दर्पण के किवाड़ों की शोभा --हवेली के बड़े द्वार जिनकी शोभा तो देख --धाम दरवाजा के सामान सुशोभित यह हवेली के बड़े द्वार 

बड़ा दरवाजा तो पूर्व दिशा में भी होना चाहिए पर क्योंकि वहाँ दहलान आयीं हैं तो मुख्य द्वार नहीं आया हैं
सखी पूर्व दिशा से रसोई की हवेली में प्रवेश कर सर्वप्रथम देखी शोभा --मुख्यद्वारों की --

और अब देखते हैं उत्तर दिशा की शोभा ---आपके दाएं हाथ की और की हवेली की दिवार --

तो देखा सखी ,पहला उत्तर दिशा में पहला मंदिर रसोई का हैं जो श्याम रंग में शोभित हैं --दूसरा सीढ़ी का मंदिर और तीसरा श्वेत मंदिर ,जिनमें सामग्री रखी हैं
उत्तर दिशा में मंदिरों की अति मनोहारी शोभा देखे सखी ---याद करे वह पल --कैसे लाड बाई के जूथ में शामिल हो हम सखियाँ रुच रुच कर धाम धनी श्री राज जी के लिये रसोई के विशाल मंदिर में भोजन तैयार करती हैं --सब इच्छा मात्र से हाजिर हो ..ऐसे नूरी भोम हैं हमारा निजघर ..पर सखियों को सेवा भावे 

रसोई के मंदिर के आगे सीढ़ी का मंदिर --जिनसे  सखियाँ चढ़ उतर करती हैं उन समय उनके आभूषणों की मनोहारी ,अति मधुर आवाज को श्रवण करे 

और आगे श्वेत मंदिर में सभी साजो सामान उपलब्ध हैं
और उत्तर दिशा की मंदिरो की दीवार में ठीक मध्य में नूरी दर्पण रंग का झलकार करता मुख्य द्वार --

देखो मेरी सखी --द्वार से पहले तो मंदिरों की अपार शोभा दिख रही हैं और बड़े दरवाजे  के आगे शोभा कैसे हैं अब वह देखे मेरी सखी --

उत्तर दिशा में आएं  मुख्य द्वार के आगे नूरी दहलान आयीं हैं --इन मुख्यद्वार के आगे पश्चिम की और --जहां दस मंदिर आने थे वहां दहलान की शोभा आयी हैं --इन दस मंदिरों की बाहिरी दीवार तो आयीं हैं पर हवेली के भीतर की और पाखे की दीवार नहीं आयीं हैं --भीतर की और मंदिर -मंदिर के अन्तर पर थम्भ आएं हैं जिनसे सुंदर दहलान की शोभा दृष्टिगोचर होती हैं
उत्तर दिशा की शोभा देखकर सखी अब देखते दक्षिण दिशा की हवेली की दीवार की और --बड़े दरवाजा के पहले तो मंदिर आये हैं और बड़े द्वार के आगे दहलान आयीं हैं --उत्तर दिशा के माफक 

अब देखते हैं पश्चिम दिशा की और --पश्चिम दिशा में इक्कीस मंदिर की अति मनोहारी दीवार खुशहाल कर रही हैं --ठीक मध्य में बड़ा द्वार तो देखे
रसोई के हवेली के चारों और की दीवार की शोभा देखी --अब देखते हैं इन मंदिरों की दीवार के भीतर की और ---देख मेरी सखी एक थम्भ की हार दो गालियां सुशोभित हैं

