हौज कौसर की शोभा
प्रणाम जी ,
एक बार फिर से
हमारे सामने रंगमहल हैं और चलना हैं हौज कौसर --
रूह के दिल की आवाज तो
सुखपाल हाजिर --
उनमें सवार हो हम रूहें चली हौजकौसर तालाब -
सबसे पहले आकाश मार्ग से शोभा देखी--चांदनी चौक
अमृत वन के तीसरे हिस्से में सुशोभित खुली चांदनी से युक्त चौक जो रंगमहल के मुख्य द्वार के सामने सुशोभित हैं --चांदनी चौक में बिखरी रेती मोती माणिक के भांति जगमगा रही हैं जिनका तेज आकाश तक झिलमिला रहा हैं --लाल हरे वृक्ष का नूर और
शोभा देखते हुए हम मुड़ते हैं दक्षिन दिशा की और जहाँ रंगमहल से ठीक साढ़े चार लाख कोस की दुरी पर हौजकौसर अपार शोभा से शोभायमान हैं
प्रणाम जी ,
एक बार फिर से
हमारे सामने रंगमहल हैं और चलना हैं हौज कौसर --
रूह के दिल की आवाज तो
सुखपाल हाजिर --
उनमें सवार हो हम रूहें चली हौजकौसर तालाब -
सबसे पहले आकाश मार्ग से शोभा देखी--चांदनी चौक
अमृत वन के तीसरे हिस्से में सुशोभित खुली चांदनी से युक्त चौक जो रंगमहल के मुख्य द्वार के सामने सुशोभित हैं --चांदनी चौक में बिखरी रेती मोती माणिक के भांति जगमगा रही हैं जिनका तेज आकाश तक झिलमिला रहा हैं --लाल हरे वृक्ष का नूर और
शोभा देखते हुए हम मुड़ते हैं दक्षिन दिशा की और जहाँ रंगमहल से ठीक साढ़े चार लाख कोस की दुरी पर हौजकौसर अपार शोभा से शोभायमान हैं
अब उड़ान रंगमहल की दक्षिन दिशा में --सबसे पहले शोभा दिखाई धनि बट पीपल की चौकी की --आगे कुञ्ज निकुंज --फूलों की अपार शोभा --फूलों की सभी जोगबाई --कुञ्ज नेकुंज की अपार शोभा देखते हुए हौज कौसर तालाब के पश्चिम दिशा में आ पहुंचे --कुञ्ज वन की रेती में सुखपाल उतरें --उतरते समय भूखनो की मीठी झंकार उल्लास ,उमंग से भरी हम लाड़लियां लाहूत की
हौजकौसर के पश्चिम दिशा में कुञ्ज वन की रेती में हैं और यहाँ से देखते हैं हौजकौसर की शोभा --
सर्वप्रथम शोभा दिखाई देती हैं पुखराजी रोंस --आने जाने का बड़ा मार्ग जिनमें वृक्षों की दो हारें आयीं हैं जिनकी दो भोम आयीं हैं --वृक्षों की डालियों ने आपस में मिलान कर नूरी चंदवा किया हैं --पुखराजी रोंस कुञ्ज निकुंज की रेती से कमर भर ऊंची आयी हैं --हान्स हान्स पर उतरती सीढियां देखे --
सुन्दर ,मनोहारी तीन सीढियां चढ़कर पुखराजी रोंस पर आएं --500 मंदिर चौड़ी रोंस लंबाई में घेर कर हौजकौसर को घेरती हुई आयीं हैं
पुखराजी रोंस के आगे --भीतर की और वन रोंस आयीं हैं --इन रोंस में वृक्ष नहीं आयें हैं --इन वन रोंस के ऊपर से पुखराजी रोंस ने छत्रिमंडल किया हैं --