ठीक मध्य भाग में कमर भर ऊंचा चबूतरा ---

सखी रसोई की हवेली की अलौकिक शोभा दिल में ली --पूर्व दिशा की दहलान --उत्तर दक्षिन दिशा में आयीं अलौकिक शोभा लिये दहलान ,स्याम श्वेत मंदिर की शोभा देखते हुए पश्चिम द्वार से बाहर निकल कर पहली चौरस हवेली ,रसोई की हवेली पार की
हवेली पार कर पश्चिम द्वार से बाहर निकलेंगे तो क्या शोभा होगी हमारे धाम की सखी ?
सखी ,हवेली से बाहर निकले तो देखेंगे --एक गली फिर थम्भ की हार ,फिर गली ,थम्भ की हार पुनः गली --अर्थात दो थंभों की हार तीन गलियां
हवेली के भीतर एक थम्भ की हार दो गली देखी --हवेली से बाहर निकलेंगे तो दो थम्भ की हार तीन गलियां
-- एक हवेली को घेर कर एक थम्भ की हार आती हैं --तो जब दो हवेली एक साथ आती हैं तो दो थंभों की हार तीन नूरी गलियां दिखाई देती हैं
थंभों की दो हार और उनमें आयीं तीन गलियां त्रिपोलिया कहलाती हैं तो इन त्रिपोलिये को पार करके दूसरी हवेली के पूर्व दिशा के बड़े द्वार के सम्मुख पहुंचे
पूर्व दिशा में आएं इन मुख्य द्वार से दूसरी चौरस हवेली के भीतर चले सखी -- भीतर गए तो क्या शोभा देखेंगे ? चारो दिशा में मंदिरों की दीवार आयीं हैं --मंदिरों की दीवार के भीतर एक थम्भ की हार दो गलियां शोभा हैं --और ठीक मध्य भाग में कमर भर ऊंचा चबूतरा हैं जिसकी किनार पर थंभों की दूसरी हार आयीं हैं --चारो दिशा से सीढियां उतरी हैं और शेष भाग में कठेड़े की शोभा हैं तो देखो सखी फेर फेर सम्पूर्ण शोभा रसोई की हवेली के माफक --बस यहाँ दहलान ना आकर मंदिर आएं हैं और श्याम ,श्वेत और सीढ़ी वाला मंदिर इनमें नहीं हैं
शोभा देखते हुए दूसरी हवेली भी पार करते हैं --पश्चिम के द्वार से बाहर निकलें तो फिर त्रिपोलिये की अलौकिक शोभा ..सामने तीसरी हवेली का मुख्यद्वार ---तो इस तरह से शोभा देखते तीसरी हवेली को भी पार किया सखी --चौथी हवेली पार करके जब पश्चिम द्वार से बाहर निकलें तो क्या देखा ?
तो देखेंगे एक अद्भुत शोभा --त्रिपोलिया यहाँ भी सुशोभित हैं पर एक हार थंभों की तो सीधी आयीं हैं और दूसरी गोलाई में --सामने हमारा मूल मिलावा --मुलमिलावे का पूर्व दिशा का द्वार --जो खुल गया हैं अपनी सखी के अभिनन्दन के लिये
तो सखी ,बढ़ते हैं आपणा मूल घर ,मूल बैठक --मुलमिलावा की और -- चौथी हवेली के पश्चिम द्वार से आगे बढ़ते हुए त्रिपोलिये को पार किया जिसमें थंभों की एक हार तो सीधी घुमी हैं दूसरी गोलाई में --
 अब सखी हम सम्मुख हैं पांचवी गोल हवेली --मुलमिलावा -- मुलमिलावा का पूर्व दिशा का बड़ा द्वार खुल गए रूह के लिये --एक हरित रौशनी --खुशहाली का प्रतिक --सखी हमारे अखंड दूल्हा के अखंड सुख - देखो सखी , पूर्व दिशा का दरवाजा हरे रंग में झलकार कर रहा हैं --द्वार की अति उत्साह ,दिल में पिऊ मिलन की चाह ,अपनी मूल बैठक जो धाम धनि हमें दिखने वाले हैं --
भीतर पहुंचे तो देखेंगे की मुलमिलावा की इन गोल हवेली की बाहिरी दीवार मंदिरों की आयीं हैं --घेर कर चौसठ मंदिरों की नूरी जगमगाती दीवार --देखो सखी --चारों दिशा में बड़े द्वारों की अपार शोभा --सतहों मंदिरों की मनोहारी शोभा --
मंदिरों के भीतर की और एक थम्भ की हार और नूर से लबरेज दो गालियां
तो पूर्व दिशा के बड़े द्वार से भीतर प्रवेश कर एक थम्भ की हार दो गालियां पार करके चबूतरे के पास पहुंचे
तीन सीढियां चढ़कर चबूतरा पर आएं और पहले चबूतरे पर कंचन रंग में सिंहासन पर विराजमान श्री युगल स्वरूप श्री राज श्याम जी के चरणों में पहुंचे -उनके श्री चरणों में सिजदा करे --उनके नूरी स्वरूप को धाम ह्रदय में बसाए --
और अब प्रियतम श्री राज श्याम जी की अपार मेहर हमें दिखा रही हैं मूल मिलावा की अलौकिक शोभा
इस नक़्शे चौथी हवेली की पश्चिमी दीवार के मंदिर ..एक हार मंदिरों की सीधी आगे मूल मिलावा की गोल हवेली को घेर कर गोलाई में थंभों की हार --थम्भ मेहराबों सहित आगे हलके पीले रंग में घेर कर आएं मंदिर दर्शाये हैं 👆👆👆
गोलाई में आएँ इन मंदिरों के द्वार एक से बढ़कर एक सुन्दर लग रहें हैं | द्वारों के पल्ले ,चौखट की शोभा वर्णन से परे हैं | पिऊ जी के आशिक अति सुन्दर यह द्वार चेतन हैं जो रूह के आगमन पर स्वतः ही खुल जाते हैं |मंदिरों के दरवाज़ों और किनार पर नूरमयी रत्नों जडित लाल रंग की दोरी सुशोभित हैं | यह दोरी सभी मंदिरों की किनारों पर शोभा ले रही हैं | रूह की नज़र से देख तो सही ,इनकी शोभा अत्यधिक हैं | इन दोरी के साथ साथ सब स्थानों पर कांगरी की शोभा हैं जिनके बीच में चित्रामन सजे हैं |साठो मंदिरों नई नई जुगति से शोभा ले रहें हैं | कहीं फूलों से महकते मंदिर आएँ हैं तो कई जवेरातों से जड़े मंदिर हैं ,कोई कोई मंदिर एक ही रंग में झलकार कर रहा हैं तो दूसरे मंदिर में अनेक रंग रोशन हैं
चौसठ थम्भ मंदिरों के बाहिरी और हैं और चौसठ थम्भ अंदर एवं चौसठ थम्भ चबूतरे की किनार पर हैं |सखी ,एक एक थम्भ को देख -- मानो सूर्य के सामने सूर्य हो | एक एक थम्भ की नक्काशी ,उनका चित्रामन का नूर ,उनका जोत ,रूहों के लिए पल-पल बढ़ रहा हैं | नूर के नूर का क्या वर्णन हो ? थम्भो के मध्य का नूर उल्लासित कर रहा हैं | यह नूर धाम धनी श्री राज जी का लाड़ हैं जो उनकी प्यारी रूह को इश्क ,प्रेम की अनुभूति करा रहा हैं |
अब देख सखी , मूल मिलावे के मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा सुशोभित हैं |चबूतरे की चारों दिशा में द्वार आएँ हैं |जिनसे तीन तीन सीढ़ियाँ उतरी हैं | चारों द्वारों के मध्य में सोलह-सोलह थम्भ शोभा ले रहे हैं |सोलह थम्भो के मध्य कठेडा आया हैं | इस प्रकार से चबूतरे की किनार पर थम्भो और उनके मध्य कठेड़े की अति मनोहारी शोभा आईं हैं | हे सखी ,इन अलौकिक शोभा को निज नयनों से देख |एक एक थम्भ की शोभा को निहार | उनके मध्य आएँ फूलों से महकते कठेड़े की अनुपम शोभा को धाम हृदय में बसा | फेर फेर शोभा को निरख प्यारी सखी
पूर्व दिशा में पाच के दो थम्भों के दरम्यान आया महेराबी द्वार हरित आभा बिखेर रहा हैं जिनके दोनों और नीलवी के थम्भ शोभित हैं | पश्चिम दिशा में नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिनसे नीली महक से जगमगाते द्वार की शोभा बन गयीं हैं | इनके दाएँ बाएँ पाच के नूरी थम्भ शोभा ले रहें हैं | ऊतर दिशा में पुखराज के दवार के दोनों और माणिक के थम्भ है| दक्षिण मे माणिक के द्वार के दोनों और पुखराज के थम्भ आये है | और चारों द्वारों के मध्य में आएँ चारों खाँचों में हीरा, लसनिया, गोमादिक, मोती, पन्ना, परवाल, हेम, नूर, चाँदी, कँचन, पिरोजा और कपूरिया के थम्भ आये है ।