इन वन रोंस पर हौजकौसर तालाब की पहली शोभा देखिए --वन रोंस पर हौजकौसर के ठीक पश्चिम दिशा में 250 मंदिर का चौक आया हैं और चौक के दोनों और 250 मंदिर के लंबे चौड़े तीन सीढ़ी ऊंचे दो चबूतरा आये हैं जिनकी उत्तर ,दक्षिन और पूर्व दिशा में सीढियां उतरी हैं और पश्चिम में तो चबूतरे ढलकती पाल से मिल गए हैं -
अब ढलकती पाल --ये वन रोंस से तीन सीढ़ी ऊंची आयीं हैं --हान्स हान्स से वन रोंस से ढलकती पाल पर सीढियां चढ़ी हैं --
चबूतरा पश्चिम में ढलकती पाल से मिल गए हैं --चबूतरा के ठीक पश्चिम भाग में ढलकती पाल पर देहुरियों की शोभा आयीं हैं --चार थम्भ उठे --उन पर सुन्दर मेहराब --नूरी छत --कलश देहुरी की अपार शोभा --
तो 750 मंदिर की चौड़ी ढलकती पाल के पहले हिस्से की शोभा यह देहुरियाँ हैं --दूसरे हिस्से में पड़साल आयीं हैं जिनमें वृक्षों की दो हारे आयीं हैं जिनकी मेहराबों में हिंडोले आयें हैं --पुखराजी रोंस के वृक्ष और पड़साल के वृक्ष आपस में मिलान करते हुए एक फूलों की छत बनाते हैं --
एक अनुपम शोभा --भीतर ताल तक सम्पूर्ण शोभा के ऊपर एक नूरी चंदवा तना हैं
ढलकती पाल के तीसरे हिस्से में संक्रमणिक सीढियां आयीं हैं
वन रोंस से चबूतरों की अपार शोभा देखते हुए देहुरी की शोभा में रमन किया --पड़साल में हिंडोले झूल अब है संक्रमणिक सीढ़ियों में सम्मुख-
चढ़ती सीढियां --अति सुन्दर मनोहारी शोभा लिये --ऊपर नजर की तो फूलों का चंदवा शोभित हैं --सुगंधि का कोई पारावार नहीं --हंसते -खेलते ,हाथों में हाथ थामें भोम भर सीढियां चढ़ कर चौरस पाल पर आन पहुंचे
चौरस पाल हजार मंदिर चौड़ी सुशोभित हैं --चौरस पाल के चार हिस्से हैं पहले हिस्से में घाट आयें हैं --पश्चिम में झुण्ड का घाट ,उत्तर दिशा में नव देहुरी का घाट ,दक्षिण में तेरह देहुरी का घाट और पूर्व दिशा में सोलह देहुरी का घाट आयें हैं -
दूसरे हिस्से में पड़साल आयीं हैं जिनमें वृक्ष की दो हार आयीं हैं --
तीसरे हिस्से में देहुरियाँ शोभित है
चौथे हिस्से में कटी पाल की सीढियां हैं
संक्रमणिक सीढियां चढ़कर चौरसपाल पहुंचे --चौरस पाल के इन पहले हिस्से में झुण्ड का घाट सुशोभित हैं --सीढियां चढ़कर खुद को 250 मंदिर के लंबे चौड़े चौक में देखा और दोनों हाथ 250 मंदिर के लंबे चौड़े कमर भर ऊंचे चबूतरे हैं
-- नीचे जो वन रोंस पर जो चौक और चबूतरे आए है ठीक उन्ही की सीध मे मध्य 250 मंदिर का चौक है दाएँ बाएँ 250 मंदिर के लंबे चौड़े तीन सीढी उँचे चबूतरे आए है --चबूतरे से चारो दिशा मे सीढीयाँ उतरी है-- चारो कोनो मे वृक्ष आए है -- इन वृक्षों ने एक चबूतरे पर आठ दीवार की है -- तो एक तरफ की शोभा देखे तो 250 मंदिर की जगह मे 125 मंदिर का द्वार है और दाएँ बाएँ 62/50-62/50 मंदिर की दीवार है -- यह दीवार विरिक्षो की है-- इसी प्रकार चारो और की शोभा है--