रूह थम्भो की शोभा को देख रही हैं | थम्भ के निचली तरफ चार हांस आएँ हैं ,उसके ऊपर आठ और मध्य में थम्भ सोलह हांस का शोभित हैं फिर पुनः आठ और चार हांस क्रमशः आएँ हैं | इस प्रकार से बहुत ही प्यारी जुगति से थम्भो की शोभा आईं हैं |जिनमें कई कटाव हैं कई प्रकार के अनुपम नक्काशी हैं | अलग अलग प्रकार के चित्रामन है और हर चित्र के जुदे ही भाव हैं | देख तो सखी , एक एक रंग का अद्भुत जवेर और उसी में आईं चेतन नक्काशी ,उनके अलग अलग कटाव एक से बढ़कर एक सुंदर हैं | इस प्रकार से रूह ने चारों खाँचों में आएं अड़तालीस थम्भ और उनकी शोभा को फेर फेर निरखा | सोलह थम्भ चारों द्वारों के हैं -यह चौसठ थम्भ चबूतरे पर सुशोभित हैं |
अत्यंत ही सुंदर ,नरम ,चेतन पशमी गिलम (बिछौना)चबूतरे पर बिछी हैं | यह गिलम चबूतरे की किनार पर आएं कठेड़े से जाकर लगी हैं जिसकी शोभा सुखदायी है |प्रियतम श्री राज जी को रिझावन खातिर गिलम एक पल में ही कई रंग रूप धारण करती हैं तो इनके रंग का ,शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से कैसे हो ?सखी ,एक बड़ी ही खुशहाल करने वाली शोभा देखिए ,दुलीचे को घेर कर श्याम ,श्वेत ,हरित और जर्द (पीला) रंग की अत्यंत ही मनोरम ,तेजोमयी दोरी आईं हैं |नूरी दोरी में कई तरह के कटाव हैं ,कई प्रकार के नूरी चेतन वृक्षों और बेलियों का चित्रामन हैं | जिनमें कई प्रकार के पत्तियाँ और फूलों का जड़ाव हैं | अब श्रीराज जी की मेहर से रूह की नज़र जाती हैं ऊपर की और – एक अति मनोरम शोभा -थम्भों को भराए कर के नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,महीन -महीन नक्काशी से सज्जित और मोतियों की लड़ो से शोभित चंद्रवा आया हैं |चन्द्रवा के मध्य में भाँति भाँति की चित्र कला चित्रित हैं |चबूतरे की किनार पर आएं थम्भ ,उनकी महेराबे ,थम्भों पर शोभित चंद्रवा ,नीचे नूरी ,नरम दुलीचे की जोत ,उनकी तरंगे आपस में युद्ध करती हुई मनोरम प्रतीत हो रहीं हैं |
चबूतरे के मध्य में सहस्त्र पाँखुड़ी के कमल के फूल पर कंचन रंग के सिंहासन की शोभा हैं ।जिसमें छः पाये छः डांड़े आएँ हैं | जिन पर अद्भुत चित्रामन जगमगा रहा हैं और उन पर नूरी ,चेतन फूल खिले है | एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) | दोनों स्वरूपों के ऊपर दो नूरी फूलों की शोभा लिए छत्र सुशोभित हैं | दो कलश तो इन छत्रियों पर हैं और छः कलश घेर कर आए हैं | यह आठ कलश हेम ,स्वर्ण के हैं जो आत्मा को अति प्यारे लगते हैं |छत्री की अद्भुत ,झलकार करती हुई शोभा – जिनमें कई रंग नंग हैं और किनारे भी नंगों की जोत से जगमगा रहे हैं | छत्री में कई प्रकार की सोहनी दोरी ,बेलियाँ और चारों और फिरती नूरी कांगरी अति खुशहाल करती हैं | पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |जिन पर भी अनेक प्रकार की कई सूक्ष्म अत्यंत ही मनोहारी चित्रण हैं |चारों थम्भो पर चारों ओर से चढ़ती कांगरी सुशोभित हैं | कांगरी में कई प्रकार के नूर से भरे फूल ,पत्ते ,बेलें और महीन कटाव आएँ हैं | सिंहासन पर एक गादी दो पशमी चाकले और दो तकिये पीछे दो दाएँ -बाएँ और मध्य मे एक तकिया रोशन है |श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख अद्भुत छब से विराजमान हैं |सखी मेरी ,युगल स्वरूप श्री राज श्याम जी के चरणों की शोभा को अपने धाम ह्रदय में बसा --एक पल के लिये भी पलक न बंद कर - श्री राज श्याम जी के नूरी चरण कमलों की शोभा ,स्वरूप को निरख