झुंड का घाट की पाँच भोंम छटी चाँदनी है--चबूतरो की शोभा पहली भोंम मे ही है ! दोनो चबूतरो और चौक की देखन की बारह मेहराब है पर गिनती मे दस है -- एक चबूतरे मे आठ दीवार और दोनो मे मिलकर सोलह दीवार की शोभा भोंम दर भोंम पाँच भोंम तक है -- दीवारो मे आया चित्रामन की शोभा बेमिसाल है--फूलों पत्तियों की मेहराबें ,चंदवा ,फूलों -फलों की जोगबाई हर और नूरी महक से सराबोर कर रही है
रमणीय शोभा झुण्ड के घाट की --मध्य में मनोहारी चौक और चौक के दोनों और कमर भर ऊंचे चबूतरे पर वनों की ही मनोहारी दीवारे --चबूतरे की एक दीवार देखे तो मध्य में फूलों से सुसज्जित द्वार और दाएं बाएं वनों की ही दीवार --फूलों से महकती तीन सीढियां चढ़कर द्वार से भीतर गए तो प्यारी सी शोभा --चारो दिशा में चार मेहराबी द्वार --उनसे उतरती सीढियां --ऊपर नूरी छत --भोम दर भोम पांच भोम छठी चांदनी की शोभा आयी हैं --चबूतरे पर सुन्दर बादशाही बैठके --हौजकौसर के नूरी ,निर्मल जल जल में झिलना कर आप श्री राज श्यामा जी यहां सिंगार सजते हैं और हान्स विलास करते हैं --
इसी तरह से दूसरा चबूतरा भी शोभित हैं एक से बढ़कर एक शोभा ,साजो सामान --रूहों को अखंड सुख प्रदान करने के लिये --पांच भोम ऊंचे इन घाट की सम्पूर्ण शोभा नूरी ,कोमल फूल ,पत्तियों की आयीं हैं
हौजकौसर की चौरस पाल के प्रथम हिस्से के पश्चिम दिशा में झुण्ड के घाट की शोभा देख अब रूह आगे बढ़ती हैं --चौरस पाल के दूसरे हिस्से में -
इन दूसरे हिस्से में पड़साल की शोभा आयीं हैं --250 मंदिर की इन पड़साल 250 मंदिर की चौड़ी आयीं हैं --पड़साल में वृक्षों की दो नूरमयी हारें आयीं हैं जिनकी मेहराबों में हिंडोलों की अपार शोभा आयीं हैं
पड़साल की शोभा अद्भुत हैं --नूरमयी वृक्षों की दो हारें और उनका फूलों का छत्रिमंडल --नूरी हिंडोले --कहीं खड़े होकर हींचने वाले झूले तो कहीं सेज्या हिंडोले तो कहीं सिंहासन हिंडोले --और इन पर श्री राज श्याम जी के संग झूलने के अखंड सुख
पड़साल की शोभा देखते हुए आगे बढ़ते हैं तो चौरस पाल के तीसरे हिस्से में देहुरियों की शोभा आयीं हैं --हान्स हान्स के मध्य में 250 मंदिर की लंबी चौड़ी रंगों नंगों से महकती देहुरियाँ --
घेर कर 128 हंसो में 128 देहुरियाँ शोभित हैं --हर हान्स में नया ही रंग ,शोभा
और अब देखते हैं देहुरियों के आगे सुन्दर चबूतरे आयें हैं जिनके दोनों और से कटी पाल की भोम भर सीढियां उतरी हैं
झुण्ड के घाट के पूर्व में अर्थात ताल की और पड़साल को पार करके जो घाट के चबूतरो के सामने देहूरियाँ आई उनके मध्य से 250 मंदिर की जगह ले कर भोंम भर की सीढी उतरी है--भोंम भर सीढीयाँ उतर कर 750 मंदिर के लंबे 250 मंदिर के चौड़े चबूतरे अपर आइए वहाँ से फिर तीन सीढी उतर ताल रोंस पर आइए
एक रास्ता और है जो घाट के सामने आयीं देहूरियो और सीढी के सामने चौरस पाल पर 750 मंदिर का लंबा और 250 मंदिर का चौड़ा चान्दा है जिसके दोनो तरफ भोंम भर सीढी उतरी है ! इन कटी पाल की सीढीयों से भोंम भर उतर पाल पर आए वहाँ से तीन सीढी उतर जल रोंस पर आइए
इस नक़्शे में देखे --झुण्ड के घाट के आगे पड़साल ,वृक्षों की हारें --आगे देहुरियाँ --घाट के चबूतरों के सामने आयीं देहुरियों में देखन की 12 मेहराब --गिनती की दस --मध्य की मेहराब से उतरी सीढियां --
झुण्ड के घाट की शोभा देख रूह जल रोंस पहुँचती हैं --अब शोभा बसानी हैं उत्तर दिशा में आये नाव देहुरी के घाट की तो रूह जल रोंस से अपनी बायीं और मुड़ कर उत्तर दिशा की और चलती हैं --साथ साथ शोभा भी दिल में दृढ करती हैं रूह जल रोंस या ताल रोंस की जिससे हाथ लगते जल की शोभा हैं --दूसरे शब्दों में कहे तो हौज कौसर के ताल को घेर कर आयीं रोंस जल के बराबर आयीं हैं
सबसे पहले शोभा देखते हैं नूरी ताल रोंस की --अति उज्जवल हीरा की रोंस ---दायीं और नजर की तो ताल की शोभा --लहराता निर्मल जल और ठीक मध्य भाग में टापू मोहोल की अद्भुत शोभा --कमल के मान्निद खिला खिला सा हमारा टापू मोहोल --और ताल के किनारे घेर कर आया अति सुन्दर रंगों नंगों से सुसज्जित कठेड़ा --तो कठेड़े के नजदीक आएं तो देखा की उतरती सीढियां --जल चबूतरा पर ले जाने के लिये प्रस्तुत
और बायीं और नजर की तो भोम भर ऊंची चौरस पाल के चौथे हिस्से में शोभित कटी पाल की सीढियां -----इन सीढ़ियों की शोभा देखती हैं --घेर कर आयीं देहुरियों के आगे चबूतरें और उन चबूतरों से एक चांदा के तरह दोनों और उतरती सीढियां और इन उतरती सीढ़ियों के तरफ तो दिवार आयीं हैं और ताल तरफ कठेड़े की शोभा हैं --और जहाँ आमने सामने से सीढियां उतर रही हैं उन चौक में देहुरी की अपार शोभा
और एक शोभा दिल को लुभाने वाली --ताल रोंस से लगते बड़े छोटे द्वार --
चौरस पाल पर तीन हार वृक्ष आएं हैं --पहली हार संक्रमणिक सीढियां चढ़ते ही चौरस पाल की किनारे पर आयीं हैं --वृक्षों की दो हारें 250 -250 मंदिर के अंतर पर और आयीं हैं तो चौरस पाल पर जल रोंस की तरफ वाली वृक्षों की हार ने 1125 मंदिर छतरिमंडल बढ़ा कर जल चबूतरे तक छाया दी है --ऊपर की और नजरें की तो दो मंदिर उँचा फुलो पत्तियो का चंद्रमा सुशोभित है जिसकी नूरी झलकार से जल रोंस पर प्रतीत होता है मानो फूलों की गिलम बिछी हो
इस तरह से शोभा देखते हुए 32 हान्स पर किया और आ पहुंचे नव देहुरी के घाट के सामने
good description. Pranam!
जवाब देंहटाएं