बुधवार, 23 नवंबर 2016

निरत की हवेली

प्रणाम जी 

निरत की भोम चलना हैं ...श्री राज श्याम जी और सखियों के संग निरत के अखंड आनंद में झीलना हैं -

क्यों सखियों ,धाम की लाड़लियों अपने धाम में निरत लीला का अखंड आनंद लेना हैं ना ?

तो चले सुरता से निरत की हवेली 

श्री रंगमहल की चौथी भोम में निरत की हवेली में चले तो आइये मार्ग देखे --कैसे पहुंचे निरत के मनोहारी चौक में जहां निरत की अलौकिक लीला होती हैं तो परमधाम का जर्रा जर्रा निरत के आनद में मगन हो जाता हैं
पहले प्रथम भोम की और नजर करते हैं --चांदनी चौक से सौ सीढियां बीस चांदों सहित पार करके धाम द्वार के सन्मुख पहुँचते हैं --धाम दरवाजा पर किया --आगे एक नूरमयी गली पार कर 28  थम्भ के चौक में आये

चौक के आगे पहली चौरस हवेली को पार किया ...दूसरी -तीसरी हवेली पार की --तो सामने चौथी चौरस हवेली --ठीक इसी हवेली के ऊपर चौथी भोम में निरत की हवेली सुशोभित हैं                        


तो चलते हैं चौथी भोम --वहां जैसे ही तीसरी हवेली के पश्चिमी द्वार से बाहर निकलेंगे तो सामने निरत की हवेली की मनोहारी शोभा दिखेगी --

सामने चौथी भोम की चौथी हवेली -निरत की हवेली --

शोभा देखते हैं --अपनी निरत की भोम की 

निरत की हवेली की पूर्व दिशा में 21  मंदिर की मनोहारी दहलान आयी हैं --पूर्व दीवार में मंदिर ना आकर नूरमयी थंभों की दो हार आयीं हैं ---

तो सखियों , हम खड़े हैं तीसरी चौरस हवेली के पश्चिम के मुख्य द्वार पर --तो यहाँ से आगे बढ़ते हैं ..सबसे पहले दो थंभों की हार तीन गालियां पार करते हैं ..आगे दहलान से होते हुए हवेली के भीतर आएं --

हवेली के भीतर आते हैं तो देखेंगे ...पूर्व में दहलान की शोभा देखी --उत्तर दिशा में पुखराज  नंग में मंदिरों की दीवार आयीं हैं --दक्षिण दिशा में मंदिरों की शोभा माणिक नंग में शोभित हैं और पश्चिम में हीरा नंग में मंदिर झलकार कर रहे हैं --

इस प्रकार से हवेली की दीवार मंदिरों की आयीं हैं --घेर कर आएं इन मंदिरों की शोभा देखे --पूर्व में दहलान की शोभा --

मंदिरों की हार के भीतर एक थम्भ की हार दो गालियां आयीं हैं और ठीक मध्य में चबूतरा --

इन चबूतरा की किनार पर भी थम्भ आये हैं --तो देखे सखियों --इन चबूतरा पर खड़े होकर हवेली के चारों दिशा की शोभा --

पूर्व की और नीला रंग के थंभों की झलकार और उनके मध्य आयीं मनोहारी गालिया -उत्तर में पुखराज रंग की झलकार --दक्षिण में माणिक रंग झिलमिलाता हुआ तो पश्चिम में श्वेत रंग की जगमगाहट --चारों और से रोशन हैं निरत की हवेली













तो आइये चौथी भोम की चौथी हवेली जहाँ धाम की अलौकिक निरत हो रही हैं ..पिऊ की प्यारी नवरंग बाई नृत्य कर रही हैं --पिऊ की आँखों में आँखे डाल - उनके स्नेह में भीगी रूहें निरत में झूम रही हैं ..परमधाम का जर्रा जर्रा निरत में झूम रहा हैं